8/27/2020

लागत किसे कहते है, लागत के तत्व

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लागत का अर्थ (lagat kise kahate hain)

Lagat meannig in hindi;वस्तु की लागत मूल्य निर्धारण का एक महत्वपूर्ण अंग है। इसमे वर्तमान एवं भावी दोनों ही लागते आती है। वर्तमान लागत का मूल्य निर्धारण से अभिप्राय है कि वर्तमान मे उस वस्तु की लागत क्या है एवं भावी लागत से तात्पर्य है कि भविष्य मे उस वस्तु की लागत क्या हो सकती है? मूल्य निर्धारण की नीति निर्माण करने एवं वास्तविक रूप से वस्तुओं का मूल्य निर्धारित करते समय लागत को ध्यान मे रखा जाता है।
लागत की अवधारणा किसी वस्तु के उत्पादन या सेवा की प्रदायगी मे आने वाले सभी प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष व्यय शामिल होते है। साथ ही उधमी को अपने निजी साधनों, पूँजी एवं स्वयं की योग्यता का पारिश्रमिक का मूल्य भी ध्यान मे रखना चाहिए।
किसी वस्तु की लागत मे मुख्य रूप से दो प्रकार के प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष व्यय एवं अदृश्य लागतें शामिल होती है इन्हें लागत के तत्व कहते है।

लागत के तत्व (lagat ke tatva)

1. प्रत्यक्ष व्यय 

जो व्यय निश्चित रूप से वस्तु की विशेष इकाई से सम्बंधित हो, उन्हें प्रत्यक्ष व्ययों मे सम्मिलित करते है। प्रत्यक्ष व्यय उत्पादन की मात्रा के अनुपात मे घटते-बढ़ते है, इसलिए इनकी प्रकृति परिवर्तनशील होती है। इसमे निम्म को सम्मिलित करते है--
(अ) प्रत्यक्ष सामग्री
यह वह सामग्री है, जो उत्पादन मे प्रत्यक्ष रूप मे प्रयोग की जाती है। जो साम्रगी उत्पादन मे अप्रत्यक्ष रूप से भाग लेती है, उसे कारखाना व्यय मे सम्मिलित करते है। प्रत्यक्ष सामग्री मे साम्रगी की मूल कीमत, उसको क्रय करने के व्यय, आगत गाड़ी भाड़ा, राॅयल्टी, ऑक्ट्राय आदि व्यय जोड़े जाते है। जो सामग्री उत्पादन के लिए अनुपयुक्त रहती या बेच दी जाती है, उसे कम कर देते है।
(ब) प्रत्यक्ष श्रम
जो श्रम उत्पादन मे प्रत्यक्ष रूप से प्रयोग किया जाता है, उसे प्रत्यक्ष श्रम मे सम्मिलित करते है। जो श्रम उत्पादन मे अप्रत्यक्ष रूप से सहयोग देता है, उसे अप्रत्यक्ष श्रम मे सम्मिलित करते है, जैसे फोरमेन का वेतन। श्रम उत्पादन का अनिवार्य अंग है, इसलिए इसे मूल लागत मे शामिल करते है। प्रत्यक्ष श्रम की राशि उत्पादन की मात्रा के साथ घटती-बढ़ती है, इसलिए इसे प्रत्यक्ष मे शामिल करते है। प्रत्यक्ष श्रम की राशि उत्पादन की मात्रा के साथ घटती-बढ़ती है, इसलिए इसे प्रत्यक्ष व्यय माना जाता है। अर्थात् यदि उत्पादन कम होगा तो मजदूरी कम लगेगी और अधिक होगा तो अधिक लगेगी।
(स) अन्य प्रत्यक्ष व्यय
इसमे वे व्यय आते है, जो की प्रत्यक्ष रूप से किसी कार्य विशेष पर किए जाते है, जैसे भवन निर्माण के नक्शे का व्यय एवं अनुसन्धान कार्यों पर व्यय आदि।

2. अप्रत्यक्ष व्यय या अप्रत्यक्ष लागत 

वे व्यय जो उत्पादन मे अप्रत्यक्ष रूप से सहयोग देते है, इसमे सम्मिलित किए जाते है। वे व्यय स्थायी परिवर्तनशील एवं अर्द्धपरिवर्तनशील प्रकृति के होते है। इसमे निम्नलिखित व्ययों को सम्मिलित करते है--
(अ) कारखाना व्यय
कारखाने से सम्बंधित समस्त व्ययों को इसमे सम्मिलित किया जाता है। मूल लागत मे कारखाना व्यय को जोड़ देने पर कारखाना लागत ज्ञात हो जाती है। कारखाना व्ययों मे ह्रास, मरम्मत, मशीन व्यय, अप्रत्यक्ष श्रम, स्टोर्स, फोरमेन का वेतन, कारखाने का बिजली, पानी, कारखाने का किराया, बीमा, कारखाना पर्यवेक्षण आदि आते है।
(ब) कार्यालय व्यय
प्रशासन से सम्बंधित समस्त व्ययों को इसमे सम्मिलित किया जाता है। इन व्ययों को कारखाना लागत मे जोड़ देने पर उत्पादन लागत ज्ञात हो जाती है। कार्यालय व्यय, सामान्य व्यय, वेतन, प्रबन्धिकीय व्यय आदि इसमे शामिल होते है।
(स) बिक्र एवं वितरण व्यय 
इसमे वस्तु की बिक्री एवं वितरण से सम्बंधित समस्त व्ययों को सम्मिलित किया जाता है। इन समस्त व्ययों को "उत्पादन लागत" मे जोड़ देने पर कुछ लागत ज्ञात हो जाती है। विक्रय व्यय, विज्ञापन व्यय आदि इस श्रेणी मे आते है।

3. स्वयं के साधनों का मूल्य 

व्यवसाय के स्वामी या उधमी द्वारा उधम की स्थापना के लिए पूंजी लगाई जाती है, अपनी योग्यता को उधम के संचालन मे प्रयुक्त करना तथा सेवाएँ प्रदान करना आदि अदृश्य लागतों की श्रेणी मे आती है। यदि उधमी स्वयं की पूंजी नही लगाता तो उसे बाजार से ॠण लेकर ब्याज चुकाना पड़ता, स्वयं कम नहीं करता तो दूसरों को वेतन देना पड़ता, स्वयं की योग्यता नही लगाता तो विशेषज्ञों को फीस देना पड़ती। अतः सही लागत ज्ञात करने के लिए स्वयं की पूंजी का ब्याज स्वयं की योग्यता एवं सेवाओं का पारिश्रमिक का मौद्रिक मूल्य भी जोड़ना चाहिए।
संदर्भ; मध्यप्रदेश हिन्दी ग्रन्थ अकादमी, लेखक डाॅ. सुरेश चन्द्र जैन।
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