12/27/2019

असहयोग आंदोलन कारण, कार्यक्रय और समाप्ति

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असहयोग आंदोलन 

महात्मा गांधी जन्म, परिवार, प्रांत और महापुरुषों के प्रभावों और संस्कारों से अत्यंत धार्मिक प्रकृति के व्यक्ति थे। शांति, सद्भाव, सत्य, अहिंसा, सेवा-भावना के वह मूर्तिमान व्यक्तित्व थे। परन्तु अफ्रीका और भारत की तत्कालीन राजनैतिक, सामाजिक दशाओ ने उन्हें भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन मे सक्रिय होने के लिये आव्हान किया अथवा उनमे विद्यमान "ऊर्जा" तत्व सक्रिय हो उठा। सन् 1906 से उनके महाप्रयाण तक का इतिहास इसी का वृतांत है।
सन् 1920 में गाँधी जी के नेतृत्व में कांग्रेस ने असहयोग आन्दोलन शुरू किया था। यह क्रांग्रेस द्वारा चलाया गया प्रथम जन-आन्दोलन था। पूर्व में कांग्रेस के बिखरे-बिखरे सूत्रों को अपने हाथों मे लेकर महात्मा गाँधी ने भारतीय जनमानस में एक नयी चेतना जागृत की। इस आन्दोलन ने स्पष्ट कर दिया कि भारत मे स्वाधीनता का संग्राम नये और अहिंसात्मक ढंग से आरम्भ हो गया हैं। इस ऐतिहासिक आन्दोलन का गाँधी जी ने सफलतापूर्वक नेतृत्व किया। 

इस लेख मे हम असहयोग आंदोलन के कारण, कार्यक्रम, एवं असहयोग आंदोलन की समाप्ति के कारण जानेंगे।

असहयोग आंदोलन के प्रारंभ होने के मुख्य कारण इस प्रकार हैं

1. जलियाँवाला बाग हत्याकांड एवं हण्टर आयोग की जाँच के बावजूद दोषियों को सजा न दिलाया जाना।
2. प्रथम विश्व युद्ध के समय भारत ने पूरी तरह से अंग्रेजों का साथ दिया था। भारतीयों को आशा थी कि युद्ध समाप्त हो जाने पर ब्रिटिश सरकार भारतियों की उचित, माँगें स्वीकार करगे और स्वायत्तता प्रदान करगी, परन्तु ऐसा करने के स्थान पर अंग्रेजों ने भारतीय का और भी अधिक तेजी से दमन करना प्रारंभ कर दिया। इससे भारतीयों के अंदर अंग्रेजों के खिलाफ असंतोष फैल गया।
असहयोग आंदोलन
3. राष्ट्रवादियों द्वारा स्वाराज्य की मांग के लिए एक संगठित आन्दोलन प्रारंभ  करने की इच्छा।
4. तुर्की के खलीफा के खिलाफ अंग्रेजी दुर्व्यवहार भी असहयोग आन्दोलन का एक कारण रहा।
5. प्रथम विश्व युद्ध के तुरंत बाद भारतीयों का दमन करने के लिए शासन ने "रौलट एक्ट" पास किया। इस एक्ट के अनुसार शासन किसी भी व्यक्ति को संदिग्ध घोषित कर उसे जेल मे बंद कर सकता था। इस एक्ट का सारे भारत मे विरोध किया गया।
6. 1919 के रौलेट अधिनियम द्वारा भारतीयों की स्वतंत्रता समाप्त कर दी गयी अतः महात्मा गांधी ने शांतिपूर्ण आंदोलन का आव्हान किया और सम्पूर्ण भारत मे हिन्दू मुसलमानों ने एक साथ मिलकर इसमे सहयोग दिया। कहीं-कहीं इस आंदोलन मे हिंसक घटनाएं हो जाने के कारण महात्मा गांधी को बंदी बना लिया गया।
7. ब्रिटिश सरकार की दुरंगी चालो ने भारतियों को व्यथित कर दिया। एक ओर तो उसने आश्वासन दिया कि वह राजनीतिक सुधार करेगी, दूसरी ओर उसने राष्ट्रीय आंदोलन को कुचलने के लिए दमनकारी कानून बनाये।
असहयोग आंदोलन के उद्देश्य एवं कार्यक्रम के संबंध मे गाँधी जी ने कहा था कि आन्दोलन पूरी तरह शांतिपूर्ण और अहिंसक होगा। आन्दोलन के उद्देश्य के संबंध मे गाँधी जी ने कहा "हमारा उद्देश्य है स्वराज्य। यदि सम्भव हो तो ब्रिटिश साम्राज्य के अंतर्गत और यदि आवश्यक हो तो, ब्रिटिश साम्राज्य के बाहर।"

असहयोग आंदोलन का कार्यक्रम इस प्रकार था

1. खादी और अन्य हस्तशिल्पों के माध्यम से "स्वदेशी" को लोकप्रिय बनाना।
2. सम्पूर्ण भारत मे राट्रीष्य स्कूल, काॅलेजों की स्थापना तथा राष्ट्रीय पंचायत के द्वारा आपसी विवादों का निपटारा।
3. हिन्दुओं और मुसलमानों के बीच एकता व समरसता का विकास करना।
4. विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार करना।
5. सभी प्रकार की सरकारी उपाधियों, प्रतिष्ठापूर्ण पदों तथा स्थानीय निकायों के मनोनीत पदों का समर्पण।
6. सरकारी तथा अर्द्धसरकारी समारोहों में भाग न लेना।
7. महिलाओं को राष्ट्र की मुख्य धारा मे शामिल करना तथा उनके उत्थान का प्रयास करना।

चौरी चौरा काण्ड और असहयोग आंदोलन की समाप्ति 

5 फरवरी, 1922 ई. को उत्तर प्रदेश स्थित गोरखपुर जिले के चौरी चौरा ग्राम मे विरोधस्वरूप काँग्रेस के द्वारा एक जुलूस निकाला जा रहा था। पुलिस ने अहिंसात्मक आन्दोलनकारियों पर गोली चला दी जिससे जनता अनियंत्रित हो गयी। जब पुलिस की गोलियां समाप्त हो गयीं तो पुलिस भागकर थाने में छिप गयी। अब उत्तेजत भीड़ ने थाने को घेर कर आग लगा दी। जनता की इस हिंसात्मक कार्यवाही में एक थानेदार व 21 सिपाहियों की जल कर मृत्यु हो गयी।
महात्मा गाँधी जी अहिंसा के पूजारी थे। उन्हें इस घटना से बहुत ही दुःख पहुंचा अतः 12 फरवरी 1922 मे बारदोली मे कांग्रेस कार्यसमिति की एक बैठक बुलाई एवं सामूहिक सत्याग्रह व असहयोग आंदोलन स्थागित करने का प्रस्ताव पारित कराया एवं रचनात्मक कार्यक्रमों को यथा जारी रखने का फैसला किया गया।

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