10/25/2020

नेपोलियन तृतीय की गृह नीति

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नेपोलियन तृतीय का परिचय (नेपोलियन तृतीय कौन था?)

लुई नेपोलियन (तृतीय) का जन्म 1808 मे पेरिस मे दुइलरी के राजप्रासाद मे हुआ था। वह नेपोलियन बोनापार्ट का भतीजा था। लुई नेपोलियन का लालन-पालन सुख वैभवपूर्ण सुविधाओं मे हुआ था। 1816 मे इसे फ्रांस छोड़कर विदेश जाना पड़ा तब उसकी आयु सिर्फ 8 वर्ष थी। 1832 मे जब नेपोलियन द्वितीय (रोमन के बादशाह) की मृत्यु हो गई तो नेपोलियन दल का नेता लुई नेपोलियन (तृतीय) बना। नेपोलियन के क्रांतिकारी विचारों ने उसे लोकप्रिय बना दिया था। 1840 के बाद लुई नेपोलियन की प्रसिद्ध के कारण तथा क्रांतिकारी विचारों के कारण तत्कालीन शासक लुई फिलिफ ने उसे जेल मे डलवा दिया। वह 1846 मे जेल से भाग कर इंग्लैंड पहुंच गया। 1848 मे फ्रांस मे राज्य क्रांति हुई तो वह वापस लौट आया और क्रांतिकारियों मे अपनी पहचान बना ली। राष्ट्रीय महासभा मे वह चार स्थानों से प्रतिनिधि चुना गया था।

नेपोलियन तृतीय ने महान नेपोलियन को अपना आदर्श माना और उसके सिद्धांतों पर चलने तथा फ्रांस के गौरव को ऊँचा उठाने का आव्हान करके वह फ्रांस की जनता मे लोकप्रिय हो गया। 

लुई नेपोलियन तृतीय का राष्ट्रपति चुना जाना

जुलाई, 1848 का मजदूर विद्रोह कुचल दिया गया तथा नया शासन विधान नवम्बर मे बनकर तैयार हुआ। अब राष्ट्रपति के निर्वाचन का प्रश्न सामने था। राष्ट्रपति के निर्वाचन के लिए 10 दिसम्बर, 1848 का दिन तय किया गया। इस पद के खड़े होने वाले व्यक्ति थे-- लेद्रू, रोलां, सेनापति कैविज्जा तथा लुई नेपोलियन। राष्ट्रपति के पद के निर्वाचन मे लुई नेपोलियन को चुना गया। उसे अकेले 54 लाख वोट मिले और उसके दोनों प्रतिद्वंद्वियों को कुल 20 लाख वोट मिले।

लुई नेपोलियन का सम्राट बनना

राष्ट्रपति चुने जाने के बाद लगभग चार वर्षों मे उसने अपना महत्व बहुत बढ़ा लिया था और वह धीरे-धीरे सम्राट के पद तक पहुँच गया। 2 दिसम्बर, 1852 को राष्ट्रपति लुई नेपोलियन ने सम्राट नेपोलियन तृतीय के रूप मे शासन आरंभ किया, जो 18 वर्षों तक चलता रहा। लुई नेपोलियन राष्ट्रपति से सम्राट एक षड्यंत्र द्वारा बना था। इस तरह फ्रांस मे पुनः राजसत्ता स्थापित हो गई।

नेपोलियन तृतीय की गृह नीति (napoleon tritiya ki grah niti)

नेपोलियन तृतीय की गृह नीति इस प्रकार है--

1. निरंकुश सत्ता के लिए दमन नीति 

अपनी सत्ता को निरंकुश बनाने के लिए नेपोलियन तृतीय ने पहले दमन नीति अपनाई। उसने गणतंत्रवादियों का दमन किया और समाजवादी उपद्रवों को कुचला। उसने प्रेस की स्वतंत्रता समाप्त कर दी और कठोर पुलिस व्यवस्था तथा गुप्तचर प्रणाली कायम की। उसने गुप्तचरों का ऐसा जाल बिछा दिया कि छोटी से छोटी बात भी उसे ज्ञात होने लगी और अपनी आलोचना करने वालो का दमन करने मे उसे सुविधा हो गई।

2. आर्थिक नीति 

नेपोलियन तृतीय ने कल-कारखानों और उत्पादन वृद्धि को प्रोत्साहन दिया। व्यापार एवं वाणिज्य को प्रोत्साहन देने के लिए उसने नहरो और सड़को का जाल-सा बिछा दिया। उसने नगरो मे राजकीय बैंक खुलवाए तथा आयात-निर्यात कर घटा दिए गए।

3. श्रमिक नीति 

नेपोलियन तृतीय ने श्रमिकों या मजदूरो की दशा सुधारने के प्रशंसनीय प्रयत्न किए। वह स्वयं को मजदूरों का सम्राट कहा करता था। उसने मजदूरो को संघ बनाने का अधिकार दे दिया। मजदूरों के हड़ताल करने के अधिकार को भी उसने स्वीकार किया। काम करते समय मजदूरों के घायल होने की अवस्था मे छुट्टी, चिकित्सा आदि की व्यवस्था की। उसने काम करते समय मृत्यु होने पर क्षतिपूर्ति आदि की व्यवस्था की। मजदूरों के लिए सहकारी समितियों का संगठन किया तथा उनके लिए मकान आदि बनवाए गए। मिल मालिकों व श्रमिकों के संघर्ष को प्राथमिकता दी गई। अतः मजदूर वर्ग सुखी हो गया। वर्ग संघर्ष मिटने लगा।

4. लोक निर्माण नीति 

नेपोलियन तृतीय के शासनकाल मे सड़को, नहरों और पुलों के निर्माण के अतिरिक्त पेरिस, आर्सेल्स, ल्यांस मे कई सुन्दर इमारतें बनवाई गयी और कुछ अन्य उपयोगी निर्माण कार्य किया गया। पेरिस के मुख्य मार्गो को चौड़ा किया गया। नयी चौड़ी सड़के बनवाई गयी और अनेक सुन्दर इमारतो का निर्माण किया गया जिनमे पेरिस का ओपेरा हाउस, हेल्स, पेरिस का मुख्य बाजार आदि प्रमुख थे। इसके अतिरिक्त शहर मे बाग लगवाए गए। इस प्रकार द्वितीय साम्राज्य की राजधानी अर्थात् पेरिस यूरोप का सबसे सुन्दर एवं आकर्षक नगर बन गया। मार्सेल्स के प्रसिद्ध जहाजी मालघाट इसी काल मे बनाए गए और वहां भी कई सुन्दर इमारतें बनवाई गई।

5. शिक्षा नीति 

नेपोलियन ने शिक्षा की उन्नति पर पर्याप्त ध्यान दिया। लेकिन वह इस बात से सदा आशंकित रहा कि कही शिक्षा का प्रसार राजतंत्र विरोधी वातावरण पैदा न कर दे, अतः शिक्षा पर कठोर प्रतिबंध लगाया गया। विश्वविद्यालय और काॅलेजो मे सम्राट के प्रति वफादार रहने की शपथ दिलाई जाने लगी। शिक्षण संस्थानों मे इतिहास और दर्शन के अध्ययन पर प्रतिबंध लगा दिया गया। उन्ही विषयों का अध्ययन होता था जो सरकार द्वारा स्वीकृत होते थे।

6. निर्वाचन नीति 

नेपोलियन तृतीय ने निर्वाचन क्षेत्र मे बड़ी चतुराई से काम किया। गांव की जनता अब भी सम्राट की भक्त थी। अतः नगरो को अनेक निर्वाचन क्षेत्रों मे विभक्त करके प्रत्येक क्षेत्र को पास के अनुदार गांवो के साथ मिला दिया गया। इससे निर्वाचन मे उदारवादी व्यक्तियों को सफलता नही मिल पाती थी। इसके अतिरिक्त सरकारी कर्मचारियों को चुनाव लड़ने की स्वतंत्रता दी गई। प्रांतों और नगरों के मेयर सम्राट द्वारा मनोनीत किए जाते थे। वे सम्राट के समर्थकों को चुनाव मे हर संभव मदद करते थे।

7. स्थानीय शासन संबंधी नीति

राष्ट्र प्रांतों मे विभक्त था। प्रांत मे राजा का प्रतिनिधित्व प्रफेक्ट करते थे। नगरों मे न्यायपालिका का विधान था किन्तु इसके अधिकार बहुत सीमित थे। नगर प्रशासन के लिए मेयर और डिप्टी मेयर की नियुक्ति राजा द्वारा होती थी।

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