माध्यमिक शिक्षा के उद्देश्य
madhyamik shiksha ke uddeshy;अंग्रजी शासन काल मे माध्यमिक शिक्षा का मुख्य उद्देश्य अंग्रजी पढ़े-लिखे बाबू तैयार करना था। स्वतंत्र होने के बाद हमारी केन्द्रीय सरकार ने 1952 में डाॅ. लक्ष्मण राव मुदालियर की अध्यक्षता में 'माध्यमिक शिक्षा आयोग' का गठन किया गया। इस आयोग ने माध्यमिक शिक्षा के निम्न चार उद्देश्य बताए है--
1. जनतांत्रिक नागरिकता का विकास
भारत मे नागरिकता के मूल्यों का समावेश करने के दायित्व का निर्वाह माध्यमिक शिक्षा को ही करना है। इसके लिए बालकों के विचारों मे स्पष्टता एवं स्वच्छता, सांस्कृतिक परम्पराओं का ज्ञान, भाषण एवं लेखन मे स्पष्टता, सामूहिक भावना, सहयोग, सहिष्णुता, सहज गुणसम्पन्नता, अनुशासन इत्यादि गुणों का विकास करना है। माध्यमिक शिक्षा आयोग ने राष्ट्र प्रेम के विकास के बारे मे लिखा है कि राष्ट्र प्रेम के अंतर्गत तीन बातों का समावेश होता है। विद्यार्थी अपने देश की सामाजिक एवं सांस्कृतिक विशेषताओं की उचित प्रशंसा करें। अपने दोषों को स्वीकार करके उन्हें दूर करने का प्रयास करें तथा देश हित के सामने अपने व्यक्तिगत स्वार्थों का बलिदान करें।
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2. व्यावसायिक कुशलता मे उन्नति
माध्यमिक शिक्षा को जीविकोपार्जन हेतु उपयोगी बनाने हेतु, माध्यमिक शिक्षा का दूसरा उद्देश्य छात्रों मे व्यावसायिक कुशलता का विकास करना होना चाहिए। अतः माध्यमिक शिक्षकों को अपने छात्रों की तकनीकी एवं व्यावसायिक कुशलता अथवा उत्पादकता की वृद्धि पर विशेष ध्यान केंद्रित करना चाहिए, जिससे वे राष्ट्र की समृद्धि मे सहायता कर सकें और अन्ततः जीवन के सामान्य स्तर की उन्नति करने मे सक्षम हो सकें। इस हेतु उनमें निम्नलिखित दृष्टिकोण पैदा करने की आवश्यकता है--
(अ) काम के प्रति नया दृष्टिकोण (new outlook) विकसित करना।
(ब) प्रत्येक स्तर पर तकनीकी कुशलता एवं निपुणता का विकास करना (promotion of technical skill and efficiency)।
3. व्यक्तित्व का विकास
माध्यमिक शिक्षा का तीसरा उद्देश्य नागरिकों के व्यक्तित्व का सर्वांगीण विकास करना है। बालकों के सर्वांगीण व्यक्तित्व के विकास के लिए ऐसी शिक्षा व्यवस्था हो जिससे उसमें साहित्यिक, सांस्कृतिक एवं कलात्मक गुणों की अभिवृद्धि हो सके। छात्र अपनी सांस्कृतिक विरासत को भली-भाँति समझ सकें और उसके विकास के आधारभूत योगदान दे सकें। इस हेतु पाठ्यक्रमों मे कला, शिक्षा, संगीत, नृत्य जैसे विषयों तथा रोचक कार्यों (Hobbies) के विकास को सम्मानित स्थान प्रदान करना चाहिए।
4. नेतृत्व का विकास
प्रजातंत्र उसी दशा मे सफलतापूर्वक कार्य कर सकता है जबकि उसका प्रत्येक नागरिक अनुशासन एवं नेतृत्व में शिक्षा प्राप्त कर चुका हो। अतः माध्यमिक शिक्षा का उद्देश्य छात्रों को अनुशासन के साथ-साथ नेतृत्व की भी शिक्षा प्रदान करना है। विद्यालयों में इस प्रकार के अनेक अवसर आते है, जब छात्रों पर अपने समाज का नेतृत्व करने का भार आ पड़ता है। अतः यह जरूरी है कि ऐसे अधिक से अधिक अवसर छात्रों को दिये जाएँ, जिससे उनमें नेतृत्व के गुणों का विकास हो सके। ऐसे विद्यार्थी ही जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में सफलता प्राप्त सकेंगे। इसका कारण यह है कि सामाजिक, राजनैतिक, औद्योगिक अथवा सांस्कृतिक क्षेत्रों में अपने ऊपर उत्तरदायित्व लेने में संकोच नही करेंगे और उसका निर्वाह भी कर सकेंगे।
तब से लेकर अब तक माध्यमिक शिक्षा के इन्ही उद्देश्यों को भाषायी अंतर से स्पष्ट किया जाता रहा है। एन. सी. ई. आर. टी. ने विद्यालय शिक्षा के लिए जो राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा प्रस्तुत की है उसमें प्रथम 10 वर्षीय शिक्षा के उद्देश्यों की एक लम्बी सूची (20-25 उद्देश्य) प्रस्तुत की है एवं उच्च माध्यमिक शिक्षा (+2) के सामान्य एवं व्यावसायिक वर्ग हेतु अलग-अलग उद्देश्य निश्चित किए है-- उस सूची के आधार पर हम माध्यमिक शिक्षा के उद्देश्यों को निम्नलिखित रूप में क्रमबद्ध कर सकते है--
1. बालकों मे सामाजिक, सांस्कृतिक, नैतिक एवं लोकतांत्रिक मूल्यों का विकास करना, एवं उन्हें तदनुकूल आचरण की ओर प्रवृत्त करना।
2. बालकों को लोकतंत्र शासन प्रणाली के सिद्धांतों से परिचित कराकर उन्हें लोकतन्त्रीय जीवन शैली में प्रशिक्षित करना।
3. बालकों को राष्ट्रीय लक्ष्यों पर्यावरण संरक्षण एवं जनसंख्या नियंत्रण के लिए जागरूक करना एवं उनमें वैज्ञानिक प्रवृत्ति, राष्ट्रीय एकता एवं अन्तर्राष्ट्रीय सद्भाव का विकास करना।
4. बालकों को संसार के प्रमुख धर्मों का सामान्य ज्ञान कराकर उनमें धार्मिक सहिष्णुता का विकास करना।
5. लोकतांत्रिक नागरिकता का विकास करना।
6. व्यक्तित्व का विकास करना।
7. व्यावसायिक कुशलता का विकास।
8. नेतृत्व शक्ति का विकास।
9. बालकों को स्वास्थ्य संबंधित शिक्षा देना।
10. बालकों में सोचने, समझने, निर्णय लेने की शक्ति का विकास करना।
11. बालकों का समाजीकरण करना।
12. देश-विदेश की संस्कृतियों का ज्ञान कराना।
13. रूचि, योग्यता एवं आवश्यकतानुसार कार्य करने के लिए प्रेरित करना।
14. शिक्षा को उत्पादन से जोड़कर आर्थिक विकास करना।
15. शिक्षा के द्वारा कार्यानुभव को महत्व देना।
16. शिक्षा के द्वारा आधुनिकीकरण की गति को तेज करना।
17. शिक्षक के द्वारा राष्ट्रीय एकता का ज्ञान देना।
माध्यमिक शिक्षा का महत्व अथवा आवश्यकता
madhyamik shiksha ka mahatva;माध्यमिक शिक्षा, प्राथमिक शिक्षा के बाद तथा उच्च शिक्षा से पहले दी जाती है इसलिए माध्यमिक शिक्षा की अत्यधिक आवश्यकता है। माध्यमिक शिक्षा का महत्व एवं आवश्यकता निम्न कारणों से है--
1. माध्यमिक शिक्षा, राष्ट्र के विकास का आधार होती है
प्राथमिक स्तर पर बालकों को सामान्य ज्ञान प्रदान कर, सामाजिक व्यवहार से परिचित कराया जाता है जबकि माध्यमिक स्तर पर बालकों को पूर्ण मनुष्य बनाया जाता है। उनमे सोचने-समझने की शक्ति और कार्य पूर्ण करने की क्षमता का विकास किया जाता है। जब तक किसी भी राष्ट्र के व्यक्तियों का मानसिक विकास परिपूर्ण नही होगा, तब तक उस राष्ट्र का विकास नही हो सकता है।
2. माध्यमिक शिक्षा के द्वारा अच्छे नागरिक बनने का ज्ञान दिया जाता है
माध्यमिक स्तर पर अध्ययन करने वाले बच्चे किशोर होते है। यह ऐसी आयु होती है जिसमें बालकों को अगर सही शिक्षा न दी जाए तो उनको गलत रास्ते पर जाने का भय होता है। माध्यमिक शिक्षा बालकों मे समाज का अच्छा सदस्य बनने, राष्ट्र का अच्छा नागरिक बनने तथा राष्ट्र के प्रति अपने कर्तव्यों को उचित प्रकार से पूरा करने करने का प्रयास करती है।
3. माध्यमिक शिक्षा, बालकों को उच्च शिक्षा के लिए तैयार करती है
माध्यमिक शिक्षा, उच्च शिक्षा से पहले दी जाने वाली शिक्षा है। इसको प्राप्त करने के बाद बच्चे उच्च शिक्षा मे प्रवेश लेते है और भावी जीवन मे विभिन्न क्षेत्रों मे कार्य करने के लिए तैयार होते है। माध्यमिक शिक्षा के द्वारा बालकों के बौद्धिक स्तर को ऊँचा उठाया जाता है। उनमें स्वाध्ययन तथा परिश्रम करने की आदत का निर्माण किया जाता है क्योंकि इन गुणों के बिना वे उच्च शिक्षा प्राप्त करने मे सफल नही हो सकते। इस दृष्टि से भी माध्यमिक शिक्षा की बहुत आवश्यकता है।
4. माध्यमिक शिक्षा, पूर्ण इकाई है
उच्च शिक्षा मे सभी बच्चे प्रवेश नही लेते है इसलिए माध्यमिक शिक्षा को पूर्ण इकाई के रूप मे विकसित किया जाता है जिससे इसे प्राप्त करने के बाद बच्चे आर्थिक जीवन मे प्रवेश करके अपनी जीविका का निर्वाह कर सकें। इसलिए माध्यमिक शिक्षा, सभी विकसित राष्ट्रों की शिक्षा का अनिवार्य अंग है।
5. माध्यमिक शिक्षा, बालकों हेतु पूर्ण शिक्षा है
किसी भी राष्ट्र मे माध्यमिक शिक्षा, जनसंख्या के एक बहुत बड़े भाग के लिए पूर्ण शिक्षा होती है क्योंकि उच्च शिक्षा मे योग्य एवं मेधावी छात्र-छात्राएं ही प्रवेश लेते है। इसलिए इस शिक्षा की व्यवस्था इस प्रकार की जाती है जिसके द्वारा बालकों के व्यक्तित्व का निर्माण किया जा सके, उन्हें व्यवसायों के लिए योग्य बनाया जा सके तथा सामान्य नागरिक के रूप मे तैयार किया जा सके।
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Sir,uchh shiksha ka mahatva bhi likh kar daliye
जवाब देंहटाएंHamari madhyamik siksha hamare shaikshik tantra ki nirbalatam kadi hy is kathan par apni tippani dijiye
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