8/16/2021

बौद्ध कालीन शिक्षा के उद्देश्य, गुण/महत्व, दोष

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बौद्ध कालीन शिक्षा के उद्देश्य (buddha kalin shiksha ke uddeshy)

buddha kalin shiksha uddeshy mahatva gun dosh;बुद्ध ने सद्जीवन के लिए  जो अष्टांगिक मार्ग बताए थे, बौद्ध काल मे वे ही शिक्षा के उद्देश्य बन गए। इनके अलावा कालांतर मे जिन उद्देश्यों को स्थान मिला, वे निम्न प्रकार है-- 

1. नैतिक जीवन 

आचार्य का मुख्य कार्य नैतिक जीवन का विकास करना होता था। चरित्र निर्माण के लिए जरूरी नियमों का निर्धारण किया गया था, जिसमें आत्म-संयम, करूणा और दया पर सबसे ज्यादा बल दिया गया था। 

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2. व्यक्तित्व का विकास 

आत्म संमय, आत्म निरर्भरता, आत्मविश्वास, आत्मसम्मान, करूणा तथा विवेक जैसे सबसे अधिक महत्वपूर्ण गुणों का विकास कर छात्र के संपूर्ण व्यक्तित्व का विकास करना बौद्ध कालीन शिक्षा का एक महत्वपूर्ण उद्देश्य था। 

3. सर्वांगीण विकास 

बौद्ध शिक्षा प्रणाली मे छात्र के शारीरिक, मानसिक और नैतिक विकास को ध्यान मे रखकर शिक्षा प्रदान की जाती थी, साथ ही उसके व्यावसायिक विकास को ध्यान में रखकर किसी कला-कौशल व उद्योग की भी शिक्षा प्रदान की जाती थी। इस तरह व्यक्तित्व के विभिन्न पक्षों के समन्वित विकास पर ध्यान दिया जाता था। 

4. संस्कृति का संरक्षण

बौद्ध दर्शन मे धर्म को संस्कृति का अंग माना गया है तथा संस्कृति के संरक्षण से ही धर्म का संरक्षण हो सकता है। इसके अंतर्गत बुद्ध के उपदेशों एवं भारतीय सांस्कृतिक धरोहर के विद्यार्थियों को हस्तांतरित करना था। 

5. ज्ञान का विकास 

बौद्ध धर्म के अनुसार इस संसार के सभी दुःखों का एक मात्र कारण अज्ञानता है। अतः बौद्ध कालीन शिक्षा मे छात्रों को सच्चे एवं सार्थक ज्ञान के विकास पर बल दिया जाता था। बौद्ध काल मे सच्चे ज्ञान से अभिप्राय धर्म एवं दर्शन के चार सत्यों के ज्ञान और उसी के अनुरूप आचरण करने से था। 

6. चरित्र-निर्माण करना 

बौद्ध कालीन शिक्षा का एक मुख्य उद्देश्य बालकों का चरित्र-निर्माण करना था चरित्र-निर्माण के लिए आत्भ संयम, करूणा और दया को अत्यधिक महत्व दिया जाता था। जो बालक इन गुणों का पालन करता था उसे चरित्रवाना माना जाता था। चरित्र-निर्माण के लिए मठों एवं विहारों में दस नियमों का पालन कराया जाता था तथा सादा जीवन जीने एवं विनयपूर्ण व्यवहार करने के लिए छात्रों को प्रशिक्षित किया जाता था। 

7. विभिन्न व्यवसायों की शिक्षा

बौद्ध कालीन शिक्षा का एक उद्देश्य विभिन्न व्यवसायों की शिक्षा भी देना था। विभिन्न व्यवसायों की शिक्षा के अंतर्गत छात्र को विभिन्न प्रकार के कला-कौशलों एवं व्यवसायों जैसे-- कृषि, पशुपालन, वाणिज्य इत्यादि की शिक्षा दी जाती थी।

बौद्ध कालीन शिक्षा प्रणाली के गुण अथवा महत्व (buddha kalin shiksha ka mahatva)

बौद्ध युगीन शिक्षा प्रणाली का महत्व या गुण निम्नलिखित है-- 

1. केन्द्रीय प्रशासन

वैदिक काल मे शिक्षा पर गुरूओं का नियंत्रण होता था। बौद्ध काल मे शिक्षा पर संघों का नियंत्रण हो गया जिससे शिक्षा के क्षेत्र मे प्रगति हुई, अर्थात् शिक्षा मे एकरूपता आयी तथा इसका प्रशासन भी सुचारू रूप से होने लगा। 

2. सभी को शिक्षा का समान अधिकार

वैदिक कालीन शिक्षा की विशेषताएं मे हम पढ़ चुके है कि वैदिक काल मे शुद्रों को शिक्षा प्राप्त करने का अधिकार नही था। बौद्ध काल मे बिना किसी भेदभाव के सभी वर्ण के व्यक्तियों को शिक्षा प्राप्त करने का अधिकार था जिससे जाति और लिंग के भेदभाव के कारण पिछड़ी हुई शिक्षा को एक नई दिशा मिली। 

3. निःशुल्क प्राथमिक शिक्षा 

बौद्ध काल मे प्राथमिक शिक्षा निःशुल्क थी इसके लिए छात्रों से किसी भी प्रकार का कोई शुल्क नही लिया जाता था। शिक्षा हर व्यक्ति का जन्मसिद्ध अधिकार है और प्राथमिक शिक्षा लोकतंत्र के प्रत्येक व्यक्ति को अनिवार्य रूप से मिलनी चाहिए। बौद्ध काल मे इसकी निःशुल्क व्यवस्था से सभी धर्म व जातियों के बालकों के लिए यह सुलभ हो गई। 

4. लोकभाषा के माध्यम से शिक्षा 

महात्मा बुद्ध के आदेशानुसार, भिक्षुओं को उनकी स्वयं की भाषाओं मे शिक्षा दी जाती थी। इसका परिणाम बताते हुए डाॅ. आर. के मुकर्जी ने लिखा है," बौद्ध धर्म ने देश की लोकभाषाओं को प्रोत्साहन प्रदान किया और बौद्ध शिक्षा संस्थाओं में संस्कृत के बजाय लोकभाषाओं ने शिक्षा के माध्यम का स्थान ग्रहण किया।"

5. गुरू शिष्य संबंध 

गुरं और शिष्य के बीच मधुर संबंध थे। विद्यार्थी अपने गुरूओं की सेवा करते थे तथा गुरू के प्रति भक्ति या श्रद्धा का भाव रखते थे। गुरू भी विद्यार्थियों को अपने व्यक्तित्व से प्रभावित करके उनके विकास हेतु सदैव सजग रहता था। 

डाॅ. अल्तेकर के शब्दों मे," अपने गुरू के साथ नवशिष्य के संबंधों का स्वरूप पुत्रानुरूप था। वे पारस्परिक सम्मान, विश्वास और प्रेम से आबद्ध थे। इस काल मे गुरू-शिष्य संबंध तथा गुरू दोनों ही अपने कर्तव्यों का पालन करते थे।" बौद्ध काल मे छात्र अनुशासित होते थे। 

6. भव्य शिक्षण संस्थाओं का निर्माण 

भारत मे विद्यालय शिक्षा का विकास सबसे पहले बौद्ध काल मे ही हुआ। उस समय के मठ एवं विहार भव्य भवन में स्थापित होते थे उनमें छात्रों के पढ़ने के लिए बड़े-बड़े कमरे तथा पुस्तकालय भी होते थे। गुरू एवं शिष्य दोनों के रहने के लिए अच्छे निवास की भी व्यवस्था होती थी। 

7. धार्मिक शिक्षा के साथ मानवतावादी शिक्षा पर बल 

बौद्ध काल मे धार्मिक शिक्षा तथा छात्रों को बौद्ध धर्म का ज्ञान कराया जाता था। इसके साथ-साथ इस काल मे छात्रों को मानवतावादी शिक्षा भी प्रदान की जाती थी। मानवतावादी शिक्षा से अभिप्राय ऐसी शिक्षा से है जो मानव के कल्याण एवं राष्ट्र की सेवा हेतु प्रदान की जाती थी। 

8. स्त्रियों के लिए शिक्षा व्यवस्था 

बौद्ध काल में पुरूषों की तरह स्त्रियों के लिए भी शिक्षा की व्यवस्था होती थी। यह बात अलग है कि मठो व विहारों के कठोर नियमों के कारण बालिकाएं इनमें प्रवेश नही लेती थी परन्तु उन्हें भी शिक्षा प्राप्त करने का पूरा अधिकार था।

बौद्ध कालीन शिक्षा के दोष (buddha kalin shiksha ke dosh)

बौद्ध शिक्षा प्रणाली अपने अपने की श्रेष्ठ प्रणाली मानी जाती थी, परन्तु किसी भी प्रणाली में गुणों के साथ-साथ कुछ दोष भी होते है। 

बौद्ध कालीन शिक्षा प्रणाली के निम्नलिखित दोष थे-- 

1. लौकिक जीवन की उपेक्षा 

धर्म प्रधान होने के कारण बौद्ध शिक्षा में आध्यात्मिक विकास पर अधिक जोर दिया जाता था। बौद्ध तथा अबौद्धों को जीवन को मिथ्या तथा संसार को क्षणभंगुर मानने की निरंतर शिक्षा दी जाती थी। इस तरह बौद्ध धर्म जो शिक्षा प्रदान करता था, वह व्यक्तियों को इस जीवन एवं संसार के लिए तैयार न करके दूसरे संसार के लिए तैयार करती थी। 

2. हस्तकार्य के प्रति घृणा 

मठों मे प्रदान की जाने वाली शिक्षा प्रमुख रूप से धार्मिक तथा आध्यात्मिक थी। उसमें लौकिक विषयों को तो स्थान दिया गया था, लेकिन हस्तकार्यों से संबंधित शिक्षा की उपेक्षा पूर्ण रूप से की गयी थी, क्योंकि हस्तकार्यों को हीन दृष्टि से देखा जाने लगा था, जिससे उच्च वर्गों के लोगों ने इसे पूर्ण रूप से छोड़ दिय था। इस प्रकार श्रम की भावना का शनै:शनै: विनाश हुआ। 

3. स्त्री शिक्षा की उपेक्षा 

बौद्ध कालीन शिक्षा से केवल धनी एवं कुलीन परिवारों की स्त्रियाँ ही लाभ उठा सकीं, लेकिन सामान्य स्त्रियों की शिक्षा के लिए बौद्धों ने कोई कदम नही उठाया। इसका प्रमुख दोष भिक्षुणियों पर था, क्योंकि जिस तरह छात्रों तथा पुरूषों का भार भिक्षुओं पर था, उसी प्रकार छात्राओं तथा स्त्रियों की शिक्षा का भार भिक्षुणियों पर था, परन्तु भिक्षुणियों ने अपने मठों मे किसी भी प्रकार की शिक्षा का कार्यक्रम आयोजित नही किया। 

इसके विषय मे डाॅ. एफ. के. ई. का मत है कि," यह कल्पना करना उचित नही होगी कि बौद्ध धर्म ने भारत मे स्त्रियों की शिक्षा के लिए कोई विशेष कार्य किया था।" 

4. अनुचित शिक्षा संगठन 

बौद्ध काल मे वैसे तो शिक्षा के दो स्तर हुआ करते थे-- प्राथमिक व उच्च, परन्तु साथ ही उच्च शिक्षा के बाद भिक्षु शिक्षा की भी व्यवस्था थी जबकि शिक्षा का संगठन मनोवैज्ञानिक आधार पर होना चाहिए जिससे सभी को एक समान शिक्षा प्राप्त हो सके। 

5. सैन्य शिक्षा का अभाव 

अहिंसा मे विश्वास करने के कारण बौद्ध धर्म ने 'अहिंसा परमो धर्म:' के सिद्धांत का पोषण किया। अतः बौद्ध काल मे युद्ध-कला, सैनिक विज्ञान, अस्त्र-शस्त्र निर्माण की शिक्षा के प्रति लेशमात्र भी ध्यान नही दिया गया। इसका परिणाम यह हुआ कि देश-सैनिक दृष्टि से दुर्बल हो गया। अतः जब भारत पर मुसलमानों के आक्रमण शुरू हुए तथा इस देश के निवासी सैनिक शक्ति से उनका सामना न कर सकने के कारण पददलित हुए तथा कई शताब्दियों तक यवनों के दास रहे। 

6. धार्मिक शिक्षा के अंतर्गत बौद्ध धर्म की शिक्षा 

बौद्ध शिक्षा केन्द्रों में धार्मिक शिक्षा की व्यवस्था की गई थी परन्तु विडम्बना यह थी कि इस धार्मिक शिक्षा के अंतर्गत केवल बौद्ध धर्म की शिक्षा और उसके प्रचार-प्रसार की शिक्षा ही छात्रों को दी जाती थी।

बौद्ध युगीन शिक्षा का योगदान 

बौद्ध युग में सामान्य शिक्षा संस्थाओं का गठन हुआ। इस युग की शिक्षा जनसाधारणों हेतु हो गयी थी। सभी व्यावहारिक विषय जिनकी शिक्षा वर्तमान में दी जाती है, बौद्ध युग की देन है। नालन्दा, बल्लभी विश्वविद्यालय के गठन एवं संरचनाओं को प्रभावित कर रहा है। उच्च शिक्षा के लिए न्यूनतम आयु, नियमों और परीक्षा का आयोजन आज भी दिशा-निर्देश दे रहा है। बौद्ध शिक्षा-प्रणाली का आधारभूत ढाँचा वैदिक ही रहा लेकिन व्यवहार मे तथा संस्थागत, संरचनात्मक परिवर्तन दिखायी देने लगे। इसमें से मुख्य परिवर्तन निम्नांकित है--

1. बौद्ध युग मे शिक्षा गुरूओं के नियंत्रण मे थी। 

2. शिक्षा सभी वर्गों हेतु सुलभ थी। वर्णभेद समाप्त हो गया था। 

3. शैक्षिक जीवन अनुशासित था। 

4. स्त्रियों को शिक्षा के समान अधिकार प्राप्त हो गये। 

5. शिक्षा व्यवस्था केन्द्रीय हो गयी थी एवं केन्द्रीय सीमित शिक्षा की व्यवस्था करती थी। 

6. बौद्ध युगीन शिक्षा मे सामूहिक रूप से शिक्षा दी जाती थी। 

7. शिक्षा स्वरूप प्रजातांत्रिक हो गया था। 

निष्कर्ष 

अंततः कहा जा सकता है कि बौद्ध शिक्षा-प्रणाली को विश्व की श्रेष्ठतम शिक्षण प्रणाली कहा जाता है। वर्तमान मे हम शिक्षा संरचना का जो स्वरूप हमें दिखायी दे रहा है उसके मूल में बौद्ध युगीन शिक्षा की संरचना के तत्व विद्यमान है। स्वास्थ्य शिक्षण का विस्तृत एवं उपयोगी पाठ्यक्रम, व्यावहारिक एवं जीवनोपयोगी शिक्षण का स्वरूप इसी युग में विकसित हुआ। ऐसा माना जाता है कि वर्तमान शिक्षा व्यवस्था बौद्ध कालीन शिक्षा का प्रतिबिम्ब है।

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