8/07/2021

पठन/वाचन की प्रकृति, प्रकार

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पठन अथवा वाचन की प्रकृति 

साधारणतया अंग्रेजी के Reading शब्द के लिए हिन्दी में दो शब्दों का प्रयोग होता है। वे दो शब्द है-- वाचन तथा पठन। मूलतः इन दोनों क्रियाओं में थोड़ा अंतर है। पठन का अर्थ व्यापक है तथा वाचन का अर्थ है, जोर-जोर से पढ़ना, जिसका आनन्द श्रोता भी ले सकें। 
वाचन के दो मुख्य आधार है-- 
1. वाचन मुद्रा 
वाचन मुद्रा से हमारा आशय बैठने, खड़े होने, वाचन सामग्री को हाथ में पकड़नें एवं भावों के अनुकूल आँखों, हाथों तथा अंगों का संचालन करने से है। 
2. वाचन शैली 
वाचन शैली से हमारा तात्पर्य कंठ साधकर भाव के अनुसार उचित उतार-चढ़ाव के साथ पढ़ने के ढंग से है। 
उचित वाचन मुद्रा के साथ जो व्यक्ति वाचन सामग्री का भावों के अनुसार अंगो का संचालन करते हुए पढ़ता है, वह श्रोताओं को बरबस अपनी तरफ आकृष्ट कर लेता है। अच्छा वाचनकार आगे चलकर अच्छा वार्ताकार, प्रभावशाली वक्ता तथा सफल अभिनेता हो जाता है। 
अच्छे वाचन की विशेषताएं
एक सुरुचिपूर्ण तथा सुन्दर वाचन में निम्न विशेषताएं होनी चाहिए-- 
1. अच्छा वाचन आरोह-अवरोह के साथ प्रभावोत्पादक ढंग से किया जाता है। 
2. हर शब्द को अन्य शब्दों से अलग करके उचित बल तथा विराम के साथ पढ़ना, अच्छे वाचन का दूसरा गुण है। 
3. वाचन अपने वाचन में आवश्यकतानुसार भाव-भंगिमाओं का प्रदर्शन करता है। 
4. वह वाचन में सुस्वरता के साथ प्रवाह बनाये रखता है। 
अत्यन्त सुन्दर शैली में लिखी हुई वाचन प्रणाली साधारण पाठक के मुख से निकलकर नीरस तथा निरर्थक प्रतीत होती है, इसके विपरीत साधारण-सी वाचन सामग्री को भी एक अच्छा वाचक प्रभावोत्पादक ढंग से पेश कर श्रोताओं का मन मोह लेता है। 

वाचन शिक्षण के उद्देश्य 

वाचन का शुद्ध तथा प्रभावोत्पादक होना आवश्यक है। वाचक के वाचन में शुद्धता तथा प्रभावोत्पादक सही वाचन शिक्षण द्वारा ही आती है। वाचन शिक्षण करते समय शिक्षक को निम्न उद्देश्यों को ध्यान में रखना चाहिए-- 
1. बालकों के अक्षरोच्चारण, शब्दोच्चारण शुद्ध होने चाहिए। वे वाचन सामग्री को उचित, निर्गम, बल, सुस्वरता के साथ पढ़ सकें। 
2. उनके स्वरों में ऐसा आरोह-अवरोह हो कि भावों के अनुकूल उनमें लोच हों। 
3. वाचन इतना प्रभावोत्पादक हो कि श्रोता का मन मुग्ध हो जाय। 
4. बालक वाचन सामग्री का भाव समझ सके तथा दूसरों को समझा भी सके। 

पठन अथवा वाचन के प्रकार 

पठन या वाचन मुख्यतः दो तरह का होता है-- 
1. सस्वर वाचन 
सस्वर का अर्थ है जोर से या स्वर सहित वाचन करना। कई अनौपचारिक अवसरों पर व्याख्यान देते समय, वाद-विवाद तथा गोष्ठियों में अपनी बात को प्रभावशाली ढंग से कहने के लिए यही वाचन का रूप प्रयुक्त होता है। 
शुद्ध, प्रभावपूर्ण वाचन श्रोताओं पर विशिष्ट प्रभाव डालता है। यही नही बल्कि वक्ता का अपना व्यक्तित्व भी निखर उठता है। किसी भी अवसर पर बातचीत करते समय जिसका वाचन अच्छा है अन्य की अपेक्षा दूसरों को शीघ्र प्रभावित कर लेता है। 
सस्वर वाचन के उद्देश्य 
वाचन पर अगर बचपन से ही माता-पिता तथा शिक्षकों द्वारा ध्यान दिया जाय तो वह प्रभावी एवं त्रुटि रहित हो सकता है। अच्छे वाचन हेतु निम्न बातें जरूरी है-- 
1. बालक को वाचन के पढ़ते समय बार-बार बीच में न टोकें। इससे वाचन में प्रवाह नही आ पाता तथा उसमें आत्मविश्वास नही पनप पाता। 
2. सस्वर वाचन में बड़ी कुशलता की जरूरत है। उच्चारण में भावानुकूल उतार-चढ़ाव, शुद्धता अपेक्षित है। 
सस्वर वाचन के निम्न उद्देश्यों पर अध्यापक की दृष्टि रहनी चाहिए-- 
1. शुद्ध तथा स्पष्ट उच्चारण के साथ पढ़ना, प्रायः छात्र श तथा स के, क्ष एवं छ के उच्चारण में भेद नही कर पाते। बहुत से शिक्षक तक सकुन्तला, सवीकार तथा अच्छर बोलते देखे जा सकते है। 
2. विराम चिन्हों पर विशेष ध्यान देते हुए पढ़ना। 
3. भावानुकूल उतार-चढ़ाव के साथ पढ़ना। 
4. श्रोताओं की संख्या के अनुसार अपने स्वर को तीव्र तथा मंद रूप से पढ़ाना। 
5. उच्चारण पर स्थानीय प्रभाव तथा ग्रामीण प्रभाव न पड़ने देना। 
अच्छे वाचन या पठन के गुण 
अच्छे वाचन मे निम्न गुण होना चाहिए-- 
1. शुद्ध ध्वनियों का ज्ञान।
2. उच्चारण का शुद्ध अभ्यास।
3. सही शब्दों पर बलाघात- किस शब्द पर कितना जोर दिया जाना है, इस बात का ज्ञान जरूरी है। 
4. स्वर की स्पष्टता-बहुत से लोग शब्दों को चबा-चबा कर बोलते है या बहुतों के मुख से शब्द गिरते-निकलते पड़ते है। जो इस तरह का वाचन करते है उनका प्रारंभ से ही वाचन नियन्त्रित किया जाना चाहिए।
5. उचित विराम चिन्हों का प्रयोग।
6. भाषा में प्रवाह तथा गति पर पूर्ण ध्यान रखा जाए। न तो बहुत शीघ्रता से तथा न रूक-रूककर धीरे-धीरे पढ़ा जाय। 
7. स्वर में रसात्मकता हो। कर्कशता से पढ़े शब्दों को श्रोता बिल्कुल पसंद नही करता। 
8. वाचन करते समय आनंद की अनुभूति जरूरी है। जब वक्ता ही रूचि नही लेगा तो श्रोता कैसे रूचि ले सकता है। 
9. वाचन में मुद्रा का अपना विशेष महत्व है। अनावश्यक अंग संचालन से बचना चाहिए। अकारण आँखें झपकाना, उँगलियाँ चबाना, जमीन कुरेदना, आत्म-विश्वासहीनता का परिचायक है। पढ़ते समय पुस्तक को भी उचित तरह से पकड़ना चाहिए। कहने का तात्पर्य यह है कि वाचन हमेशा स्वाभाविक ढंग से किया जाना चाहिए, न कि घबड़ाते हुए और न अकड़ते हुए।
2. मौन वाचन 
लिखित सामग्री को मन ही मन बिना स्वर किये चुपचाप पढ़ना मौन वाचन या मौन पठन कहा जाता है। इसमें ओष्ठ नही हिलते, ना ही पढ़ने में आवाज आती है। जब बालक मौन वाचन में कुशलता प्राप्त कर लेता है तो सस्वर वाचन छोड़ देता है। मौन वाचन में निपुणता वैचारिक प्रौढ़ता तथा भाषायी दक्षता का सूचक है। मौन वाचन का जीवन में बड़ा महत्व है, जैसे-- 
1. मौन वाचन में थकान कम होती है। वाग्यंत्रों पर बहुत जोर नही पड़ता। 
2. दूसरों को व्यवधान नही पहुंचता।
3. समय की बचत होती है। 
4. दैनिक जीवन में इसका बहुत महत्व है-- अखबार पढ़ने, साहित्य पढ़ने, यात्रा के समय पत्र-पत्रिकाएँ पढ़ने मे इसी वाचन का उपयोग किया जाता है। 
5. बालक का ध्यान केंद्रित रहता है। 
6. मौन वाचन के समय चिन्तन प्रक्रिया चलती रहती है इसलिए पाठ को बालक समझते हुए पढ़ता चला जाता है। 
7. सामूहिक वाचन हेतु मौन वाचन बहुत जरूरी है। 
8. मौन वाचन से स्वाध्याय की आदत पड़ जाती है। आनन्द प्राप्त करने हेतु मौन रूप से पढ़ना नितान्त जरूरी है। 
9. उच्च कक्षाओं मे मौन वाचन करना ज्यादा हितकर है। 
मौन वाचन के समय कक्षा के शिक्षक को बहुत सतर्क रहना चाहिए। वह देखे कि छात्र मौन रूप से बगैर होठ हिलाये नेत्रों से चुपचाप समझते हुए पढ़ रहा है या नही। कहीं स्वर में फुसफुसाहट अथवा ध्वनि तो नही आ रही है, शब्दों पर ऊँगली तो नही फेरी जा रही है। 
मौन वाचन के उद्देश्य 
मौन वाचन का मुख्य उद्देश्य है, वाचन गति का विकास तथा पठित सामग्री का अर्थ ग्रहण। माध्यमिक स्तर तक आते-आते छात्र के विचारों में परिपक्वता आने लगती है। अतः इस स्तर पर मौन वाचन द्वारा निम्न उद्देश्यों की प्राप्ति की योग्यता विकसित होनी चाहिए-- 
1. अनावश्यक स्थलों को छोड़ते हुए प्रमुख भावों या केनद्रीय भाव का अर्थ ग्रहण करते हुए वाचन करना। 
2. पठित सामग्री से तथ्यों, भावों तथा विचारों को ग्रहण करते हुए सारांश बताने की क्षमता का विकास।
3. पढ़ी हुई सामग्री से प्रश्नों का सही उत्तर दे सकना।
4. उपयुक्त शीर्षक चयन करने की क्षमता का विकास कर सकना।
5. भाषा तथा भाव संबंधी कठिनाइयों का चयन कर प्रसंग के अनुकूल नवीन शब्दों, उक्तियों और मुहावरों तथा लोकोक्तियों का अर्थ निकाल लेना।
6. सन्धि विच्छेद, उपसर्ग, प्रत्यय तथा शब्द धातुओं से शब्द का अर्थ निकाल लेना। 
7. शब्दकोष को देखने तथा प्रसंगानुसार अर्थ निकालने की क्षमता का विकास।
8. शब्द का लक्ष्णार्थ जान लेना।
9. विभिन्न साहित्यिक विधाओं जैसे-- नाटक, निबंध, कहानी, उपन्यास, जीवीन, संस्मरण इत्यादि के मुख्य तत्वों की पहचान कर लेना। शैली के अनुसार निबंधों का भेद कर लेना। 
10. लेखक के व्यक्तित्व की विशेषता उसकी शैली है, जो उसकी पहचान भी है।

विद्यालय में हिन्दी शिक्षक द्वारा सस्वर वाचन तथा मौन वाचन के अवसर 

गद्य तथा पद्य के पाठों में सस्वर वाचन महत्वपूर्ण स्थान है। प्राथमिक तथा माध्यमिक कक्षाओं में गद्य की पाठ्य-पुस्तकें अलग नही होती, पर मौन वाचन का प्रशिक्षण सिर्फ गद्य पाठों द्वारा दिया जा सकता है। माध्यमिक तथा उच्च स्तर पर सहायक पुस्तकें अलग रहती है। इन पुस्तकों को पढ़ाते समय द्रुत मौन वाचन का अभ्यास कराने में आसानी रहती है। पद्य पढ़ाते समय मौन वाचन नही किया जाता, क्योंकि पद्य का उद्देश्य है, रसानुभूति कराना।
शिक्षण में पहले शिक्षक द्वारा आदर्श सस्वर वाचन किया जाता है, तदन्तर छात्र अनुकरण वाचन करते है। कठिन शब्दों की व्याख्या के बाद ही मौन वाचन से आसानी से अर्थ ग्रहण किया जा सकता है। मौन वाचन से पहले कुछ प्रश्न भी श्यामपट्ट पर लिखे जा सकते है, जिनका उत्तर मौन वाचन करने के बाद छात्रों से लिये जा सकते है। इसी दृष्टि से छात्र मौन वाचन करके उत्तर देने के लिए पहले से तैयार रहेंगे तथा उनका वाचन भी किसी उद्देश्य की प्राप्ति में सहायक होगा।

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