1/30/2022

राजनीतिक समाजीकरण क्या है? विशेषताएं, अभिकरण

By:   Last Updated: in: ,

प्रश्न; राजनैतिक समाजीकरण पर एक निबंध लिखिए। 

अथवा" राजनीतिक समाजीकरण का अर्थ एवं संरचनाएँ समझाइये। 

अथवा" राजनीतिक समाजीकरण के स्वरूप का वर्णन कीजिए। राजनीतिक समाजीकरण के प्रमुख अभिकर्ता कौन-से हैं? समझाइये। 

अथवा" राजनीतिक समाजीकरण से आप क्या समझते है। संक्षेप में उन प्राथमिक एवं गौण संरचनाओं का वर्णन कीजिए, जो राजनीतिक समाजीकरण के साधनों के रूप में कार्य करती हैं? 

अथवा" राजनीतिक समाजीकरण क्या हैं? राजनीतिक समाजीकरण की प्रमुख संरचनाएँ कौन सी हैं? इनकी भूमिकाएँ समझाइये। 

अथवा" राजनीतिक समाजीकरण की अवधारणा की व्याख्या कीजिए। 

अथवा" राजनीतिक समाजीकरण से क्या तात्पर्य है? इसकी प्रक्रिया का वर्णन तथा इसके मुख्य अभिकरण बताइए।

उत्तर--

raajnitik samajikaran ki avdharna arth paribhasha visheshta abhikaran;यद्यपि कभी-कभी यह देखने को मिलता है कि राजनीतिक व्यवस्था की संरचनाएँ अनेक देशों में एकसी हैं, किन्तु उनकी कार्य-प्रणालियाँ सदैव भिन्न होती हैं। यह इसलिए होता है कि विभिन्न राजनीतिक भूमिकाओं तथा भूमिका संरचनाओं के संबंध में व्यक्तियों की अभिवृत्तियाँ तथा मनोदिशाएँ भिन्न हुआ करती हैं। प्रत्येक व्यक्ति के राजनीति के संबंध में कुछ विश्वास एवं मूल्य होते है। प्रश्न है कि वह उन्हें कैसे सीखता है। उसी प्रकार वह राजनीतिक भूमिकाएँ कैसे सीखता है-- जैसे एक मतदाता के रूप में, किसी हित-समूह के सदस्य अथवा किसी विधायक के चुनाव प्रचारक के रूप में? वह किस प्रक्रिया के द्वारा राजनीतिक व्यवहार के तरीकों को सीखता हैं? यह सत्य है कि जीवन के अन्य क्षेत्रों की भाँति राजनीति मे भी परिवर्तन होते रहते हैं, किन्तु साथ ही साथ यह भी सत्य है कि राजनीति के अनेक क्षेत्रों में निरन्तरता अटूट रूप से विद्यमान रहती है। नागरिकों की अभिवृत्तियों को निरन्तर नया बल और समर्थन मिलता रहता है; उनका नये रूप में पुष्टीकरण होता रहता हैं, और सदस्यों को इस बात की शिक्षा दी जाती है कि राजनीतिक मामलों में वे किस प्रकार व्यवहार करें, और राजनीति के विषय में किस ढंग से बातचीत करें। इस प्रकार के प्रश्नों के उत्तर राजनीतिक समाजीकरण का विषय हैं। 

जिस प्रक्रिया के द्वारा किसी राजनीतिक व्यवस्था में व्यक्तियों की राजनीतिक अभिवृत्तियों तथा मनोदिशाओं का निर्माण होता हैं उसे "राजनीतिक समाजीकरण" कहते हैं।

इस विषय मे विद्वानों की रूचि सातवें दशक से प्रारंभ हुई, यद्यपि प्लेटो तथा अरस्तु की रचनाओं के अवलोकन से स्पष्ट है कि उन दार्शनिकों की इस विषय में रूचि थी। राजनीतिक समाजीकरण में रूचि का उदय इसलिए हुआ कि नव-स्वतंत्र देशों ने अनुभव किया कि अपने नागरिकों में, राजनीतिक समाज (अर्थात् राष्ट्र), शासन (अर्थात् राजनीतिक संस्थाएँ तथा राजनीतिक खेल के नियम), तथा राजनीतिक भूमिकाएँ निबाहने वाले व्यक्तियों के लिए लगाव तथा समर्थन की भावनाएँ उत्पन्न करने की आवश्यकता हैं।

राजनीतिक समाजीकरण क्या हैं? (raajnitik samajikaran ka arth)

राजनीतिक व्यवहार पर जिन विभिन्न सामाजिक क्रियाओं-अतिक्रियाओं का प्रभाव पड़ता है, उनसे राजनीतिक समाजीकरण का जन्म होता हैं। राजनीतिक समाजीकरण एक ऐसा विचार है जो राजनीतिक स्थायित्व के लक्ष्य को प्राप्त करने की उपेक्षा करता है। इसका आधार यह है कि कोई राजनीतिक व्यवस्था तब तक ठीक ढंग से कार्य नहीं कर सकती जब तक उसके साथ-साथ राजनीतिक मानकों और मूल्यों को अंगीकार करने की प्रक्रिया जारी न हो। 

राबर्ट साइगेल का मत हैं," राजनीतिक समाजीकरण का उद्देश्य ऐसे व्यक्तियों का प्रशिक्षण और विकास करना हैं, जिससे वे राजनीतिक समाज के अच्छे कर्मचारी सदस्य बन सकें।" 

राजनीतिक संस्कृति की अवधारणा को हम इस प्रकार समझ सकते हैं कि संस्कृति एक सीखा गया व्यवहार हैं। जिस व्यक्ति का जन्म होता है वह संस्कृति के नाम पर शून्य होता हैं। किन्तु वह समाज में रहने लगता है तो समाज के सदस्यों के साथ विभिन्न अंतःक्रियाओं में भाग लेकर समाज के तौर-तरीकों को समझने लगता है। वह समाज की रीतियों को जानने लगता है। इसके कारण वह सामाजिक व सांस्कृतिक होने लगता हैं। उसे समाज में केवल अपनी भूमिका का ज्ञान ही नही होता। वह अन्य लोगों की भूमिका के संबंध में भी जानने लगता है। उसे अपने अधिकारों तथा दायित्वों का बोध होने लगता हैं। इससे व्यक्ति का समाजीकरण होता चला जाता है। 

समाजीकरण की यह प्रक्रिया कभी न पूरी होसकने वाली प्रक्रिया है अर्थात् वह निरंतर चलती रहती है। उसके समाजीकरण के साथ ही उसके व्यक्तित्व का विकास होने लगता हैं। व्यक्ति का सामाजिक क्षेत्र उसके राजनीतिक क्षेत्र से जुड़ा हुआ है। अतः राजनीतिक ढंग से संतुलित और सफल बनाने के लिए, राजनीतिक क्रियाकलापों में भाग लेने के लिए व्यक्ति का समाजीकरण आवश्यक होता हैं। 

आमंड तथा पावेल के शब्दों में," राजनीतिक समाजीकरण वह प्रक्रिया हैं, जिसके द्वारा राजनीतिक संस्कृतियों की रक्षा तथा उनमें परिवर्तन किया जाता है। इस कार्य के निष्पादन के माध्यम से व्यक्तियों की राजनीतिक संस्कृतियों को सम्मिलित किया जाता है, तभी राजनीतिक धारणाओं के प्रति उनमें विश्वास का निर्माण किया जाता हैं।"

एल. वासबी का मत हैं," यह (राजनीतिक समाजीकरण) वह प्रक्रिया हैं जिसके द्वारा लोग न केवल सक्रिय राजनीतिक सहभागिता के दौरान बल्कि उस अवधि के दौरान भी राजनीतिक मूल्यों को ग्रहण करते हैं, जब वे स्पष्ट रूप से राजनीतिक गतिविधियों में भाग लेते हैं।" 

अंततः राजनीतिक समाजीकरण उस शिक्षण प्रक्रिया की ओर निर्दिष्ट करता है जिसके द्वारा सुसंचालित राजनीतिक व्यवस्था के लिए स्वीकार्य मानकों और व्यवहारों को एक पीढ़ी से अगली पीढ़ी तक संप्रेषित किया जाता हैं। राजनीतिक समाजीकरण की यह प्रक्रिया आकस्मिक तथा अदृश्य रूप से कार्य करती हैं। यह शांत और सौम्य रूप से संचालित होती है। यहां तक की लोगों को इसके संचालन की खबर तक नही होती। लोग इन मानकों को स्वीकार कर लेते हैं और इनके औचित्य के बारें में कोई आपत्ति भी नही करते।

राजनीतिक समाजीकरण की विशेषताएं (raajnitik samajikaran ki visheshtayen)

राजनैतिक समाजीकरण की मुख्य विशेषताएं निम्नलिखित हैं-- 

1. उपब्धता 

राजनैतिक समाजीकरण की सबसे मुख्य विशेषता इसकी उपलब्धता है क्योंकि प्रायः यह प्रत्येक समाज में पाया जाता है अर्थात राज्य चाहे सर्वसत्तावादी हो या प्रजातंत्रात्मक राजनैतिक समाजीकरण की प्रक्रिया सभी की राजनैतिक प्रणाली मे पायी जाती हैं। राजनीतिक समाजीकरण का रूप सर्वसत्तावादी राजनैतिक व्यवस्था में शासक की इच्छाओं एवं विशिष्ट राजनैतिक विचारधारा के अनुरूप होता है। जैसे-रूस तथा चीन आदि देशों जिनकी शासन प्रणाली सर्वसत्तावादी शासन प्रणाली हैं, में राजनैतिक समाजीकरण अन्य किसी दिशा की अपेक्षा मात्र साम्यवादी दिशा के प्रति ही हो सकती हैं। 

2. रूप-स्पष्ट तथा गुप्त 

प्रत्येक समाज मे राजनैतिक समाजीकरण स्पष्ट या गुप्त रूप में पाया जाता है। राजनैतिक समाजीकरण की गुप्त प्रक्रिया में गैर-राजनीतिक उद्देश्यों के प्रति मनुष्यों की अभिवृत्ति उनकी राजनैतिक अभिवृत्ति को अप्रत्यक्ष रूप में प्रभावित करती है। इसके विपरीत जब विशेष राजनैतिक उद्देश्यों के प्रति लोगों की राजनैतिक अभिवृत्ति को स्पष्ट रूप से प्रभावित किया जाता हैं तब यह राजनीतिक समाजीकरण का प्रत्यक्ष रूप कहलाता हैं।

3. राजनीतिक समाजीकरण प्रकट एंव प्रच्छन्न दोनों रूप में  

किसी विशेष उद्देश्य के लिए राजनीतिक समाजीकरण का स्पष्ट एंव प्रत्यक्ष रूप से प्रयोग किया जाता हैं तो इसे प्रत्यक्ष या प्रकट राजनीतिक समाजीकरण कहते हैं। स्कूलों कॉलेजों आदि में विद्यार्थियों को अनुशासन कर्तव्यों का पालन ओर कानून पालन आदि की शिक्षा देना प्रत्यक्ष राजनीतिक समाजीकरण का उदाहरण है। गैर - राजनीतिक उद्देश्यों को पूरा करने के लिये किये गये प्रयास राजनीति को अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करते हैं। यह प्रक्रिया सामान्य नियम, स्वतः एव अचेत रूप में होती है। अतः राजनीतिक समाजीकरण की प्रक्रिया प्रत्येक समाज में प्रत्यक्ष या स्पष्ट या प्रकट एवं गुप्त या अप्रत्यक्ष या प्रच्छन रूप में होती रहती है। 

4. सम्पूर्ण राजनीतिक जीवन को प्रभावित करना  

राजनीतिक समाजीकरण से व्यक्ति समूह का सम्पूर्ण राजनीतिक जीवन प्रभावित होता है। 

5. राजनीतिक परिवर्तन से संबंध  

राजनीतिक समाजीकरण का राजनीतिक परिवर्तन से गहरा संबंध है। एक तरफ राजनीतिक समाजीकरण से बनने वाले नए विश्वास और मूल्य राजनीतिक परिवर्तन ला सकते हैं तो दूसरी और राजनीतिक परिवर्तन के बाद भी राजनीतिक समाजीकरण की प्रक्रिया समाप्त नहीं होती है और वह चलती रहती है।

6. हस्तांतरण 

राजनैतिक समाजीकरण की विधि की बहुत महत्वपूर्ण विशेषता राजनैतिक संस्कृति का एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में संचारित होना है। एक रूप राजनीतिक संस्कृति वाले देशों में यह विशेषता अनिवार्य समझी जाती हैं क्योंकि इसमें राजनीतिक स्थायित्व का अस्तित्व पाया जाता हैं। 

7. लगातार चलने वाली प्रक्रिया 

लगातार चलने वाली प्रक्रिया के रूप में राजनैतिक समाजीकरण मात्र बचपन तथा किशोर अवस्था नहीं रहता वरन् जीवन-पर्यन्त चलता रहता है एवं प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से मानव को लगातार प्रभावित करता रहता हैं। नयी-नयी परिस्थितियों के अनुसार तथा स्थर भी बदलते रहते हैं। 

8. राजनैतिक शिक्षा 

राजनैतिक समाजीकरण में औपचारिक तथा अनौपचारिक दोनों तरह की राजनैतिक शिक्षा को शामिल किया जाता हैं, राजनैतिक समाजीकरण का उद्देश्य मनुष्यों की राजनैतिक संस्कृति को स्थिर रखना या उनमें परिवर्तन लाना है। दूसरे शब्दों में," राजनैतिक समाजीकरण द्वारा लोगों के राजनैतिक दृष्टिकोण, मूल्यों, अभिवृत्तियों को बनाने संजोये रखने एवं परिवर्तित किया जाता है। जब लोगों की राजनैतिक संस्कृति स्वयमेव बिना किसी सुचेत प्रयासों के किसी भी रूप में प्रभावित होती है तो उसे राजनीतिक समाजीकरण की अनौपचारिक क्रिया कहा जाता है। इसके विपरीत जब लोगों में राजनैतिक संस्कृति विकसित करने अथवा स्थिर रखने या परिवर्तन करने हेतु विशेष प्रयास किये जाते है तो ऐसी क्रिया को अनौपचारिक क्रिया कहा जाता हैं।

9. राजनीतिक समाजीकरण औपचारिक एंव अनौपचारिक दोनों रूप में  

राजनीतिक समाजीकरण सचेत रूप में विभिन्न शिक्षा संस्थाओं, समाचार पत्रों और राजनीतिक दलों द्वारा प्रत्यक्ष रूप से किया जाता है तो यह राजनीतिक समाजीकरण की औपचारिक प्रक्रिया हैं औपचारिक प्रक्रिया में प्रयत्न विशेष रूप से किये जाते है जबकि यदि लोगों के राजनीतिक मुल्यों, विचारों विश्वासों में परिवर्तन विशेष प्रयत्नों से न होकर अपने आप होता है तो इसे अनौपचारिक राजनीतिक समाजीकरण कहते हैं। जैसे भारत में 1975 में श्रीमती इंदिरा गाँधी द्वारा आपात घोषण के बाद लोगों पर बहुत अत्याचार हुए। आपात स्थिति के बाद 1977 में आम चुनाव हुए जिसमें इंदिरा गाँधी एंव उनकी पार्टी को हार का मुँह देखना पड़ा। यह सब कुछ अपने आप हो गया। यानि कोई औपचारिक शिक्षा लोगों को देनी नहीं पड़ी अर्थात् यह अनौपचारिक राजनीतिक प्रक्रिया का उदाहरण हुआ। अतः राजनीतिक समाजीकरण औपचारिक एंव अनौपचारिक दोनों प्रकार से होता है। 

10. राजनीतिक समाजीकरण एक सतत् प्रक्रिया 

राजनीतिक समाजीकरण एक ऐसी विधि है जो सारी आयु के लोगों को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करती है। किसी भी व्यक्ति का राजनीतिक विश्वास सदा एक सा नहीं रहता है, बल्कि परिस्थति के अनुसार इनके राजनीतिक दृष्टिकोण में थोड़ा बहुत परिवर्तन होता रहता है। इस परिवर्तन के कारण उनके राजनीतिक विश्वास राजनीतिक मूल्य एंव राजनीतिक दृष्टिकोण स्थायी नहीं रहती। इन्हीं कारणों से यह कहा जाता है कि राजनीतिक समाजीकरण एक सतत् प्रक्रिया है। 

प्रो. एलन. आर. बाल के अनुसार," राजनीतिक समाजीकरण ऐसी विधि नहीं है जो प्रभाव स्वीकार करने वाली बचपन की आयु तक सीमित हो अपितु यह आयु पर्यन्त निरंतर रूप से जारी रहती है।" अतः राजनीतिक समाजीकरण की प्रक्रिया निरंतर चलती रहती है। 

राजनीतिक समाजीकरण के माध्यम/संरचनाएँ/अभिकरण 

raajnitik samajikaran ke abhikaran;राजनैतिक समाजीकरण एक निरन्तर चलने वाली प्रक्रिया हैं। एलन बाॅल का विचार हैं," राजनीतिक समाजीकरण ऐसी ऐसी प्रक्रिया नही हैं, जो बाल्यकाल के वर्षों तक सीमित हो बल्कि यह तो सारे वयस्क जीवन के दौरान चलती हैं।" 

राजनीतिक समाजीकरण की प्रक्रिया प्रत्येक राजनीतिक समाज में चलती रहती है। इसको गतिशील बनाए रखने में अनेक तत्वों का योगदान होता है। ये तत्व सभी राजनीतिक समाजों में समान प्रकृति के नहीं होते। राजनीतिक समाजीकरण की प्रक्रिया के चलने का कोई निश्चित समय नहीं होता। एलेन बाल ने कहा है कि राजनीतिक समाजीकरण ऐसी प्रक्रिया नहीं है जो बाल्यकाल के प्रभावग्रस्त योग्य वर्षों तक सीमित हो, बल्कि यह तो सारे व्यस्क जीवन के दौरान चलती रहती है। इससे स्पष्ट हो जाता है कि इस लम्बी प्रक्रिया में व्यक्ति पर अनेक कारकों का प्रभाव भी अवश्य पड़ेगा। इसी से व्यक्ति के राजनीतिक समाजीकरण का मार्ग प्रशस्त होगा। 

एस.पी. वर्मा ने लिखा है," राजनीतिक समाजीकरण की प्रक्रिया में परिवार, स्कूल, चर्च, समान लोगों के समूह, जनसम्पर्क के साधन और जन सम्बन्धों की अहम भूमिका होती है। इससे स्पष्ट हो जाता है कि राजनीतिक समाजीकरण के अनेक अभिकरण या साधन होते हैं। यह जरूरी नहीं है कि इन सभी साधनों का व्यक्ति पर समान प्रभाव पड़ता हो। व्यक्ति की आयु, ज्ञान, पारिवारिक वातावरण, अभिरुचि आदि का भी इस प्रक्रिया से गहरा सम्बन्ध रहता है। इसी कारण व्यक्तियों की राजनीतिक भूमिकाओं में भी अन्तर पाया जाता है। लेकिन यह बात तो निर्विवाद रूप से सत्य है कि राजनीतिक समाजीकरण की प्रक्रिया को प्रभावित करने वाले कुछ अभिकरण अवश्य हैं जो व्यक्ति को राजनीतिक मानव बनाते हैं ये अभिकरण निम्नलिखित हैं--राजनीतिक समाजीकरण करने में निम्नलिखित तत्वों का योगदान होता हैं-- 

1. परिवार 

परिवार नागरिक जीवन की प्रथम पाठशाला हैं। यह बच्चों के लिये बाहरी संसार को देखने की पहली खिड़की है। बच्चा सबसे पहले परिवार का सदस्य होता हैं। यहीं वह परिवार के मानकों, मूल्यों व आदर्शों से परिचित होता हैं। हर्वट ने लिखा है कि," परिवार राजनीति के समाजीकरण अभिकरणों में सबसे आगे हैं। बच्चों की सीख परिवार से शुरू होती हैं। परिवार की स्थिति, पर्यावरण, बच्चों के माता-पिता एवं अन्य सदस्यों के राजनैतिक दृष्टिकोण का बच्चे पर अत्यधिक महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ता हैं। 

परिवार ही बच्चे का राजनीतिक सत्ता के साथ परिचय कराता हैं। परिवार में ही उसे सर्वप्रथम सत्ता का बोध होता है। माता-पिता की सत्ता उसे भविष्य में सत्ता का पहला पाठ पढ़ती है। यदि किसी राजनीतिक परिवार के बच्चे राजनीति में रूचि लेते हैं तो यह स्वाभाविक है क्योंकि वे रोज राजनीतिक विचार-विमर्श सुनते हैं तथा राजनीति चलते हुये देखते हैं। हवर्ट हाईमेन ने इसी आधार पर अमेरिकन मतदान व्यवहार का अध्ययन किया। 

2. शिक्षण संस्थायें 

परिवार के बाद राजनीतिक समाजीकरण का दूसरा अभिकरण स्कूल, कालेज व शिक्षण संस्थायें हैं। इनका पर्यावरण बालकों, किशोरों पर अत्यधिक प्रभाव डालता हैं। यहां उसे राजनीतिक सीख के अनेक औपचारिक अवसर मिलते हैं। शिक्षक के विचार, विचार-विमर्श, साथियों के विचार, राजनीतिक विश्वासों, आदर्शों, मूल्यों व मानकों का निर्माण करते हैं। स्कूल से लेकर महाविद्यालय और विश्वविद्यालय भी राजनीति सिखाने के शक्तिशाली केंद्र हैं। 

3. मित्र-मण्डली 

यह राजनीतिक समाजीकरण का तीसरा बड़ा अभिकरण है। मित्रों के गुट, भाई-बहन, सहकर्मी एक आयु समूह के सदस्य परस्पर एक दूसरे के राजनीतिक व्यवहार को प्रभावित करते हैं। यह किशोरावस्था में व्यक्ति के मस्तिष्क पर स्थायी प्रभाव डालते हैं। 

4. सामाजिक तथा राजनीतिक संस्थाएँ 

राजनीतिक समाजीकरण में सामाजिक तथा राजनीतिक संस्थाओं की महत्वपूर्ण भूमिका हैं। बाल का मत है," बहुत से उदार लोकतांत्रिक और सर्वधिकारवादी यूरोपीय देशों पर रोमन कैथोलिक धर्म की भूमिका हमें इसके राज्य और शिक्षा दोनों के साथ विरोध के उदाहरण प्रस्तुत करती है और शायद कई देशों में महिलाओं के राजनीतिक व्यवहार का दिग्दर्शन कराने में एक महत्वपूर्ण कारक हैं।" 

वयस्कों के लिए राजनीतिक दल, शासन व्यवस्था, युवा आंदोलन, जनसंचार के विभिन्न माध्यम आदि भी राजनीतिक समाजीकरण के लिए आवश्यक सामग्री जुटाते हैं। 

5. व्यक्तिगत अनुभव 

व्यक्ति का अपने दैनिक अनुभवों द्वारा भी राजनीतिक समाजीकरण होता हैं। नौकरी करते समय उसे जिस प्रकार का वातावरण मिलता हैं, उसके चारों ओर निर्मित औपचारिक तथा अनौपचारिक संगठन, जैसे-- क्लब और यूनियन वे माध्यम बन जाते हैं, जिनके द्वारा उसे राजनीतिक सूचनाएँ प्राप्त होती हैं। आमण्ड तथा पाॅवेल के शब्दों में," हड़ताली मजदूर न केवल यह सीखता है कि वह अपने भाग्य के बारे में अधिकृत निर्णयों को आकार प्रदान कर सकता हैं, बल्कि उसे विशिष्ट कार्यकुशलताओं के बारे में भी जानकारी प्राप्त होती है जैसे-- प्रदर्शन और नाकेबन्दी करना, जिसे बाद मे राजनीतिक आन्दोलनों में भाग लेने में प्रयोग में लाया जा सकता हैं।" 

6. जनसंचार के माध्यम 

समाचार-पत्रों में रिपोर्टों को पढ़कर, रेडियों-वार्ताओं को सुनकर और टेलीविजन फिल्मों को देखकर लोग किन्हीं मानकों और मूल्यों के लिए अपनी पसन्दगी विकसित कर लेते हैं। 

7. राजनीतिक व्यवस्था के साथ प्रत्यक्ष संबंध 

मनुष्य जब उस राजनीतिक व्यवस्था के प्रत्यक्ष सम्पर्क में आते है तो उनका राजनीतिक समाजीकरण होता है। आमंड तथा पावेल के शब्दों में," उस राजनीतिक व्यवस्था के बारें में जिन्हें परिवार और स्कूल ने शामिल किया है, विचार कितना ही सकारात्मक क्यों न हो, जब किसी व्यक्ति की उसके दल द्वारा अवहेलना की जाती है, पुलिस द्वारा उसे धोखा दिया जाता है, रोटी के लिए लगी पंक्ति में लगे होने पर भी उसे भूखों मरने दिया जाता है और अंत में उसे सेना में जबरदस्ती भर्ती कर लिया जाता है तो इस बात की सम्भावना होती है कि राजनीतिक व्यवस्था के बारे में उसके विचारों में परिवर्तन आएगा।" 

8. राजनीतिक में प्रत्यक्ष भाग लेकर 

राजनीतिक समाजीकरण का एक महत्वपूर्ण साधन स्वयं लोगों द्वारा राजनीति में भाग लेना है। रोजमैन का विचार हैं," मध्यम वर्ग में बहुत से व्यक्ति उग्रवादी होते है अथवा कम से कम युवावस्था में उनका संबंध राजनीति से होता है और विश्वविद्यालय उन्हें राजनीतिक खेल के अवसर प्रदान करता हैं। इसके बाद व्यक्ति व्यापार में लग जाते है और इस जीवन में राजनीति का कोई महत्व नहीं होता। श्रमिक वर्ग में राजनीति ट्रेड यूनियनों से संबंधित होती हैं।" हम कह सकते हैं कि विभिन्न वर्ग विभिन्न रूपों में राजनीतिक जीवन मे भाग लेते हैं। अर्थात् अलग-अलग वर्गों में राजनीति का स्वरूप अलग-अलग होता हैं।

यह भी पढ़े; राजनीतिक समाजीकरण की प्रक्रिया, महत्व, प्रकार

राजनीतिक समाजीकरण के प्रत्यय 

राजनीतिक समाजीकरण के दो प्रत्यय हैं-- 

1. एकरस प्रत्यय 

एकरस प्रत्यय का आशय यह है कि एक-दूसरे से मिलकर विश्वास के वातावरण में कार्य करते है और अपने राजनीतिक विचार ग्रहण करते है। यह प्रत्यय पद्धित (राजनीतिक व्यवस्था) के स्थायित्व का वर्णन करता हैं। 

2. खंडित-प्रत्यय 

खंडित प्रत्यय में व्यक्ति एक-दूसरे पर शक करते है इससे घृणा का वातावरण बनता है। घृणा के ऐसे वातावरण में पद्धित के प्रति सदैव निष्ठा का अभाव होता हैं जबकि समाजीकरण का उद्देश्य पद्धित को बनाए रखना हैं-- राजनीतिक व्यवस्था के प्रति श्रद्धा एवं निष्ठा के अभाव को देखकर ही अनेक विद्वानों ने इस प्रत्यय को रूढ़िवादी अवधारणा कहा है लेकिन बात ऐसी नही है। यह अवधारणा परिवर्तन में विश्वास करती है। अंतर सिर्फ इतना ही है कि इसकी गति बड़ी धीमी और शांतिपूर्ण परिवर्तन की है। यह अवधारणा यह मानती है कि समाजीकरण की प्रक्रिया में परिवर्तन के साथ-साथ राजनीतिक संस्कृति में भी उसी मात्रा में परिवर्तन होना चाहिए लेकिन अकस्मात अधिक मात्रा में हुआ परिवर्तन राजनीतिक व्यवस्था को खंडित कर देता है। राजनीतिक मूल्यों का निर्माण एवं राजनीतिक परिवर्तन साथ-साथ होने चाहिए। यह अवधारणा सत्ताधारियों को निर्देश देती है कि वे ऐसा कोई कार्य न करें अथवा न होने दें जिससे राजनीतिक व्यवस्था के प्रति नागरिकों के व्यवहार में अकस्मात् परिवर्तन हो जाए। 

उपरोक्त दोनो प्रत्ययों के विश्लेषण से स्पष्ट है कि राजनीतिक समाजीकरण के दोनों प्रत्यय एक-दूसरे के विरोधी हैं। इसके बावजूद हम कह सकते है कि राजनीतिक समाजीकरण की प्रक्रिया राजनीतिक व्यवस्था एवं नागरिकों के वातावरण पर निर्भर करती है। राजनीतिक व्यवस्था जितनी ही अधिक स्थायी होगी उतना ही अधिक राजनीतिक समाजीकरण के तत्व स्थायी होंगे। एक गैर अधिनायकवादी व्यवस्था में यदि परिवर्तन की मात्रा अधिक है तो समाजीकरण के तत्व अस्पष्ट हो जाएंगे। समाजीकरण की ऐसी प्रक्रिया सिर्फ लोकतंत्रिक व्यवस्थाओं तक ही सीमित नहीं है, इसका महत्व गैर-लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं में कहीं अधिक है क्योंकि अधिनायकवादी व्यवस्थाएं नागरिक जीवन के सभी पहलुओं पर नियंत्रण की चेष्टा करती हैं। अधिनायक राजनीतिक समाजीकरण की प्रक्रिया को अपने अधीन करके एवं समाजीकरण से निर्माणक तत्वों को अपने उद्देश्यों का वाहन बनाकर देश के नागरिकों को अपने विचारों में ढालने का प्रयास करते है। परंपरागत समाजों मे भी इसके माध्यम से नागरिकों के परंपरागत विचारों में मौलिक परिवर्तन लाकर आधुनिकीकरण की प्रक्रिया को तेज किया जा सकता हैं।

संबंधित पोस्ट 

कोई टिप्पणी नहीं:
Write comment

आपके के सुझाव, सवाल, और शिकायत पर अमल करने के लिए हम आपके लिए हमेशा तत्पर है। कृपया नीचे comment कर हमें बिना किसी संकोच के अपने विचार बताए हम शीघ्र ही जबाव देंगे।