सामंतवाद क्या था/सामंतवादी व्यवस्था किसे कहते थे?/सामंतवाद का अर्थ
samantvad in hindi;यूरोप के इतिहास का मध्यकाल सामंतवादी व्यवस्था का युग माना जाता है। सामंतवादी व्यवस्था वह प्रणाली थी जिसके अंतर्गत राजनीतिक शक्ति का प्रयोग अशासकीय व्यक्ति करते थे, न कि केद्रीयकृत राज्य के प्रधान अधिकारी।
सामंतवाद का अर्थ था ", राजा द्वारा जो जमीन धनी सरदार को दी जाती थी उसे " फ्यूड" अथवा "जागीर" कहा जाता था। धनी सरदार को सामंत या जागीरदार कहते थे। इनके अधीन छोटे जमींदार तथा उसके नीचे किसान एवं अंत मे भूमिहीन अर्धदास होते थे। इस प्रकार राजा से लेकर अर्धदास तक सम्बन्धों की एक कड़ी बनी, जिसका आधार भूमि था। इस कड़ी का सबसे महत्वपूर्ण एवं शक्तिशाली व्यक्ति सामंत होता था।
सामंतवादी व्यवस्था का उदय एकीकृत राजनीतिक व्यवस्था के विघटन के बाद हुआ। यह व्यवस्था तब तक चली जब तक पुनः केन्द्रीयकृत व्यवस्था स्थापित नही हो गई। सामन्तीय व्यवस्था विश्व के विभिन्न देशो मे स्थापित थी।
सामंतवाद (सामन्तीय व्यवस्था) के तीन प्रमुख तत्व या आधार थे--
1. जागीर
2. सम्प्रभुता
3. संरक्षण
कानूनी रूप से राजा या सम्राट भूमि का स्वामी होता था। समस्त भूमि विविध श्रेणी के सामन्तों के स्वामित्व मे और वीर सैनिकों मे विभक्त थी। सामन्तों मे यह वितरित भूमि उनकी जागीर होती थी। राजा या सम्राट से इनको संरक्षण प्राप्त होता था। ये सामन्त अपनी भूमि को कृषकों मे बांट देते थे और उनसे खेती करवाते थे। ये कृषकों से अपनी इच्छानुसार कर के रूप मे खुब धन वसूल करते थे। ये सामन्त कृषकों का भरपूर शोषण करते थे। दूसरी ओर सामन्तों की प्रभुता, सत्ता, उनकी शक्ति, उनकी सम्पन्नता और विलासिता मध्ययुगीन यूरोप के समाज की प्रमुख विशेषता थी।
सामंतवाद की विशेषताएं या लक्षण (samantvad ki visheshta)
सामंतवादी व्यवस्था की विशेषताएं या लक्षण इस प्रकार है--
1. राजा सर्वोच्च सत्ताधारी
सामंतवादी व्यवस्था मे राजा समाज मे सर्वोपरि स्थान प्राप्त करता था और उसके अधीनस्थ अन्य छोटे-छोटे सामंत थे, जो राजा की सहायता करते थे। सामंतो की अधीनता मे कृषक वर्ग कार्य करता था।
2. राजा के सहायक सामंत
सामंतो के पास जागीरें हुआ करती थी, जिनको वह कृषकों मे बांट दिया करते थे। सामंत राजा को सैनिक सहायता भी देते थे। वे अपने क्षेत्रों के निरंकुश शासक होते थे दासो को बेगार देते थे। सामंतो को अपने क्षेत्र मे न्याय के अधिकार भी प्राप्त थे।
3. द्विवर्गीय समाज
सामंतशाही प्रथा ने समाज को दो वर्गों मे विभाजित कर दिया था। भूमिपति वर्ग तथा निर्धन कृषक वर्ग। कृषकों से उनकी भूमि की उपज या पर्याप्त अंश सामंत ले लिया करते थे और कृषक या दास वर्ग दरिद्र जीवन ही व्यतीत करते थे।
4. दास प्रथा
सामंत दासो से बेगार कर वाते थे। दासों को अपनी स्वामी के सम्मुख प्रतिज्ञा करनी पड़ती थी कि " प्राप्त भू-भाग के लिए मै आपका सेवक हूं और सदैव सद्भाव से आपकी सेवा करूंगा।" इस इस प्रकार भूदान के प्रतिरूप मे सेवा की प्रतिज्ञा सामंतवाद की एक विशेषता थी। ये सेवक दास ही होते थे।
5. जागीरदारी प्रथा
राजा अपनी सारी भूमि शक्तिशाली सामंतों मे वितरित कर देता था और ये सामंत उसे कृषकों को खेती के लिए दे दिया करते थे। समाज मे सामंतो की स्थिति बहुत ही सुदृढ होती थी।
आपको यह भी जरूर पढ़ना चाहिए; सामंतवाद के पतन के कारण और दोष
आपको यह जरूर पढ़ना चाहिए;पुनर्जागरण का अर्थ, कारण एवं विशेषताएं
आपको यह जरूर पढ़ना चाहिए;पुनर्जागरण के प्रभाव
आपको यह जरूर पढ़ना चाहिए; सामंतवाद का अर्थ, विशेषताएं या लक्षण
आपको यह जरूर पढ़ना चाहिए; यूरोप के आधुनिक युग की विशेषताएं या लक्षण
आपको यह जरूर पढ़ना चाहिए;यूरोप मे धर्म सुधार आंदोलन के कारण
आपको यह जरूर पढ़ना चाहिए;वाणिज्यवाद का अर्थ, विशेषताएं
आपको यह जरूर पढ़ना चाहिए; वाणिज्यवाद के उदय कारण, परिणाम, उद्देश्य
आपको यह जरूर पढ़ना चाहिए; वाणिज्यवाद के सिद्धांत
आपको यह जरूर पढ़ना चाहिए;उपनिवेशवाद क्या है? उपनिवेशवाद के कारण
आपको यह जरूर पढ़ना चाहिए;औद्योगिक क्रांति का अर्थ, कारण, प्रभाव या परिणाम
आपको यह जरूर पढ़ना चाहिए;अमेरिका के स्वतंत्रता संग्राम के कारण, घटनाएं
Class xi th aarts ka questhion and answerd
जवाब देंहटाएंYe n adikhaye
जवाब देंहटाएंSamantwaad ki visheshtay
जवाब देंहटाएं