8/29/2021

राष्ट्रीय शिक्षक परिषद क्या है? उद्देश्य एवं कार्य

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राष्ट्रीय शिक्षक (अध्यापक) शिक्षा परिषद क्या है? (rashtriya shikshak shiksha parishad kise kahte hai)

राष्ट्रीय अध्यापक या शिक्षाक शिक्षा परिषद, संसद द्वारा पारित अधिनियम (1995) के अंतर्गत स्थापित एक वैधानिक संस्था है, जिसका कार्य सम्पूर्ण भारत मे अध्यापक शिक्षा का नियोजन एवं समग्र विकास करना है। इस समावेश के अनुपालन मे इसने विभिन्न स्तर के अध्यापक शिक्षा मे सुधार हेतु उत्प्रेरक कार्य किया है। भारत सरकार द्वारा मई, 1973 में राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद (NCTE या National Council for Teacher Education) की स्थापना इस धारणा से की गई थी कि यह अध्यापक शिक्षा संबंधी सभी पक्षों पर परामर्श देती रहेगी। इसकी वार्षिक बैठक मार्च 1976 में विश्वविद्यालय अनुदान आयोग तथा इस परिषद् को मिलाकर हुई। बाद मे एक राष्ट्रीय सम्मेलन किया गया, उसमें एक समिति गठित की गई। 1973 से 1993 तक राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद् , राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद के लिये सचिवालय के रूप मे कार्य करती रही, क्योंकि यह परिषद अभी तक असंवैधानिक संस्था थी। सन् 1993 मे राष्ट्रीय शिक्षक शिक्षा परिषद को संसद के अधिनियम (1993 का अधिनियम संख्या 73) द्वारा पूर्ण संवैधानिक संस्था के रूप मे स्थापित किया गया जिसका उद्देश्य संपूर्ण देश मे शिक्षक शिक्षा पद्धित का योजनाबद्ध एवं समन्वित विकास तथा शिक्षक शिक्षा के मानकों एवं स्तरों का नियमन व उचित योजनाबद्ध एवं समन्वित विकास तथा शिक्षक शिक्षा के मानकों एवं स्तरों का नियमन व उचित अनुरक्षण करना है। इस परिषद् ने 1 जुलाई 1995 से विधिवत् अपना कार्य करना शुरू किया था।

राष्ट्रीय शिक्षक परिषद् का संगठन 

प्रारंभ मे राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद (एनसीटीई) मे 41 सदस्य होते थे जिसका अध्यक्ष केंद्रीय शिक्षा मंत्री होता था तथा राज्य शिक्षा विभागों के इक्कीस प्रतिनिधि, एक विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) का सदस्य, एक-एक प्रतिनिधि राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान तथा प्रशिक्षण परिषद (NCERT), ऑल इण्डिया काउन्सिल फाॅर टैक्निकल (AICTE), सेन्ट्रल एडवाइजरी बोर्ड ऑफ एजुकेशन (CABE) व योजना आयोग (Planning Commission) के, केन्द्र सरकार द्वारा नामजद प्रतिनिधि, एक-एक प्रतिनिधि पूर्व-प्राथमिक, प्राथमिक, माध्यमिक, टैक्निकल तथा वोकेशनल अध्यापक शिक्षा, दो शिक्षा सचिव, एक परिषद् के अध्यक्ष द्वारा नामित सदस्य तथा एक मैम्बर सैक्रेटरी सम्मिलित होते थे। किन्तु बाद मे परिषद का संगठन राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान तथा प्रशिक्षण परिषद (NCERT) की तरह किया गया तथा उसमें अध्यक्ष (Chairman), उपाध्यक्ष (Deputy Chairman), सैक्रेटरी, कार्यकारिणी समिति (Executive Committee) के सदस्य तथा कार्यालय कर्मचारी होते थे। देश के प्रत्येक कोने में अध्यापक शिक्षा पर नियंत्रण रखने के लिए राज्य परिषदें (स्टेट काउंसिल ऑफ टीचर एजुकेशन) तथा चार क्षेत्रीय परिषदें स्थापित की गयीं। निरीक्षण समितियाँ भी संगठिय की गईं जिनमें अध्यापक शिक्षा से संबंधित विश्वविद्यालयों के प्रोफेसर्स को शामिल किया जाता था।

राष्ट्रीय शिक्षक/अध्यापक परिषद के उद्देश्य एवं कार्य (rashtriya shikshak shiksha parishad ke uddeshy)

राष्ट्रीय शिक्षक या अध्यापक शिक्षा परिषद् के निम्नलिखित उद्देश्य एवं कार्य है-- 

1.  शिक्षक शिक्षा के विभिन्न पक्षों के संबंध मे केन्द्र तथा प्रान्तीय सरकारों यू. जी. सी. एवं विश्वविद्यालयों को सलाह देना। 

2. सम्पूर्ण शिक्षक शिक्षा संस्थाओं के लिए मानदण्ड निर्धारित करना। 

3. सभी शिक्षक शिक्षा संस्थाओं के लिए शिक्षण शुल्क, अन्य शुल्क एवं छात्रवृत्तियों का निर्धारण करना। 

4. सभी प्रकार की शिक्षक शिक्षा संस्थाओं हेतु पाठ्यक्रम निर्धारित करना तथा समय-समय पर नवीन पाठ्यक्रम को प्रारंभ करना। 

5. प्राथमिक, माध्यमिक एवं उच्च सभी स्तर से सेवारत शिक्षकों हेतु पुनर्बोधन कार्यक्रमों का निर्माण करना। 

6. शिक्षक शिक्षा के व्यावसायीकरण को रोकना एवं इसके स्तरमान को बनाए रखना। 

7. शिक्षक शिक्षा के संबंध में केंद्र सरकार द्वारा लिए गए निर्णयों को क्रियान्वित करना। 

8. भारत के समस्त शिक्षक शिक्षा संस्थाओं मे समन्वय स्थापित करना एवं किसी भी स्तर की शिक्षक शिक्षा के प्रसार में सन्तुलन बनाए रखना। 

9. शिक्षक शिक्षा के क्षेत्र में शोध कार्य एवं नवाचारों के प्रयोगों को बढ़ावा देकर शोध के स्तर को उन्नत करना। 

10. सभी शिक्षक शिक्षा संस्थाओं का समय-समय पर निरीक्षण कराकर, उन्हें सुधार हेतु सुझाव देना एवं निम्न स्तर की संस्थाओं की मान्यता समाप्त करने की संस्तुति करना। 

11. शिक्षक शिक्षा के क्षेत्र में विश्व स्तर पर संबंध स्थापित करना, नई-नई जानकारियाँ प्राप्त करना एवं उपयोगी तथ्यों का लाभ उठाना। 

12. सभी प्रकार की शिक्षक शिक्षा संस्थाओं में अभ्यर्थियों की न्यूनतम योग्यता निर्धारित करना एवं उनकी चयन प्रक्रिया के संबंध में सलाह देना। 

13. सभी प्रकार की शिक्षक शिक्षा संस्थाओं के शिक्षकों की न्यूनतम शैक्षिक योग्यता निर्धारित करना एवं उनके वेतनमान निर्धारित करना। 

14. शिक्षक शिक्षा से संबंधित सभी पक्षों का सर्वेक्षण कराना एवं सर्वेक्षण परिणामों को प्रकाशित एवं प्रसारित करना। 

15. किसी भी नई शिक्षक संस्था को मान्यता देने से पहले उसका निरीक्षण कराना एवं मानदण्ड पूरा करने पर मान्यता प्रदान करना। 

इस प्रकार निष्कर्ष रूप मे हम कह सकते है कि राष्ट्रीय शिक्षक परिषद् का मूल उद्देश्य समूचे भारत में अध्यापक शिक्षा प्रणाली का नियोजित एवं समन्वित विकास करना, अध्यापक शिक्षा प्रणाली के मानदण्डों एवं मानकों का विनियमन तथा उन्हें समुचित रूप से बनाए रखना है।

राष्ट्रीय शिक्षक परिषद् द्वारा कृत कार्यों का परिणाम 

राष्ट्रीय शिक्षक शिक्षा परिषद ने देश मे शिक्षक-शिक्षा प्रणाली के नियोजन एवं समन्वित विकास को सुनिश्चित करने के लिये सर्वप्रथम निम्नलिखित कार्य किये है-- 

1. देश में पत्राचार माध्यम से बी. एड. कराने वाली शिक्षक शिक्षा संस्थाओं को प्रतिबंधित किया और दूरवर्ती शिक्षा प्रणाली के माध्यम से बी. एड. के लिये दिशा-निर्देश जारी किये। 

2. शिक्षक शिक्षा में प्रवेश के लिये अभ्यार्थियों के लिये स्नातक स्तर पर 45 प्रतिशत अंक होना अनिवार्य किया, जो अब अद्यतन बढ़ाकर 50 प्रतिशत कर दिया गया। 

4. शिक्षक शिक्षा में अस्थायी प्रवेश (Provisional Admission) पर प्रतिबंध लगा दिया। 

5. बी. एड. के प्रवेशार्थी के पास स्नातक स्तर पर दो स्कूल विषयों का होना जरूरी किया। 

6. शिक्षक शिक्षा प्रदान करने वाली प्रत्येक संस्था/संस्थान को राष्ट्रीय शिक्षक शिक्षा परिषद् से मान्यता लेना अनिवार्य किया। 

7. प्रत्येक शिक्षक शिक्षा संस्थान में निन्मतम 6 शिक्षक और 60 छात्र सुनिश्चित कर दिये। 

8. माध्यमिक स्तर की शिक्षक शिक्षा संस्था-संस्थान के लिए अपने मानक निर्धारित किये व प्रत्येक संस्थान को इसके अनुसार परिवर्तित एवं संवर्धित करना आवश्यक कर दिया। 

9. शिक्षक शिक्षा संस्था/संस्थान के लिये प्राचार्य/अध्यक्ष और शिक्षकों की शैक्षिक योग्यता का निर्धारण भी किया। 

10. स्कूल विषयों के शिक्षण हेतु शैक्षिक योग्यता के लिये विषय अध्यापक की शैक्षिक योग्यता तत्संबंधित विषय में परास्नातक सुनिश्चित कर दी गयी।

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