8/30/2021

राष्ट्रीय पाठ्यक्रम संरचना 2005 के सिद्धांत, उद्देश्य/लक्ष्य

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राष्ट्रीय पाठ्यक्रम संरचना या रूपरेखा का इतिहास 

rashtriya pathyakram ruprekha 2005 siddhant uddeshy;राष्ट्रीय पाठ्यक्रम संरचना का विषय शिक्षा व्यवस्था के लिए हमेशा से ही महत्वपूर्ण और अनिवार्य रहा है। सभी देशों की तरह भारत मे भी एक ऐसे पाठ्यक्रम की परिकल्पना की जाती रही है, जो कि शिक्षा प्रणाली मे गुणात्मक एवं क्रान्तिकारी बदलाव ला  सकें। भारत मे अनेक भाषाएं, सभ्यताएं, संस्कृतियाँ, धर्म, जाति एवं सम्प्रदाय प्राचीनकाल से रही है। ऐसे देश मे राष्ट्रीय पाठ्यक्रम की जरूरत प्राचीनकाल से ही अनुभव की जाती रही है। इस संबंध मे पहला प्रयास राष्ट्रीय शिक्षा नीति सन् 1986 के द्वारा प्रस्तुत रिपोर्ट मे किया गया। इस रिपोर्ट मे राष्ट्रीय पाठ्यक्रम संरचना की आवश्यकता एवं महत्व को विशेष रूप से प्रदर्शित किया गया। इस सुझाव के फलस्वरूप सन् 1988 मे राष्ट्रीय पाठ्यक्रम की संरचना प्रस्तुत की गयी, जिसमें विद्यालयों के पाठ्यक्रम की चर्चा विशेष रूप से की गयी। राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद (NCERT) द्वारा इस क्षेत्र मे अपने प्रयासों को निरन्तरता प्रदान की तथा इसके परिमार्जित स्वरूप को विकसित करने के कई प्रयास किये। एन. सी. आर. टी. के अथक प्रयासों के फलस्वरूप राष्ट्रीय पाठ्यक्रम संरचना का परिमार्जित एवं गुणात्मक स्वरूप सन् 2000 में प्रस्तुत किया गया। इसे राष्ट्रीय पाठ्यक्रम संरचना 2000 के नाम से जाना गया। इस प्रकार राष्ट्रीय पाठ्यक्रम संरचना सन् 2005 से पहले राष्ट्रीय पाठ्यक्रम संरचना सन् 1968 तथा राष्ट्रीय पाठ्यक्रम संरचना सन् 2000 का स्वरूप प्रस्तुत किया गया। इस प्रकार ज्ञात होता है कि राष्ट्रीय पाठ्यक्रम के स्वरूप के संदर्भ में विचार-विमर्श एवं इसके निर्माण निर्माण की प्रक्रिया का कार्य प्रारंभिक काल से ही चल रहा है।

राष्ट्रीय पाठ्यक्रम संरचना 2005 के सिद्धांत (rashtriya pathyakram ruprekha 2005 ke siddhant)

राष्ट्रीय पाठ्यक्रम संरचना सन् 2005 के प्रस्तुतीकरण से पहले कुछ सिद्धांतों का अनुसरण किया गया था अर्थात् कुछ प्रमुख सिद्धांतों को आधार मानकर इस पाठ्यक्रम की रचना की गयी थी। इस पाठ्यक्रम के मूल सिद्धांत निम्नलिखित है-- 

1. संस्कृति संरक्षण का सिद्धांत 

भारतीय संस्कृति संसार के लिये आदर्श एवं अनुकरणीय संस्कृति है। इसके संरक्षण एवं विकास के प्रत्येक स्तर पर स्वीकार किया गया है। भारतीय संस्कृति की विषयवस्तु में पूर्ण स्थान दिया गया है। इससे भारतीय संस्कृति एवं सभ्यता का संरक्षण होता है। अतः यह ज्ञात होता है कि राष्ट्रीय पाठ्यक्रम संरचना सन् 2005 में संस्कृति के संरक्षण सिद्धांत को महत्व दिया गया है। 

2. नैतिकता का सिद्धांत 

राष्ट्रीय पाठ्यक्रम संरचना सन् 2005 में नैतिक मूल्यों को महत्वपूर्ण स्थान दिया गया है। हिन्दुस्तान मे नैतिक मूल्यों को आज भी सम्मान एवं उपयोगिता की दृष्टि से देखा जाता है। प्रत्येक अध्यापक एवं अभिभावक अपने विद्यार्थियों एवं बालकों मे नैतिक मूल्यों का विकास करना चाहते है। अतः पाठ्यक्रम में प्रारम्भिक स्तर से ही कहानी एवं शिक्षाप्रद वाक्यों के माध्यम से विद्यार्थियों मे नैतिकता का संचार किया जाता है। यह क्रम उच्च स्तर तक भी निरंतर बना रहता है। अतः पाठ्यक्रम संरचना सन् 2005 में नैतिकता के सिद्धांत का समावेश किया गया हो। 

3. सामाजिकता का सिद्धांत 

राष्ट्रीय पाठ्यक्रम सन् 2005 की संरचना में सामाजिकता के सिद्धांत को स्वीकारता है। समाज की आकांक्षा पूर्ति शिक्षा के द्वारा ही होती है। इसलिए सामाजिक व्यवस्था एवं सामाजिक परम्पराओं को संज्ञान मे लेते हुए पाठ्यक्रम की संरचना की गयी है। पाठ्यक्रम में उस सभी बातों एवं प्रकरणों को शामिल किया है जो स्वस्थ एवं आदर्श समाज की स्थापना करते है। इससे यह सिद्ध होता है कि इस पाठ्यक्रम में सामाजिकता के सिद्धांत को अपनाया गया है। 

4. सन्तुलित विकास का सिद्धांत 

पाठ्यक्रम मे सन्तुलित विकास की अवधारणा को स्थान प्रदान किया गया है। विकास के प्रत्येक पक्ष को उसकी आवश्यकता तथा महत्व के आधार पर स्थान प्रदान किया गया है, जैसे-- नैतिक एवं मानवीय मूल्यों को पाठ्यक्रम में उचित स्थान देना, आदर्शवाद को प्रयोजनवादी की तुलना में कम स्थान प्रदान करना एवं उपयोगिता को अधिक महत्व प्रदान करना आदि। इससे समाज का विकास पूरी तरह से सन्तुलित रूप में होगा तथा इस प्रकार का समाज एक आदर्श समाज के रूप में दृष्टिगोचर होगा। 

6. उपयोगिता का सिद्धांत

पाठ्यक्रम का प्रस्तुतीकरण उपयोगिता के आधार पर निर्धारित किया गया है। पाठ्यक्रम संरचना सन् 2005 में विषयवस्तु को जन-जीवन से जोड़ने का प्रयास किया गया है। आवश्यक विषयों को प्रारम्भिक स्तर से ही महत्व दिया गया है जैसे पर्यावरण विज्ञान एवं गणित विषयों को प्रारम्भिक स्तर से ही अध्यापन का मुख्य केंद्र बनाया गया है। इतिहास एवं भूगोल को इनकी तुलना में कम महत्व दिया गया है। अतः उपयोगिता को आधार मानकर पाठ्यक्रम का निर्माण किया गया है। अन्य शब्दों में पाठ्यक्रम में उपयोगिता के सिद्धांत को महत्व दिया गया है। 

7. रूचि का सिद्धांत 

राष्ट्रीय पाठ्यक्रम सन् 2005 में शिक्षा प्रणाली से सम्बद्ध प्रत्येक चर की रूचि को महत्वपूर्ण स्थान दिया गया है क्योंकि रूचि शिक्षक की कमी में अध्यापन प्रक्रिया प्रभावी रूप से नही चल सकती है। पाठ्यक्रम निर्माण के दौरान की रूचि, विद्यार्थी की रूचि तथा अभिभावकों की रूचि का विशेष ध्यान दिया गया है। पाठ्यक्रम की प्रभावशीलता एवं सफलता का मूल्यांकन उसी अवस्था में होता है, जब उसका अनुकूल प्रभाव अध्यापक, विद्यार्थी एवं समाज पर दृष्टिगोचर होता है। राष्ट्रीय पाठ्यक्रम में रूचि के सिद्धांत का अनुसरण करके पाठ्यक्रम का उत्कृष्ट रूप प्रस्तुत किया है। 

8. समायोजन का सिद्धांत 

राष्ट्रीय पाठ्यक्रम संरचना सन् 2005 का निर्माण करने से पहले समिति के समस्त सदस्यों ने उपलब्ध मानवीय एवं भौतिक संसाधनों पर विचार-विमर्श किया। इसके उपरांत प्राप्त संसाधनों में समन्वय करते हुए उनके अधिक उपयोग की व्यवस्था को निश्चित करते हुए राष्ट्रीय पाठ्यक्रम सन् 2005 की संरचना की गयी। इस तरह साधनों का उचित विदोहन एवं साधनों के बीच समन्वय स्थापित करते हुए इस पाठ्यक्रम में समायोजन के सिद्धांत का अनुकरण किया गया। 

9. मानवता का सिद्धांत 

मावन मूल्यों का महत्व राष्ट्रीय स्तर पर होने के साथ-साथ वैश्विक स्तर पर भी है। कोई भी राष्ट्र एवं समाज मानवता के खिलाफ अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करने में हिचकिचाता है। आज संसार का सबसे विकसित देश अमेरिका मानवाधिकार एवं मानव मूल्यों के विकास की अनिवार्यता को मानता है। भारतीय परम्परा में मानव मूल्यों की अनिवार्यता को माना गया है। इसलिए पाठ्यक्रम मे शुरू से ही ऐसे प्रकरणों का समावेश किया गया है, जिससे विद्यार्थी मे प्रेम, सहयोग, परोपकार एवं सहिष्णुता की भावना का विकास हो सके। इससे यह ज्ञात होता है कि राष्ट्रीय पाठ्यक्रम सन् 2005 की संरचना में मानव मूल्यों एवं मानवता को महत्वपूर्ण स्थान प्रदान किया गया तथा मानवता के सिद्धांत का अनुकरण किया गया है। 

10. एकता का सिद्धांत 

राष्ट्रीय पाठ्यक्रम की संरचना मे राष्ट्रीय एवं भावात्मक एकता को स्थाऑ प्रदान किया जिससे राष्ट्र की अखण्डता सुरक्षित बनी रहे। समाज में निहित संस्कृतियों, धर्म एवं परम्पराओं को एक सूत्र में बाँधते हुए धर्मनिरपेक्ष शिक्षा व्यवस्था का स्वरूप प्रस्तुत किया है। भाषा, समस्या के निदान हेतु भी इस पाठ्यक्रम में विचार-विमर्श किया गया है। इसलिए इस पाठ्यक्रम मे प्रत्येक पक्ष को एकता के सिद्धांत के साथ सम्बद्ध किया गया है। 

उपरोक्त वर्णन से यह ज्ञात होता है कि पाठ्यक्रम संरचना में सन् 2005 में उन सभी सिद्धांतों को शामिल किया गया है जो कि एक आदर्श एवं श्रेष्ठ पाठ्यक्रम की संरचना के लिए अति आवश्यक एवं अनिवार्य होते है। विषयवस्तु एवं सामाजिक परिस्थितियों में समन्वय बनाते हुए विद्यार्थी ने सर्वांगीण विकास के मार्ग का पथ प्रशस्त किया। अतः राष्ट्रीय पाठ्यक्रम संरचना सन् 2005 प्रत्येक दृष्टि से महत्वपूर्ण एवं उपयोगी है जो कि विद्यार्थी, देश, समाज एवं अध्यापक के विकास मे प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से प्रमुख भूमिका को निभाता है।

राष्ट्रीय पाठ्यक्रम संरचना, 2005 के उद्देश्य अथवा लक्ष्य (rashtriya pathyakram ruprekha 2005 ke uddeshy)

सर्वप्रथम किसी भी प्रकार के शैक्षिक कार्यक्रम को सफल व प्रभावशाली बनाने के लिए सिद्धांतों के आधार उद्देश्यों का निर्धारण किया जाता है, जिससे कि पाठ्यक्रम एवं योजना का निर्धारण किया जा सके। राष्ट्रीय पाठ्यक्रम संरचना 2005 के प्रमुख उद्देश्यों या लक्ष्यों को निम्नलिखित रूप में प्रस्तुत किया जा सकता है-- 

1. राष्ट्रीय एकता का विकास 

भारत प्राचीनकाल से ही अनेकता मे एकता के लिए जाना जाता है। देश की एकता एवं अखण्डता से संबंधित विषयवस्तु को राष्ट्रीय पाठ्यक्रम संरचना, 2005 मे अधिक महत्व प्रदान किया है। भारत विभिन्न धर्मों, भाषाओं एवं परम्पराओं का देश होने के कारण, सामान्य जनजीवन में प्रतिकूल प्रभाव डालता है। विचारधारायें भिन्न होने पर एकता की आवश्यकता रही है। राष्ट्रीय पाठ्यक्रम संरचना में राष्ट्रीय एकता को सर्वोपरि स्थान दिया गया है। 

2. राष्ट्रीय विकास 

पाठ्यक्रम का निर्माण उद्देश्यों पर आधारित होता है। उद्देश्यों की प्राप्ति करना ही पाठ्यक्रम निर्माण की सफलता को निर्धारित करता है। राष्ट्रीय पाठ्यक्रम संरचना सन् 2005 का प्रमुख उद्देश्य राष्ट्र को विकसित करना है। जो कि केवल शिक्षा के जरिए हो सकता है, राष्ट्रीय विकास उस अवस्था मे संभव होता है, जब पाठ्यक्रम एवं शिक्षा व्यवस्था में एकरूपता हो तथा एक उद्देश्य को ही प्राप्त करने का प्रयास किया जाये। 

3. मानवीय मूल्यों का विकास 

भारतीय दर्शन एवं शिक्षा मानवता एवं नैतिकता को महत्वपूर्ण स्थान प्रदान करती है। इसलिए पाठ्यक्रम का स्वरूप भी इस तथ्य से सम्बंधित होगा। राष्ट्रीय पाठ्यक्रम संरचना, 2005 का प्रमुख उद्देश्य छात्रों में प्रारम्भिक स्तर से ही मानवीय मूल्यों का विकास करना है, जिससे कि छात्रों में प्रेम, सहयोग, दान, परोपकार एवं सहिष्णुता जैसे मानवीय गुणों का विकास किया जा सके। 

4. छात्र में अध्ययन के प्रति रूचि का विकास 

पाठ्यक्रम को स्तरानुकूल बनाया जाता है, जिससे कि प्रत्येक छात्र के द्वारा रूचि प्राप्त की जा सके। शिक्षण प्रक्रिया को रूचिपूर्ण व प्रभावपूर्ण बनाया जा सके। राष्ट्रीय पाठ्यक्रम संरचना, 2005 मे छात्र मे अध्ययन के प्रति रूचि का विकास किया जाना प्रमुख उद्देश्य है। 

5. भाषायी समस्या का समाधान 

भारतीय समाज में विभिन्न प्रान्तों में भाषा का स्वरूप पृथक-पृथक पाया जाता है। इससे राष्ट्रीय पाठ्यक्रम संरचना में भाषा की समस्या सदैव से रही है कि किस भाषा को राष्ट्रीय भाषा के रूप मे स्वीकार किया जायें। राष्ट्रीय पाठ्यक्रम, 2005 में विभिन्न भाषाओं एवं मातृभाषा को उचित स्थान प्रदान कर भाषाई समस्या का समाधान किया है। 

6. स्तरानुकूल शिक्षण विधियाँ 

पाठ्यक्रम मे स्तर के अनुकूल शिक्षण विधियों के प्रयोग की मान्यता प्रदान की है, जैसे प्राथमिक एवं पूर्व प्रथामिक स्तर पर सामान्य रूप से उन शिक्षण विधियों का प्रयोग किया जाना चाहिए, जो कि खेल से संबंधित हो तथा व्याख्यान व कथन विधि का प्रयोग माध्यमिक स्तर पर किया जाना चाहिए। अतः इस पाठ्यक्रम का उद्देश्य शिक्षण विधियों का विकास करना है।

7. छात्रों का सर्वांगीण विकास 

राष्ट्रीय पाठ्यक्रम संरचना का प्रभुत्व उद्देश्य छात्रों का सर्वांगीण विकास करना है। इस पाठ्यक्रम मे छात्रों के क्रियात्मक पक्ष को बनाये रखने के लिये प्रायोगिक एवं सैद्धांतिक पक्षों का समन्वय किया गया है। शिक्षा के प्रत्येक स्तर पर प्रायोगिक कार्यों का स्वरूप अलग-अलग होता है, जैसे प्राथमिक स्तर पर सृजनात्मक स्तर को कार्यानुभव का नाम दिया गया है तथा माध्यमिक स्तर पर इसकी प्रायोगिक कार्य के नाम से जाना जाता है। इस तरह से छात्र को क्रियात्मक एवं सैद्धांतिक पक्ष दोनों दृष्टिकोण से सुदृढ़ बनाया जाता है। 

8. शिक्षकों मे आत्मविश्वास का विकास करना 

पाठ्यक्रम को प्रभावी ढंग से क्रियान्वित किये जाने के लिये शिक्षकों मे आत्मविश्वास का विकास करना राष्ट्रीय पाठ्यक्रम संरचना का उद्देश्य है। आत्मविश्वासपूर्ण शिक्षण कार्य निरंतर प्रगति पर चलता है। 

9. सामाजिक एकता का विकास 

राष्ट्रीय पाठ्यक्रम संरचना, 2005 में सामाजिक एकता से संबंधित विषयवस्तु को समाहित कर सामाजिक एकता के विकास में महत्वपूर्ण कदम उठाया गया है।सामाजिक एकता से आशय उस विकास से है, जहाँ प्रत्येक व्यक्ति अपने अधिकार, कर्तव्य एवं स्वस्थ सामाजिक परम्पराओं का पालन एवं संरक्षण करता हो, साथ ही सामाजिक विचारधाराओं में तारतम्य बनाये रखे। 

10. शिक्षण साधनों में समन्वय स्थापित करना 

यह पूर्णतया स्पष्ट है कि पाठ्यक्रम के निर्माण से पूर्व उपलब्ध शैक्षिक संसाधनों पर विचार किया जाता है। राष्ट्रीय पाठ्यक्रम संरचना सन् 2005 का उद्देश्य शिक्षण कार्य के मानवीय एवं भौतिक साधनों में समन्वय स्थापित करना है। पाठ्यक्रम में इनके समन्वय को प्राथमिकता दी गयी है। उपर्युक्त तथ्यों के आधार पर यह स्पष्ट होता है कि राष्ट्रीय पाठ्यक्रम संरचना सन् 2005 के उद्देश्य वास्तविक संदर्भों में स्पष्ट एवं प्रभावपूर्ण है। इससे छात्रों के सर्वांगीण विकास संबंधी सभी पक्षों को ध्यान में रखा गया है। अतः यह निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि पाठ्यक्रम के उद्देश्य राष्ट्र, समाज, छात्र एवं शिक्षक सभी के हितों को ध्यान में रखकर निर्धारण किये गये है।

यह भी पढ़े; राष्ट्रीय पाठ्यक्रम संरचना 2005 की आवश्यकता/महत्व, समस्याएं

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