सामंतवाद के पतन के कारण (samantvad ke patan ke karan)
सामन्तवादी व्यवस्था के पतन के कारण इस प्रकार है--
1. सामंतो के आपसी संघर्ष
सामंतवादी व्यवस्था के पतन का एक कारण सामंतो के आपसी संघर्ष थे। सामन्त युद्धप्रिय होने के कारण अपनी शक्ति व सम्पत्ति के विस्तार के लिये निरन्तर संघर्षरत् होने लगे थे, इससे उनकी शक्ति का ह्रास होने लगा और उनकी लोकप्रियता कमी होने लगी। उनके युद्धो के कारण जनता को परेशानी होती थी, जिससे उनकी लोकप्रियता कम होने के साथ ही उनकी आर्थिक स्थिति भी खराब हो गई। ऐसी कमजोर स्थिति मे राजाओं ने उनकी शक्ति को समाप्त कर दिया।
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2. राष्ट्रीयता की भावना
यूरोप मे तेजी से शिक्षा का प्रसार हो रहा था, जिससे राष्ट्रीयता की भावना विकसित हुई जो सामंतो की विरोधी थी। इसमे परस्पर टकराव होने से सामंतवाद का पतन होने लगा।
3. नये हथियार गोला-बारूद तथा बन्दूकों का प्रचलन
सामंतों की आपसी लड़ाइयां तथा युद्ध परम्परागत तरीके के हथियारों से होते थे, परन्तु जैसे-जैसे यूरोप मे बन्दूक तथा गोला-बारूद का प्रवेश हुआ सामंतो का सामरिक महत्व घटने लगा। उनके अभेद् य किले अब बारूद के आविष्कार से अभेद् य नही रहे। सामंतो की घुड़सवार सेना का महत्व कम हो गया। राजाओं ने अपने स्वयं की सेनाएं स्थापित कर ली थी जो नवीन हथियारों, गोला-बारूद और बंन्दूको से सुसज्जित होती थी।
4. धर्म युद्ध
मध्यकाल मे जेरूशलेम, नजारेल आदि धार्मिक स्थलो पर आधिपत्य की आकांक्षा से मुसलमानों व ईसाईयों के बीच रक्त-रंजित संघर्ष हुये, जिन्हे धर्म युद्ध कहा गया है। पोप के आदेश पर सामंतो ने इनमे भाग लिया। धीरे-धीरे लड़कर वे स्वयं ही आर्थिक रूप से विपन्न हो गये और उनका प्रभुत्व समाप्त हो गया।
5. छापेखाने का अविष्कार
यूरोप मे छापेखाने का अविष्कार हुआ, जिससे नई-नई पुस्तकें व नये-नये विचार जनता के सामने प्रकट हुये। इससे अंधविश्वासों मे न्यूनता आई और लोग सामंतवाद की बुराईयों से अवगत होकर इसकी समाप्ति हेतु सक्रिय हो गये।
6. रोमन सम्राटों का प्रयास
पश्चिम यूरोप मे एक हजार ईसवीं के लगभग पवित्र रोमन साम्राज्य की स्थापना हुई थी। ये सम्राट शक्तिशाली केन्द्र की स्थापना करना चाहते थे, अतः उन्होंने सामंतो की शक्ति को बढ़ाने से रोक दिया।
7. कृषको मे विद्रोह
सामंतो के शोषण, अनाचार और अत्याचार से कृषक अत्यधिक क्षुब्ध थे। अपनी मांगो के समर्थन मे कृषकों ने विद्रोह प्रारंभ कर दिया। सन् 1831 मे इंग्लैंड मे " वार टाइलर " के नेतृत्व मे कृषकों मे ऐसा ही विद्रोह किया। फ्रांस मे भी किसानो का एक व्यापक विद्रोह हुआ। अब कृषक नगरों मे जाने लगे और सामन्तों से स्वतंत्र होने लगे।
8. पुनर्जागरण तथा धर्म सुधार आंदोलन
सामंतवाद के पतन मे पुनर्जागरण तथा धर्म सुधार आंदोलनो ने भी महत्वपूर्ण योगदान दिया। पुनर्जागरण आंदोलन ने मानववाद और राष्ट्रीय राज्यों के उदय का मार्ग बनाया। अब मनुष्य का विवेक जागृत होने लगा जिससे शोषण के विरुद्ध आवाज उठायी जा सकती थी। धर्म सुधार आंदोलन ने चर्च की सत्ता पर कुठाराघात किया जो सामंती व्यवस्था का मुख्य आधार था।
सामंतवाद के दोष (samantvad ke dosh)
समामन्तवादी व्यवस्था मे कई दोष थे। इसी कारण आधुनिक यूग के आगमन के साथ ही मध्यकालीन यह व्यवस्था ढह गयी। इस व्यवस्था के कारण समाज अनेक वर्गो मे बंट गया था। उच्च वर्ग को प्राप्त असीमित अधिकारो तथा उनके शोषण की प्रवृत्ति ने उच्च एवं निम्न वर्ग के सम्बन्धो मे कटुता पैदा कर दी थी।
सामंतवादी व्यवस्था के अंतर्गत अपने से नीचे के वर्ग का शोषण करना, उच्च वर्ग अपना अधिकार मानता था। उच्च वर्ग के इन विशेषाधिकारो को समाप्त करने मे यूरोप की जनता को सदियों तक संघर्ष करना पड़ा। सामंतवादी व्यवस्था के कारण युद्धों को भी बढ़ावा मिला। प्रत्येक सामंत की अपनी अलग सेना होती थी एवं अपनी जागीर को बढ़ाने हेतु वे समय-समय पर सेना का प्रयोग करते थे, जिससे जनसाधारण को अपार कष्टों का सामना करना पड़ता था। इन युद्धों से कृषि तथा व्यापार प्रभावित होता था, जिससे देश की आर्थिक स्थिति पर दुष्प्रभाव होता था। इसके अलावा, सामंतवादी व्यवस्था के कारण मध्यकाल मे यूरोप मे शक्तिशाली देशों का आविर्भाव न हो सका, क्योंकि प्रत्येक देश छोटे-छोटे राज्यों मे विभक्त था, जिनके सामंतो पर राजा का विशेष नियंत्रण न था। इसका कारण यह था कि कई सामंत अपने राजा से भी ज्यादा शक्तिशाली थे। साधारण जनता को राजनीतिक अधिकार प्राप्त न थे एवं प्रजा तथा राजा के मध्य कोई सीधा सम्पर्क न था। अतः जनसाधारण का जीवन अत्यंत कष्टदायी था। साधारण जनता अत्यधिक शोषण की शिकार थी। उद्योग धन्धों के विकसित न होने के कारण जनसाधारण को जीवनयापन के लिए कृषि पर ही निर्भर रहना पड़ता था, जो पूर्णतः सामंतो के ही नियंत्रण मे थी।
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