तुलनात्मक राजनीति के अध्ययन का महत्व
tulnatmak rajnit ka mahatva;जीन ब्लोण्डेल ने लिखा हैं कि", तुलनात्मक सरकारों का अध्ययन प्राचीनतम, अत्यंत कठिन और महत्वपूर्ण हैं तथा प्रारंभ से ही मानव-ध्यान को आकर्षित करता रहा हैं।"
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तुलनात्मक राजनीतिक अध्ययन का व्यवस्थित प्रारंभ अरस्तु से माना जाता हैं और तब से लेकर अब तक राजनीतिशास्त्रियों द्वारा राजनीतिक व्यवहार को समझने-समझाने के लिए विभिन्न राजनीतिक व्यवस्थाओं का अध्ययन और वर्गीकरण किया गया हैं तथा नवीन शोधों द्वारा नए-नए दृष्टिकोण अथवा उपागमों का प्रतिपादन किया गया हैं। इस प्रकार राजनीति विज्ञान के क्षेत्र में तुलनात्मक राजनीति का अध्ययन प्रारंभ से ही आकर्षक रहा है और नवीन विकासों के संदर्भ में तो यह विशेष महत्व रखता हैं।
तुलनात्मक राजनीतिक का महत्व निम्न बिन्दुओं द्वारा स्पष्ट किया जा सकता हैं--
1. तुलनात्मक राजनीति के अध्ययन से हमें राजनीतिक व्यवहार को समझने में सहायता मिलती हैं। इसके द्वारा हम राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय राजनीति एवं राजनीतिक व्यवहार को अधिक अच्छी तरह समझ सकते हैं। तुलनात्मक अध्ययन द्वारा हम यह भली प्रकार ज्ञात कर सकते हैं कि विभिन्न समाजों के लोगों का राजनीतिक व्यवहार परस्पर भिन्न क्यों होता हैं? उनके मूल्य क्या हैं और किन विधियों को वे एक-दूसरे को तथा बाह्रा विश्व को समझने में प्रयोग करते हैं एवं लगभग समान राजनीतिक समस्याओं के निदान के लिए किन विभिन्न साधनों को अपनाते हैं। राजनीति के तुलनात्मक अध्ययन से हम राजनीतिक व्यवहार की जटिलताओं को समझ सकते हैं। यह विदेशों में 'पर्यटन' के समान हैं।
2. तुलनात्मक राजनीति का अध्ययन राजनीति को 'एक वैज्ञानिक अध्ययन' बनाता हैं। लगभग अरस्तु के समय से ही बुद्धिजीवी और विचारक इस बात के लिए प्रत्यनशील रहे हैं कि राजनीतिक व्यवहार से संबंधित ज्ञान को विज्ञान का रूप दिया जाए। तुलनात्मक राजनीतिक अध्ययन इसी दिशा में एक विशेष और अत्यधिक सफल प्रयास हैं। राजनीति की दुनिया में निरन्तरताओं और सामान्यीकरणों को खोजकर सुनिश्चित अथवा अत्यधिक सम्भावित व्यवहारों का संकेत देने में तुलनात्मक राजनीतिक अध्ययन अधिकाधिक सहायक बनता जा रहा हैं। व्यवहारवाद के विकास ने तुलनात्मक राजनीति को बहुत महत्वपूर्ण बना दिया है और यह विज्ञान के रूप में राजनीति-शास्त्र के व्यापक विकास का अग्रदूत बन गया हैं। इसने राजनीतिशास्त्र में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई हैं। पीटर एच मर्कल ने ठीक ही लिखा हैं कि," तुलनात्मक अध्ययन के आधार पर ही राजनीतिशास्त्र विज्ञान की श्रेणी में आ सका और सम्भवतः इसीलिए अरस्तु के बाद से आज तक प्रतिष्ठित और श्रेष्ठतम विचारक राजनीतिक के तुलनात्मक विश्लेषण में रूचि लेते रहे हैं।
3. तुलनात्मक राजनीतिक अध्ययन से हम अपने देश की संस्थाओं को अधिक अच्छी तरह से समझकर उपस्थित समस्याओं का निराकरण कर सकते हैं। विदेशों की राजनीतिक संस्थाओं और उनसे संबंधित राजनीति के अध्ययन से हमारा दृष्टिकोण व्यापक, तुलनात्मक और सन्तुलित बनता हैं जो राष्ट्रीय राजनीतिक संस्थाओं के संदर्भ में विशेष महत्वपूर्ण हैं। उदाहरणार्थ, विभिन्न राज्यों की शासन-पद्धतियों और उनकी राजनीति का तुलनात्मक अध्ययन करके पता लगाया जा सकता है कि संसदीय शासन-पद्धति को सफल बनाने के लिए क्या दशाएँ आवश्यक हैं, और तब हम अपने देश में उन दशाओं को लाने और प्रतिष्ठित करने का प्रयत्न कर सकते हैं। यदि भारतीय विद्यार्थी इंग्लैंड, अमेरिका, रूस, जापान या चीन की शासन-पद्धतियों का तुलनात्मक अध्ययन करते हैं तो उन्हें अपने देश की राजनीतिक पद्धित को समझने के लिए एक परिप्रेक्ष्य अथवा सापेक्ष महत्व का ज्ञान प्राप्त होता हैं। तत्पश्चात वे ऐसी अभिवृत्तियों और प्रथाओं की पुनः परीक्षा कर सकते हैं जिन्हें वे बहुत पहले से ही एक रूप मे स्वीकार कर चुके हैं और इस प्रकार वे अपने देश तथा विदेशों की राजनीतिक संस्थाओं की सूक्ष्म परीक्षा कर सकते हैं। इससे आलोचनात्मक मूल्यांकन की प्रवृत्ति विकसित होती हैं।
4. तुलनात्मक राजनीति का महत्व 'राजनीति में सिद्धांत-निर्माण' की दृष्टि से भी हैं। तुलनात्मक अध्ययन द्वारा ही किसी भी शास्त्र में सिद्धांतों का निर्माण और नियमों का निरूपण संभव हैं। राजनीतिशास्त्र में अति प्राचीनकाल से ही ऐसे सिद्धांतों और सामान्य नियमों की खोज की जाती रही हैं जिनके द्वारा विभिन्न समाजों के राजनीतिक व्यवहार को मोटे रूप में समझा जा सके। राजनीतिक सिद्धांत मोटे रूप में दो श्रेणियों में विभाजित किए जाते हैं-- आदर्शी सिद्धांत (Normative Theory) तथा आनुभाविक सिद्धांत (Empirical Theory)।
आदर्शी सिद्धांतों में हम राजनीतिक व्यवस्थाओं के बारे में कोई कल्पना कर लेते हैं और तब उस कल्पना को रचनात्मक रूप देते है। उदाहरणार्थ, प्लेटो ने दार्शनिक राजा की कल्पना करके उस आधार पर आदर्श राज्य का विचार प्रस्तुत किया। स्पष्ट हैं आदर्शी सिद्धांतों का ठोस तथ्यों से प्रायः संबंध नही होता और तुलनात्मक राजनीति इस प्रकार के आदर्शी सिद्धांतों के निर्माण में कोई योग नहीं दे सकती।
आनुभाविक सिद्धांतों में हम राजनीतिक व्यवहार के वास्तविक तथ्यों को समझ कर सिद्धांतों के निर्माण का प्रयत्न करते हैं और तुलनात्मक राजनीतिक के अध्ययन का महत्व राजनीतिक व्यवहार के संबंध में सिद्धांत-निर्माण ही सर्वाधिक हैं।
5. तुलनात्मक राजनीतिक के अध्ययन का विशेष महत्व इस बात में भी हैं कि इसकी सहायता से हम प्रचलित राजनीतिक सिद्धांतों का पुनः परीक्षण करके उनकी प्रामाणिकता जाँच कर सकते हैं। हम बहुत कुछ यह निष्कर्ष निकाले सकते हैं कि परम्परागत या प्रचलित राजनीतिक सिद्धांत वर्तमान परिवर्तित परिस्थितियों में किस सीमा तक मान्य होने चाहिए, अनुपयोगी हो गये हैं या कितने परिवर्तनीय हैं।
स्पष्ट हैं कि राजनीतिक व्यवहार को समझने, राजनीतिशास्त्र को वैज्ञानिकता प्रदान करने, आनुभाविक अध्ययनों के आधार पर सिद्धांतों का निर्माण करने और प्रचलित राजनीतिक सिद्धांतों की पुनः प्रामाणिकता परखने आदि की दृष्टि से तुलनात्मक राजनीति के अध्ययन का अत्यधिक महत्व हैं। राजनीति का तुलनात्मक अध्ययन विदेशों में पर्यटन के समान हैं जिससे हमें अन्य देशों के बारे में विभिन्न प्रकार की उपयोगी और शिक्षाप्रद जानकारी प्राप्त होती हैं। इस जानकारी को तुलनात्मक विधि अथवा तुलनात्मक विश्लेषण द्वारा और व्यवस्थित करके उपयोगी बनाया जा सकता हैं। उदाहरणार्थ, यदि कोई अमेरिकी विद्यार्थी इस प्रकार का अध्ययन करे तो उसे ज्ञात होगा कि कुछ देशों में स्वास्थ्य सेवाएँ पूरी तरह राष्ट्रीयकृत हैं तो कुछ देशों में वे लोगों की कीमत देने की योग्यता पर आधारित हैं, सरकार द्वारा नियंत्रित और संचालित परिवहन सेवाएँ भी उतनी ही कुशल हो सकती है जितनी निजी कम्पनियों द्वारा संचालित परिवहन सेवाएँ। कुछ राज्यों में व्यक्तिगत स्वतंत्रताओं का मूल्य बहुत ऊँचा है तो कुछ में समूह के हितों या राज्य के हितों को व्यक्तिगत स्वतंत्रताओं से अधिक महत्व दिया जाता हैं। इसी प्रकार यदि कोई भारतीय विद्यार्थी ब्रिटेन, रूस, जापान या चीन की शासन पद्धितयों के बारे में तुलनात्मक अध्ययन करे तो उसे अपने देश की राजनीतिक व्यवस्था और पद्धित को समझने के लिए एक परिप्रेक्ष्य या सापेक्ष महत्व का ज्ञान प्राप्त होगा और तब वह ऐसी अभिवृत्तियों और आचरणों की पुनः परीक्षा कर सकेगा जिन्हें कि वह बहुत पहले ही एक रूप में स्वीकार कर चुका है और इस प्रकार वह अपने देश तथा विदेशों की राजनीतिक संस्थाओं की सूक्ष्म परीक्षा करने में सक्षम होगा। फलस्वरूप उसमें आलोचनात्मक मूल्यांकन की प्रवृत्ति विकसित होगी जो कि एक शिक्षित और समझदार व्यक्ति में होनी चाहिए।
तुलनात्मक राजनीति के अध्ययन की कुछ समस्याएं
तुलनात्मक राजनीति के अध्ययन में कुछ ऐसी गंभीर समस्यायें विद्यमान हैं जो इसके विकास को एक स्वतंत्र अनुशासन बनने की इसकी महत्वाकांक्षा को ठेस पहुँचाती हैं। एम. कर्टिस के अनुसार तुलनात्मक राजनीति का संबंध राजनीतिक संस्थाओं के कार्य कलापों और राजनीतिक व्यवहार में पायी जाने वाली महत्वपूर्ण निरन्तरताओं, समानताओं और विभिन्नताओं से हैं और जब तक समानताओं तथा विभिन्नताओं की तुलना के मूल प्रत्ययों की समुचित जानकारी की समस्या पर विशेष ध्यान नहीं दिया जायेगा तब तक तुलनात्मक राजनीति का अध्ययन समस्याग्रस्त रहेगा।
सरटोरी के अनुसार, भी एक व्यापक स्तर पर कुछ ऐसे प्रत्ययों का निर्माण करना ही होगा, जिनका आधार व्यापक जानकारी और तुलनात्मक हो। यदि ऐसा नही किया गया तो राजनीति में अपेक्षित तुलनात्मकता संभव नहीं बन सकेगी।
हैक्शर ने कहा हैं, तदनुसार अबधारणात्मक अथवा प्रत्ययात्मक संरचना की तुलना एक न्यूनतम अनिवार्यता हैं।
जी. के. राॅबर्ट्स ने चार प्रमुख धाराओं पर ध्यान आकर्षित किया हैं--
1. प्रत्ययों के निर्माण और उनकी परिभाषा की समस्या।
2. एब्सट्रेक्सन निकालने के स्तर और वर्गीकरण की समस्या।
3. तुलना और मापन की भाषा संबंधी समस्या।
4. अनुवाद तथा संस्कृति की पारिभाषिक शब्दावली की समस्या।
तुलनात्मक राजनीति का क्षेत्र
tulnatmak rajnit ka kshetra;तुलनात्मक राजनीति का विषय-क्षेत्र भी विवाद का विषय हैं। यह इंगित करने की जरूरत नहीं हैं कि राजनीतिशास्त्र के अध्ययन-क्षेत्र का तुलनात्मक राजनीति सबसे अधिक महत्वपूर्ण और विस्तृत अंग हैं। विद्वानों में इस संबंध में मत-वैभिन्य है कि राजनीति के किन-किन अंगों को इसके विषय-क्षेत्र से बाहर रखा जाये। हेरी एक्सटीन ने लिखा हैं कि," सबसे महत्वपूर्ण तथ्य तुलनात्मक राजनीति के बारे में यह है कि आज यह एक ऐसा विषय है जो अत्यधिक विवादास्पद है क्योंकि यह संक्रमण की स्थिति में हैं-- एक प्रकार की विश्लेषण शैली दूसरे प्रकार की विश्लेषण शैली की ओर आ रहा हैं।"
तुलनात्मक राजनीति का क्षेत्र राजनीति के तीन पक्षों की ओर संकेत करता हैं-- राजनीतिक क्रिया-कलाप, राजनीतिक प्रक्रिया तथा राजनीतिक सत्ता। राजनीतिक क्रिया-कलाप वे प्रयास कहलाते है जिनके द्वारा संघर्ष की स्थितियाँ उत्पन्न की जाती है तथा जनहित एवं सत्ता-संघर्ष में भाग लेने वाले व्यक्तियों के हितों को ध्यान में रखते हुये उनका समाधान किया जाता हैं। राजनीतिक प्रक्रिया के अंतर्गत निर्णय लेने की प्रक्रिया तथा उस प्रक्रिया में भाग लेने वाले समस्त सरकारी एवं गैर-सरकारी अभिकरणों की भूमिका आती हैं। यह राजनीतिक क्रिया-कलाप की विचारधारा का विस्तार हैं। राजनीतिक सत्ता भी तुलनात्मक राजनीति की विषय-वस्तु हैं। 'सत्ता' संपूर्ण राजनीति का केन्द्र बिन्दु हैं, समस्त राजनीतिक गतिविधियाँ तथा राजनीतिक अभिकरण सत्ता के चारों ओर घूम रहे हैं। तुलनात्मक राजनीति उन सभी पक्षों एवं पहलुओं का अध्ययन करती है जो सत्ता प्राप्ति के लिये प्रयासरत हैं। तुलनात्मक राजनीति सत्ता तथा सत्ता से संबंधित राजनीतिक प्रणालियों के बाह्रा ढाँचे का समग्र रूप से अध्ययन करती हैं।
तुलनात्मक राजनीति का क्षेत्र अत्यंत व्यापक है और दिन प्रतिदिन यह विस्तृत होता जा रहा हैं। आज केवल विकसित शासन-व्यवस्थाओं में ही नहीं अपितु अविकसित राष्ट्रों में भी इसका क्षेत्र विस्तृत हो गया हैं। अनेक वर्ष पहले एशिया तथा अफ्रीका के देशों में साम्राज्यवादी प्रभुत्व था। इसलिए राजनीतिकशास्त्री इन देशों की शासन-व्यवस्थाओं की उपेक्षा करते हैं। आज ये देश स्वतंत्र हो गये हैं। अतः तुलनात्मक राजनीति अपने अध्ययन-क्षेत्र में इन राज्यों की भी उपेक्षा नहीं कर सकती। निष्कर्षतः तुलनात्मक राजनीति में निम्न विषयों का अध्ययन किया जाता हैं--
(अ) राजनीतिक पद्धतियों के आधार एवं मान्यताओं का आकलन।
(ब) मानव-स्वभाव, व्यवहार तथा बाह्य परिस्थितियों का अध्ययन।
(स) पश्चिमी गुट, गुटनिरपेक्ष व साम्यवादी राष्ट्रों की राजनीतिक संस्थाओं का तुलनात्मक अध्ययन।
(द) राजनीतिक संरचनाओं के साथ-साथ अराजनीतिक संरचनाओं व उनके प्रभावों का मूल्यांकन।
कई राजनीतिशास्त्रियों ने संविधान, हित-समूह, राजनीतिक दल, कार्यपालिका, विधायिका तथा विधायी व्यवहार, निर्वाचन एवं मतव्यवहार, कानूनी पद्धतियाँ, लोकप्रशासन तथा राजनीतिक परिवर्तन एवं आधुनिकीकरण को तुलनात्मक राजनीति के अध्ययन-क्षेत्र के अंतर्गत सम्मिलित किया हैं। मेक्रिडिज एवं वार्ड ने कहा हैं कि तुलनात्मक राजनीति के अंतर्गत दो बातें मुख्य हैं-- एक, व्यवहार का विश्लेषण एवं अध्ययन, दूसरे, प्रशासनिक प्रक्रियाओं का अध्ययन और स्पष्टीकरण। ये दोनों एक-दूसरे से संबंधित हैं। व्यवहार से हमारा निष्कर्ष उन सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक, मनोवैज्ञानिक तथा ऐतिहासिक कारकों से है जिनके अंतर्गत सरकार कार्य करती हैं। प्रशासनिक कार्यों से हमारा निष्कर्ष उन वैशिष्ट राजनीतिक संस्थाओं व संरचनाओं से हैं जिनके द्वारा निर्णय लिये जाते हैं और उन्हें कार्यान्वित भी किया जाता हैं। इनमें विशेष रूप से कार्यपालिका, न्यायपालिका, विधायिका, राजनीतिक दल तथा असैनिक सेवायें आती हैं।
तुलनात्मक राजनीति के क्षेत्र के संबंध में दो मुख्य दृष्टिकोण हैं--
(अ) कानूनी या संस्थागत दृष्टिकोण,
(ब) व्यवहारवादी दृष्टिकोण।
संस्थागत या कानूनी दृष्टिकोण तुलनात्मक राजनीति में केवल संविधान द्वारा स्थापित सरकरी संरचनाओं तथा संविधान द्वारा नियत किये गये राजनीतिक व्यवहारों का ही अध्ययन करते हैं। इस दृष्टिकोण के अनुसार राष्ट्रीय सरकार के ढाँचे, उनके अधिकार तथा संविधान द्वारा नियत उनके कार्यकलाप का अध्ययन ही तुलनात्मक राजनीति के अध्ययन के विषय हो सकते हैं जबकि व्यवहारवादी दृष्टिकोण तुलनात्मक राजनीति का आधारभूत व मौलिक दृष्टिकोण हैं तथा तुलनात्मक राजनीति में राष्ट्रीय संस्थाओं व गैर-राज्यीय संस्थाओं एवं निकायों के राजनीतिक व्यवहार से संबंधित समस्त तथ्यों को एकत्रित कर कई राजनीतिक व्यवस्थाओं के संदर्भ में तुलनात्मक अध्ययन करते हैं। तुलनात्मक राजनीति का उद्देश्य राज्यों की सरकारों व संस्थाओं के कार्य तथा उनकी कार्य पद्धतियों का तुलनात्मक अध्ययन करना तथा राजनीतिक व्यवस्था की गत्यात्मकता को सिद्धांत रूप में समझना हैं।
हींज युलाउ ने कहा हैं," राजनीतिक व्यवहार केवल प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष पर्यवेक्षणीय राजनीतिक क्रियायें ही नहीं हैं, अपितु व्यवहार के वे बोधात्मक, अभिप्रेरणात्मक तथा अभिवृत्यात्मक घटक भी हैं जो मनुष्य के राजनीतिक अभिज्ञानों, माँगों और अपेक्षाओं तथा उसके राजनीति विश्वासों, मूल्यों एवं लक्ष्यों की व्यवस्थाओं का निर्माण करते हैं। इसके अंतर्गत संस्कृति एवं सामाजिक व्यवस्था के विभिन्न स्तर भी सम्मिलित हैं।"
तुलनात्मक राजनीति के विषय-क्षेत्र के संबंध में दूसरा मत-वैभिन्य मानकों तथा व्यवहार के संबंध का हैं। सामान्यतया मानकों की अभिव्यक्ति कानून, प्रक्रियाओं और नियमों में होती हैं। कभी-कभी राजनीतिक व्यवहार इन कानूनों के प्रतिकूल भी हो जाता हैं। इन्हीं स्थितियों के कारण तुलनात्मक अध्ययन में जटिलता आती हैं। तुलनात्मक राजनीति के अध्ययन में इस बात को भी देखना आवश्यक हो जाता है कि राजनीतिक व्यवहार मानकों के अनुकूल हैं अथवा नहीं? ब्लाॅण्डेल ने कहा है कि," आधारभूत दृष्टि से तुलनात्मक राजनीति का संबंध सरकार की संरचना से होना चाहिए। साथ ही, उसका संबंध व्यवहार के स्फुटित मानकों व आचरणों से होना चाहिए क्योंकि वे सरकार की जीवित संरचना के अभिन्न अंग हैं।"
तुलनात्मक राजनीति का अध्ययन कानून-निर्माण तथा कानून-प्रयोग तक ही सीमित नहीं हैं वरन् राजनीतिक दल दबाव समूह तथा राजनीतिक व्यवस्था के अंग एवं उनके क्रिया-कलाप भी इसके क्षेत्र के विषय हैं।
सिडनी वर्बा ने तुलनात्मक राजनीति के क्षेत्र के संबंध में लिखा हैं," तुलनात्मक राजनीति का प्रारंभ उनके साहसी सिद्धांतों के कारण हुआ हैं। इनमें कहा गया कि केवल वर्णन से आगे बढ़कर सैद्धान्तिक दृष्टि से अधिक संगत समस्याओं की ओर देखिये, एक मामले से बढ़कर अनेक मामलों की तुलना की ओर देखिए, सरकार की औपचारिक संस्थाओं के अध्ययन से आगे बढ़ती हुई राजनीतिक प्रक्रियाओं एवं राजनीतिक कार्यों की ओर देखिये तथा केवल पश्चिमी यूरोपीय देशों का अध्ययन न करके एशिया, अफ्रीका एवं लैटिन अमेरिका के नवोदित राष्ट्रों की ओर देखिए।"
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