शिमला सम्मेलन क्या था?
shimla sammelan;कांग्रेस और लीग का अन्य वर्गों के साथ 29 जून, 1945 को शिमला मे एक सम्मेलन हुआ। इस सम्मेलन मे कांग्रेस ने मुस्लिम साम्प्रदायिकता की मांग को स्वीकार करके समानता के आधार पर वायसराय की विधान परिषद् मे प्रतिनिधि खड़े करना मान्य कर लिया। मुस्लिम लीग की यह विजय थी, क्योंकि मुस्लिम संख्या अनुपात मे कम थी। फिर भी वायसराय की कार्यकारिणी परिषद् मे मुस्लिम सदस्यों को भेजने का अधिकार केवल मुस्लिम लीग को ही देने की मांग की गई। इसका पंजाब के मुख्यमंत्री मलिक खिज्र और हयात खाँ ने विरोध किया। उनकी मांग थी कि पंजाब को भी कार्यपालिका मे सदस्य भेजने का अधिकार मिलना चाहिए।
प्रतिक्रिया
वैबिल योजना और उसकी पूर्ति के लिये सम्पन्न शिमला समझौता का प्रयास मात्र एक कोरा नाटक था। वास्तव मे परोक्ष रूप मे चर्चिल हिन्दू मुस्लिम भेदभाव को बढ़ा रहे थे। उन्होंने इसका खूब प्रचार किया कि भारत मे साम्प्रदायिकता की समस्या का समाधान असंभव है।
निष्कर्ष
इंग्लैंड मे चुनाव हो जाने के बाद अनुदार दल और मुस्लिम लीग के उद्देश्य स्पष्ट हो गये तथा मुस्लिम लीग को भारतीय जनमत के विभाजन और ब्रिटिश शासन का आधार बनाया गया। कांग्रेस ने वैबिल योजना और शिमला समझौते को एक धूर्तता और जिन्ना ने भी पाकिस्तान प्रस्ताव की उपेक्षा के कारण एक षड्यंत्र बताया। अन्य दलों ने भी इसका विरोध किया। अतः यह योजनायें व्यर्थ सिद्ध हुई, परन्तु चर्चिल सफल रहे। लेबर दल ने भी भारत की स्वतंत्रता के लिये कोई कदम नही उठाया।
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