लोचदार बजट क्या है? (lochashil bajat kise kahte hai)
lochashil bajat arth mahatva;लोचशील बगट वह बजट है जो इस प्रकार बनाया जाता है कि क्रियाओं के विभिन्न स्तरों के अनुसार परिवर्तित होता रहे। ऐसा बजट विभिन्न क्रियाशील एवं विभिन्न प्रकार की दशाओं को ध्यान मे रखकर बनाया जाता है। यह बजट उत्पादन के अलग-अलग स्तरों जैसे-- 75% 90% 95% आदि के लिए बनाया जाता है।
लोचशील बजट को लोचपूर्ण बजट, लोचदार बजट, लचीला बजट इत्यादि नामों से भी जाना जाता है। लोचदार बजट स्थिर बजटों की एक श्रंखला है जिसमे विभिन्न क्रीयाशीलता स्तरों पर आगम एवं लागत के अनुमान दिये जाते है। क्रियाशीलता स्तरों का आशय उत्पादन या विक्रय की विभिन्न मात्राओं से है। कुशलता की सुसंगति मे अधिकतम लोचशीलता नियोजन का आधार होती है। साधारणतया जैसे-जैसे विक्रयों एवं उत्पादन की मात्रा मे परिवर्तन होता है इनमे भी परिवर्तन होता है।
इंस्टीट्यूट ऑफ कास्ट एंड मैनेजमेंट एकाउंटेंट के अनुसार," लोचदार बजट वह बजट होता है, जिसमे स्थिर, अर्द्ध परिवर्तनशील एवं परिवर्तनशील लागतों मे अंतर करते हुए क्रियाशीलता के स्तर मे परिवर्तन के साथ-साथ परिवर्तन की व्याख्या की जाती है।"
लोचशील बजट विभिन्न क्रियाशीलता एवं विभिन्न प्रकार की दशाओं का ध्यान रखकर बनाया जाता है। न्यूनतम स्तर से लेकर अधिकतम संचालन स्तर तक के विभिन्न स्तरों पर प्रमाप लागत के आधार पर लागत और व्ययों को अनुमान लगा लिया जाता है जिससे उत्पादन की वास्तविक स्तर पर संभाव्य समंकों की वास्तविक व्ययों से तुलना की जा सके एवं इसके द्वारा वास्तविक उत्पादन स्तर पर बजट समंकों मे आनुपातिक परिवर्तन भी किये जा सकें ।
लोचदार बजट का महत्व/लाभ (lochashil bajat ka mahatva)
स्थिर बजट की अपेक्षा लोचपूर्ण बजट अधिक एवं उपयोगी रहता है। लोचशील बजट का महत्व इस प्रकार है--
1. इस बजट मे व्यवसाय के विभिन्न क्रियाशीलता स्तर के लिए उत्पादन लागत, आगम तथा लाभ का विवरण दिया रहता है।
2. इस बजट के माध्यम से वास्तविक एवं बजट परिणामों का तुलनात्मक अध्ययन सरलता से किया जा सकता है, क्योंकि इस बजट मे विभिन्न संचालन स्तरों के लिए दिए गए आँकड़ों के आधार पर वास्तविक संचालन स्तर के लिए बजटेड आंकड़े सरलतापूर्वक ज्ञात किए जा सकते है।
3. स्थायी बजट मे निश्चित संचालन स्तर का पूर्ण पालन व्यवहार मे संभव नही हो पाता और इस प्रकार वास्तविक और बजटेड आँकड़ों का तुलनात्मक अध्ययन मुमकिन नही हो पाता। ऐसी स्थिति मे लागत नियंत्रण के उद्देश्य को प्राप्त करने मे कठिनाई होती है। इस प्रकार लोचदार बजट का महत्व अपने आप सिद्ध हो जाता है।
4. वर्तमान व्यवसायों मे इतनी अधिक अनिश्चितता आ गई है तथा बाहरी प्रभाव इतने अधिक पड़ने लगे कि विक्रय या उत्पादन का ठीक-ठीक अनुमान लगाना कठिन होता है। ऐसी स्थिति मे यही लाभप्रद होता है कि संचालन के लिए विभिन्न स्तरों के लिए यथोचित पूर्वानुमान लगा लिया जाए।
उपयुक्त गुणों के कारण लचीला बजट बहुत अधिक उपयोगी है। इसके अलावा कुछ ऐसी व्यावसायिक संस्थायें है, जिनके लिए लचीला बजट अपरिहार्य हो जाता है, क्योंकि उनके मामले मे उत्पादन, विक्रय का तर्कसंगत पूर्वानुमान लगाना जटिल कार्य होता है। प्राय: इस प्रकार की दशाओं मे लचीला बजट जरूरी हो जाता है--
(अ) जहाँ पर व्यवसाय मौसम की स्थिति के अधीन रहता हो।
(ब) जहाँ उत्पादन की मांग फैशन और इच्छा पर निर्भर रहती हो।
(स) जहाँ बार-बार नये उत्पादन को लाने पर क्रिया स्तर मे उच्चावचन होता हो।
(द) जहां नये उत्पादन के प्रति ग्राहक की प्रतिक्रिया (मांग के रूप मे) का पूर्वानुमान लगाना अथवा उसके बारे मे भविष्यवाणी करना असंभव हो।
(ई) जहां ग्राहकों के आदेश पर ही उत्पादन किया जाता है।
(फ) जहां व्यवसाय के विशिष्ट स्वभाव के कारण विक्रय के संबंध मे भविष्यवाणी करना संभव न हो और बाहरी कारकों का ज्यादा प्रभाव हो।
(ज) जहाँ पर व्यवसाय श्रम की पर्याप्त आपूर्ति पर निर्भर करता हो, परन्तु श्रम की अल्प आपूर्ति हो।
(झ) जहाँ व्यवसाय निर्यात बजट पर अधिक निर्भर करता हो।
लोचशील बजट बनाने की विधि
लोचशील बजट तैयार करने के लिए निम्म विधि अपनाई जाती है--
1. क्रियाशीलता के विभिन्न स्तरों का निर्धारण
यह तय किया जाना चाहिए कि क्रियाशीलता के किस-किस स्तर के बजट तैयार किया जायेगा। यह स्तर उत्पाद की न्यूनतम व अधिकतम मांग के अनुमान पर आधारित होना चाहिए। उदाहरणार्थ, यदि संयन्त्र की क्षमता 1,000 इकाइयां प्रति वर्ष तैयार करने की है और वस्तु की मांग बाजार मे 600 से 800 इकाइयों के बीच अनुमानित है तो लोचशील बजट 60% 70% व 80% क्रियाशीलता के स्तर के लिए तैयार किया जा सकता है।
2. परिवर्तनशील व्ययों का निर्धारण
यह निर्धारित किया जावेगा कि कारखाना उपरिव्यय तथा विक्रय उपरिव्यय मे कौन से खर्चे परिवर्तनशील स्वभाव के है तथा इन पर अनुमानित खर्च कितना होगा। यदि भविष्य मे मूल्य स्तर मे परिवर्तन के कारण इन व्ययों मे परिवर्तन होने की संभावना बनती है तो उसका भी ध्यान रखा जायेगा।
3. स्थिर व्ययों का निर्धारण
यह निर्धारित किया जावेगा कि ऐसे कौन-कौन से व्यय है जो उत्पादन के स्तर मे परिवर्तन के बावजूद भी स्थिर रहेंगे। यदि इन व्ययों के संबंध मे मूल्य-स्तर मे परिवर्तन होने की संभावना है तो उसका भी ध्यान रखा जायेगा।
4. अर्द्ध-परिवर्तनशील व्ययों का निर्धारण
अर्द्ध परिवर्तनशील व्ययों का निर्धारण करके उनके स्थिय व परिवर्तनशील तत्व को अलग-अलग किया जायेगा और प्रत्येक तत्व के साथ ऊपर बताये गये तरीके से व्यवहार किया जावेगा।
5. कुल लागत व लाभ का निर्धारण
इस प्रकार क्रियाशीलता के विभिन्न स्तर की सभी लागतों को जोड़ कर विभिन्न स्तर के लिए भिन्न-भिन्न कुल लागतें ज्ञात कर ली जाती है और अनुमानित विक्रय मूल्य मे से इनको घटा कर प्रत्येक स्तर के लिए लाभ का पूर्वानुमान कर लिया जाता है।
शायद यह जानकारी आपके लिए काफी उपयोगी सिद्ध होंगी
Lochdar bagat ka prarop
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