9/06/2023

सतत विकास के लक्ष्य/संकेतक, मौलिक तत्व

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सतत विकास के लक्ष्य एवं संकेतक (satat vikas ke lakshya)

सतत् विकास के लक्ष्य अथवा संकेतक निम्नलिखित हैं--

1. गरीबी के सभी रूपों की पूरे विश्व में समाप्ति।

2. भूख समाप्ति, खाद्य सुरक्षा और बेहतर, पोषण और टिकाऊ कृषि को बढ़ावा। 

3. स्वस्थ जीवन सुनिश्चित करें और सभी उम्र के लोगों के लिए कल्याण को बढ़ावा दें। 

4. सभी को स्वस्थ एवं रोग मुक्त जीवन प्रदान करना। 

5. महिलाओं को सशक्त बनाने का प्रयास करना। 

6. सभी के लिए स्वच्छ जल की उपलब्धता एवं उसका सतत् प्रबंधन सुनिश्चित करना। 

7. समावेशी और समान गुणवत्ता वाली शिक्षा सुनिश्चित करना और सभी के लिए आजीवन सीखने के अवसरों को बढ़ावा देना। 

8. लैंगिक समानता हासिल करना और सभी महिलाओं और लड़कियों को सशक्त बनाना। 

9. सभी के लिए सस्ती, विश्वसनीय, टिकाऊ और आधुनिक ऊर्जा सुनिश्चित करना। 

10. जलवायु परिवर्तन व उसके दुष्प्रभावों से मानवता की रक्षा करना। 

11. सभी प्रकार के संसाधनों का संरक्षण एवं उनका उचित उपयोग करना। 

12. सतत् विकास हेतु वैश्विक साझेदारी को बढ़ावा देना। 

13. सभी के लिए सतत्, समावेशी और सतत् आर्थिक विकास, पूर्ण और उत्पादक रोजगार तथा अच्छे काम को बढ़ावा देना। 

14. लचीले बुनियादी ढाँचे का निर्माण, समावेशी और टिकाऊ औद्योगिकीकरण को बढ़ावा देना और नवाचार को बढ़ावा देना। 

15. राष्ट्रों के अंदर और उनके बीच असमानता को कम करना। 

16. शहरों और मानव बस्तियों को समावेशी, सुरक्षित, लचीला और टिकाऊ बनाना। 

17. टिकाऊ खपत और उत्पादन पैटर्न सुनिश्चित करें। 

18. जलवायु परिवर्तन और उसके प्रभावों से निपटने के लिए तत्काल कार्रवाई करें। 

19. सतत् विकास के लिए महानगरों, समुद्रों और समुद्री संसाधनों का संरक्षण और सतत् उपयोग करना। 

20. स्थलीय पारिस्थितिक तंत्र के सतत् उपयोग को सुरक्षित, पुनर्स्थापित और बढ़ावा देना, जंगलों का स्थायी प्रबंधन, मरुस्थलीकरण का मुकाबला और भूमि क्षरण को रोकना और जैव विविधता के नुकसान को रोकना। 

21. सतत् विकास के लिए शांतिपूर्ण और समावेशी समाजों को बढ़ावा देना, सभी के लिए न्याय हेतु पहुँच प्रदान करना और सभी स्तरों पर प्रभावी, जवाबदेह और समावेशी संस्थानों का निर्माण करना। 

22. कार्यान्वयन के साधनों को मजबूत करना और सतत् विकास के लिए वैश्विक साझेदारी को पुनर्जीवित करना।

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सतत विकास के मौलिक तत्व 

सतत् विकास की प्रक्रिया पारिस्थितिकी के साथ आर्थिक, सामाजिक व सांस्कृतिक भी हैं। इस प्रक्रिया के प्रमुख तत्व इस प्रकार हैं-- 

1. समता 

विकास की प्रक्रिया में संसाधनों का उपयोग सामाजिक न्याय पर आधारित होना। अतः समता का आदर्श सतत विकास का मौलिक तत्व हैं। 

2. संयोजकता

सतत विकास की प्रक्रिया में सिर्फ आर्थिक लक्ष्य की प्राप्ति ही पर्याप्त नही हैं, बल्कि आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, पर्यावरणीय लक्ष्यों के संयोजन से विकास को प्राप्त करना हैं। 

3. समावेशिता 

सतत विकास का एक महत्वपूर्ण तत्व समावेशी विकास हैं। समावेशी विकास में जनसंख्या के सभी वर्गों के लिए बुनियादी सुविधाओं यानी भोजन, आवास, पेयजल, शिक्षा, स्वास्थ्य, कौशल विकास के साथ-साथ गरिमामय तरीके से जीवन जीने के लिए आजीविका के साधन उपलब्ध कराना है। लेकिन ऐसा करते समय पर्यावरण संरक्षण का ध्यान रखना आवश्यक है, ऐसा कोई भी विकास कार्य जो पर्यावरण के नुकसान की कीमत पर हो समावेशी विकास नहीं होगा। समावेशी विकास में आर्थिक संवृद्धि, जनसंख्या परिवर्तन, प्रौद्योगिकी विकास, व्यक्तियों की प्रवृत्तियों और व्यवहारों को भी प्राकृतिक संसाधनों के दोहन के साथ आकलन करना शामिल हैं। अर्थात् वर्तमान और भावी आवश्यकताओं की पूर्ति की संभावना पर ध्यान केन्द्रित करना आवश्यक हैं। 

4. विवेकपूर्णता 

विवेकपूर्णता, सतत विकास की प्रक्रिया में सतत विकास लक्ष्यों के प्रति साझा दृष्टि की ओर इंगित करती है अर्थात् यह विचार करना है कि वर्तमान उपभोग तरीके को देखते हुए हमारे प्राकृतिक स्त्रोत कितने समय चलेंगे और हम किस तरह से अपने प्राकृतिक संसाधनों का प्रबंधन करें कि भावी पीढ़ी भी वर्तमान पीढ़ी की तरह जीवन की गुणवत्ता तक पहुँच सके? तात्पर्य यह है कि जीवन की गुणवत्ता के लिए पर्यावरणीय संसाधनों का उपयोग सामाजिक-आर्थिक व्यवस्थाओं के ऐसे तालमेल पर आधारित होना चाहिए जिसमें व्यक्तियों की क्रियाओं का पारिस्थितिकीय व्यवस्था पर ऐसा प्रभाव पड़े कि उन्हें संरक्षित और पुनर्जीवित किया जा सके। 

5. उपभोक्तावादी संस्कृति को नकारना 

सतत विकास संसाधनों के समुचित दोहन पर केंद्रित विचार है। इसके साथ ही उपभोक्तावादी संस्कृति लोगों की माँग के अनुरूप तेज गति से उत्पादन पर बल देती है। चूकि उत्पादन का यह क्षेत्र अति विकसित और पूँजी प्रधान है। अतः उद्योगों के विकास पर व आयात पर निर्भरता बढ़ती हैं। स्थानीय परंपरागत उत्पादन का ढाँचा टूटता है समाज में असमानता भी बढ़ती हैं जबकि सतत विकास समता व न्याय पर आधारित प्रक्रिया हैं। अतः सतत विकास की प्रक्रिया में उपभोक्तावादी संस्कृति को महत्व नहीं दिया जाता।

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