प्रश्न; सामाजिक विकास के सहायक कारक बताइए।
अथवा", सामाजिक विकास के कारण लिखिए।
अथवा", सामाजिक विकास के घटक बताइए।
अथवा", सामाजिक विकास के संकेतक बताइए।
उत्तर--
सामाजिक विकास के कारक अथवा कारण (samajik vikas ke karak)
सामाजिक विकास की प्रक्रिया समाज में जरूरी दशाओं की उपलब्धता के आधार पर आगे बढ़ती है। समाजशास्त्रीयों ने सामाजिक विकास के जिन कारकों का उल्लेख किया हैं उसमें कुछ सामाजिक विकास के कारक निम्नलिखित हैं--
1. ज्ञान में वृद्धि
समाज में ज्ञान की वृद्धि सामाजिक विकास का ही परिणाम हैं। उल्लेखनीय है कि समाजशास्त्रीय ऑगस्ट काॅम्ट ने समाज के विकास की प्रक्रिया में चिंतन के तीन स्तर या नियम का हवाला देते हुये यह स्पष्ट किया है कि हमारे ज्ञान की स्थितियों अथवा चिंतन के स्तर में परिवर्तन से समाज मे विकास की अवस्थाओं में परिवर्तन होता है। हाॅब हाउस ने भी इस बात को स्पष्ट किया कि मानव मस्तिष्क का विकास सामाजिक विकास का महत्वपूर्ण कारक है। ज्ञान में वृद्धि से समाज में व्यक्तियों की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिये तरह-तरह के आविष्कार होते हैं। जो जीवन के ढंग को परिवर्तित कर देते हैं और यह परिवर्तित ढंग नई परिस्थितियों के अनुकूलन में सहायक होता हैं। इस प्रकार से स्पष्ट हैं कि ज्ञान में वृद्धि सामाजिक विकास का महत्वपूर्ण कारक हैं।
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2. सामंजस्य एवं अनुकूलन
विकास की प्रक्रिया के लिये यह आवश्यक है कि समाज में अनुकूलन व सामंजस्य जैसी सहयोगी प्रक्रियायें प्रभावी रूप से संचालित हों। उल्लेखनीय है कि हाॅबहाउस ने सामाजिक विकास की प्रक्रिया में अनुकूलन को एक आवश्यक घटक माना हैं। सामंजस्य व अनुकूलन की स्थिति में विकास की प्रक्रिया निर्बाध रूप से चलेगी।
3. आविष्कार और प्रसार
किसी भी समाज में आविष्कार सामाजिक परिवर्तन का आधार होते हैं, क्योंकि आविष्कार साधन के रूप में उपयोगी होते है और व्यक्तियों की कार्य की आदतों, मनोवृत्ति में परिवर्तन का कारण बनते ही सामाजिक संबंधों में बदलाव का भी एक कारण नये आविष्कार होते हैं। आविष्कारों का प्रसार संस्कृति में बदलाव का महत्वपूर्ण कारण होता हैं। अतः सामाजिक विकास मे वृद्धि होती हैं।
4. औद्योगीकरण
औद्योगीकरण सामाजिक विकास का महत्वपूर्ण कारक हैं। विशाल पैमाने पर उत्पादन, श्रम विभाजन का बढ़ना व बढ़ती जनसंख्या की आवश्यकताओं में पूर्ति औद्योगीकरण के कारण संभव हैं।
5. नगरीकरण
नगरीकरण की प्रक्रिया सामाजिक विकास का महत्वपूर्ण कारण है। नगरीकरण के कारण जनसंख्या घनत्व में वृद्धि होती हैं। जनसंख्या की वृद्धि उत्पादन की माँग करती हैं। नगरों मे नये-नये रोजगार के अवसरों में वृद्धि, व्यक्तियों की कार्य कुशलता में वृद्धि, सामाजिक गतिशीलता में वृद्धि होने से विकास की प्रक्रिया तीव्र गति से बढ़ती हैं।
6. ऊर्जा
सामाजिक विकास का एक महत्वपूर्ण कारक ऊर्जा के विविध साधन भी है। लेस्लीव्हाइट के अनुसार, जैसे-जैसे ऊर्जा के साधनों पर समाज का नियंत्रण होता हैं वैसे-वैसे समाज विकास की स्थितियों को प्राप्त करना हैं। आदिमानव के द्वारा चकमक पत्थर से आग जलाने का सफर आज ऊर्जा के नवीन प्रयोगों तक पहुँच गया हैं। जो समाज ऊर्जा के स्त्रोतों पर जितना अधिक नियंत्रण कर उपयोग कर रहा है वह समाज उतना ही अधिक विकसित हैं।
7. जागरूकता
समाज में व्यक्ति अपनी स्थितियों के प्रति जितने जागरूक होगे उतनी ही सजगता के साथ नये अवसरों का उपयोग करने तत्पर होगे। संचार प्रौद्योगिकी का विस्तार और उपयोग समाज में जागरूकता बढ़ाने में सहायक होता है। समाज में जागरूकता विकास में सहायक होती हैं।
8. सरकारी नीति
सरकार की नीति भी सामाजिक विकास में सहायक हो सकती है या विकास की गति को अवरूद्ध भी कर सकती हैं। यदि सरकार ज्यादा व्यावहारिक योजनाएं बनाती हैं तथा ईमानदारी से इन्हें लागू करती है तो विकास होना निश्चित हैं।
9. उपलब्धि की प्रेरणा
उपलब्धि की प्रेरणा एक मनोवैज्ञानिक तथ्य है। मैक्लीलैण्ड ने इसे विकास का आवश्यक घटक माना जिस समाज में व्यक्तियों की बाह्य वातावरण और आंतरिक शक्तियों के प्रति अधिक सजगता होती है, उनमें उपलब्धियों की प्रेरणा भी अधिक होती हैं।
सामाजिक विकास के संकेतक (samajik vikas ke sanketak)
भारतीय समाज के परम्परागत स्वरूप में जो परिवर्तन आया है वह सामाजिक विकास के संकेतक के रूप में देखा जा सकता है। समाज के ये परिवर्तन यह दर्शाते हैं कि किस प्रकार सत्तावादी स्वरूप बदलकर परम्परागत से आधुनिक की ओर अग्रसर हो रहा हैं।
सामाजिक विकास के अंतर्गत सामाजिक, सांस्कृतिक और राजनैतिक पक्ष सम्मिलित होते हैं। विकास के समाजशास्त्रीय परिप्रेक्ष्य द्वारा समाज के समग्र विकास एवं उसके विश्लेषण हेतु कुछ निश्चित संकेतक निर्धारित किये गये हैं, जो निम्नानुसार हैं--
1. जब कोई समाज अपनी परम्परागत पुरातन धारणाओं और अंधविश्वासों को त्यागकर आधुनिकता को स्वीकार करता हैं।
2. जब समाज का स्वरूप लोकतांत्रिक न होकर सत्तावादी हो जाता है और समाज रूढ़ीवादी बेड़ियों को तोड़कर आधुनिक मूल्यों पर आधारित लोकतांत्रिक मूल्यों को महत्व देने लगता हैं।
3. सामान्य तौर पर सामाजिक प्रस्थिति का निर्धारण व्यापक रूप में गुणों के आधार पर होता है। वर्तमान दौर में भारतीय समाज में भी व्यापक सामाजिक परिवर्तन हो रहे है, जो कि यह दर्शाते हैं कि हमारा समाज विकास की ओर अग्रसर हो रहा हैं।
4. भारतीय समाज के परम्परागत आधार, जाति, संयुक्त परिवार, नातेदारी व्यवस्था आदि के रूप-स्वरूप में भी परिवर्तन आ रहा हैं। परिवारों की संरचना परम्परागत बड़े आकार की न होकर छोटे आकार का रूप लेती जा रही हैं।
5. धर्म के आधार पर समाज में जो भेदभाव था वह लगभग गौण हो जाता है।
6. जीवन पद्धित नगर केन्द्रित अर्थात् नगरीय हो जाती है। व्यावसायिक एवं सामाजिक गतिशीलता में वृद्धि हो जाती हैं।,
7. मृत्युदर के साथ-साथ मातृ एवं शिशु मृत्यु दर में भी कमी हो जाती हैं। जीवन प्रत्याशा में वृद्धि हो जाती है। समाज के सभी नागरिकों को बड़ी सुलभता से स्वास्थ्य सेवाओं का लाभ प्राप्त होने लगता है।
8. महिला-पुरुषों की साक्षरता दर में वृद्धि हो जाती है जिससे रोजगार के नवीन मार्ग भी खुलते हैं।
9. सामाजिक व पारिवारिक कार्यों का दायित्व सरकारी, गैर-सरकारी अथवा एजेंसियों द्वारा ले लिया जाता है। इन संस्थाओं में वृद्धाश्रम, अनाथालय, चिकित्सालय, शिशु सदन प्रमुख है।
संयुक्त राष्ट्र संघ ने सामाजिक विकास को मापने के कुछ प्रमुख संकेतक सुनिश्चित किए हैं--
1. जीवन-यापन का स्तर।
2. गरीबी का स्तर।
3. शिक्षा का स्तर।
4. समाज के कमजोर वर्ग को ऊपर उठाने का अवसर।
5. सरकार के द्वारा सामाजिक कल्याण का अवसर।
6. समाज में आर्थिक असमानताओं का स्तर।
7. स्वास्थ्य का स्तर।
8. जन्म के समय जीवन प्रत्याशा।
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