इटली का एकीकरण
italy ka ekikaran;एकीकरण के पहले इटली मात्र एक भौगोलिक इकाई था। इसमे मुख्य रूप से पीडमाण्ड, सार्डीनिया, परमा, मोडेना, टस्कमी, पोप का राज्य, सिसली, लोम्बार्डी तथा बेनेशिया के प्रदेश शामिल थे। 1870-71 मे इटली का एकीकरण पूरा हुआ तथा वह एक शक्तिशाली राष्ट्र के रूप मे उभरकर सामने आया। वास्तव मे एक राष्ट्र के रूप मे इटली केबूर, गैरीबाल्डी, मेजिनी तथा इमेनुएल के जीवन भर के कार्य व उनकी दी गई विरासत है।
इटली के एकीकरण की बाधाएं
1. राष्ट्रीयता की भावना का अभाव
इटली के हर ग्राम, नगर तथा क्षेत्र की अपनी अलग-अलग परम्पराएं थी। इन परिस्थितियों मे आपस मे एकता का अभाव था जो राष्ट्रीय एकीकरण के मार्ग मे बाधक थी।
मैजिनी ने कहा था " हम आठ भागों मे बंटे हुए है। ये एक-दूसरे से स्वतंत्र है, न तो इनमे मित्रता है न किसी उद्देश्य की एकता तथा न कोई सुसंगठित सम्बन्ध है।"
2. शासक की निरंकुशता
इटली के तत्कालीन शासक बहुत ज्यादा निरंकुश थे। वे जानते थे कि इटली की एकता से उनके अधिकारों को बहुत हानि पहुंचेगी।
3. एकता की भावना की कमी
इटली मे उस समय एकता की भावना की कमी थी। इटली का एक प्रांत दूसरे प्रांत के, एक नगर दूसरे नगर के और एक वंश दूसरे वंश के और एक मनुष्य दूसरे मनुष्य के विरूद्ध था।
4. अन्धविश्वास एवं अशिक्षा
इटली के लोग सदियों तक दास रहने से अशिक्षित तथा अन्धविश्वासी हो गये थे। एकीकरण हेतु उनमे राष्ट्रीय भावना तथा जागृति लाना आसान नही था।
5. विभिन्न राज्यों के राजाओं की ईर्ष्या
इटली मे ही इस समय कई छोटे-छोटे राज्य थे। यहां के राजाओं मे इटली की एकता हेतु त्याग करने की भावना नही थी।
6. आस्ट्रिया
इटली की भूमि बहुत उपजाऊ थी तथा यूरोप के मुख्य राज्य इस पर कब्जा जमाना चाहते थे। आस्ट्रिया ने इटली के लोम्बार्डी व बेनेशिया पर सीधा नियंत्रण स्थापित किया हुआ था तथा वह अप्रत्यक्ष रूप मे मध्य इटली की रूचियों पर भी प्रभाव रखता था।
7. पोप का राज्य
पोप का राज्य इटली के मध्य मे था। उत्तरी और दक्षिणी इटली की एकता तब तक नही हो सकती थी जब तक की पोप का राज्य खत्म न किया जाया। क्योंकि वह ईसाई धर्म (रोमन कैथोलिक) का मुख्य था, इसलिए उसका राज्य समाप्त करना, रोमन कैथोलिक का विरोध मोल लेना था।
8. प्रन्तीयता
इटली मे प्रान्तीयता से व्यापक फूट फैली हुई थी। अलग-अलग प्रान्तों की अलग-अलग परम्पराएं थी।
इटली के एकीकरण के सोपान
इटली के एकीकरण मे मैजिनी, गैरीबाल्डी व कैबूर ने प्रमुख रूप से भाग लिया और अगर यह कहा जाये कि इटली का एकीकरण इन्हीं तीनो के ही प्रयत्नों से हुआ है तो अतिशयोक्ति न होगी। इटली का एकीकरण चार सोपानों मे सार्डीनिया के नेतृत्व मे हुआ। इटली के एकीकरण के सोपान या चरण इस प्रकार है--
1. प्रथम सोपान (चरण)
आरंभ मे देशभक्ति की भावनाये और संघर्ष की प्रेरणा जागी तथा उन्होंने प्रयत्न आरंभ किये--
कार्बोटरी संस्थायें
इटली मे क्रांतिकारियों की संस्थाओं और उनके सशस्त्र संघर्षों को कार्बोनरी संघर्ष कहा जाता था। इनका प्रमुख उद्देश्य हिंसा के द्वारा विदेशियों को इटली से निकालना और इटली को स्वतंत्र करना था।
मैजिन और यंग इटली
मैजिनी इटली का सर्वमान्य नेता था। आरंभ मे यह कार्बोनरी का सदस्य था परन्तु बाद मे इसने यंग इटली का निर्माण करके अहिंसक आंदोलन और राष्ट्रीय जागरण किया। मैजिन इतना अधिक लोकप्रिय और प्रभावी था कि इटली की प्रत्येक संस्था, प्रत्येक व्यक्ति और नेता उससे प्रेरणा लेता था। अनेक वर्षो तक उसे आस्ट्रिया ने बन्दी भी बनाया और इटली से भी निर्वासित किया परन्तु इससे वह और भी अधिक लोकप्रिय हो गया।
आस्ट्रो-सार्डीनिया युद्ध
इलटी मे 1830 और 1848 की क्रान्तियाँ हुई तथा सार्डीनिया के राजा ने आस्ट्रिया से युद्ध किया परन्तु मेटरनिख और नेपोलियन तृतीय के कारण सार्डीनिया की पराजय हुई। इस युद्ध मे गैराबाल्डी ने भी सहयोग किया था।
कैबूर
कैबूर एक महान राजनैतिज्ञ, कुटनीतिज्ञ तथा बहुमुखी प्रतिभा का धनी था। वह 1852 मे प्रधान बनाया गया। इसने अपनी नीतियों, सुधारो, गृहनीति और विदेश नीति के द्वारा एकीकरण के लक्ष्य को पूरा किया।
विक्टर इमैनुअल
आस्ट्रो-प्रशिया युद्ध के बाद और एल्बर्ट के त्यागपत्र के बाद विक्टर इमैनुअल पीडमाण्ड का राजा बना। इसने कैबूर को प्रधानमंत्री नियुक्त किया तथा स्वयं को संवैधानिक राजा बनाया। इसने अनेक सुधार कर अपने तथा इटली के अन्य राज्यों की जनता को अपनी ओर आकर्षित कर एकीकृत को प्रेरणा दी। इमैनुअल महान देशभक्त और राष्ट्र के प्रति समर्पित व्यक्ति था।
2. द्वितीय सोपान
कैबूर ने सर्वप्रथम अपने गृह-सुधारो से राजा को लोकप्रियता दिलाई तथा अन्य राज्यों की जनता मे पीडमाण्ड से मिलने की प्रेरणा उत्पन्न की। उसने राष्ट्रीय भावनाओं का पूर्ण लाभ उठाया तथा गैराबाल्डी की सेवाओं का उपयोग किया। उसने पेरिस सम्मेलन मे नेपोलियन तृतीय, विस्मार्क और इंग्लैंड की सहानुभूति प्राप्त की और आस्ट्रिया को बदनाम किया तथा फ्रांस से प्लाम्बियर्स समझौता करके आस्ट्रिया के आधीन राज्यो पर रक्षात्मक हमला किया। परन्तु फ्रांस के नेपोलियन तृतीय ने बीच मे ही धोखा दिया।
3. तृतीय सोपान
कैबूर ने नेपोलियन तृतीय के धोखे के कारण त्यागपत्र दे दिया परन्तु शीघ्र ही वह पुनः प्रधानमंत्री बना और जुलाई, 1858 मे लोम्बार्डी, रोमाग्ना और वेनीशिया मे उग्र आंदोलन हुये। सिसली और रोम भी पीछे नही रहे। अब कैबूर ने गैराबाल्डी की मदद से रोम पर आक्रमण की योजना बनाई।
गैराबाल्डी
गैरीबाल्डी का एक व्यापारी परिवार था। उसके पिता उसे पादरी बनाना चाहते थे। परन्तु वह मैजनी की प्रेरणा से स्वतंत्रता का सैनिक बन गया। गैराबाल्डी ने कैबूर से भेंट के पूर्व इटली मे जितने भी संघर्ष हुये और 1830 एवं 1848 की क्रांतियां हुई उन सभी मे भाग लिया। उसे बन्दी बनाया और मृत्युदंड सुनाया गया, परन्तु वह जेल से भाग गया तथा अमेरिका मे धन कमाकर पुनः इटली मे आकर उसने सैनिक संघर्ष आंरभ किये। उसे प्रत्येक बार असफलता मिली परन्तु वह कभी निराश नही हुआ।
कैबूर-गैराबाल्डी के संयुक्त प्रयास
दोनों ने एक योजना बनाकर गैराबाल्डी सिसली को जीतकर नेपाल की ओर बढ़े तथा रोम उनका लक्ष्य था। दूसरी ओर विक्टर इमैनुअल उत्तरी राज्यो को जीतता हुआ रोम पहुंचा। यहां गैराबाल्डी ने नेपाल और सिसली को विक्टर इमेनुअल को सौंप दिया। अब केवल वैनेशिया और रोम शेष बचे थे।
4. चतुर्थ सोपान
कैबूर की मृत्यु जून, 1861 मे हो गई। परन्तु उसने मृत्यु के पूर्व विक्टर इमेनुअल का राज्याभिषेक इटली के सम्राट के रूप मे कर दिया था। अब चतुर्थ सोपान मे विक्टर इमेनुअल ने कैबूर की कूटनीति अपना कर प्रशिया की मदद से आस्ट्रिया को पराजित कर दिया और रोम तथा वैनेशिया पर उसका अधिकार हो गया और जब फ्रांस और प्रशिया मे युद्ध हुआ तो फ्रांस को हटाने मे उसने विस्मार्क का साथ दिया। फ्रांस को जो प्रदेश दिये उन्हें प्राप्त कर इटली का पूर्ण एकीकरण कर लिया।
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