मेटरनिख का युग क्या था?
आस्ट्रिया के प्रधानमंत्री मेटरनिख, जिसका पूरा नाम " काउंट क्लीमेंस वान मेटरनिख" था, जो 1815 से 1848 तक न केवल आस्ट्रिया का वरन् सम्पूर्ण यूरोप का सबसे प्रभावशाली राजनीतिज्ञ था। इसी कारण 1815 से 1848 का काल यूरोप मे " मेटरनिख युग " के नाम से जाना जाता है। आस्ट्रेलिया का सम्राट फ्रांसिस प्रथम किसी भी तरह के सुधार एवं परिवर्तन का विरोधी था। इस काल मे मेटरनिख जैसे प्रतिक्रियावादी व्यक्ति का महत्व होना स्वाभाविक था। इस युग मे मेटरनिख की नीति तथा विचारधार का प्रभाव यूरोप की राजनीति एवं घटनाक्रम पर बहुत अधिक रहा।
मेटरनिख का परिजय/मेटरनिख कौन था?
क्रांति के विरूद्ध प्रतिक्रिया करने वालों मे मेटरनिख का नाम सर्वप्रथम है। मेटरनिख का जन्म 15 मई 1773 को आस्ट्रिया के कुलीन घराने मे हुआ था। उसके पिता आस्ट्रिया के सम्राट की सेवा मे उच्चाधिकारी थे। 1795 मे उसका विवाह आस्ट्रिया के चांसलर प्रिंस कानिज की पौत्री से हुआ था। इस विवाह से उसकी सामाजिक एवं राजनीतिक प्रतिष्ठा मे वृद्धि हुई। 1801से 1806 के बीच उसे प्रशिया फ्रांस तथा रूस मे राजदूत नियुक्त किया गया। 1809 मे वह आस्ट्रिया का विदेश मंत्री बनाया गया। 1809 से 1813 के बीच उसने नेपोलियन से आस्ट्रिया की रक्षा की तथा आस्ट्रिया को यूरोप की राजनीति का केंद्र बना दिया। उसकी प्रतिक्रयावादी नीति के विरूद्ध उदारवादियों ने वियना के महल को घेरकर " मेटरनिख का नाश हो " के नारे लगाये थे। इस मेटरनिख इंग्लैंड भाग गया, वहां 1859 मे उसकी मृत्यु हो गयी।
मेटरनिख युग की विशेषताएं
मेटरनिख युग की विशेषताएं इस प्रकार है--
1. क्रांतिकारी भावनाओं तथा आंदोलन को सब तरीको से रोकना व उनका दमन करना।
2. सुधारों और प्रगति को बीमारी समझकर उसका इलाज करना।
3. निरंकुश सरकारों को बनाए रखना।
4. स्वेच्छाचारी सरकारों को संगठित करना जिससे सब मिलकर स्वतंत्रता और क्रांतिकारी आंदोलन को कुचल डालें।
5. प्रेस, विश्वविद्यालयों, शिक्षा संस्थाओं तथा जलसे-जुलूसों पर पाबंदी रखना।
6. लोकतंत्रात्म तथा राष्ट्रीय आंदोलन को कुचलने हेतु अन्य राज्यों के मामले मे हस्तक्षेप करना।
मेटरनिख की गृह नीति
आस्ट्रियन साम्राज्य के अंतर्गत अनेक जातियाँ, भाषाये, धर्म संस्कृति और राष्ट्रीयतायें थी। इनमे फ्रेंच क्रांति, अमेरिकी क्रांति और नेपोलियन के कारण स्वतंत्रता की भावनाये उत्पन्न होने लगीं थी। इस सब को देखकर मेटरनिख ने जो गृहनीति अपनी वह इस प्रकार है--
1. राष्ट्रीयता की भावना का विरोध और दमन
आस्ट्रिया एक बहुजातीय वाला राष्ट्र था इनकी भाषा और धर्म अलग-अलग थे। इस साम्राज्य का विकास राष्ट्रीयता के आधार पर करना सम्भव नही था। मेटरनिख का मानना था कि यदि राष्ट्रीयता की भावना को प्रोत्साहिन दिया गया तो साम्राज्य कई टुकड़ों मे बिखर जाएगा। आस्ट्रिया का शासक फ्रांसिस भी इस बात को समझता था कि साम्राज्य की जड़ें खोखली हो चुकी है। उसने कहा था " मेरा साम्राज्य एक दीमक लगे हुए भवन के समान है।" इस खोखली स्थिति मे मेटरनिख जैसा प्रतिक्रियावादी कूटनीतिज्ञ साम्राज्य को सुरक्षित बनाए रखने के लिए राष्ट्रीयता की भावना का विरोध करना उचित समझता था। उसने " फूट डालो और राज्य करो " की नीति का पालन किया।
2. यथास्थिति रखना
क्रांतिकारी तो सम्पूर्ण निरंकुश राजतंत्रीय प्रणाली को चुनौती दे रहे थे और आस्ट्रिया की सामाजिक व्यवस्था सामन्तवाद पर तथा सामान्य जनता के शोषण पर टिकी हुई थी। किसानों पर अत्याचार, बेगार, करारोपण, बेकारी आदि के समन्तों को लाभ होता था इसलिए वे प्रजातंत्र के विरोधी थे। इन कारणों से देवी सिद्धांत, अराजकता आदि के मिथ्या तर्क देकर यथास्थिति बनाये रखना चाहते थे। मेटरनिख का सारा जीवन इसी प्रयत्न मे चला गया परन्तु मेटरनिख कभी भी सामान्य जनता का हितैषी नही बन पाया तथा जनशक्ति उससे कही अधिक शक्तिवान सिद्ध हुई।
3. कर व्यवस्था
राज्य मे समुचित कर प्रणाली की व्यवस्था मेटरनिख ने नही थी। ज्यादातर करों का भार निचली जनसंख्या को ही वहन करना पड़ता था। सीमा शुल्क की अतिवृद्ध ने व्यापार वाणिज्य को हतोत्साहित किया।
4. समाचार पत्रों व भाषणों, जुलूसो पर प्रतिबंध
स्वतंत्रता व क्रांति के विचारो से आस्ट्रिया साम्राज्य को बचाने हेतु समाचार-पत्रो पर प्रतिबंध लगा दिया व भाषण तथा जुलूस तथा सभा आदि पर भी रोक लगा दी।
5. विश्वविद्यालयों व शिक्षण संस्थानों पर कड़ी नजर
मेटरनिख से विद्यार्थियों को विदेशो मे शिक्षा प्राप्त करने हेतु भेजना बंद कर दिया तथा विश्वविद्यालयों और शिक्षण संस्थानों पर कड़ी नजर रखी ताकि स्वतंत्रता व क्रांति की भावना का आस्ट्रिया मे प्रवेश न हो।
मेटरनिख की गृह नीति के परिणाम या दोष
प्रतिक्रियावादी गृह-नीति के कारण आस्ट्रिया की कृषि, उद्योग, व्यापार तथा शिल्प पर बूरा प्रभाव पड़ा। शोषण, दमन से पीड़ित जनता मे जहाँ एक ओर असन्तोष था वही क्रांतिकारी विचार रोकने मे मेटरनिख असफल रहा। प्रतिबंधों के बावजूद भी विदेशो से आए क्रांतिकारी साहित्य जनता मे विद्रोह की प्रवृति पनपाते और विकसित करते रहे। इसके परिणामस्वरूप आस्ट्रिया मे 1830, 1848 की क्रान्तियाँ हुई।
मेटरनिख की विदेश नीति
1. इटली के प्रति
वियना की कांग्रेस के समझौते के अनुसार इटली के वेनिस और लम्बार्डी प्रदेशों पर आस्ट्रिया का शासन स्थापित हो गया था। इस पर इटली के नेपल्स और पीटमाण्ड नामक राज्यों मे विद्रोह हो गया। 1848 मे इटली के राज्यों ने आस्ट्रिया के विरूद्ध विरोध किया पर आस्ट्रियन सेनाओ को कुचलकर इटली से आस्ट्रिया की संन्धि कर ली। युद्ध का हर्जाना देने पर उसे बाध्य किया।
2. फ्रांस के प्रति
चूंकि फ्रांस क्रांति का अड्डा था। अतः मेटरनिख द्वारा वियना की कांग्रेस मे फ्रांस पर अनेक प्रतिबंध लगाये गए, जिससे वह उन्नत न हो सके।
3. रूस के प्रति
1815 के पश्चात रूस मे क्रांति की भावनाओं का प्रसार हुआ। जब ग्रीस की जनता ने टर्की के सुल्तान के शासन का विरोध किया, तो रूस ने ग्रीस को सहायता नही दि।
4. इंग्लैंड के प्रति
पहले आस्ट्रिया और इंग्लैंड मे शत्रुता नही थी, पर 1818 मे अन्य देशो के आन्तरिक विषयों मे हस्तक्षेप करने की नीति पर दोनों देशों मे मतभेद हो गया।
5. जर्मनी के प्रति
वियना कांग्रेस ने जर्मनी को 39 राज्यों का एक ढीला-ढाला संघ बना दिया था। मेटरनिख ने 1810 मे कालसंवाद नामक स्थान पर यूरोपीय शासकों का एक सम्मेलन बुलाया, जिसमे प्रेस, अध्यापकों, छात्रों आदि पर कड़े प्रतिबंध लगाये। मेटरनिख ने कड़े नियम बनाकर राष्ट्रीय भावनाओं को ठेस पहुंचायी।
6. स्पने के प्रति
1812 मे सम्राट फर्डीनेंड सप्तम ने देश के संविधान को रद्द कर दिया। 1822 की विरोजा कांग्रेस ने स्पेन की क्रान्ति को कुचलने के लिए फ्रांस को अधिकार देया। फ्रांस ने क्रान्ति को कुचलकर फर्डीनेंड सप्तम को सिंहासन पर बैठाया। उसकी मृत्यु के बाद उसके भाई तथा पुत्री के बीच उत्तराधिकार के लिए संघर्ष हुआ। मेटरनिख ने भाई का पक्ष लिया और उसकी पराजय हुई।
7. बोहेमिया तथा हंगरी के प्रति
आस्ट्रिया के शासन के विरुद्ध 1848 मे वोहोमिया मे स्लाव व हंगरी मे मौदियोर्ज जातियों ने विद्रोह कर दिया, मेटरनिख ने इन सबका दमन किया।
मेटरनिख का पतन
सम्पूर्ण यूरोप मे 1830 और 1848 मे क्रान्तियाँ हुई। आस्ट्रिया मे भी भयंकर घटनायें घटी। आरंभ मे मेटरनिख आस्ट्रिया और जर्मनी, इटली आदि मे इन्हें दबाने मे सफल रहा लेकिन आस्ट्रिया सहित यूरोप की जनता प्रतिक्रियावादी, निर्दयी शासन से ऊब चुकी थी इसलिए उन्होंने अपने अपने राज्यो मे अपनी शासन प्रणालियों के विरूद्ध संघर्ष किये। हंगरी मे कौसुथ नामक व्यक्ति के भाषण से उत्तेचित भीड़ ने 13 मार्च, 1848 को मेटरनिख तथा सम्राट को महल को घेर लिया और " मेटरनिख का नाश हो " के नारे लगाये। परिणामस्वरूप मेटरनिख को त्याग-पत्र देकर भागना पड़ा।
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