9/06/2023

सतत विकास की अवधारणा, विशेषताएं

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प्रश्न; सतत् विकास की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए। 

अथवा", सतत विकास से आप क्या समझते हैं? 

अथवा", सतत् विकास क्या हैं? सतत विकास को परिभाषित कीजिए। 

अथवा", सतत विकास की विशेषताओं का उल्लेख कीजिए। 

उत्तर--

सतत विकास की अवधारणा (satat vikas ki avdharna)

ससत् विकास परिवर्तन की एक ऐसी प्रक्रिया है जो विकास के ऐसे क्रम को प्रस्तुत करती है जिसमें सतत् आजीविका अर्थात हमारे जीवन की मूलभूत आवश्यकताएँ जैसे-- भोजन, वस्त्र, आवास सुरक्षा, आधारभूत शिक्षा एवं स्वास्थ्य तक वर्तमान पीढ़ी एवं भविष्य की पीढ़ियों की सुरक्षित पहुँच हो सके। 

सतत् विकास की अवधारणा में विकास की नीतियाँ बनाते समय इस बात का ध्यान रखा जाता है कि, मानव की न केवल वर्तमान आवश्यकताओं की पूर्ति सुनिश्चित हो सके बल्कि इसमें प्राकृतिक पर्यावरण की सुरक्षा पर बल भी दिया जाए।

सरल शब्दों में, यह कहा जा सकता है कि सतत विकास की प्रक्रिया में वांछित सामाजिक उद्देश्यों व विकास सूचकांक में समय के साथ गिरावट नही आती। प्राकृतिक पूँजी संग्रह में स्थिरता जिसमें प्राकृतिक स्त्रोतों के साथ पर्यावरण सम्मिलित है सतत् विकास के लिए अनिवार्य शर्त है। सतत् विकास जीवन की गुणवत्ता, समता, स्वतंत्रता, समावेशित पर आधारित विकास की प्रक्रिया हैं।

हाउस ऑफ कामन्स स्टैंडिंग कमेटी ऑन एनवायरमेंट डेव्हलपमेन्ट के अनुसार," समता के विचार के साथ पर्यावरणीय एवं आर्थिक स्त्रोतों का वितरण करना धारणीय विकास की अवधारणा का मौलिक पक्ष हैं।" 

वर्ल्ड कमीशन ऑन एनवायरमेंट एण्ड हेव्हलपमेंट के अनुसार," भविष्य में आने वाली पीढ़ियों की अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति की योग्यता के विषय में समझौता किए बिना वर्तमान आवश्यकताओं एवं आकांक्षाओं की पूर्ति सतत विकास हैं।

विश्व आयोग की रिपोर्ट में यह उल्लेखित है कि सतत विकास भविष्य की पीढ़ियों की योग्यता से समझौता किए बिना वर्तमान की जरूरतों को पूरा करने से संबंधित है। इस प्रकार, यह मानव की पीढ़ियों के भीतर न्यायसंगतता और अंतर पीढ़ीगत न्यायसंगतता की अनिवार्यता को भी पूरा करने का प्रयास करता हैं।,

निष्कर्ष रूप में सतत विकास परिवर्तन की एक प्रक्रिया है, जिसमें संसाधनों का उचित दोहन, निवेश की दिशा, तकनीकी विकास का उन्मुखीकरण और संस्थागत परिवर्तन, सभी सामंजस्य में है और मानव की आवश्यकताओं और आकांक्षाओं को पूरा करने के लिए वर्तमान और भविष्य की क्षमता दोनों को ही बढ़ाते हैं।

सतत विकास की विशेषताएं (satat vikas ki visheshta)

सतत् विकास की निम्नलिखित विशेषताएं हैं--

1. सतत विकास आर्थिक विकास के साथ सामाजिक विकास की एक प्रक्रिया है। जिसमें प्राकृतिक व सामाजिक संसाधनों के इस तरह उपयोग पर बल दिया जाता है कि संसाधन पूर्णतः नष्ट न हो, बल्कि उनका पुनर्नवीनीकरण किया जा सके अर्थात् सतत विकास प्रक्रिया में समाज अंतरपीढ़ीगत समानता को सुनिश्चित करे ऐसा न हो कि वर्तमान पीढ़ी इतना उपभोग कर ले कि आने वाली पीढ़ियों के लिए उपभोग का विकल्प ही न रह जाए। 

2. सतत विकास की प्रक्रिया में आर्थिक, सामाजिक विकास, समता और पर्यावरण की गुणवत्ता पर ध्यान दिया जाता हैं। 

3. सतत विकास की प्रक्रिया में विकास का संबंध जीवन की गुणवत्ता से है। जीवन (1977) की गुणवत्ता का आशय क्या हैं? यहाँ हम यह जानने का प्रयास कर रहे हैं। यूनेस्को के अनुसार," जीवन की गुणवत्ता एक समावेशी संप्रत्यय है जिसमें जीवन के सभी पहलू जिसमें महत्वपूर्ण आवश्यकताओं की भौतिक तुष्टि के साथ जीवन के भौतिक पक्षों से परे स्थित अन्य पक्ष जैसे व्यक्तिगत विकास और एक स्वस्थ पर्यावरण व्यवस्था सम्मिलित हैं।" श्यामाचरण दुबे के अनुसार," जीवन की गुणवत्ता में तीन तरह के मानदण्डों को सम्मिलित करना होगा जिसमें संस्कृति द्वारा निर्धारित विशिष्ट मानदण्ड, वैज्ञानिक रूप से निर्धारित सार्वभौमिक मानदंड तथा पर्यावरण के अतिशोषण उसके अवमूल्यन तथा उसमें सुधार के मानदंड शामिल है।" 

4. सतत विकास की अवधारणा में सामाजिक, आर्थिक, पर्यावरणीय उद्देश्यों मे संतुलन स्थापित करना अपरिहार्य होता है, ताकि इन उद्देश्यों की पूर्ति में आपस में टकराव न हो। 

5. सतत विकास में स्वतंत्रता, आत्मसम्मान और गरिमा के महत्व को स्वीकार किया जाता हैं समता का आदर्श भी सतत विकास का केन्द्रीय तत्व है। जिसका अभिप्राय है धनी व निर्धन के बीच राष्ट्रों के बीच विकास की लागत व लाभों का उचित वितरण।

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