9/15/2023

सामाजिक नीति की अवधारणा, विशेषताएं, आवश्यकता

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प्रश्न; सामाजिक नीति से आप क्या समझते हैं? सामाजिक नीतियाँ एवं कार्यक्रम समाज के विकास में किस प्रकार सहायक हो सकते हैं? 

अथवा", सामाजिक नीति के उद्देश्य बताइए।

अथवा", सामाजिक नीति का अर्थ बताते हुए सामाजिक नीति को परिभाषित कीजिए। 

अथवा", सामाजिक नीति एवं कार्यक्रमों की विशेषताएं लिखिए। 

अथवा", सामाजिक नीति की आवश्यकता पर प्रकाश डालिए। 

उत्तर-- 

सामाजिक नीति का अर्थ एवं अवधारणा (samajik niti kya hai)

सामाजिक नीति दो शब्दों से मिलकर बनी हैं-- समाज और नीति। समाज व्यक्तियों के बीच अंतः क्रियात्मक संबंधों की एक व्यवस्था है। सामाजिक जीवन में संतुलन एवं व्यवस्था बनाए रखने के लिए नियोजित प्रयासों की आवश्यकता होती हैं। सामाजिक नीति समाज के हित में सोच समझकर किए जाने वाले कार्यों का दिशा-निर्देश होती हैं। 

समाजशास्त्र का सामाजिक नीति से गहरा संबंध हैं। सामाजिक नीति परिवर्तन की दिशा तय करती है तथा जब परिवर्तन इच्छित दिशा में होते है अथवा निर्देशित रूप में होते है तो समाज विकास की तरफ अग्रसर होता हैं। सामाजिक नीति वह नीति है जो राज्य के द्वारा अपने समाज के लोगों विशेषतः कमजोर वर्ग के लोगों की सामाजिक तथा आर्थिक स्थिति को ऊँचा उठाने के निर्धारित प्रयत्नों के रूप में बनाई जाती है। इसमें उन उपायों की तरफ भी ध्यान दिया जाता है जिनकी मदद से लोगों के जीवन को उन्नत करने का प्रयास किया जाता हैं। स्पष्ट है कि सामाजिक निति नियोजन तथा विकास को दिशा प्रदान करती है। यह बताती है कि सामाजिक परिवर्तन को दिशा में मोड़ना है, उदाहरण के रूप में भारत के संविधान में राज्य के नीति-निदेशक सिद्धांतों में कल्याणकारी राज्य की स्थापना का लक्ष्य रखा गया। जहाँ सामाजिक न्याय, समानता, स्वतंत्रता एवं बंधुत्व पर सामाजिक नीति के मुख्य सिद्धांतों के रूप में जोर दिया गया। यहाँ सामंतवादी समाज की रचना का लक्ष्य रखा गया हैं। विकास इस दिशा में उन्मुख होगा। नियोजित सामाजिक परिवर्तन अथवा सामाजिक नियोजन इसी दिशा में बढ़ने का प्रयास हैं।

यहाँ हमें विशेषतः ध्यान में रखना है कि समाजशास्त्री एवं समाज वैज्ञानिक अपने अनुसंधानों के परिणामों को प्रकाशित कर सामाजिक नीति के निर्धारण में राज्य की काफी सहायता कर सकते हैं। जब तक सरकार को यह पता नहीं चलेगा कि समाज में कमजोर वर्ग के लोग कौन हैं? उनकी क्या-क्या समस्याएं हैं? देश में गरीबी तथा बेकारी की क्या स्थिति है? अपराध कहाँ किन लोग में ज्यादा पाये जाते हैं? ग्रामीण पुनर्निर्माण एवं देश में औद्योगीकरण व नगरीकरण की क्या स्थिति है तथा ये लोगों के जीवन को किन-किन रूपों में प्रभावित कर रहे हैं? तब तक सरकार सामाजिक नीति का निर्धारण नहीं कर सकती तथा विकास को ध्यान में रखकर सामाजिक नियोजन को सही दिशा भी नही दी जा सकती। अतः समाजशास्त्री तथा विभिन्न विषयों के विद्वान अपने अध्ययनों एवं बौद्धिक चिंतन के कारण सामाजिक नीति के निर्धारण एवं नियोजित सामाजिक परिवर्तन लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। 

यहाँ हमें यह भी ध्यान में रखना है कि सामाजिक नीति के निर्धारण के साथ-साथ क्रियान्वयन पर भी पूरा-पूरा ध्यान दिया जाना चाहिए। सामाजिक नीति के अनुरूप कार्यक्रम तो बना लिये जाते है लेकिन उनके क्रियान्वयन में कई बाधाएं आती है। उदाहरणार्थ प्रशासन अकुशलता तथा स्वार्थपरकता कई कार्यक्रमों से सफल संचालन में बाधा पैदा करते हैं।

किसी योजना अथवा कार्यक्रम की सफलता बहुत कुछ मात्रा में इस बात पर निर्भर करती है कि उसे बनाते समय लोगों की प्रथाओं, भावनाओं तथा मूल्यों का ध्यान रखा गया है या नही। जिन योजनाओं में मानवीय तथा सांस्कृतिक कारकों की उपेक्षा की गई है, वे अच्छी होने के उपरांत भी असफल रही है। डाॅ. दुबे ने सामुदायिक विकास कार्यक्रम के अंतर्गत कई अच्छी से अच्छी योजनाओं के असफल होने का कारण सामाजिक तथा सांस्कृतिक कारकों की उपेक्षा माना हैं।

सामाजिक नीति की विशेषताएं (samajik niti ki visheshta)

सामाजिक नीति की निम्नलिखित विशेषताएं हैं-- 

1. व्यक्ति, समाज या राज्य का सुसंगठित प्रयास 

सामाजिक नीतियों की एक मुख्य विशेषता यह है कि वह किसी व्यक्ति, समाज या राज्य का सुसंगठित समन्वित एवं सुचिंतित प्रयास हैं। सामाजिक नीति परिवर्तन की ऐसी योजना है जो समन्वित रूप से समाज मे ऐसे परिवर्तनों को लाती है जिसके लक्ष्य व आदर्श सुचिंतित एवं पूर्व निर्धारित होते है। इन्हीं लक्ष्यों एवं आदर्शों की प्राप्ति योजना निर्माण का उद्देश्य होता हैं। 

2. सुनिश्चित एवं सुपरिभाषित उद्देश्य 

सामाजिक नीतियों एवं कार्यक्रमों की दूसरी विशेषता यह है कि परिवर्तन लाने वाले लक्ष्यों का निर्धारण खूब सोच-विचार कर किया जाता है। वास्तव में नियोजित परिवर्तन में विशिष्ट उद्देश्यों की स्थापना तथा इन उद्देश्यों को समाज में क्रियान्वित करने के लिए आवश्यक साधनों का निर्धारण सम्मलित होता है। नियोजित परिवर्तन में चुने हुए उद्देश्यों का अत्यधिक महत्व है। इस प्रकार सामाजिक नितियों एवं नियोजित परिवर्तन में एक सातत्य के साथ ही एक निश्चित दिशा भी सम्मलित होती हैं।

3. जन-जीवन की उन्नति से सम्बद्ध 

सामाजिक नीतियाँ जन-जीवन की उन्नति करने से संबंधित हैं। नियोजित परिवर्तन की योजना जन समूह के केवल सामाजिक आर्थिक तथा रहन-सहन के स्तर को ऊँचा उठाने तक ही सीमित नहीं होती अपितु जन-जन सर्वांगीण अर्थात् सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक, सांस्कृतिक, नैतिक एवं आध्यात्मिक आदि सभी पक्षों तक विस्तीर्ण होती हैं। इसलिए इसे सामाजिक विकास के एक प्रयास के रूप में माना जाना चाहिए। 

4. एक निर्धारित अवधि 

सामाजिक नीतियों की एक विशेषता यह भी है कि इसके द्वारा निश्चित लक्ष्यों की प्राप्ति निर्धारित अवधि के अंतर्गत करने का प्रयास किया जाता है। यथा पहली योजना भारत में 1 अप्रैल, 1951 से प्रारम्भ की गयी थी जो 5 वर्ष (1951-56) की थी। इसी प्रकार प्रत्येक पंचवर्षीय योजनाओं की अवधि निर्धारित की गयी हैं। 

5. राष्ट्र के साधनों तथा शक्तियों का विवेकपूर्ण उपयोग 

सामाजिक नीतियों एवं कार्यक्रमों की एक अन्य उल्लेखनीय विशेषता यह है कि इसके अंतर्गत राष्ट्रीय साधनों तथा शक्तियों का विवेकपूर्ण ढंग से उपयोग किया जाता है। साधनो एवं शक्तियों का वितरण एवं प्रयोग उद्देश्यों को ध्यान में रखकर प्राथमिकता क्रम के आधार पर किया जाता हैं।

भारत में सामाजिक नीति की आवश्यकता (samajik niti ki avashyakta)

हम यदि कुछ ऐतिहासिक घटनाओं पर प्रकाश डालें तो यह पाएँगे कि गुप्तकाल में प्रसिद्ध विद्वान चाणक्य (कौटिल्य) की नीति काफी प्रसिद्ध रही है। उस दौर में चाणक्य ने चन्द्रगुप्त मौर्य के राज्य को जनसेवा, रक्षा, अर्थतंत्र, न्याय व्यवस्था में समृद्ध और समर्थवान बनाने के लिए कुछ नीतियाँ बनायी थी जिस पर चलकर चन्द्रगुप्त मौर्य एक कुशल प्रशासक और लोकप्रिय राजा सिद्ध हुआ। ठीक इसी प्रकार वर्तमान लोकतांत्रिक व्यवस्था में प्रत्येक देश की सरकार को अपनी जनता के कल्याण तथा विकास के साथ-साथ राष्ट्र के विकास हेतु नीतियाँ बनानी होती हैं।

भारत में सामाजिक नीति आज के वैश्विक दौर में और भी अति आवश्यक हैं क्योंकि--

1. देश की 27% जनसंख्या गरीबी रेखा के नीचे जीवन-यापन कर रही है जिनके कल्याण हेतु सामाजिक नीति आवश्यक हैं। 

2. देश की जनसंख्या में 23% जनसंख्या अनुसूचित जाति तथा जनजातियों की हैं। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद से सामाजिक व आर्थिक स्थिति को बेहतर बनाने का प्रयास होता आ रहा है, लेकिन हम अभी भी निर्धारित लक्ष्य प्राप्त करने में असफल रहे है। ऐसी स्थिति में इन वर्गों के कल्याण हेतु सामाजिक नीति आवश्यक हैं। 

3. देश की जनसंख्या में 48.5% भाग का प्रतिनिधित्व करने वाली महिलाएँ आज भी आर्थिक रूप से सामर्थवान होने के बाद भी गरीब है। उनकी स्वास्थगत स्थिति चिंताजनक है, शिक्षा की स्थिति भी कमजोर है। अपने कानूनी और सामाजिक अधिकारों के लिए उनका संघर्ष जारी है। ऐसे में महिलाओं के सशक्तिकरण हेतु सामाजिक नीति की अति आवश्यकता है। 

4. देश की कुछ आबादी की 60% जनसंख्या गाँवों में निवास करती है और ग्रामीण क्षेत्रों में कृषि जीविकापार्जन का मुख्य आधार है। हम सभी इस बात से भलीभाँति परिचित है कि जो कृषि-क्षेत्र देश की अर्थव्यवस्था की रीढ़ था पर अब वह तीसरे स्थान पर आ गया है। सेवा क्षेत्र तथा औद्योगिक क्षेत्र के बाद देश की जीडीपी में कृषि-क्षेत्र का योगदान तीसरे स्थान पर आता है। भारतीय किसान अभी भी ऋणग्रस्तता, निर्धनता प्रवास, बेरोजगारी जैसी समस्याओं से संघर्ष कर रहे हैं। ऐसे में किसानों के कल्याण हेतु देश में सामाजिक नीति की आवश्यकता हैं। 

5. आज भी देश के जनजाति क्षेत्रों में शिक्षा एवं स्वास्थ्य की स्थिति संतोषजनक नहीं हैं, ऐसे में इन क्षेत्रों में बेहतर शैक्षणिक वातावरण एवं स्वास्थ्य सेवाओं के विस्तार हेतु सामाजिक नीति आवश्यक हैं।

6. देश में लगभग 10 करोड़ जनसंख्या वृद्धजनों की है जिनकी अपनी स्वास्थगत समस्याएँ, आर्थिक समस्याएँ, मानसिक समस्याएँ एवं परिवार व समुदाय से जुड़ी समस्याएँ है जिनके समाधान के लिए सामाजिक नीति जरूरी हैं। 

7. देश में निःशक्तजनों, अनाथ बच्चों, परिवार विहीन महिलाओं की भी बड़ी संख्या है जिनके कल्याण के बिना राष्ट्र के विकास की कल्पना संभव नही है। ऐसे में इन वर्गों के कल्याण के लिए सामाजिक नीति की आवश्यकता हैं। 

8. देश में बढ़ती बेरोजगारी को कम करने तथा बंद होते लघु एवं कुटीर उद्योग को पुनर्जीवित करने के लिए सामाजिक नीति आवश्यक हैं। 

9. वैश्वीकरण के दौर में राष्ट्रीय एकता और सुरक्षा के लिए भी सामाजिक नीति नितांत आवश्यक हैं।

सामाजिक नीति के उद्देश्य 

सामाजिक नीति के निम्नलिखित उद्देश्य हैं-- 

1. समाज में व्यक्तियों के जीवन में गुणात्मक सुधार लाना। 

2. कमजोर वर्ग का कल्याण व सुरक्षा प्रदान करना। 

3. स्वास्थ्य सामाजिक संबंधों का विकास करना। 

4. समाज सुधार के माध्यम से मानव कल्याण में वृद्धि करना। 

5. मानव संसाधन का विकास एवं प्राकृतिक संसाधनों का अनुरक्षण करना। 

7. विकास प्रक्रिया में जन सहभागिता में वृद्धि करना।

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