9/06/2023

सामाजिक विकास की अवधारणा, परिभाषा, विशेषताएं

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प्रश्न; सामाजिक विकास की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए। 

अथवा", सामाजिक विकास से आप क्या समझते हैं?

अथवा", सामाजिक विकास का अर्थ बताते हुए सामाजिक विकास को परिभाषित कीजिए। 

अथवा", सामाजिक विकास की विशेषताएं बताइए। 

उत्तर--

सामाजिक विकास की अवधारणा (samajik vikas ki avdharna)

सामाजिक विकास समाज मे ऐतिहासिक परिवर्तन को दर्शाता है।

सामाजिक दृष्टि से विकास सामाजिक संस्थाओं की वृध्दि को कहा जा सकता है। विकास एक प्रकार से ऐसी आंतरिक शक्ति है जो किसी प्राणी या समाज को उन्नति की ओर ले जाता है। विकास उस स्थिति का नाम है जिससे प्राणी मे कार्य क्षमता बढती हैं।

विकास की भाँति सामाजिक विकास निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है। इस रूप में सामाजिक विकास की अवधारणा भी समय के साथ-साथ परिवर्तित होती रहती है। प्राचीकाल में जिसे सामाजिक विकास कहा गया वह मध्यकाल में बदल गया और आधुनिक काल में पुनः इसकी अवधारणा बदल गयी। इसका सीधा अर्थ है कि जब समाज परम्परागत मान्यताओं पर आधारित था तो सामाजिक विकास की व्याख्या उन्हीं आधारों पर की जाती थी, लेकिन स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद शिक्षा का व्यापक प्रचार-प्रसार प्रौद्योगिकी उन्नति, आधुनिकीकरण, नगरीकरण व औद्योगीकरण ने सामाजिक विकास की अवधारणा को पूर्णतः बदल दिया। 

मूरे और पारसन्स ने अपनी पुस्तकों में सामाजिक विकास की अवधारणा का उल्लेख किया है। सामाजिक विकास पर सबसे महत्वपूर्ण विचार हाॅबहाउस का उनकी पुस्तक सोशल डेवलपमेंट में देखने को मिलता हैं। हाॅबहाउस ने सामाजिक विकास का अर्थ मानव मस्तिष्क के विकास में लगया हैं, जिससे मनुष्य का मानसिक विकास होता है और अन्ततः सामाजिक विकास होता हैं। 

अतः संक्षेप में हम कह सकते हैं कि वास्तव में सामाजिक विकास एक परिवर्तित अवधारणा है जिसकी व्याख्या समय के अनुसार परिवर्तित होती रहती हैं।

सामाजिक विकास की परिभाषा (samajik vikas ki paribhasha)

सामाजिक विकास एक व्यापक प्रक्रिया है। इसका एक महत्वपूर्ण पक्ष आर्थिक विकास भी हैं, अतः समाजशास्त्रीयों व अर्थशास्त्रियों द्वारा सामाजिक विकास की मिली-जुली परिभाषाएं निम्नलिखित हैं--

हाॅबहाउस के अनुसार," किसी भी समुदाय का विकास उसकी मात्रा, कार्यक्षमता, स्वतंत्रता और सेवा की पारस्परिकता में वृद्धि से होता हैं।" 

टी. बी. बाॅटोमोर के अनुसार," सामाजिक विकास से हमारा अभिप्राय उस स्थिति से है जिसमें समाज के व्यक्तियों में ज्ञान की वृद्धि हो तथा व्यक्ति प्रौद्योगिक आविष्कारों द्वारा प्राकृतिक पर्यावरण पर अपना नियंत्रण स्थापित कर लें एवं साथ ही साथ वे आर्थिक दृष्टि से आत्मनिर्भर हो जायें।" 

मोरिस जिन्सबर्ग के अनुसार," सामाजिक विकास अपने सदस्यों की सामान्य आवश्यकताओं की पूर्ति के लिये होता हैं।" 

डब्ल्यू. लाॅयड वार्नर के अनुसार," समाज में रहने वाले व्यक्तियों के जीवन स्तर में वृद्धि ही सामाजिक विकास हैं।" 

बी. एस. डिसूजा के अनुसार," सामाजिक विकास वह प्रक्रिया है जिसके कारण अपेक्षाकृत सरल समाज एक विकसित समाज के रूप में परिवर्तित होता हैं।" 

अमर्त्य सेन के अनुसार," विकास लोगों को मिलने वाली वास्तविक स्वतंत्रता को बढ़ाने की महत्वपूर्ण प्रक्रिया हैं।"

संयुक्त राष्ट्र संघ के अनुसार," विकास का अभिप्राय सामाजिक संरचना, सामाजिक व्यवस्था, सामाजिक संस्थाओं, सेवाओं की बढ़ती क्षमता जो संसाधनों का उपयोग इस ढंग से कर सके ताकि जीवनस्तर में अनुकूल परिवर्तन आये। विकास एक जटिल प्रक्रिया है जो आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक और प्रशासनिक तत्वों के समन्वय का परिणाम होती हैं।"

सामाजिक विकास की विशेषताएं (samajik vikas ki visheshta)

सामाजिक विकास की मुख्य विशेषताएं इस प्रकार से हैं-- 

1. मानवीय ज्ञान में वृद्धि 

सामाजिक विकास की एक मुख्य विशेषता मानवीय ज्ञान में वृद्धि हैं क्योंकि जब समाज के अधिकांश सदस्यों में ज्ञान की वृद्धि हो जाती है तो समाज का विकास हो जाता हैं। 

2. प्राकृतिक शक्तियों पर मानवीय नियंत्रण में वृद्धि 

सामाजिक विकास की दूसरी विशेषता प्राकृतिक शक्तियों पर मानवीय नियंत्रण में वृद्धि है। जब व्यक्ति प्रकृति का दास न रहकर प्रौद्योगिक आविष्कारों के कारण उस पर नियंत्रण पा लेता है तो समाज का विकास होता हैं। 

3. बाह्य तत्वों की मुख्य भूमिका 

उद्विकास के विपरीत, सामाजिक विकास में बाह्य तत्वों की प्रमुख भूमिका होती है। अनुकूलन, भौगोलिक पर्यावरण, खनिज पदार्थों की प्रचुरता आदि विकास में सहायक ऐसे ही कुछ प्रमुख बाह्य तत्व है। 

4. मानवीय शक्तियों का समग्र विकास 

सामाजिक विकास सिर्फ मात्र आर्थिक विकास न होकर मानवीय शक्तियों का समग्र विकास हैं क्योंकि इसमें जीवन के सभी पक्षों तथा समाज के सभी क्षेत्रों में विकास होता हैं।

5. सार्वभौमिकता का अभाव 

सामाजिक विकास में सार्वभौमिकता का अभाव पाया जाता हैं क्योंकि एक तो इसकी गति एक जैसी नही होती तथा दूसरे प्रतिकूल परिस्थितियाँ कई बार विकास को अवरूद्ध कर देती हैं। 

6. विज्ञान व प्रौद्योगिकी पर आधारित 

सामाजिक विकास विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी पर आधारित होता है। इसके कारण श्रम विभाजन में वृद्धि होती हैं, संचार साधनों में भी वृद्धि होती है तथा संस्थाओं एवं समितियों की संख्या भी बढ़ जाती हैं।

यह भी पढ़े; सामाजिक विकास के कारक/कारण, संकेतक

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