2/01/2022

राजनीतिक संचार का महत्व

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राजनीतिक संचार का महत्व

आधुनिक प्रजातंत्र व राजनीतिक व्यवस्था में संचार या संप्रेषण की भूमिका अत्यन्त प्रभावशाली है। अनेक विद्वानों ने संप्रेषण को राजनीति या प्रशासन का जीवन-रक्त कहा है। इस प्रकार राजनीतिक व्यवस्था मे संचार की वही भूमिका है जो मानव शरीर में रक्त संचार की है। संप्रेषण या संचार से राजनीतिक प्रशासन को न केवल सूचना ही प्राप्त होती है बल्कि कार्य करने के लिये प्रेरणा और एकता की भावना का भी विकास होता है। राजनीतिक व्यवस्था में संचार की भूमिका का वर्णन निम्नांकित बिन्दुओं के अंतर्गत किया जा सकता हैं-- 

1. नीति निर्धारिण तथा नीतियों के क्रियान्वयन मे भूमिका 

किसी भी राजनीतिक व्यवस्था के उद्देश्य, उसके नीति निर्धारिण, नीतियों के क्रियान्वयन आदि में राजनीतिक संचार की भूमिका को सुगमता से देखा जा सकता है। ये नीतियाँ राष्ट्र एवं समाज के लिये कितनी महत्वपूर्ण है, उच्च प्रशासकों या प्रशासकीय समस्याओं पर इन नीतियों का क्या दृष्टिकोण है, इन नीतियों के बारे में अधीनस्थ अधिकारियों की क्या प्रतिक्रिया है एवं इन नीतियों के क्रियान्वयन में कौन-कौन-सी कठिनाइयां है, इन सबके बारे में समस्त राजनीतिक संरचना में ऊपर से नीचे की ओर तथा नीचे से ऊपर की ओर संप्रेषण प्रभाव सतत् रूप से चलता रहता हैं। 

2. नीतियों के क्रियान्वयन में संचार की भूमिका 

प्रशासन का संगठन उद्देश्य विधानमंडल की नीतियों का क्रियान्वयन होता है। यह क्रियान्वयन संगठन मुख्य कार्यकारिणी के नेतृत्व एवं नियंत्रण मे होता है। क्रियान्वयन के लिए जरूरी है कि समस्त सम्बद्ध अधिकारियों एवं कर्मचारियों मे यह भावना हो कि नीतियों का क्रियान्वयन समस्त समाज और राष्ट्र के हित मे अत्यंत महत्वपूर्ण है। संचार के द्वारा ही नीतियों के संबंध में समस्त प्रशासनिक संगठन को अवगत कराया जाता है। संचार के द्वारा ही नीतियों के प्रति निष्ठा पैदा की जाती है। संचार के द्वारा ही क्रियान्वयन के लिए अपेक्षित भावना या प्रेरणा उत्पन्न की जाती है। संचार के द्वारा ही क्रियान्वयन के मार्ग मे आने वाली कठिनाइयों की जानकारी समस्त कर्मचारियों एवं अधिकारियों को दी जाती है। यदि मुख्य कार्यकारी के दृष्टिकोण मे कोई परिवर्तन आया है और वह परिवर्तन प्रशासन संगठन मे सुधार लाने से सम्बद्ध है तो इस परिवर्तन की जानकारी भी प्रशासनिक अधिकारियों या कर्माचारियों को संचार द्वारा ही प्राप्त होती हैं। यदि उच्चाधिकारियों के निर्णयों को ठीक-ठीक सभी प्रशासनिक स्तरों पर न पहुंचाया जाए तो वे निर्णय मात्र कागजी बन कर रह जाते हैं। 

3. प्रशासनिक संगठन में आदान-प्रदान तथा सहिष्णुता की भावना का विकास 

प्रशासनिक संगठनों में लगे हुए विभिन्न लोगों के मस्तिष्कों को एक लक्ष्य की प्राप्ति के लिये एक-दूसरे के निकट लाना भी संचार का उद्देश्य है। क्योंकि संचार केवल सूचना प्रसार ही नहीं अपितु यह वह प्रक्रिया है जिससे संगठन के सदस्यों में पारस्परिक सहिष्णुता एवं आदान-प्रदान की भावनाएं और भूमिकाएं विकसित की जाती हैं। 

4. अधीनस्थों द्वारा तथ्यों एवं आंकड़ों को उच्चाधिकारियों तक पहुंचाया जाना 

प्रशासन संगठन में उच्चाधिकारियों के निर्णयों को अधीनस्थ कर्मचारियों तक निर्देशों द्वारा पहुंचाया जाना तो जरूरी है, यह भी जरूरी है कि अधीनस्थ कर्मचारी एवं अधिकारी तथ्य, आंकड़े एवं सूचनाएं-उच्चाधिकारियों तक पहुंचाते हों। उच्चाधिकारी श्रेष्ठ निर्णय तभी ले सकते है जब उन्हें प्रत्येक परिस्थिति तथा सूचना एवं तथ्य का ज्ञान हो, इस ज्ञान के अभाव में उनके निर्णय निरर्थक या अर्थहीन साबित होंगे। संचारण इस तरह ऊपर से नीचे और नीचे से ऊपर दोनों दिशाओं में होता है। निर्देश तथा आदेश नीचे से ऊपर आते हैं और तथ्य और आंकड़े नीचे से ऊपर जाते हैं। तथ्य और आंकड़े वास्तविकता को उच्चाधिकारियों के सामने खोल कर रख देते हैं। ये वे कच्चे माल होते है जिन्हें निर्णय निर्माण संयंत्र द्वारा नीतियों के पक्के माल में परिणित कर दिया जाता हैं। 

5. औपचारिक के साथ ही अनौपचारिक संप्रेषण भी 

प्रत्येक राजनीतिक व्यवस्था मे संप्रेषण औपचारिक और अनौपचारिक दोनों प्रकार का होता है। इसी प्रकार प्रत्येक संगठन में ऊपर से नीचे निर्देश भेजने की एक औपचारिक व्यवस्था होती है एवं इस व्यवस्था मे उच्चाधिकारियों तथा अधीनस्थ कर्मचारियों के पास्परिक संबंधों को निर्धारित करते समय उनमे संचार के संप्रेषण की रूपरेखा निर्धारित कर दी जाती है। इस प्रकार औपचारिक संप्रेषण व्यवस्था में लिखित रूप से आदेशों एवं सूचनाओं का आदान-प्रदान होता है। संगठन में औपचारिक संप्रेषण ही पर्याप्त नहीं होता है अतः यह एक सर्वमान्य तथ्य है कि समस्याओं को मानवीय धरातल पर समझने एवं समझाने के लिये औपचारिक संप्रेषण विधि उतनी सफल नहीं रहती जितनी अनौपचारिक संप्रेषण विधि। अनौपचारिक संप्रेषण विधि अलिखित होती है एवं मूलतः औपचारिक व्यवस्था की पूरक होती है। उदाहरण के लिये जब एक प्रमुख प्रशासक अपने अधीनस्थ कर्मचारी के साथ घर जाकर यदि चाय पीता हैं एवं यदि कोई अधिकारी प्रातः भ्रमण के समय किसी अधीनस्थ के घर चला जाता है तब वहां अनौपचारिक संप्रेषण काम करते हैं। इस प्रकार कर्मचारियों के अनौपचारिक व्यक्तिगत संबंध अनौपचारिक संप्रेषण के साधन बन जाते हैं।

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