प्रश्न; राजनीतिक विकास क्या हैं? राजनीतिक विकास के साधनों एवं समस्याओं की समीक्षा कीजिए।
अथवा" राजनीतिक विकास की अवधारणा पर एक निबंध लिखिये।
उत्तर--
राजनीतिक विकास का अर्थ (rajnitik vikas kya hai)
Meaning and Definition of Political Development in hindi;राजनीतिक विकास की अवधारणा एक जटिल अवधारणा है। इसका कोई सर्वमान्य व सामान्य अर्थ निकालना असम्भव है। राजनीतिक विकास को साधारण तौर पर विकास की अवधारणा से सम्बन्धित करके यह निष्कर्ष निकाला जाता है कि राजनीति के क्षेत्र में आगे बढ़ना ही राजनीतिक विकास है इस अर्थ में यह प्रगति का सूचक है इसे राजनीतिक परिवर्तन भी कहा जाता है।
राजनीतिक विकास की व्याख्या अनेक विद्वानों ने अलग-अलग ढंग से दी है रुपर्ट व एमर्सन इसे आर्थिक विकास की पूर्व शर्त के रूप में लेते हैं। कुछ विचारक इसे औद्योगिक समाजों की राजनीति से जोड़ते हैं। अधिकतर राजनीतिक विद्वान इसका सम्बन्ध आधुनिकीकरण से बताते हैं। कुछ इसका अर्थ राष्ट्र राज्य तो कुछ प्रशासनिक एवं कानूनी विकास से जोड़ते हैं। प्रजातन्त्रवादी विचारक इसे लोकतन्त्र का पर्याय तथा यथास्थितिवादी विचारक इसे स्थायित्व तथा सुव्यवस्थित परिवर्तनों का नाम देते हैं। कुछ विद्वान इसे एक प्रवृत्ति और एक दिशा के रूप में देखते हैं तो कुछ इसे शक्ति व संघटन के रूप में। वास्तव में विकास को सामाजिक परिवर्तन से जोड़कर ही राजनीतिक विकास को समझने पर अधिकांश विद्वान जोर देने लगे हैं। यह राजनीतिक विकास का एक व्यापक दृष्टिकोण समझा जाता है। इस दष्टिकोण से राजनीतिक विकास राजनीति विज्ञान की एक गत्यात्मक अवधारणा है। इस अवधारणा का सबसे पहले व्यवस्थित व वैज्ञानिक विश्लेषण लूशियन पाई ने अपनी पुस्तक 'Aspects of Political Development' में किया है। उसने राजनीतिक विकास को परिभाषित करते हुए लिखा है," राजनीतिक विकास, संस्कृति का विसरण (Diffusion) और जीवन के पुराने प्रतिमानों को नई मांगों के अनुकूल बनाने, उन्हें उनके साथ मिलाने या उनके साथ तालमेल बैठाना है। लूशियन पाई ने अपनी इस अवधारणा को समानता, क्षमता तथा विभेदीकरण की तीन मूलभूत संकल्पनाओं पर संकेन्द्रित किया है।
राजनीतिक विकास की परिभाषा (rajnitik vikas ki paribhasha)
अन्य विद्वानों द्वारा राजनीतिक विकास के बारे में निम्नलिखित परिभाषाएं दी गई है--
ऑमण्ड व पॉवेल के अनुसार," राजनीतिक विकास राजनीतिक संरचनाओं का अभिवद्ध विभेदीकरण व विशेषीकरण तथा राजनीतिक संस्कृति का बढ़ा हुआ लौकिकीकरण है।"
एलफ्रड डायमेण्ट के अनुसार," राजनीतिक विकास एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके द्वारा एक राजनीतिक व्यवस्था के नए प्रकार के लक्ष्यों को निरन्तर सफल रूप में प्राप्त करने की क्षमता बनी रहती है।"
मैकेजी के अनुसार," राजनीतिक विकास समाज में उच्चस्तरीय अनुकूलन के प्रति अनुकूल होने की क्षमता है।"
एस. एन. इजेनसटेड के अनुसार," राजनीतिक विकास के अन्तर्गत एक राजनीतिक व्यवस्था की विभिन्न परिवर्तनशील राजनीतिक मांगों और संगठनों को आत्मसात् करने की योग्यता शामिल है। इसके अन्तर्गत उन नवीन और परिवर्तनशील समस्याओं को हल करने का वह कौशल भी शामिल है जिन्हें राजनीतिक व्यवस्था जन्म देती है या जिन्हें इसे बाह्य स्रोतों से आत्मसात् करना पड़ता है।"
जॉन टी. डोर्सी के अनुसार," राजनीतिक विकास उन शक्ति संरचनाओं और प्रक्रियाओं में परिवर्तन की तरफ संकेत करता है जो सामाजिक व्यवस्था के शक्ति रूपान्तरण स्तरों में परिवर्तन के सहभागी होते हैं, चाहे ये स्थानान्तरण स्तर मुख्य रूप से अपने ही राजनीतिक, सामाजिक अथवा आर्थिक अभिव्यक्ति में या इनके विविध युग्मों में परिवर्तित होते हैं।"
जाग्बाराइब के अनुसार," राजनीतिक विकास एक प्रक्रिया के रूप में राजनीतिक आधुनिकीकरण तथा राजनीतिक संस्थाकरण का जोड़ है।"
लियोनार्ड बाइण्डर के अनुसार," राजनीतिक विकास राजनीति की शैली एवं प्रकार में परिवर्तन है।"
विलियम एवं चैम्बर्स के अनुसार," राजनीतिक विकास को एक ऐसी राजनीतिक व्यवस्था की ओर बढ़ना माना जा सकता है जिसमें कि उन समस्याओं के संचालन की क्षमता हो जिनका उसे सामना करना पड़ता है । यह विकास संरचनाओं के विभेदन एवं कार्यों को विशिष्टता उत्पन्न कर व्यवस्था को उत्तरोत्तर केन्द्रीकृत तथा स्वयं को बनाए रखने की क्षमता प्रदान करता है।"
राजनीतिक विकास की व्याख्या
Explanation of Political Development in hindi;राजनीतिक विकास के अर्थ की तरह राजनीतिक विद्वानों ने इसकी विभिन्न व्याख्याएं की है। रुपर्ट एसमैन, लिपसेट, कोलमैन तथा कर्टराइट ने इसे आर्थिक विकास की राजनीतिक पूर्व शर्त के रूप में मान्यता दी है। रोस्टोव ने इसे औद्योगिक समाजों की राजनीति के समान माना है डेविड ऐप्टर ने इसे राजनीतिक आधुनिकीकरण का नाम दिया है। बाइण्डर ने इसे राष्ट्र राज्य सम्बन्धित माना है एफ. डब्ल्यू रिग्स ने इसे प्रशासनिक और कानूनी विकास के रूप में व्यक्त किया है। डॉयच और कार्ल्स ने इसे जनसंचार और सहभागिता का नाम दिया है। ऑमण्ड-पॉवेल ने इसे प्रजातन्त्र का नाम दिया है। यथास्थितिवादी विचारकों ने स्थायित्व व सुव्यवस्थित परिवर्तनों को राजनीतिक विकास का पर्याय माना है राबर्ट डॉहल ने इसे सामाजिक परिवर्तन का रूप माना है। पाई ने राजनीतिक विकास में तीन अवधारणाओं समानता , क्षमता तथा विशेषीकरण को शामिल माना है ऑमण्ड तथा पावेल ने विभिन्नीकरण तथा विशेषीकरण के साथ-साथ राजनीतिक संस्कृति में बढ़ते लौकिकीकरण को भी राजनीतिक विकास का नाम दिया है।
आइजन्सटैंड ने इसे परिवर्तनों को लगातार आत्मसात् करने की क्षमता का संस्थात्मक प्रबन्ध माना है। हैरान के अनुसार राजनीतिक विकास नई संरचनाओं एवं प्रतिमानों की ऐसी रचना है जो राजव्यवस्था को अपनी आधारभूत समस्याओं का सामना करने के योग्य बनाती है । राजनी कोठारी होल्ट, टर्नर आदि विचारकों ने राजनीतिक विकास को अनेक कारकों व कारणों का परिणाम ही नहीं मानते बल्कि इसे स्वयं अन्य परिवर्तनों का कारण भी मानते हैं । इस तरह अनेक विचारकों ने राजनीतिक विकास की अपने अपने तरीकों से व्याख्या की हैं, जिनमें से पाई. ऑमण्ड-पावेल तथा इंटिगटन की व्याख्याएं अधिक तर्कसंगत हैं।
राजनीतिक विकास की धारणा के आधार
राजनीतिक विकास की धारा के आधार इस प्रकार हैं--
1. भौगोलिक
इसके अंतर्गत किसी राष्ट्र की भौगोलिक सीमाओं में होने वाले राजनीतिक परिवर्तनों तथा उनके प्रभावों को भौगोलिक विकास कहा जाता हैं। विकासशील देशों की राजनीति इसी के अंतर्गत आती हैं।
2. व्युत्पत्ति
राजनीतिक पक्षों एवं परिणामों के अध्ययनों को राजनीतिक विकास व्युत्पत्ति के आधार पर कहा जाता हैं। आधुनिकीकरण के प्रभाव का इसी के अंतर्गत अध्ययन किया जाता है।
3. प्रकार्यात्मक
समाज में संस्था, मूल्य, नेतृत्व आदि की आवश्यकता कतिपय कार्यों के लिए होती हैं। ऐसी आवश्यकता राष्ट्र विकास बन जाती हैं।
इस दृष्टि से राजनीतिक विकास की परिभाषा हटिंगटन ने इस प्रकार दी हैं," राजनीतिक विकास को विभिन्न ढंग के परिवर्तन के प्रतिरूप में परिभाषित किया गया है जो एक विशिष्टानुसार के समाज में विशिष्ट कारणों से विशिष्ट लक्ष्यों की ओर निर्दिष्ट है अथवा जो विशिष्ट प्रकार की सामाजिक और आर्थिक अवस्थाओं में प्रकार्य के लिए आवश्यक हैं।"
राजनीतिक विकास के लक्षण-समूह अथवा विशेषताएं
rajnitik vikas ki visheshta;राजनीतिक विकास की कुछ अन्य व्याख्याएं भी हैं-- जैसे भूतपूर्व उपनिवेशों की यह मान्यता कि विकास का अर्थ अन्तरराष्ट्रीय मामलों में राष्ट्रीय आत्मसम्मान और गौरव हैं, अथवा उन्नत और प्रगतिशील समाजों में यह सामान्य विचार कि राजनीतिक विकास से आशय राष्ट्रवादोत्तर युग (Post-nationalism era) से हैं जबकि राष्ट्र-राज्य राजनीतिक जीवन की आधारभूत इकाई नहीं रहेंगे।
उपर्युक्त व्यवस्थाओं के संबंध में हमें एकमत्तता नहीं दिखायी देती। इस व्याख्या को स्पष्ट रूप से विख्यात विद्वान लुसीयन डब्ल्यू पाई ने स्पष्ट किया है। लुपीयन पाई के मतानुसार विकास के लक्षण समूह या विशेषताएं निम्नलिखित हैं--
1. सामान्यता के प्रति सामान्य दृष्टिकोण
राजनीतिक विकास का अर्थ लोग प्रायः यह लगाते है कि राज्य की बहुमतशाली संख्या राज्य की नीति एवं कार्यों के निर्माण में सक्रिय रूप से भाग ले। ये योगदान चाहे लोकतंत्रीय व्यवस्था मे हो या सर्वाधिकारवादी व्यवस्था में हो, परन्तु मुख्य बात यह है कि प्रजा को सक्रिय नागरिक होना चाहिए। समानता का अर्थ, कानून के समक्ष सब नागरिक समान हों। कानून सभी पर लागू किये जायें और अपने व्यवहार में यथासाध्य निर्वेयक्तिक (Impersonal) हों। अंत में समानता का यह भी अर्थ है कि सार्वजनिक पदों पर की जाने वाली भर्ती कार्यसम्पन्नता व योग्यता के आधार पर हो।
2. राजनीतिक व्यवस्था की क्षमता
राजनीतिक व्यवस्था की क्षमता का अर्थ राजनीतिक व्यवस्था के परिणामों से सम्बद्ध हैं। राजनीतिक व्यवस्था द्वारा समाज और अर्थव्यवस्था को जितना प्रभावित किया जा सकता है, वह उसकी क्षमता है। क्षमता सरकारी कार्य-सम्पन्नता और उस पर प्रभाव डालने वाली परिस्थितियों से संबंध रखती हैं। विकसित व्यवस्थाएँ सामाजिक जीवन के व्यापक क्षेत्र को छूती और प्रभावित करती हैं। कम विकसित व्यवस्थाएँ इतनी प्रभावशील नहीं होती है। क्षमता का अर्थ सार्वजनिक नीतियों के क्रियान्वयन में प्रभावशीलता और कार्य-कुशलता से भी है। विकसित व्यवस्याएँ दूसरों की तुलना में न केवल अधिक कार्य करती हैं, बल्कि उन कार्यों को शीघ्रता से और अधिक पूर्ण रूप से संपन्न करती है। क्षमता प्रशासन में बौद्धिकता से भी संबंध रखती है और नीति के प्रति इसका एक धर्म निरपेक्ष दृष्टिकोण होता हैं।
3. विभिन्नीकरण और विशेषीकरण
राजनीतिक विकास का एक लक्षण या विशेषता यह भी है कि संस्थाओं और संरचनाओं में विभिन्नीकरण एवं विशेषीकरण भी पाया जाये। कार्यालयों और अभिकरणों के अपने स्पष्ट और सीमित कार्य होते हैं तथा सरकारी क्षेत्र में श्रम-विभाजन पाया जाता हैं। विभिन्नीकरण के साथ ही एक व्यवस्था में विभिन्न राजनीतिक भूमिकाओं का कार्यात्मक विशेषीकरण भी अभिवृद्धि पर है। अतः विभिन्नीकरण मे जटिल संरचनाओं और प्रक्रियाओं का एकीकरण भी निहित है अर्थात् विभिन्नीकरण का आशय राजनीतिक व्यवस्था के विभिन्न भागों की पृथकता अथवा उनका टुकड़ों-टुकड़ों में विभाजन नही हैं बल्कि इनका आशय अन्ततोगत्वा एकीकरण पर आधारित विशेषीकरण से हैं।
लुसीयन पाई का अभिमत है कि," समानता, क्षमता और विभिन्नता की इन तीन विशेषताओं को विकास प्रक्रिया के ह्रदय रूप में मान्यता देने का अर्थ यह नही है कि वे विशेषताएं आवश्यक रूप से एक-दूसरे में फिट हो जाती है। इसके विपरीत ऐतिहासिक रूप से प्रवृत्ति सामान्यतः यही रही है कि समानता की माँगों और अधिकाधिक विभिन्नीकरण की प्रक्रियाओं के बीच काफी खींचा-तानी रही हैं। अधिक समानता की माँग व्यवस्था की क्षमता को चुनौती दे सकती है और विभिन्नीकरण द्वारा समानता की मात्रा कम हो सकती हैं, क्योंकि इसमें गुण और विशिष्ट ज्ञान के महत्व पर बल दिया जाता है। कुल मिलाकर निष्कर्ष यह निकलता है कि राजनीतिक विकास की समस्यायें राजनीति संस्कृति, सत्ताधारी रूप रचनाओं और सामान्य राजनीतिक प्रक्रिया के संबंधों के चारों ओर चक्कर लगाती हैं।
जाग्वाराईव द्वारा बताए गई राजनीतिक विकास की विशेषताएं
राजनीतिक विकास का वैज्ञानिक अध्ययन करने में पाई (Pye) और रिन्ज (Ringe) का महत्त्वपूर्ण स्थान है। यह सत्य है कि जाग्वाराई व राजनीतिक विकास के अध्ययन करने वाले अग्रणी लेखक नहीं है परन्तु फिर भी उसने राजनीतिक विकास के अध्ययन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। जाग्वाराईव ने अपनी पुस्तक "Political Development : A General Theory and A Latin American Case Study" में राजनीतिक विकास का विश्लेषण विस्तार पूर्वक किया है। उनके अनुसार राजनीतिक विकास का अध्ययन चार प्रकार से किया जा सकता है--
1 . राजनीतिक विकास परिचर्य के रूप में (The Variables of Political Development).
2. राजनीतिक विकास एक राजनीतिक दिशा के रूप में (Political Development as a Political Direction).
3. राजनीतिक विकास एक प्रक्रिया के रूप में (Political Development as a Process). 4. राजनीतिक विकास विभिन्न पहलुओं के रूप में (Political Development as Diffrent as Aspects)
राजनीतिक विकास संबंधी समस्याएं
ऑमण्ड और पावेल ने राजनीतिक विकास से संबंध रखने वाली चार समस्याओं का उल्लेख किया हैं--
1. राज्य निर्माण संबंध समस्यायें (Problems concerned with state buiding)
राजव्यवस्था का अपने क्षेत्र के बाहर और अंदर तक प्रवेशन (Penetration) करना पड़ता है और उनका एकीकरण (Integration) करना पड़ता हैं।
2. निष्ठा व प्रतिबद्धता विषयक समस्या (Problems concerned with loyalty and commitment)
राजव्यवस्था को स्वयं को राष्ट्र बनाने के हेतु 'राष्ट्र निर्माण' से सम्बद्ध समस्याओं का सामना करना पड़ता हैं।
3. सहभाग की समस्या (Problems concerned with participation)
समाज के विभिन्न समूह तथा वर्ग आदि व्यवस्था की विनिश्चयन की प्रक्रिया में भाग लेने की माँग करते हैं। राजव्यवस्था को इस समस्या का समाधान करना पड़ता हैं।
4. वितरण समस्या (Problems of distribution)
इस समस्या का संबंध लोक-कल्याण की माँग से होता है। लोक-कल्याण की माँग कि," राजव्यवस्था आय, धन व अवसर आदि का पुनर्वितरण (Redistribution) करे, घरेलू समाज के दबाव से आती हैं।
अन्य समस्यायें (Other Problems)
कुछ विचारकों ने इन समस्याओं में निम्नलिखित समस्याएं भी जोड़ दी हैं--
1. राजनीतिक व्यवस्था की क्षमता में वृद्धि की समस्या।
2. समानता लाने की समस्या।
3. वैधता प्राप्त करने की समस्या।
4. आधुनिकीकरण की समस्या।
विकासशील देशों में समस्यायें
विकासशील देशों में राजनीतिक विकास की प्रमुख समस्यायें निम्नलिखित हैं--
1. राजनीतिक विकास के माॅडल के चयन की समस्या।
2. राजनीतिक स्थायित्व की समस्या।
3. संरचनात्मक व्यवस्थाओं की सुस्थिर स्थापना की समस्या।
4. राजनीतिक विकास के अभिकरण।
5. हिंसात्मक राजनीति की समस्या।
राजनीतिक विकास के पाँच कारक
ऑमण्ड तथा पाॅवेल के अनुसार राजनीतिक विकास का विश्लेषण करते समय निम्नलिखित 5 कारकों को ध्यान में रखना चाहिए--
1. राजनीतिक व्यवस्था के सामने आने वाली समस्याओं की प्रकृति
ऑमण्ड तथा पावेल के मतानुसार राजनीतिक व्यवस्था की स्थिरता इस बात पर निर्भर करती है कि वह समस्याओं का सामना कैसे करती हैं? राजनीतिक विकास की प्रक्रिया को चार समस्याएं-- राज्य निर्माण, राष्ट्र निर्माण, राजनीतिक भागीदारी तथा वितरण अत्यधिक प्रभावित करती हैं। वर्तमान समय में तीसरी दुनिया के विकासशील अथवा नवीन राष्ट्र इन चारों समस्याओं का सामना कर रहे हैं। जनता राजनीतिक सहभागिता, राष्ट्रीय एकता, आर्थिक वृद्धि, कानून एवं व्यवस्था की एकदम और साथ-साथ मांग करती हैं। संक्षेप में राजनीतिक विकस की प्रक्रिया का अध्ययन करने हेतु राजनीतिक व्यवस्था के सम्मुख आने वाली चुनौतियों का अध्ययन करना नितान्त अनिवार्य हैं।
2. व्यवस्था के संसाधन
ऑमण्ड तथा पाॅवेल के अनुसार दूसरा कारक वे संसाधन हैं जिनका प्रयोग राजनीतिक व्यवस्था विभिन्न परिस्थितियों में करती हैं। ऑमण्ड तथा पाॅवेल के अनुसार," समर्थन तथा मांग घटती-बढ़ती रहती है और खतरनाक स्तरों पर गिर सकती हैं।"
सन् 1958 में फ्रांस में चौथे गणतंत्र का विघटन इसका कतिपय उदाहरण हैं यद्यपि इसके विघटन का तात्कालिक कारण अल्जीरियन्स, सेना, विभिन्न आंतरिक समूहों की मांगों का सम्मुच्य था और इतनी शीघ्रता और आसानी से इसका पतन हुआ कि बहुत ही कम लोगों ने इसको बचाने की चिन्ता की। करों की चोरी तथा सविनय अवज्ञा आंदोलन के कारण फ्रांस के चौथे गणतंत्र को प्राप्त होने वाला समर्थन निम्न स्तर पर था। अतः इसके परिवर्तन पर पर्यवेक्षणकों को कोई आश्चर्य नहीं हुआ। संक्षेप में राजनीतिक विकास की प्रक्रिया को वे संसाधन प्रभावित करते हैं जिनका प्रयोग राजनीतिक व्यवस्था विभिन्न परिस्थितियों में प्रयोग में ला सकती हैं।
3. अन्य सामाजिक व्यवस्थाओं में विकास
ऑमण्ड तथा पाॅवेल के मतानुसार राजनीतिक विकास को प्रभावित करने वाला तीसरा कारक अन्य सामाजिक व्यवस्थाओं में होने वाला विकास भी हैं। राजनीतिक व्यवस्था पर कार्य भार की सीमा अन्य घरेलू सामाजिक व्यवस्थाओं तथा अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था की क्षमताओं पर निर्भर करती हैं। उदाहरणार्थ जब एक अर्थव्यवस्था नवीन क्षमताओं उत्पादन तथा वितरण की नवीन प्रणालियों को विकसित करती हैं तो राजनीतिक व्यवस्था पर सार्वजनिक कल्याणा के लिए मांगे उल्लेखनीय रूप में कम हो सकती हैं और राजनीतिक विकास को प्रभावित करती है अथवा धार्मिक व्यवस्था नियमन क्षमताओं के विकसित करके राजनीतिक व्यवस्था पर पड़ने वाली मांगों के प्रवाह को कम कर सकती हैं।
इसी प्रकार अन्तर्राष्ट्रीय व्यवस्था भी नियमनकारी अथवा वितरण क्षमता को विकसित करके आंतरिक राजनीतिक व्यवस्थाओं पर पड़ने वाले दबावों को कम कर सकती हैं। अतः राजनीतिक विकास की प्रक्रिया को अन्य सामाजिक व्यवस्थाओं का अस्तित्व अथवा उनकी क्षमताओं का विकास बहुत अधिक मात्रा में प्रभावित करता हैं, प्रवाह को क्रमिक तथा उसकी क्षमता को निम्न स्तर पर रखता हैं और समुच्चयी प्रभावों के विघटनकारी प्रभावों को दूर रखता हैं। दूसरी ओर परिवार, धर्म अथवा आर्थिक व्यवस्थाओं के टूटने से असंतोष का फैलना, व्यवस्था और नवीन मांगे राजनीतिक व्यवस्था को भारित तथा अतिभारित कर सकती हैं।
4. राजनीतिक व्यवस्था का अपना कार्यात्मक ढांचा
राजनीतिक व्यवस्था का अपना कार्यात्मक ढांचा भी राजनीतिक विकास की प्रक्रिया को प्रभावित करता है। कुछ राजनीतिक व्यवस्थाएं अन्य राजनीतिक व्यवस्थाओं की अपेक्षाकृत मांग एवं समर्थन के उतार-चढ़ाव से अच्छी प्रकार निपट सकती हैं।
ऑमण्ड तथा पाॅवेल के अनुसार," विकासित तथा पृथक्कृत नौकरशाही वाली व्यवस्था कम पृथक्करण व्यवस्था की अपेक्षा नए संचालनों तथा सेवाओं की मांगों को कहीं अधिक सरलता से संभाल सकती हैं।"
यदि सुसंगठित सेना अथवा पुलिस व्यवस्था विद्यमान हो तो कानून एवं व्यवस्था अधिक तत्परता से स्थापित किये जा सकते हैं। कुछ व्यवस्थाएं परिवर्तन एवं रूपांतरण के लिए तैयार रहती हैं, जबकि अन्य व्यवस्थाएं नहीं। ऑमण्ड तथा पाॅवेल के मतानुसार निवेशों के प्रति उच्च स्तर पर उत्तरदायी व्यवस्था नए समूहों की माँगों तथा पुराने समूहों के समर्थन की हानि का मुकाबला कर सकती हैं।
संक्षेप में ऑमण्ड तथा पाॅवेल के मतानुसार," कुछ व्यवस्थाएं परिवर्तन के लिए तैयार होती हैं, अन्य नहीं होतीं।"
5. राजनीतिक विशिष्ट वर्गों की अनुक्रियायें
राजनीतिक व्यवस्था के समक्ष आने वाली चुनौतियों के प्रति राजनीतिक विशिष्ट वर्गों की अनुक्रियाएं भी राजनीतिक विकास को प्रभावित करती हैं। ऑमण्ड और पावेल के अनुसार राजनीतिक व्यवस्था के समक्ष आने वाली चुनौतियों के प्रति राजनीतिक विशिष्ट वर्गों की अनुक्रियाओं से नई मांगों को राजनीतिक व्यवस्था में कोई बड़ा परिवर्तन किये बिना स्थान मिल सकता हैं अथवा लघु परिवर्तन करके नई माँगों का समाधान हो सकता हैं, जबकि कुछ अनुक्रियाएं विकास की अपेक्षाकृत संकट अथवा विपत्ति का विकास भी कर सकती हैं। विशिष्ट वर्ग निवेश उतार-चढ़ावों की गंभीरता एवं घनता का अनुचित अनुमान भी लगा सकते है अथवा व्यवस्था में मौलिक सुधार भी ला सकते हैं अथवा समयानुसार अनुक्रिया करने में असफल भी हो सकते हैं। अतः विशिष्ट वर्गों की अनुक्रियाएं भी राजनीतिक विकास की प्रक्रिया को प्रभावित करती हैं।
जो सवाल पूछते है उनका उतर क्यू नही देते
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