9/06/2023

नियोजन का अर्थ, परिभाषा, महत्व/आवश्यकता

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प्रश्न; नियोजन से आप क्या समझते हैं? नियोजन को परिभाषित कीजिए। 
अथवा", नियोजन की आवश्यकता को स्पष्ट कीजिए। अथवा", नियोजन का क्या अर्थ हैं? नियोजन का महत्व बताइए।
उत्तर--

नियोजन का अर्थ (niyojan kise kahte hai)

niyojan arth paribhasha mahatva;नियोजन वांछित परिवर्तन लाने का एक तरीका हैं। नियोजन भविष्य मे देखने की विधि अथवा कला है। इसमे भविष्य की आवश्यकताओं का पूर्वानुमान लगाया जाता है ताकि लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए किए जाने वाले प्रयासों को उनके अनुरूप ढाला जा सके। 
आज के इस लेख मे हम नियोजन का अर्थ जानने के बाद हम नियोजन की विभिन्न विद्वानों द्धारा दी गई परिभाषा को जानेंगे।
नियोजन परिवर्तन का एक ऐसा स्वरूप है जिसमे तार्किक ढंग से लक्ष्य और साधनों के संयोजन से वांछित परिवर्तन लाया जाता हैं। यह एक चेतन प्रयास है, जो समाज की समस्याओं को पहचानकर प्राथमिकता के आधार पर चरणबद्ध तरीके से लागू किया जाता हैं। इस प्रक्रिया से समस्याओं का हल खोजने के लिए लक्ष्य निर्धारण सांस्कृतिक मूल्यों के अनुरूप किया जाता हैं।

नियोजन की परिभाषा (niyojan ki paribhasha)

जाॅन ई इलियट के शब्दों में, " नियोजन क्रिया स्तयं मे एक सोद्देश्य क्रिया है। किन्ही पूर्व निश्चित उद्देश्यों के अभाव मे नियोजन की कल्पना करना कठिन है। नियोजन वह साधन है जिसे किसी निश्चित लक्ष्य के संदर्भ मे प्रयोग किया जाता है।
हार्ट के अनुसार, " नियोजन कार्यों की श्रृंखला का अग्रिम निर्धारण है जिसके द्वारा निश्चित परिणाम प्राप्त किए जा सकते हैं।"
गुन्नार मिर्डल के अनुसार, " नियोजन किसी देश की सरकार द्वारा किए गए वे जागरूक प्रयास है जिनके द्वारा लोक नीतियों की अधिक तार्किक ढंग से समन्वित किया जाता है ताकि अधिक से अधिक तेजी से विकास के लक्ष्यों को पूरा किया जा सके।
प्रो. राॅबिन्स के अनुसार," आधुनिक अर्थ के अनुसार नियोजन का तात्पर्य किसी न किसी रूप में उत्पादन के साधनों पर सरकारी नियंत्रण होता हैं।" 
डिकिन्स के अनुसार," नियोजन एक ऐसी व्यवस्था है जिससे पूर्ण सर्वेक्षण के बाद निश्चित और जागरूक अधिकारियों द्वारा महत्वपूर्ण निर्णय लिए जाते है, जैसे-- क्या, कितना, कब, कहाँ और कैसे उत्पादन किया जाये तथा उसका वितरण किसको किया जाए।"
प्रो. हैरिस के अनुसार," सामान्यतः नियोजन साधनों के मूल्य और आय प्रवाह के संदर्भ में साधनों के आवंटन की एक ऐसी रीति है जिसमें कि नियोजन अधिकारी द्वारा निर्धारित उद्देश्यों के आधार पर साधनों का आवंटन किया जाता हैं।"

नियोजन का महत्व अथवा आवश्यकता (niyojan ka mahatva)

जिस प्रकार वैयक्तिक विकास के लिए एक नियबद्ध जीवन आवश्यक होता है, उसी प्रकार देश के सामाजिक आर्थिक विकास के लिए नियोजन का होना आवश्यक हैं। समाजशास्त्र के जनक, ऑगस्त काॅम्ट ने अपने एक लेख में सामाजिक पुनर्निर्माण के लिए नियोजित परिवर्तन को आवश्यक बताया था। वर्तमान युग में हमारा सामाजिक-आर्थिक जीवन इतना जटिल हो गया है कि नियोजन के बिना वांछित सफलताएँ प्राप्त नही की जा सकती।
भारत मे नियोजन के द्वारा परिवर्तन लाने का महत्व निम्न बिन्दुओं से स्पष्ट है--
1. आर्थिक पुनर्निर्माण 
भारत जैसे पिछड़े एवं कृषि प्रधान देश मे आर्थिक क्षेत्र में नियोजित परिवर्तन का काफी महत्व है। औद्योगिकरण ने अलग किस्म की समस्याएं उत्पन्न की है। आर्थिक विषमता, गंदी बस्तियां, बेरोजगारी, श्रमिकों का शोषण, गरीबी आदि महत्वपूर्ण समस्याओं का निराकरण नियोजित परिवर्तन से ही संभव है।
2. ग्रामीण पुनर्निर्माण 
भारत की 74. 3 प्रतिशत जनसंख्या 6 लाख से भी अधिक गाँवों मे निवास करती है। एक कल्याणकारी राज्य होने के नाते हम गाँवों की उपेक्षा कर कल्याणकारी राज्य का उद्देश्य प्राप्त नही कर सकते। नियोजन के द्वारा ग्रामीण पुनर्निर्माण की योजनायें लागू करके हम उस लक्ष्य को प्राप्त कर सकते है।
3. समाज-कल्याण 
अनुसूचित जाति, जनजाति तथा पिछ़ड़े वर्गों की संख्या यहां अत्यधिक है। इस वर्ग को सदियों तक शोषण का सामाना करना पड़ा है। इन वर्गों के उत्थान के बिना समाज की प्रगति संभव नही है। अतः इसके लिये नियोजित कार्यक्रम की आवश्यकता से इंकार नही किया जा सकता।
4. सामाजिक परिवर्तन 
भारतीय समाज में जातिवाद, अस्पृश्यता, अपराध, बाल अपराध, वेश्यावृत्ति, भिक्षावृत्ति, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार, भाषावाद, क्षेत्रवाद इत्यादि अनेक समस्याएं विकराल रूप धारण कर चुकी है। इन समस्याओं को सुलझाने एवं समाज को पुनर्गठित करने के लिए नियोजन की आवश्यकता है।
5. जनसंख्या नियंत्रण 
भारत में जनसंख्या की वृद्धि तेज गति से हो रही है। बढ़ती हुई जनसंख्या देश को पीछे ढकेलती है। अतः जनसंख्या को नियोजित किए बिना देश को समृद्ध नहीं किया जा सकता।
6. धार्मिक क्षेत्र मे नियोजन 
भारतीय समाज में बाल विवाह, सती प्रथा, देवदासी प्रथा, पर्दा प्रथा, अस्पृश्यता इत्यादि को धर्म के साथ जोड़ा गया साथ ही विभिन्न प्रकार के कर्मकांड एवं आडंबर प्रचलन में है। इनसे धर्म को मुक्त कर समाज में सुव्यवस्था स्थापित करने में नियोजन का अत्यधिक महत्वपूर्ण स्थान है।
7. औद्योगिक क्षेत्र में 
विश्व के विकसित देशों की तुलना में भारत औद्योगिक क्षेत्र में अत्यधिक पिछड़ा हुआ है। यहाँ न तो बड़े उद्योगों का समुचित विकास हो सका है और न ही गुण और मात्रा में उनका उत्पादन सन्तोषजनक है। औद्योगीकरण के कारण कुटीर उद्योगों और छोटे उद्योगों को अत्यधिक हानि हुई है। उद्योगों में श्रमिकों का जीवन असुरक्षित हैं। उद्योगों से पैदा होने वाला प्रदुषण तथा गंदी बस्तियाँ हमारी प्रमुख समस्याएँ है। इन समस्याओं को दूर करने तथा बड़े उद्योगों और कुटीर उद्योगों के बीच सन्तुलन स्थापित करने के लिए भी नियोजन का विशेष महत्व हैं।
8. कमजोर वर्गों का विकास 
भारत की लगभग आधी जनसंख्या कमजोर वर्गों, जैसे- अनुसूचित जातियों, जनजातियों तथा अन्य पिछड़े वर्गों की है। जाति-व्यवस्था के असमानताकारी नियमों और अनेक दूसरी रूढ़ियों के कारण इन वर्गो का एक लम्बे समय तक शोषण होता रहा है। नियोजन ही एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके द्वारा इन वर्गों की सामाजिक और आर्थिक समस्याओं को दूर करके उन्हें विकास के समुचित अवसर प्रदान किये जा सकते हैं।
9. राष्ट्रीय एकीकरण के क्षेत्र में 
भारतीय समाज की प्रकृति अधिक विभिन्नतापूर्ण है। यहाँ विभिन्न धर्मों, जातियों, भाषाओं, प्रजातियों और विश्वासों के लोग साथ-साथ रहते हैं। ऐसे सभी समूहों को एक-दूसरे से निकट लाने और उनके बीच सहयोग भावना को बढ़ाने हेतु नियोजन का विशेष महत्व हैं।
10. प्रजातांत्रिक व्यवस्था 
प्रजातांत्रिक व्यवस्था के लिए भी नियोजन आवश्यक है। क्योंकि प्रजातंत्र में जनता की, जनता द्वारा जनता के लिए सरकार होती हैं। इस प्रकार की सरकार जनहित के अनेक कार्यों का सम्पादन करती है, क्योंकि प्रजातांत्रिक सरकारों का जन्म जन आकांक्षाओं पर होता हैं। जन आकांक्षाओं की पूर्ति के लिए भी समाज में नियोजन की आवश्यकता होती हैं।
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