यूरोप मे पुनर्जागरण का समय 1300 से 1600 ई. तक माना गया है। इस लेख मे हम पुनर्जागरण क्या है? पुनर्जागरण किसे कहते है? पुनर्जागरण का अर्थ, पुनर्जागरण के कारण और पुनर्जागरण की विशेषताएं जानेंगे। नीचे पुनर्जागरण के प्रभाव भी दिऐ गये है।
पुनर्जागरण का अर्थ (punarjagran ka arth)
पुनर्जागरण का शाब्दिक अर्थ होता है ", फिर से जगाना।" पं. नेहरू के शब्दों मे पुनर्जागरण का अर्थ है " विद्या, कला, विज्ञान, साहित्य और यूरोपीय भाषाओं का विकास।"
मध्यकाल मे प्राचीन आर्दश एवं जीवन मूल्यों को भूला दिया गया था या उनको रूढ़ियों, अन्धविश्वासों, धार्मिक और राजनैतिक नेताओं के स्वार्थो की परतों ने ढँक लिया था, जिसे आधुनिक काल मे कुरेदकर झकझोर दिया गया। जिससे प्राचीन आदर्शो का स्मरण, वैज्ञानिक चिंतन व उपयोगिता का स्मरण हुआ तथा उन्होंने नवीन रूप धारण किया। अतः इसे पुनर्जागरण कहा गया। कुछ विद्वानों ने इस सांस्कृतिक पुनरोत्थान भी कहा है।
पुनर्जागरण काल
मुख्य तौर पर चौदहवीं शताब्दी के प्रारंभ को पुनजार्गरण काल का नाम दिया जाता है। सामान्य रूप से इतिहासकार इसका आरंभ मई 1453 से मानते है। इस काल मे यूरोवासियों ने जीवन के प्रति अपने दृष्टिकोण को बदल कर अपनी समस्याओं पर विचार किया। वे प्रत्येक बात को वैज्ञानिकता के आधार पर लेने लगे और नवीन ज्ञान की प्राप्ति हुई। इस प्रक्रिया के दौर गुजरते हुए यूरोपवासियो ने जो वैचारिक, सांस्कृतिक, सामाजिक एवं बौद्धिक उन्नति की, उसी को पुनजार्गरण काल कहा जाता है।
पुनर्जागरण के कारण (punarjagran ke karan)
यूरोप मे पुनर्जागरण एक आक्स्मिक घटना नही थी। मानवीय,जीवन के सभी क्षेत्रों मे धीरे-धीरे होने वाली विकास की प्रक्रिया का परिणाम ही पुनर्जागरण की पृष्ठभूमि थी। यूरोप मे आधुनिक मे पुनर्जागरण के निम्म कारण थे--
1. कुस्तुनतुनिया का पतन
पन्द्रहवीं शताब्दी की महत्वपूर्ण घटना 1453 मे कुस्तुनतुनिया के रोमन साम्राज्य के पतन से सम्पूर्ण यूरोप मे हलचल मच गयी। तुर्को ने कुस्तुनतुनिया पर कब्जा कर लिया। तुर्कों के अत्याचारों से बचने के लिए वहां पर बसे हुए ग्रीक विद्वानों, साहित्यकारों तथा कलाकारो ने भागकर इटली मे शरण ले ली। वहां पहुंचर विद्वानों का यूरोप के अन्य विद्वानों से हुआ। इस सम्पर्क के परिणामस्वरूप यूरोप व उसके अन्य आसपास के देशो मे पुनर्जागरण की धारा अत्यधिक वेग के साथ बढ़ने लगी।
2. धर्मयुद्धो का प्रभाव
मध्यकाल मे ईसाइयों एवं मुसलमानों मे अनेक धार्मिक संघर्ष हुए। दोनों मे सांस्कृतियो का आदान-प्रदान भी हुआ। मुस्लिम विद्वानों के स्वतंत्र विचारो का प्रभाव ईसाइयों पर पड़ा। अरबो के अंकगणित तथा बीजगणित आदि विषय यूरोप मे प्रचलित हुए। मुसलमानों के आक्रमणों का सामाना करने के लिए यूरोप के राष्ट्रो मे आपसी सम्बन्ध घनिष्ठ होने लगे। यूरोप मे रोमन पोंप तथा सम्राटों के संघर्षों के कारण धीरे-धीरे लोगों की पोप तथा धर्म पर श्रद्धा कम होने लगी। इसी के परिणामस्वरूप धर्म सुधार आन्दोलन ने जोर पकड़ लिया।
3. अंतर्राष्ट्रीय व्यापार
अंतर्राष्ट्रीय व्यापार ने भी पुनर्जागरण के उदय मे महत्वपूर्ण योगदान दिया। यूरोप के व्यापारी चीन और भारत तथा अन्य देशों मे पहुंचने लगे। व्यापार की उन्नति से यूरोप का व्यापारी-वर्ग समृद्ध हो गया एवं व्यापार एक देश से दूसरे देश मे प्रगति कर बैठा।
4. नये वैज्ञानिक अविष्कार
व्यापार के विकास से अधिक धन एकत्र हुआ। अतिशेष धन नये अविष्कारो को क्रियान्वित करने मे सहायक हुआ। पुनर्जागरण के लिए आवश्यक था कि नए विचारों का प्रचार-प्रसार हो। इसके लिए कागज तथा मुद्रणालय के अविष्कार ने सबसे महत्वपूर्ण कार्य किया।
5. नवीन भौगोलिक खोजों का प्रभाव
नवीन भौगोलिक खोजो मे यूरोप के साहसी नविकों मे से पुर्तगाल, स्पेन, फ्रांस तथा हालैण्ड के नाविकों ने अमेरिका, अफ्रीका, भारत, आस्ट्रेलिया आदि देशो को जाने के मार्गों का पता लगाया। इससे व्यापार वृद्धि के साथ उपनिवेश स्थापना का कार्य हुआ। इन देशों मे यूरोप के धर्म एवं संस्कृति के प्रसार का मौका मिला।
6. सामंतवाद का पतन
सामंतवाद का पतन पुनर्जागरण का महत्वपूर्ण कारण था। सामंतवाद के रहते हुए पुनर्जागरण के बारे मे कल्पना भी नही की जा सकती है। सामंतवाद के पतन के कारण लोगों को स्वतंत्र चिन्तन करने तथा उद्योग धंधे, व्यापार, कला और साहित्य आदि के विकास के समुचित अवसरों की प्राप्ति हुई।
7. मानववादी दृष्टिकोण का विकास
ज्ञान के नये क्षेत्रों के विकास ने मानववादी दृष्टिकोण को विकसित किया। मानववादी दृष्टिकोण के विचारकों मे डच लेखक " एरासमस " ने ईसाई धर्म की कमजोरियों को जनता के सामने रखा। उसने आम इंसान को महत्व दिया।
8. औपनिवेशक विस्तार
पुनर्जागरण के कारण धीरे-धीरे यूरोप के राज्यों मे औपनिवेशिक साम्राज्य की स्थापना की भावना जाग्रत हुई। इससे यूरोपीय सभ्यता तथा संस्कृति का प्रसार अन्य राष्ट्रों मे होने लगा।
पुनर्जागरण की विशेषताएं या लक्षण (punarjagran ki visheshta)
पुनर्जागरण की विशेषताओं का अर्थ है कि पुनर्जागरण काल मे किन-किन क्षेत्रों मे क्या परिवर्तन या विकास हुआ। पुनर्जागरण की विशेषताएं इस प्रकार है--
1. व्यक्तिवाद का विकास
मानववादी विचारधार व्यक्तिवादी थी। उन्होंने विनम्रता के गुणों को बताया। वे भौतिकवादी थे। उनके जीवन मे नैतिकता का कोई मूल्य नही था। उन्होंने जीवन के सुखों को अधिक महत्व दिया। शक्ति हेतु संघर्ष मे नैतिकता का कोई मूल्य नही है। उपनिवेशों मे भी भौतिकतावादी और उपयोगितावादी संस्कृति का प्रचार किया।
2. धर्म सुधार आन्दोलन का उदय
कथोलिक चर्च मे इस समय तक अनेक दोष उत्पन्न हो चुके थे। पोप और पादरियों ने अपनी असीमित प्रभाव वृद्धि और जनता को अपने आधीन बनाये रखने के लिये अनेक झुठे व अनैतिक तरीके अपना रखे थे। उन पर बाइबिल पढ़ने के लिये भी प्रतिबंध था। जनता को इनके चाहे आदेश सत्य हो या असत्य, सभी का पालन श्रद्धा से करना पड़ता था। शिक्षा, ज्ञान, तर्क एवं विज्ञान के प्रसार ने सामान्य जनता को सत्य से परिचित करवाया जिससे यूरोप के सभी देशों मे धर्म-सुधार की मांग होने लगी तथा इसके लिये आंदोलन और संघर्ष होने लगे। अनेक देशों मे प्रोटेस्टेंट चर्च बनने लगे और इसी की प्रतिक्रिया मे धर्म सुधार आन्दोलन भी हुआ।
3. कलात्मक विकास
इस काल मे कला के सभी रूप का विकास हुआ जैसे-- स्थापत्यकला, मूर्तिकला, चित्रकला इत्यादि। यूरोप मे पुनर्जागरण की चेतना जीवन के प्रत्येक क्षेत्र मे नया रंग और नया जीवन लेकर उदित हुई। पुनर्जागरण का मुख्य संबंध जीवन की भावनात्मक अर्थात् मनुष्य की चेतना और उसकी सांस्कृतिक अभिव्यक्ति से था। अतः पुनर्जागरण काल मे सांस्कृतिक क्षेत्र मे भी नयापन आया। जिस तरह साहित्य के क्षेत्र मे यूरोप मे अभिरूचि बढ़ी, उसी तरह कला के क्षेत्र मे भी नयापन दिआई देता है। कलाकार तथा शिल्पकारों ने प्राचीन ललित कलाओं से प्रेरित होकर कला के क्षेत्र मे नये आदर्श तथा नये प्रतिमान खड़े किये।
4. लोक भाषा और राष्ट्रीय भाषा का विकास
लोक भाषा और राष्ट्रीय साहित्य का विकास हुआ। शासको ने भी लोक भाषा को प्रोत्साहित किया।
5. वैज्ञानिक अन्वेषण
वैज्ञानिक दृष्टिकोण का विकास पुनर्जागरण का कारण भी था और परिणाम भी। वैज्ञानिक अविष्कारों का होना पुनर्जागरण की महत्वपूर्ण विशेषता भी थी और पुनर्जागरण का प्रभाव भी था।
अन्धविश्वासों, धुर्त और चालाक धर्म के ठेकेदारो तथा उनके द्वारा निर्मित अनैतिक, अनुचित सिद्धांत, विचार और व्यवहार की पोल खोलने का कार्य वैज्ञानिको ने किया। विज्ञान से समाज के चिंतन, विचार, साहित्य, परम्परा, आदर्श राजनीति और संस्कृति मे भी परिवर्तन हुए।
6. प्राचीन रोमन एवं यूनानी साहित्य का पुनर्स्थापना
सांस्कृतिक पुनरुत्थान की विशेषता यह थी कि नवीन जागरण से यूरोप मे रोमन और यूनानी साहित्य का अध्ययन हुआ। मध्य युग मे प्राचीन साहित्य का अध्ययन हुआ, लेकिन मध्ययुगीन विद्धानो का दृष्टिकोण अत्यंत सीमित और संकुचित था। वे कैथोलिक सिद्धांतों पर ज्यादा देते थे। मध्य युग मे प्राचीन साहित्य को मूल शुद्ध रूप मे प्रस्तुत नही किया गया। इस युग मे लेटिन लेखक वर्जिल, सिसो और सीजर थे। आधुनिक युग मे यूनानी ग्रंथों का अनुभव किया गया, जिसमे अरस्तु और प्लेटो आदि यूनानी लेखक लोकप्रिय थे।
यह भी जरूर पढ़ें; पुनर्जागरण के प्रभाव
आपको यह जरूर पढ़ना चाहिए;पुनर्जागरण का अर्थ, कारण एवं विशेषताएं
आपको यह जरूर पढ़ना चाहिए;पुनर्जागरण के प्रभाव
आपको यह जरूर पढ़ना चाहिए; सामंतवाद का अर्थ, विशेषताएं या लक्षण
आपको यह जरूर पढ़ना चाहिए; यूरोप के आधुनिक युग की विशेषताएं या लक्षण
आपको यह जरूर पढ़ना चाहिए;यूरोप मे धर्म सुधार आंदोलन के कारण
आपको यह जरूर पढ़ना चाहिए;वाणिज्यवाद का अर्थ, विशेषताएं
आपको यह जरूर पढ़ना चाहिए; वाणिज्यवाद के उदय कारण, परिणाम, उद्देश्य
आपको यह जरूर पढ़ना चाहिए; वाणिज्यवाद के सिद्धांत
आपको यह जरूर पढ़ना चाहिए;उपनिवेशवाद क्या है? उपनिवेशवाद के कारण
आपको यह जरूर पढ़ना चाहिए;औद्योगिक क्रांति का अर्थ, कारण, प्रभाव या परिणाम
आपको यह जरूर पढ़ना चाहिए;अमेरिका के स्वतंत्रता संग्राम के कारण, घटनाएं
Punarjagran ka prakalp ka vishay like
जवाब देंहटाएंSamantvad Kiya he
जवाब देंहटाएंPunarjagran the best topic
जवाब देंहटाएंMartin Luther
जवाब देंहटाएंKrimiya ka war kb huaa tha
जवाब देंहटाएं