8/25/2020

जिला उद्योग केन्द्र के उद्देश्य एवं महत्व

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जिला उद्योग केंद्र के उद्देश्य (jila udyog kendra ke uddeshya)

1. लघु तथा कुटीर उद्योगों का विकास करना।
2. लघु, ग्रामीण घरेलू उधोगों को विनियोजन के पूर्व, विनियोजन के समय और विनियोग के बाद आवश्यक सेवायें एक ही छत के नीचे प्रदान करना।
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3. जिला स्तर पर सरकार की औधोगिक नीतियों को लागू करना।
4. नये साहसियों (उधमियों) का पता लगाना।
6. जिले की औधोगिक सम्भावनाओं तथा स्थानीय साधनों के आधार पर जिले हेतु विकास कार्यक्रम तैयार करना।
7. लघु तथा कुटीर उद्योगों को आवश्यक वित्त, भूमि, भवन, कच्चा माल, यन्त्र, सामग्री और माल के विपणन की सुविधाएँ प्रदान करना।
8. लघु साहसियों हेतु औधोगिक प्रशिक्षण की व्यवस्था करना।
9. गाँवों मे हस्तशिल्पकला उधोग को विकसित करना।
10. नये साहसियों को परियोजना प्रतिवेदन तैयार करने मे जरूरी मार्गदर्शन प्रदान करना।
11. औधोगिक विकास की आधारभूत सुविधाओं-सड़क, बिजली, पानी, परिवहन आदि का विकास करना।
12. रूग्ण इकाइयों की समस्या का समाधान कर उन्हें पुनर्जीवित करना।
13. औधोगिक विकास की विभिन्न सरकारी योजनाओं को सफल बनाने मे योगदान देना।
14. जिले मे रोजगार के अवसरों का सृजन करना।
15. जिला स्तर पर "जिला उद्योग ब्यूरों" की स्थापना करना ताकि उधमियों को आवश्यक साहित्य तथा सूचनाएं उपलब्ध हो सकें।
16. जिला स्तर पर कार्य कर रहे विभिन्न विभागों तथा संस्थाओं के कार्यों मे समन्वय स्थापित करना।

जिला उद्योग केंद्र की आवश्यकता तथा महत्व (jila udyog kendra ka mahatva)

1. जिले का उद्योगिक विकास
जिला उद्योग केन्द्र जिले मे नये-नये उद्योगों की स्थापना करके रोजगार का निर्माण करने, स्थानीय साधनों का उपयोग करने एवं आय उत्पन्न करने मे सहायक होते है। इससे जिले की सम्पन्नता बढ़ती है।
2. जिले का सन्तुलित विकास
प्रत्येक जिला का आर्थिक सर्वेक्षण करके औधोगिक विकास की सम्भावनाओं का मूल्यांकन करने मे जिला उद्योग केन्द्र अत्यंत सहायक होते है। वे जिले की आवश्यकताओं के अनुरूप ही विकास की योजना बनाते है।
3. आधारभूत ढाँचे का निर्माण
जिला उद्योग केन्द्र जिले मे औधोगिक बस्तियों का निर्माण करते है तथा वहाँ सड़कों, यातायात, संचार, व्यवस्था, विधुत, पानी, बैंक आदि की व्यवस्था के लिए प्रयास करते है।
4. साहसियों का विकास
जिला उद्योग केन्द्र नये-नये साहसियों को आगे लाने मे सहायक होते है। आवश्यक साधन, सुविधाएं एवं मार्गदर्शन प्रदान करके वे उधमियों को उधोग की स्थापना के लिए आकर्षित करते है।
5. शिल्पकाल को प्रोत्साहन
ये केंद्र ग्रामीण शिल्पकारों को आवश्यक सहायता प्रदान करके हस्तशिल्पकला को प्रोत्साहन करते है।
6. बीमार उधोग को सहायता
इन केंद्रों के माध्यम से कई बीमार उधोगों को पुनर्जीवन प्राप्त होता है। ये ऐसे निष्क्रिय, हानि पर चल रहे अथवा कुप्रबन्ध से ग्रसित उधोगों को आवश्यक ॠण आदि उपलब्ध कराके औधोगिक रुग्णता को समाप्त करते है।
7. राजकीय उपक्रमों का क्रियान्वयन
इन केंद्रों के माध्यम से सरकार अपने आर्थिक एवं औधोगिक विकास की योजनाओं को सफलतापूर्वक लागू कर सकती है।
8. प्रशिक्षण व्यवस्था
ये केंद्र साहसियों के लिए तकनीकी प्रशिक्षण की व्यवस्था भी करते है तथा विभिन्न सुविधाओं आदि के बारे मे महत्वपूर्ण जानकारी प्रदान करते है।
9. अनुसन्धान
ये केंद्र अपने विशेषज्ञों के माध्यम से लघु उधोगों के उत्पादों, उनकी किस्म, लागत, निर्माण प्रक्रिया, डिजाइन आदि के बारे मे अनुसंधान कार्य करते है।
10. रोजगार के अवसरों मे वृद्धि 
ये केंद्र स्व रोजगार हेतु बेरोजगार व्यक्तियों को सहायता प्रदान करते है तथा ग्रामीण क्षेत्रों मे उधोगों का विकास करके रोजगार के अवसरों मे वृद्धि करते है।
11. कमजोर वर्गों का विकास
जिला उद्योग केन्द्र पिछड़े वर्गों, अपंगों व कमजोर वर्गों के लिए रोजगार उपलब्ध कराने मे सहायक होते है। वे उन्हें आवश्यक ऋण प्रदान करके छोटे-मोटे धन्धों की स्थापना करवाते है।

जिला उद्योग केंद्रों की समस्यायें/कमियाँ 

1. नौकरशाही का बोलबाला
इन केंद्रों के प्रशासनिक पदों पर प्रशासनिक सेवा के अधिकारी प्रतिनियुक्त पर आते है, जिससे केन्द्रों पर नौकरशाही का बोलबाला देखने को मिलता है।
2. वित्तीय अभाव
यह केंद्र लघु उधोगों को समय पर वित्तीय सुविधायें उपलब्ध नही करवा पाते है। इनके द्वारा स्वीकृत ऋणों की मात्रा बहुत कम रहती है।
3. समन्वय का अभाव
हालांकि इन केंद्रों की भूमिका समन्वयकारी रही है, पर व्यवहार मे यह देखा जाता है कि यह विभिन्न विभागों एवं निगमों के मध्य उचित समन्वय बनाने मे सफल नही हो पाते है।
5. प्रभावी नियंत्रण का अभाव
इन केंद्रों के उद्देश्य का स्पष्ट निर्धारण नही किया जाता है। साथ ही लक्ष्यों के निश्चित आधार नही होने के कारण इनकी क्रियाओं पर प्रभावी नियंत्रण रखने मे कठिनाई होती है।
6. पर्याप्त अधिकार नही 
इन केंद्रों के अधिकारियों को पर्याप्त अधिकार नही दिये गये है। सभी निर्णय उच्च अधिकारियों द्वारा ही लिये जाते है जिससे इनकी कार्यकुशलता पर विपरीत प्रभाव पड़ता है।
7. विपणन समस्या
साधनों की सीमितता के कारण लघु औधोगिक इकाइयों द्वारा निर्मित माल अच्छी किस्म का नही होता है। इसके अतिरिक्त माल का प्रचार-प्रसार भी नही हो पाता है। इसलिए इन इकाइयों की वस्तुओं की बिक्री मे जिला उद्योग केन्द्रों का कोई विशेष योगदान नही रहता है।
8. लाभ की तुलना मे खर्च अधिक
कुछ आलोचकों का यह दृष्टिकोण है कि इन केंद्रों से प्राप्त लाभों की तुलना मे इनके व्यय ज्यादा है, अतः इन्हें बन्द कर देना चाहिए। इनका अब सिर्फ कागजी महत्व ही रह गया है।

जिला उद्योग केंद्रों की सफलता हेतु सुझाव 

1. जिला उद्योग केन्द्रों पर योग्य एवं प्रशिक्षित कर्मचारियों की नियुक्ति की जानी चाहिये तथा स्टाॅफ पर्याप्त मात्रा मे रहना चाहिये।
2. विभिन्न योजनाओं का समन्वय करते हुए सहयोग की एकीकृत योजनाएँ तैयार की जानी चाहिये।
3. केंद्र के सभी क्रियात्मक प्रबंधकों एवं परियोजना अधिकारियों मे एक उचित समन्वय स्थापित किया जाना चाहिए।
4. प्रत्येक केंद्र पर अधिक से अधिक तकनीकी विशेषज्ञों की नियुक्ति की जानी चाहिये।
5. केंद्र पर कच्चे माल के डिपो स्थापित किये जाने चाहिए। साथ ही निर्मित माल के विक्रय हेतु मेलों अथवा प्रदर्शनिया का आयोजन किया जाना चाहिए।
6. इनके वित्तीय साधनों मे वृद्धि करना चाहिए एवं खर्चों मे कमी लाई जानी चाहिये। इन्हें व्यापक अधिकार दिये जाने चाहिए। इनकी सिफारिशों को पर्याप्त महत्व दिया जाना चाहिए।
7. इनकी कार्यप्रणाली का उचित नियोजन किया जाना चाहिए। इनकी प्रगति के मूल्यांकन हेतु उचित नियंत्रण व्यवस्था लागू की जाने चाहिए।

8. केंद्र द्वारा बीमार इकाइयों का पता लगाकर उन्हें जीवित करने के लिए अधिकतम वित्तीय तथा तकनीकी मदद प्रदान करना चाहिए।
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