3/09/2022

समिति और संस्था में अंतर

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प्रश्न; संस्था तथा समिति के मध्य अंतर स्पष्ट कीजिए। 

अथवा" 'हम समितियों के सदस्य होते हैं संस्थाओं के नही' इस कथन की व्यख्या कीजिए। 

अथवा" समिति और संस्था में अंतर स्पष्ट कीजिए। 'हम समितियों के सदस्य होते हैं संस्थाओं के नही' इस कथन की विवेचना कीजिए।

उत्तर--

समिति तथा संस्था में अंतर 

sanstha aur samiti mein antar;किसी विशिष्ट उद्देश्य की पूर्ति के लिये जान-बूझकर सप्रयास स्थापित किया गया अस्थायी संगठन 'समिति' कहलाता हैं। इससे भिन्न किसी विशिष्ट उद्देश्य की प्राप्ति के लिये स्वतः विकसित कार्य-प्रणालियों, विचारों, सिद्धांतों तथा नियमों आदि की अमूर्त परन्तु स्थायी व्यवस्था को सामाजिक संस्था कहा जाता हैं। इस प्रकार स्पष्ट है कि 'समिति' तथा 'संस्था' में पर्याप्त अंतर होता हैं।

मैकाइवर और पेज ने संस्था और समिति के अंतर को स्पष्ट करते हुए लिखा है कि," जब हम किसी संगठित समूह का विचार करते हैं तो वह एक समिति है और यदि कार्य-प्रणाली के एक रूप का विचार करते है तो वह एक संस्था हैं। समिति से सदस्यता का बोध होता हैं, संस्था से सेवा के एक प्रकार का अथवा साधन का बोध होता हैं।" 

मैकाइवर ने इन दोनों के अंतर को स्पष्ट करने के लिए 'महाविद्यालय' का उदाहरण दिया हैं। जब हम विद्यलय के छात्रों और अध्यापकों का एक समूह मात्र बनाते हैं, तो यह समिति है। जब हम महाविद्यालय की शिक्षा-प्रणाली और कार्यप्रणाली की बात करते है तो इसका अर्थ संस्था से होता हैं। यह आवश्यक नहीं है कि व्यक्ति एक ही संस्था का सदस्य हो, वह अनेक संस्थाओं का एक साथ सदस्य हो सकता हैं, जैसे-- परिवार, जेल, राज्य आदि। 

समिति और संस्था में निम्नलिखित अंतर हैं-- 

1. समिति व्यक्तियों का समूह है, संस्था कार्य के ढंगों अथवा नियमों की एक व्यवस्था है। 

2. संस्था अमूर्त होती हैं, जबकि समिति मूर्त साकार होती हैं।

3. समिति किसी विशेष उद्देश्य अथवा उद्देश्यों को पूरा करने के लिए स्थापित की जाती हैं, जबकि संस्था धीरे-धीरे विकसित होती हैं। इसका एकाएकनिर्माण नहीं किया जा सकता। 

4. समिति व्यक्तिगत कल्याण से अधिक संबंधित हैं, जबकि संस्था सामूहिक कल्याण को अधिक महत्व देती हैं। 

5. समिति के नियम औपचारिक होते हैं, जिनको व्यक्ति इसलिए बदलने का प्रयत्न करते है जिससे उनके निजी स्वार्थ पूरे हो सकें, जबकि संस्था की अवहेलना करना एक असामाजिक कार्य समझा जाता हैं, और इसलिए इसकी नियंत्रण शक्ति बहुत अधिक होती हैं।

6. समिति अपेक्षाकृत अस्थायी होती हैं, जबकि संस्था अपेक्षाकृत कहीं अधिक स्थायी होती हैं। 

7. समिति का कोई ढाँचा नहीं होता, जबकि संस्था का एक ढाँचा होता हैं। 

8. समिति तार्किक नियमों द्वारा निर्देशित होती है, जबकि संस्था जनरीतियों और रूढ़ियों द्वारा निर्देशित होती हैं। 

9. समिति में केवल सदस्यता रहने तक नियमों का पालन अनिवार्य होता हैं, जबकि संस्था में सामान्य नियमों का पालन प्रायः अनिवार्य होता हैं। 

10. समिति में निश्चित नाम का महत्व होता हैं, संस्था में प्रतीक का महत्व होता हैं।

11. समितियों का संस्कृति के विकास में विशेष योगदान नहीं होता, जबकि संस्थाएं सांस्कृतिक विशेषताओं को एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक पहुंचाने का महत्वपूर्ण कार्य करती हैं।

हम समितियों के सदस्य होते हैं, संस्था के नहीं

मैकाइवर और पेज का कथन है कि," हम समितियों के सदस्य होते हैं, संस्था के नहीं" (We belong to association, not to institutions.) यह कथन समिति तथा संस्था की तुलनात्मक प्रकृति को स्पष्ट करने में बहुत अधिक सहायक हैं। 

मैकाइवर एवं पेज का यह कथन जितना अधिक महत्वपूर्ण हैं, उतना ही सरल भी हैं, क्योंकि मनुष्य एक मूर्त प्राणी हैं इसलिए वह किसी मूर्त संगठन का ही सदस्य हो सकता हैं।  उदाहरण के लिए हम परिवार के सदस्य हो सकते हैं, क्योंकि समिति के रूप में परिवार मूर्त हैं, लेकिन हम परिवार की संस्था,अर्थात् विवाह के सदस्य नहीं बन सकते, क्योंकि वह केवल नियमों की व्यवस्था अथवा एक कार्य प्रणालियों का संग्रह हैं। इसी तरह हम राज्य के सदस्य बन सकते हैं, परन्तु संविधान के नहीं। इस प्रकार निष्कर्ष यह है कि," व्यक्ति किसी समिति का ही सदस्य हो सकता हैं, संस्था का नहीं।" समिति अपने उद्देश्यों या लक्ष्यों को पूर्ण करने के बाद किसी भी समय समाप्त हो सकती है अथवा उसकी सदस्यता बदली जा सकती हैं, लेकिन संस्था तुलनात्मक रूप से स्थायी होती हैं। एक लंबी अवधि के बाद भी उसके स्वरूप में अधिक परिवर्तन नहीं होता। ऐसा इसलिए हैं, क्योंकि संस्थाओं की उत्पत्ति एवं विकास प्रायः स्वतः और धीरे-धीरे बहुत लंबे समय में हो पाता हैं, जबकि समिति का निर्माण कुछ व्यक्तियों द्वारा हुए प्रतिनिधियों एवं नियुक्त कर्मचारियों का औपचारिक संगठित समूह है अर्थात यह एक समिति है जिसके हम सभी भातरवासी सदस्य हैं, इसके अंग हैं, यह सरकार हमारी हैं किन्तु लोकतंत्रिक सरकार एक अवधारणा भी है। कानून बनाने, कानून पर अमल करने, समाज में व्यवस्था रखने की एक व्यापक व्यवस्था भी है अर्थात् यह एक संस्था है जो आज कुछ देशों में पाई जाती हैं। वैसे दुनिया में सभी समाजों के सरकार की कोई न कोई प्रणाली विद्यमान हैं। 

सारांश यह है कि हम एक क्लब, एक निगम, एक काॅलेज, एक परिवार, एक फुटबाॅल टीम, एक नाटक क्लब इत्यादि समितियों के सदस्य हो सकते हैं, पर इनसे संबंधित संस्थाओं मनोरंजन, व्यापार, शिक्षा, विवाह, फुटबॉल, खेल, नाटक के सदस्य नहीं हो सकते हैं। 

इस प्रकार समिति और संस्था एक-दूसरे से भिन्न अवधारणाएं हैं।

शायद यह जानकारी आपके के लिए बहुत ही उपयोगी सिद्ध होगी

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