अमेरिका का गृह युद्ध
america ke ghar yudh karan or parinaam;यूरोप के विभिन्न देशो के अप्रवासी अमेरिका मे बस गये थे तथा इन्होंने ब्रिटेन के साम्राज्यवाद तथा उसकी दासता से संघर्ष करके 1783 की पेरिस संधि द्वारा पूर्ण स्वतंत्रता प्राप्त कर ली थी। सन् 1763 से 1773 तक के संघर्ष मे जहाँ विभिन्न जाति, धर्म, विचार, भाषा, स्वार्थी तथा विदेशी आप्रवासियों ने कुछ समय के लिये अपनी विभिन्नताओं और मतभेदों को भुलाकर नवीन आदर्शो का निर्माण किया, जिसमे से 1789 मे पूर्ण स्वतंत्र अमेरिकी राष्ट्र और उसके संविधान का जन्म हुआ।
अमेरिका के नव राष्ट्रपतियों के सम्मुख विशेषकर अब्राहम लिंकन के सम्मुख पुनः मुखर होते मतभेदों, स्वार्थों तथा कठिनाइयों मे नव स्थापित राष्ट्र की सुरक्षा, अखण्डता और नवीन आदर्शों के साथ भावी विकास की समस्या थी। इन समस्याओं के समाधान की खोज मे अमेरिका को एक गृह युद्ध या भाई-भाई मे संघर्ष करना पड़ा। सम्पूर्ण अमेरिका अपने विचार और मतभेदों के कारण उत्तरी अमेरिका और दक्षिणी अमेरिका मे बंट गया और जिसका परिणाम संघर्ष मे निकला। इस समय तक (1861) अमेरिका मे अब्राहम लिंकन रिपब्लिकन दल के राष्ट्रपति बन चुके थे।
अमेरिका के गृह युद्ध की पृष्ठभूमि या घटनाएं
1853 मे फ्रेंकलिन पायर्स ने राष्ट्रपति पद ग्रहण किया। उसके शासन मे उन्मूलनवादियों अर्थात् दास प्रथा विरोधियों की गतिविधियां पर्याप्त बढ़ी। 1856 के निर्वाचन मे बुचानन को विजय प्राप्त हुई। इस समय दासता के संबंध मे तीन दृष्टिकोण उभकर सामने आए--
1. रिपब्लिकन्स के अनुसार संघीय कानून द्वारा दासता को समस्त प्रदेशों से निकाल देना चाहिए।
2. डेमोक्रेट्स की मांग थी कि संघीय कानून द्वारा सभी प्रदेशों मे दासता की रक्षा की जानी चाहिए।
3. तीसरे दृष्टिकोण के अनुसार लोकप्रिय संप्रभुता द्वारा प्रदेश की जनता स्वयं निर्णय करे कि वह दासता रखेगी अथवा नही। 1860 के निर्वाचन मे अब्राहिम लिंकन पर्याप्त बहुमत से विजयी हुए। वह उन्मूलनवादी थी। उन्होंने दासता का नैतिक, राजनीतिक और आर्थिक आधारों पर विरोध किया। उनका मत था कि दास-प्रथा ने अमेरिकी प्रजातंत्र के आदर्श को झुठा कर दिया है। इसके समर्थकों के कुलीनतंत्री तर्कों ने अवसर की समानता के महान सिद्धांत पर कुठाराघात किया था। यदि नीग्रो लोगों को रोजी रोटी कमाने का समान अधिकार नही दिया जाता तो अगला कदम यह होगा कि अन्य मजदूरों से भी इसे छीन लिया जाए। लिंकन का सुझाव था कि राष्ट्रीय भूमियों पर गरीबों को बसाकर उन्हे अपनी स्थिति सुधारने का अवसर दिया जाना चाहिए। यदि वहां दासता स्थापित हो गई तो ऐसा नही हो सकेगा क्योंकि स्वतंत्र श्रमिक दास श्रमिकों के साथ स्पर्धा नही कर सकते। लिंकन के मतानुसार," दासता इसलिए अनैतिक है क्योंकि यह मनुष्य की स्वार्थपूर्ण प्रवृत्ति पर आधारित है।" इस प्रश्न का निर्णय किसी भी एक पक्ष मे किया जाना आवश्यक है क्योंकि समझौतावादी दृष्टिकोण व्यावहारिक नही था। दासता का प्रश्न देश के अस्तित्व के लिए खतरा बन गया था। अतः या तो दासता विरोधी नेतागण दासता के प्रचार पर रोक लगाएं अथवा इसके समर्थक दासता का इतना प्रसार करे कि वह सभी राज्यों मे कानून का रूप ले ले। दोनों मे से एक रास्ता अपनाने का समय आ गया था। अब देश को साहसपूर्ण निर्णय लेना चाहिए था। अब लिंकन के शब्दों मे," यह सरकार स्थायी रूप से आधी दास और आधी स्वतंत्र रहकर नही चल सकती। " लिंकन का स्पष्ट मत था कि वह दासता को आगे फैलाने से रोकेंगे, प्रदेशों मे इसका प्रसार नही होने देंगे। इससे दक्षिणी राज्यों को चिंता हो गई कि नई सरकार उनकी संस्थाओं तथा विशिष्ट सभ्यता को खंडित कर देगी। इसलिए दक्षिण राज्यों ने संघ से पृथक होना न्यायोचित समझा।
समझौता प्रयासों की असफलता व लिंकन का दृष्टिकोण
दक्षिण के 7 राज्यों का संघ से पृथक होना संयुक्त राज्य के अस्तित्व के लिए एक विकट समस्या थी। अमेरिकी संविधान निर्माताओं ने किसी राज्य को संघ से पृथक होने का अधिकार स्पष्टतः नही दिया था क्योंकि वे इसे बनाए रखना चाहते थे। लिंकन का यह तर्क सत्य था कि कोई सरकार अपने ही विनाश की व्यवस्था नही कर सकती। संघ-रक्षार्थ समझौता के अनेक प्रयास किए गए। न्यूयार्क, बोस्टन और फिलाडेलफिया मे अनेक सभाएं की गई, वाशिंगटन मे वर्जीनिया द्वारा एक शांति क्रांग्रेस बुलाई गई, 18 दिसंबर को क्रिटेन्डन ने समझौता का एक प्रस्ताव प्रस्तुत किया, इसी समय प्रतिनिधि सभा भी अपने 33 सदस्यों की एक समिति द्वारा समझौता का प्रयास कर रही थी। पर सभी प्रयास असफल रहे तथा दक्षिणी राज्यों का संघ विरोधी दृष्टिकोण और गृह युद्ध नही टल सका। दक्षिण के 7 राज्यों ने संघ से अलग होते समय संयुक्त राज्य की लगभग 3 करोड़ डाॅलर की संपत्ति पर अधिकार कर लिया था। वह गौरवपूर्ण संघ बिखर गया, जिसके लिए वाशिंगटन लड़ा, जिसकी जेफरसन ने रक्षा की, और जिसे करोड़ों अमेरिकी लोगों ने जान से भी अधिक प्यार किया। देशवासियों की नजरें अब अब्राहम लिंकन पर टिकी हुई थी। उन्होंने अपना नज़रिया इस प्रकार प्रकट किया था--
1. संघ संविधान से पुराना है और कोई भी राज्य अपनी ओर से संघ नही छोड़ सकता।
2. संघ से पृथक होने का अध्यादेश संघ की पृथकता से उत्पन्न विशेष परिस्थितियों मे वह संयुक्त राज्य अमेरिका के कानूनो को सभी राज्यों मे लागू कराएगा और अलग हुए सभी राज्यों मे संघीय संघीय संपत्ती पर अधिकार कायम करेगा।
युद्ध का प्रारंभ, युद्ध के विभिन्न मोर्चे और युद्ध का अंत
पर्याप्त विचार विमर्श के बाद परिसंघ सरकार ने जनरल पी. जी. टी. ब्यूरिगार्ड को आदेश दिया कि समटर के आत्मसमर्पण की मांग करे और यदि वह मांग मानी जाए तो उसे नष्ट कर दिया जाए। जब वहां के मैजर एंडरसन ने आत्मसमर्पण नही किया तो ब्यूरिगार्ड की सेनाओं ने 12-13 अप्रैल को बमबारी की और 14 अप्रैल को एंडरसन से आत्मसमर्पण करवा लिया।
इस समय तक उत्तर मे जनमत लिंकन के नेतृत्व का अनुगामी बन चुका था। उसने 75,000 स्वयंसेवक संयुक्त राज्य के कानून को लागू करने के लिए तैनात किए परिसंघ के तटो की नाकाबंदी के आदेश दे दिए। इस प्रकार युद्ध का बिगुल बज गया।
युद्ध की शुरुआत ब्यूरिगार्ड की गोलाबारी (12 अप्रैल 1861) से हुई। जुलाई 1861 मे जनरल इरविन मेकडूवेल के नेतृत्व मे उत्तरी सेनाओं ने वर्जीनिया पर आक्रमण कर दिया। परिसंघ की सेना ने कड़ा मुकाबला किया। फलतः संघ की सेना को पीठ दिखाकर वाशिंगटन लौटना पड़ा।
पर, 1862 मे पश्चिमी क्षेत्र मे निर्णायक कदम उठाए गए। यहां संघीय सेनाएं नदी के सहारे चलकर मिसीसिपी रेखा पर नियंत्रण करना चाहती थी। इस कार्य मे संघीय सेनाओं को सफलता प्राप्त हुई। इसके बाद संयुक्त राज्य की सरकार ने मैक्लेलन पर बसंतकाल मे युद्ध छोड़ने के लिए दबाव डाला। युद्ध मे परिसंघ की सेना का नेतृत्व करने वाले ली की हार हुई तथा वार्जीनिया की ओर से पीछे हटना पड़ा। 1863 मे लीन ने चान्सलसैविले मे पोटोमेक की सेना को हराया। जुलाई 1863 मे परिसंघ की सेनाएं केन्द्रीय पेन्सिलवेनिया मे पहुंच गई जहां 1 जुलाई से 3 जुलाई तक ली को संघीय सेनाओं से कड़ा मुकाबला करना पड़ा। यह इस गृह युद्ध का एक निर्णायक संघर्ष माना जाता है। इसमे ली की हार होने से युद्ध का पासा ही पलट गया।
डेविड के मतानुसार, " गेट्सबर्ग मे संघ की विजय और विकसबर्ग पतन ने परिसंघ को गंभीर धक्का पहुंचाया। इससे संघीय सेनाओं मे आत्मविश्वास जागृत हुआ कि अंतिम विजय उन्ही की होगी।"
युद्ध की गतिविधियां उत्तर के पक्ष मे होती जा रही थी। पश्चिम मे संघीय सेनाओं को एक के बाद एक विजय प्राप्त होती गई और परिसंघ के सैनिकों का मनोबल गिरने लगा और उन्हें अपने परिवार की यादे सताने लगीं। अंततोगत्वा 26 मई 1865 तक परिसंघ की सभी सेनाओं को आत्म समर्पण कर देना पड़ा। इस तरह से उत्तर की विजय से युद्ध का अंत हो गया।
गृह युद्ध मे उत्तर की विजय के कारण
1. जनसंख्या
अमेरिकी गृह युद्ध मे लगे हुए उत्तर व दक्षिण क्षेत्र की जनसंख्या के संबंध मे दक्षिण की उपेक्षा उत्तर का पलड़ा भारी था, क्योंकि उसके क्षेत्राधिकार मे जो 23 राज्य थे, उनकी जनसंख्या 2 करोड़ 20 लाख थी, जबकि दक्षिण के क्षेत्राधिकार मे जो 11 राज्य थे जिनकी जनसंख्या 90 लाख ही थी और अनुमानतः 30 लाख उसमे गुलाम थे।
2. भौतिक साधन
दक्षिण की उपेक्षा उत्तर की स्थिति भौतिक साधनो के मामलो मे काफी महत्वपूर्ण एवं सुदृढ़ थी। उत्तर की सरकार ने कर लगाकर धन एकत्रित किया। अमेरिका सरकार ने पहली बार आय कर वसूल किया। कांग्रेस के विभिन्न खाद्यान्नों पर भी कर लगा दिए। इससे सरकार को काफी आय हुई।
3. धन संबंधी मामला
फेडरल सरकार के धन एकत्र करने के लिए 25 मिलियन डाॅलर की कीमत से अधिक के बांड जारी किए। 800 मिलियन डाॅलर की कीमत की ग्रीन बैंक नामक कागजी मुद्रा फेडरल सरकार द्वारा जारी की गई। इस मुद्रा की विशेषता यह थी कि इस मुद्रा के बदले स्वर्ण या चांदी की सुरक्षित मात्रा नही रखी गई थी। कांग्रेस ने 1863 मे नेशनल बैंकिग एक्ट पारित किया जिसका प्रमुख उद्देश्य बांडों की बिक्री को प्रोत्साहित करना था।
4. उत्पादन क्षमता
उत्तरी राज्यों की उत्पादन क्षमता दक्षिण की उपेक्षा काफी सुदृढ़ थी। इस युद्ध मे दक्षिणी राज्यों की पराजय का मुख्य कारण उत्तरी क्षेत्र का औद्योगिकरण था।
इसके अलावा लिंकन ने सेनापतियों की पूरी छूट दे रखी थी जबकि दक्षिणी राज्यों के साथ ऐसा नही था। फिर, दक्षिण को कुशल नेतृत्व भी प्राप्त नही था, जबकि उत्तर को लिंकन का योग्य और कुशल नेतृत्व प्राप्त था।
अमेरिकी गृह युद्ध के कारण (america ke ghar yudh karan)
1. आर्थिक असमानता
उत्तरी तथा दक्षिणी अमेरिका मे अप्रवासी नागरिकों मे आर्थिक असमानता उनके बसने के समय से ही चली आ रही थी।
2. दास प्रथा
उत्तरी राज्य दास प्रथा को अन्यया, अमानवीय और अनैतिक मानते थे तथा संविधान मे प्रदत्त स्वतंत्रता, समानता के आदर्श के प्रतिकूल मानते थे। जबकि दक्षिण के राज्य यह भू-स्वामियों के अधिकारों और संपत्ति (दास) मे इसे हस्तक्षेप मानते थे। अतः दक्षिण के अमेरिकी स्वामी दासो की विशाल संख्या, उनके द्वारा कृषि लाभो को छोड़ने को तैयार नही हुये। यही कारण था कि मिसूर समझौते के हो जाने पर भी मतभेद हुये। 1787 तक उत्तरी अमेरिका ने अपने यहां दास-प्रथा को समाप्त कर दिया तथा विधानमंडलों मे दासो को अधिकार देने को भी कहा। इससे दक्षिण के दासो मे आशा का संचार हुआ।
3. अब्राहम लिंकन का निर्वाचन
अमेरिकी स्वतंत्रता के संघर्ष मे किसानो, श्रमिकों और उत्तरी राज्यो ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। अमेरिकी संघ मे अधिसंख्य राज्य और जनसंख्या उत्तरी राज्यो की थी तथा दक्षिण मे 95 लाख जनसंख्या मे मे से 35 लाख दासो को मताधिकार नही था। अतः जब अमेरिकी संघ के राष्ट्रपति का 4 मार्च, 1861 मे चुनाव हुआ तो अब्राहम लिंकन राष्ट्रपति चुने गये। स्वाभाविक ही था कि वे भी दास प्रथा विरोधी थे। रिपब्लिकन दल का जन्म उत्तरी अमेरिका मे हुआ था। इस प्रकार संसद मे राष्ट्रपति लिंकन और उनके दल का बहुमत था। दासो के स्वामियों और कपास राज्यो के संघ को छोड़ने तथा विद्रोहात्मक कार्यवाही के कारण दृढ़ संकल्प तथा अमेरिकी राष्ट्र की एकता और अखंडता को समर्पित अब्राहम ने निश्चय किया कि--
1. अमेरिकी संघ को किसी भी कीमत पर बचाना होगा।
2. संयुक्त राज्य अमेरिकी संघ अखण्ड और शाश्वत रखा जायेगा।
3. संयुक्त राज्य दास-प्रथा पर विभाजित हो सकता है अतः इस समस्या को सुलझाने है। चाहे इसके परिणाम अनुकूल हो या प्रतिकूल।
4. उत्तरी और दक्षिणी राजनैतिक प्रचार
उत्तरी अमेरिका मे दास विरोधी 2000 संस्थाओं और उनके दो लाख सदस्य सन् 1840 मे संगठित प्रचार कर रहे थे। दूसरी ओर उत्तरी अमेरिकी जनता मे 1867 मे सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश राॅजरटेनी और उनके बहुमत ने ड्रेडस्काट के अभियोग मे निर्णय से भी भय व्याप्त हो गया। उसने निर्णय दिया था कि अमेरिकी कांग्रेस को दक्षिण प्रदेशों से दास प्रथा हटाने का कोई अधिकार नही है।
अतः उत्तरी अमेरिका को संविधान का यह अर्थ अमेरिकी राष्ट्र की एकता के लिए हानिकारक लगा। अब्राहम लिंकन ने भी ड्रेडस्काट निर्णय के संदर्भ मे पूरी शक्ति से कहा कि यदि कोई दास प्रथा को समाप्त करना चाहे तो वह कर सकता है। उन्होंने प्री पोर्ट मे दृढ़ निश्चय व्यक्त किया कि परिणाम की चिंता किये बिना दास प्रथा की समस्या को समाप्त करना ही है। उत्तरी अमेरिका को यह भय था कि कही दास प्रथा पूरे अमेरिका को अपना शिकार बना ले।
5. दासो के स्वामियों के प्रतिक्रियावादी दोष
दासो के स्वामी दास प्रथा को आवश्यक, मानवीय और नैतिक सिद्ध करने के लिये तर्क दे रहे थे। किन्तु वे आशंकित भी थे। अतः प्रतिक्रिया मे उन्होंने अनेक अविवेकी कार्य करना आरंभ कर दिये। जैसे -- उन्होंने अमेरिकी संघ को तोड़ने के प्रयास आरंभ किये। उन्होंने यह गलत समझा कि दक्षिण से कपास क्रय करने वाले ब्रिटेन और फ्रांस उनकी मदद करेंगे और दास प्रथा समर्थक राज्य अलग होने लगे। आदि दासों के स्वामियों की इन कार्यवाहियों से अमेरिकी राष्ट्रपति के सम्मुख युद्ध के अतिरिक्त कोई विकल्प नही बचा।
6. दास प्रथा समर्थक राज्यों का अलग होना
चुनावो मे अब्राहम लिंकन की विजय से ही दक्षिणी राज्यों मे अगल होने का विचार उत्पन्न होने लगा। केरोलिना राज्य ने सर्वप्रथम अमेरिकी संघ से अलग होने की घोषणा की। अमेरिका के 13 उत्तरी राज्यों ने व्यक्तिगत स्वतंत्रता कानून पारित कर व्यक्तिगत संपत्ति (दास) को असुरक्षित कर दिया। अब्राहम किसी भी कीमत पर अमेरिकी संघ की रक्षा के लिये कृतसंकल्प थे। अतः वे निकट युद्ध की तैयारी मे जुट गये।
7. समझौता प्रयासों की असफलता
दास प्रदेशों को पाने के लिये उत्तर और दक्षिण मे प्रतियोगिता थी। इसी कारण दासता के प्रश्न मिसूरी समझौता हुआ। परन्तु टेक्सास, मेक्सिको और कैलीफोर्निया के विषयों मे मतभेद पुनः बढ़े और युद्ध की स्थिति उत्पन्न होने लगी। दक्षिण राज्यों के अलग होने से युद्ध निकट दिखाई देने लगा। अतः उत्तर और दक्षिण के राजनीतिज्ञों ने समझौता के लिये प्रयास भी आरंभ किये। परन्तु सभी समझौते और प्रयासों मे असफलता मिली।
अमेरिकी गृह युद्ध के परिणाम या प्रभाव ( america ke ghar yudh parinaam )
अमेरिका के गृह युद्ध के परिणाम इस प्रकार है--
1. इस युद्ध के दो मुख्य मुद्दे थे--
(अ) दास प्रथा
(ब) देश की एकता।
युद्ध के बाद इन दोनों उद्देश्यों की पूर्ति हो गई। लिंकन ने जनवरी, सन् 1865 ई. मे कांग्रेस से आग्रह करके संविधान का 13 वाँ संशोधन भी पारित करा दिया और सम्पूर्ण देश मे दास प्रथा का निरस्तीकरण कर दिया गया। दक्षिण संघ ने भी युद्धकालीन परिस्थिति से विवश होकर दासो को मुक्त कर दिया था। इस तरह अब सारा देश दास प्रथा से मुक्त हो गया।
2. इस ग्रह युद्ध के बाद इसके परिणामों का आकलन करे तो हम पाते है कि इसका सबसे महत्वपूर्ण परिणाम आर्थिक रूप के साथ राजनैतिक, वैधानिक और सामाजिक परिणाम भी सामने आये।
3. अमेरिकी गृह युद्ध का आर्थिक रूप से प्रथम परिणाम यह हुआ कि दक्षिण राज्यों की कृषि व्यवस्था को जिस अनुपात मे हानि पहुंची उत्तर के उद्योग को उसी अनुपात मे प्रोत्साहन मिला। उत्तर क्षेत्र मे वस्तुओं की मूल्य दर 177 प्रतिशत बढ़ी और दक्षिण की केवल 43 प्रतिशत। इस कारण लाभप्रतिभूति अंतर का स्तर भी ऊंचा हो गया।
4. देश की सामाजिक स्थिति पर इसका बूरा प्रभाव पड़ा। इसके परिणामस्वरूप धन और अधिकारों के भूखे लोग उभर आए। इनकी रूचि नैतिकताहीन और मूल्यहीन थी। ये बुरे से बुरा कार्य नि: संकोच कर सकते था। ऐसे अवसरपरस्त तथा लोभी व्यक्ति देश के समूचे वातावरण को कलुषित करने लगे।
5. गृह युद्ध से उत्पन्न वातावरण मे संघीय सरकार पर रिपब्लिकन पार्टी का एकाधिकार कर दिया। युद्ध समाप्त होने के 20 वर्ष बाद डेमोक्रेटिक दल अमेरिकी कांग्रेस मे प्रवेश पा सका और दक्षिण राज्यों का राष्ट्रपति वुडरो विल्सन 50 वर्ष बाद चुना जा सका।
6. अमेरिकी गृह युद्ध मे दोनो पक्षों का पर्याय धन लगा और दोनो ही पक्षों का व्यापक नरसंहार हुआ।
7. दास प्रथा के पूर्णतः समाप्ति से दक्षिण का कृषि व्यवसायी कुलीन वर्ग अधोगति को प्राप्त हुआ। दूसरा प्रहार सन् 1868 ई. के संविधान संशोधन द्वारा हुआ और जब सन् 1870 ई. मे मुक्त दासो को मतदान का अधिकार मिल गया और दक्षिण के नेताओं को सरकारी नौकरी से वंचित कर दिया गया तो उनके दुःखो की सीमा न रही।
8. युद्ध का वैधानिक परिणाम यह हुआ कि संघ का सदा के लिए प्रभुत्व स्थापित हो गया। अब यह निश्चय हो गया कि किसी राज्य को भी संबंध विच्छेद या संघ से पृथक होने का अधिकार प्राप्त नही। इस प्रकार राजकीय प्रभुसत्ता के सिद्धांत का तो बिल्कुल ही अंत हो गया।
9. सन् 1862 ई. मे गृह अधिनियम पारित हुआ। दूसरा अधिनियम, मारिल का भूमि प्रदान अधिनियम था। जो इसी वर्ष पास हुआ। इसमे कृषि विषयक वैज्ञानिक शिक्षा के लिए प्रत्येक राज्य मे कुछ सरकारी भूमि प्रदान किये जाने की व्यवस्था थी। तीसरे अधिनियम द्वारा, अंतर्महाद्वीप रेलमार्ग का निर्माण हुआ।
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