सीमान्त लागत क्या है? (seemant lagat ka arth)
seemant lagat arth paribhasha visheshta;सीमान्त लागत साधारणतया उस अतिरिक्त को कहते है जो एक अतिरिक्त इकाई का उत्पादन करने के लिए आवश्यक होती है। जो लागत एक निश्चित लागत होती है तथा जो लागत उत्पादन मे एक और इकाई जोड़कर उत्पादन करने मे आती है, इन दोनों लागतों का अंतर सीमांत लागत कहलाता है।
प्रबन्धक लेखा संस्थान लंदन के अनुसार, ‘‘सीमान्त लागत उत्पादन की एक निर्दिष्ट मात्रा पर वह राशि है, जिससे कुल लागतें परिवर्तित होती हैं, यदि उत्पादन की मात्रा एक इकाई से कम अथवा अधिक की जाती है। इस सन्दर्भ में एक इकाई एक मद, वस्तुओं का एक बैच, एक आदेश अथवा उत्पादन क्षमता का एक चरण अथवा एक विभाग हो सकती है। सीमान्त लागत विचाराधीन विशेष परिस्थितियों में उत्पादन में परिवर्तन से सम्बन्धित होती है।"
सीमान्त लागत की परिभाषा (seemant lagat ki paribhasha)
सीमांत लागत पद्धति की प्रमुख परिभाषाएं इस प्रकार है--
डी. जोसेफ के अनुसार," सीमान्त लागत वर्तमान स्तर से एक इकाई अधिक के उत्पादन के कारण कुल लागत मे हुए परिवर्तन की निर्धारित करने की तकनीक है।"
आय. डब्ल्यू. सी. ए. लन्दन के अनुसार," सीमान्त लागत विधि किसी उत्पादन की सीमान्त लागतों के निर्धारण एवं स्थिर एवं परिवर्तनशील व्ययों मे विभेद करने से उत्पादन की मात्रा एवं प्रकार का लाभों पर पड़ने वाले प्रभावों के अध्ययन की तकनीक है।"
एच. जे. ह्रेलडन के अनुसार," सीमावर्ती लागत कार्य विधि लागत और संचालन लागत विधि नही है बल्कि यह एक कला है जिसका संबंध स्थायी विशेषकर खर्चों के प्रभाव को चालू व्यापार मे दर्शाना होता है।"
सी.आई.एम.ए.टर्मिनोलॉजी के अनुसार, ‘‘सीमान्त लागतों के निर्धारण तथा स्थायी एवं परिवर्ती लागतों में अन्तर करते हुये उनके परिणाम तथा प्रकार के आधार पर प्रभारों के लाभ पर पड़ने वाले प्रभाव को स्पष्ट करने की विधि है। लागत लेखांकन की इस तकनीक में केवल परिवर्तनशील लागतें सम्मिलित है जो गतिविधियों प्रक्रियाओं तथा उत्पादों पर प्रभारित की जाती है तथा समस्त अप्रत्यक्ष लागतों को उन अवधियों में जिनमें उनको व्यय किया जाता है के लाभों के प्रति अपलिखित कर दिया जाता है।"
इन्स्टीट्यूट ऑफ काॅस्ट एण्ड वक्र्स एकाउन्टेन्स के अनुसार," सीमान्त लागत ' शब्द का अर्थ उत्पादन के किसी निश्चित परिणाम के लिए उस राशि से है जिससे कुल लागत मे परिवर्तन होता है, यदि उत्पादन का परिणाम एक इकाई से कम या अधिक हो जाये।"
उपरोक्त परिभाषाओं के अध्ययन से यह स्पष्ट होता है, कि वस्तु के उत्पादन की मात्रा मे एक इकाई की वृद्धि अथवा कमी किये जाने पर कुल लागत मे जो परिवर्तन होता है, उसी को सीमान्त लागत कहते है। वास्तविकता मे उत्पादन स्तर मे परिवर्तन से केवल परिवर्तनशील लागतें ही प्रभावित होती है। अर्थात् लागत लेखांकन के अंतर्गत सीमान्त लागत का आशय कुल परिवर्तनशील लागत से होता है। सीमान्त लागत मे प्रत्यक्ष सामग्री, प्रत्यक्ष श्रम, प्रत्यक्ष व्यय एवं सभी परिवर्तनशील उपरिव्ययों को सम्मिलित किया जाता है। सीमांत लागत मे स्थायी लागतों को सम्मिलित नही किया जाता है।
सीमांत लागत लेखांकन की विशेषताएं (seemant lagat ki visheshta)
सीमान्त लागत की विशेषताएं इस प्रकार है--
1. इस पद्धति मे लागत के सभी तत्वों को मुख्य रूप से स्थायी एवं परिवर्तनशील दो भागों मे विभाजित किया जाता है।
2. इस पद्धति मे उत्पादन लागतों की गणना करने मे केवल परिवर्तनशील लागतों अर्थात् सिमान्त लागतों को ही सम्मिलित किया जाता है।
3. इस विधि मे निर्मित माल के स्कन्ध तथा चालू कार्य का मूल्यांकन सीमान्त लागत के आधार पर किया जाता है।
4. यह पद्धति इस मान्यता पर आधारित है कि कुल स्थिर लागत उत्पादन मात्रा के घटने या बढ़ने पर एक समान होती है तथा उसमे कोई परिवर्तन नही होता। जैसे-जैसे उत्पादन मे वृद्धि होती चली जाती है, प्रति इकाई स्थिर लागत कम होती जाती है।
5. कुल परिवर्तनीय लागत उत्पादन मे वृद्धि के साथ-साथ आनुपातिक रूप मे बढ़ती है तथा उत्पादन मे कमी होने पर आनुपातिक रूप से कम होती है। प्रति इकाई परिवर्तनीय लागत पर उत्पादन मे कमी या वृद्धि का कोई प्रभाव नही पड़ता। यह सदैव एक समान रहती है।
6. वर्तमान स्तर से अधिक जितनी भी इकाइयां उत्पादिय की जायेंगी उनके उत्पादन के लिए केवल परिवर्तनीय लागत अतिरिक्त रूप से लगेगी। इसी को सीमान्त लागत के नाम से पुकारा जाता है।
7. सीमान्त लागत मे अंशदान की गणना प्रमुख रूप से की जाती है जो विक्रय मूल्य व सीमान्त लागत का अंतर होता है। इसका उपयोग स्थिर लागतों की पूर्ति एवं लाभ नियोजन हेतु किया जाता है।
8. सीमान्त लागत लेखांकन का प्रयोग लागतों की सूचना देने तथा लागतों का लेखा रखने हुए किया जाता है।
सीमान्त लागत लेखांकन एवं प्रबंधकीय निर्णय
मूल रूप से सीमांत लागत लेखांकन का उदय एवं विकास प्रबंध की सहायता के लिए हुआ था। आज अधिकांश प्रबंधकीय निर्णय लागत तकनीकों के आधार पर ही लियें जाते हैं। निर्णयन में सीमान्त लागत लेखांकन की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। यदि लागत लेखांकन की इस तकनीक का प्रयोग न किया जावे तो संस्था के महत्त्वपूर्ण निर्णय गलत किये जायेंगे जिससे भविष्य में संस्था को दुष्परिणामों का सामना करना पड़ सकता है। अगर सीमान्त लागत लेखांकन की सीमाओं का पर्याप्त ध्यान रखा जाये तथा इसके पश्चात् इस तकनीक द्वारा निर्णय लिये जायें तो निश्चित रूप से प्रबंध इस तकनीक से लाभान्वित होगा। विभिन्न विकल्पों के चुनाव में इस तकनीक से काफी सहायता मिलती है।
प्रबंध का मुख्य उद्देश्य अधिकतम लाभ अर्जित करना होता है। इस उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए प्रबंध को अनेक प्रकार के उत्पादन एवं विक्रय सम्बंधी निर्णय लेने होते है।
सीमान्त लागत विधि निम्नलिखित निर्णय लेने में सहायक सिद्ध होती है-
1. सीमान्त मूल्य से कम मूल्य पर अथवा निर्धारित मूल्य से कम मूल्य पर आदेश स्वीकृत करना अथवा रद्द करना।
2. लाभ की एक निश्चित राशि अर्जित करने हेतु विक्रय का निर्धारण।
3. मंदी के समय विक्रय मूल्य में की जाने वाली कटौती।
4. विदेशी बाजार पर अधिकार प्राप्त करने के लिए विक्रय मूल्यों का निर्धारण।
5. उत्पादन की वर्तमान क्षमता में वृद्धि करना अथवा संकुचन करना।
6. नवीन वस्तुओं का निर्माण शुरू करना या कुछ पुरानी वस्तुओं का निर्माण बंद करना।
7. किसी विशेष पुर्जे अथवा निर्मित वस्तु के भाग को बाजार से क्रय किया जावे अथवा कारखाने में उसका उत्पादन किया जावे।
8. पुरानी मशीन को नवीन मशीन द्वारा प्रतिस्थापित किया जावे अथवा न किया जाये।
9. नवीन संयंत्र एवं उपकरण क्रय किया जावे अथवा पट्टे पर ले लिया जाए।
10. मशीन अथवा उत्पादन में परिवर्तन किया जावे अथवा यथास्थिति बनाये रखी जावे।
11. विभिन्न वस्तुओं के उत्पादन में प्राथमिकता का निर्धारण करना।
12. विपणन तथा वितरण सम्बंधी नीतियां का निर्धारण करना।
वास्तव में सीमान्त लागत लेखांकन, की कोई विधि नहीं है, अपितु एक तकनीक है। इस विधि का प्रयोग लागत लेखापाल द्वारा ही किया जाना चाहिए। इस तकनीक के आधार पर काफी महत्त्वपूर्ण निर्णय लिये जा सकते हैं, लेकिन इस तकनीक को सीमाओं का निर्णय लेते समय अवश्य ध्यान रखा जाना चाहिए।
सीमान्त लागत विधि के अन्तर्गत कुल लागत का निर्धारण
काफी बार उत्पादन के विभिन्न स्तरों पर कुल लागत निकालने की समस्या आती है। चूंकि उत्पादन के विभिन्न स्तरों पर स्थायी लागत एक समान रहेगी, अतः विभिन्न स्तरों पर परिवर्तनशील लागत की गणना ही आवश्यक होती है। चूंकि परिवर्तनशील लागत प्रति इकाई विभिन्न स्तरों पर एक समान रहती है, इसलिए उत्पादन की विभिन्न स्तरों पर उत्पादित इकाइयों को परिवर्तनशील लागत प्रति इकाई से गुणा करके कुल परिवर्तनशील लागत ज्ञात हो जाती है। इसमें स्थिर व्यय जोड़ने पर कुल लागत ज्ञात हो जाती है।
यह भी पढ़ें; सीमान्त लागत के लाभ/गुण, सीमाएं/दोष
यह भी पढ़ें; अवशोषण लागत लेखांकन और सीमान्त लेखांकन मे अंतर
शायद यह जानकारी आपके लिए काफी उपयोगी सिद्ध होंगी
Lekhkna kya h
जवाब देंहटाएंLekhkna kya h
जवाब देंहटाएं