यूरोप मे धर्म सुधार आंदोलन
यूरोप मे आधुनिक युग के प्रारंभ के साथ-साथ जो परिवर्तन प्रारंभ हुए उनमे पुनर्जागरण और धर्मसुधार आंदोलनो का विशेष महत्व है। धर्म सुधार आन्दोलन सोलहवीं सदी मे प्रारंभ हुए। मार्टिन लूथर को धर्मसुधार आंदोलन का प्रणेता माना जाता है। पुनर्जागरण के परिणामस्वरूप यूरोप के धार्मिक क्षेत्रों मे महत्वपूर्ण परिवर्तनो की माँग होने लगी। धार्मिक क्षेत्रों मे परिवर्तनो की माँग को ही धर्म सुधार आन्दोलन कहा जाता है।
हेज के अनुसार " वस्तुतः 16 वीं सदी के आरंभ मे बौद्धक जागृति के फलस्वरूप बहुसंख्यक ईसाई कैथोलिक चर्च के कटु आलोचक थे और चर्च की संस्था मे मूलभूत परिवर्तन चाहते थे। इसी सुधारवादी प्रयास के फलस्वरूप जो धार्मिक आन्दोलन हुआ और ईसाई धर्म के जो नवीन धार्मिक सम्प्रदाय अस्तित्व मे आये, वह सामूहिक रूप से धर्म सुधार आंदोलन कहलाते है।"
यूरोप मे धर्म सुधार आंदोलन के कारण (europe me dharm sudhar andolan ke karan)
यूरोप मे धर्म सुधार के प्रमुख कारण इस प्रकार है--
(A) धार्मिक कारण
1. चर्च मे भ्रष्टाचार
चर्च मे तेजी से भ्रष्टाचार फैल रहा था। चर्च को जनता पर कर लगाने का अधिकार था। रोम के पोप ने सेन्ट पीटर के गिरजाघर का पुनर्निर्माण करने के लिए राशि जुटाना शुर किया था, इसलिए धर्म सुधारको ने आवाज उठायी। इंग्लैंड मे जान विक्ल्फ और वोहिमिया मे जानइस ने चर्च मे सुधार पर बल दिया।
2. पोप के अधिकार
मध्य युग चर्च की पराकाष्ठा का युग कहा जाता है। पोप का अपना निजी न्यायालय भी होता था और उसके कानून भी उसी के बनाये हुए होते थे। उसकी शक्तियाँ असीम थी। अपनी इन शक्तियों के आधार पर वह प्रत्येक कार्य कर सकता था। दण्ड देने के क्षेत्र मे उसे मृत्यु दण्ड तक देने का अधिकार था। पोप ने अब अपने अधिकारों का अनुचित उपयोग प्रारंभ कर दिया था। अतः उसका विरोध होना स्वाभाविक था।
3. कैथोलिक चर्च की बुराइयाँ
कैथोलिक चर्च मे अनेक दोष थे, कैथोलिक चर्च की बुराइयों को दूर करने की कोशिश की गयी, लेकिन पोप ने प्रस्तावों को नही माना।
4. क्षमापत्रों की बिक्री
धर्म सुधार आंदोलन के उदय का तात्कालिक कारण यह था कि चर्च शोषण तथा भ्रष्टाचार का सबसे निकृष्ट रूप क्षमा-पत्रों की बिक्री था। ईसाई धर्म मे पापों के प्रायश्चित के लिए चर्च क्षमापत्र जारी करता था। क्षमा-पत्रों का विकृत रूप यह था कि वे स्वर्ग का टिकट समझकर बेजे जाते थे। क्षमा पत्र को खरीद कर व्यक्ति हमेशा के लिए पाप मुक्त हो जाता था।
(B) आर्थिक कारण
कैथोलिक चर्च के पास स्वयं की तथा राज्य की भूमि बहुत थी। दूसरी और कृषि क्रान्ति और फिर औधोगिक क्रांति का आरंभ हुआ जो उधोग और व्यापार के लिये भूमि की आवश्यकता अनुभव की जाने लगी। श्रमिक, किसान, और मध्यमवर्गीय व्यापारी आर्थिक कार्यों मे सक्रिय और राष्ट्रीय आय की वृद्धि करने मे तथा कैथोलिक पादरी जो सामंत बन चुके थे, राजाओं के खिलाफ मध्यकालीन सामंतो का सहयोग कर रहे थे। निरंकुश राजाओं को मध्यम-वर्ग ने इनकी जमीन छीनकर उन्हे दिलवाने को कहा। मध्यमवर्ग, सामंतो के आक्रमणो, विद्रोह और संकटकाल मे राजाओ को धन से और श्रमिक तथा किसान सैनिक मदद कर रहे थे। अतः चर्च की सम्पत्ति कैथोलिको से छीनी जाने लगी।
चर्च को आर्थिक रूप कमजोर करने के लिये राजाओ ने इसलिये भी निश्चय किया कि उनके विशप, पादरी आदि अपनी भूमि से वैध और अवैध आय प्राप्त कर अत्यंत विलासी और निरंकुश हो गये थे। धन का उपयोग वह फिजूलखर्ची मे और सुधारवादियों पर हिंसक आक्रमण करने मे तथा राजाओ के खिलाफ कैथोलिक जनता को विद्रोह करने के लिए प्रोत्साहित करने मे करते थे। चर्च को धार्मिक कार्य के लिये आय का केवल दसवाँ भाग कर के रूप मे लेने का अधिकार था, लेकिन वह " पियर्स पेन्स " लगान आदि कर भी लेते थे। पाप मोचन पत्रो की बिक्री से भी उन्हें अत्यधिक आय प्राप्त हो जाती थी।
(C) राजनैतिक कारण
1. कर-वृद्धि
प्रत्येक ईसाई धर्म को मानने वाले व्यक्ति पर चर्च का " टाईथ" नामक कर लगाया जाता था। इसके अनुसार व्यक्तिगत आय का दशमांश प्रत्येक व्यक्ति को चर्च को देना होता था। इसके अतिरिक्त प्रायश्चित कर, क्षमा पत्र कर आदि अनेक अनावश्यक कर भी लिये जाते थे। लोगों ने वास्तविकता से परिचित होकर इन करो का तीव्र विरोध किया, जिससे धर्माधिकारियों को धर्म सुधार करना आवश्यक हो गया।
2. राष्ट्रीय भावना का उदय
मध्यकाल का चर्च का प्रभुत्व राज्य पर छा चुका था, परन्तु पुनर्जागरण काल मे वस्तु स्थिति के प्रति सजग विद्वानों ने राजनीति से चर्च को पृथक कर दिया। इस समय लोगो मे राष्ट्रीय भावना उदित हो रही थी। इससे शासक भी वंचित न थे, अपितु वे भी सोचने लगे थे कि धार्मिक नियमों के निर्माण मे यदि राज्य हस्तक्षेप न करे, तो चर्च को भी राज्य से पृथक रहना चाहिए। इस भावना ने पोप एवं शासको मे अधिकारों के प्रति संघर्ष उत्पन्न कर दिया, जिसमे जन-साधारण चर्च के विरोधी थी।
(D) सांस्कृतिक कारण
1. बौद्धिकवाद का विकास
मानववाद प्रोटेस्टेंट धर्म के उत्थान मे मानववाद का प्रभाव पड़ा। मानववाद ने बौद्धिकवाद को जगाया।
2. नवीन आविष्कार
नवीन आविष्कारों ने यूरोपियनों के साहस और उत्साह को सतत् प्रभावित किया। छापखाने के आविष्कार ने विद्वानों की सम्मतियों को दूर-दूर तक सूरक्षित रूप मे एवं अधिक मात्रा मे पहुंचाने का कार्य किया। परिणाम यह हुआ कि चर्च विरोधी अनेक ग्रंथ विश्व के कोने-कोने मे पहुंचाने लगे और जनता ने सही मार्ग का प्रकाश देखा।
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बहुत अच्छाकाम कर रहे हो आप सर
जवाब देंहटाएंगलत तरीका से धन बटोरना
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