राजनीतिक समाजीकरण की प्रक्रिया
raajnitik samajikaran ki prakriya;राजनीतिक समाजीकरण की प्रक्रिया का व्यक्ति के पर्यावरण से घनिष्ठ संबंध है। व्यक्ति बचपन से लेकर वृद्धावस्था तक जिस तरह के पर्यावरण में रहता है, उसी के अनुरूप उसमें सामाजिक तथा राजनीतिक विचारों का जन्म होता हैं। राजनीतिक समाजीकरण के विकास के विभिन्न स्तरों का विवेचन निम्न तरह किया जा सकता हैं--
1. प्रथम स्तर
व्यक्ति के जन्म के साथ ही समाजीकरण की प्रक्रिया शुरू हो जाती हैं। जन्म के बाद वह मूल प्रवृत्तियों एवं अन्य प्राणीशास्त्रीय व मनोवैज्ञानिक क्षमताओं के कारण कुछ प्रारंभिक क्रियाएं करने लगता हैं। बचपन में ही वह अपने माता-पिता से बहुत-सी बातें जान लेता हैं। जैसे-जैसे वह बड़ा होने लगता हैं, उस पर पारिवारिक पर्यावरण का प्रभाव स्पष्ट दृष्टिगोचर होने लगता हैं। वस्तुतः उसके पारिवारिक पर्यावरण के अनुकूल ही उसके राजनीतिक तथा धार्मिक विचार बन जाते हैं। परिवार में ही उसमें सामाजिक गुणों का अभ्युदय होता हैं। गाँधी जी ने कहा था कि सबसे अच्छा पाठ जो मैंने अपनी माता से सीखा वह कर्तव्यनिष्ठा का था। परिवार में रहकर बालक में कर्तव्यनिष्ठा, आज्ञापालन, त्याग तथा सहनशीलता आदि के गुणों का विकास होता है। ये गुण उसको भविष्य में एक कुशल नागरिक बनने में सहायक सिद्ध होते हैं।
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2. द्वितीय स्तर
राजनीतिक समाजीकरण का द्वितीय स्तर तब शुरू होता हैं, जब बालक अपने परिवार की सीमाओं से बाहर आकर अपने पड़ोस तथा समूह के अन्य बालकों के संपर्क में आता हैं। वह उनके साथ विभिन्न तरह की क्रियाएं करता है, इससे उसमें सहनशीलता, त्याग, सहिष्णुता तथा अनुकूलन करने की क्षमता विकसित होती हैं। इसी समय उसमे एक दूसरे से आगे निकल जाने की भावना जागृत होती है तथा वह पार्टीबाजी या दल निर्माण की तरफ आकर्षित होता हैं।
3. तृतीय स्तर
बालक जब कुछ और बड़ा हो जाता है, तो वह समाज के अनुभवी तथा वयोवृद्ध व्यक्तियों के संपर्क में आता हैं। उनका अनुकरण करके वह राजनीतिक क्षेत्र से अवगत होने लगता हैं, उसकी एक राजनीतिक सोच बनने लगती है। इस तरह उसके राजनीतिक समाजीकरण का विकास होने लगता हैं।
4. चतुर्थ स्तर
यह स्तर व्यक्ति की किशोरावस्था अथवा यौवनावस्था से शुरू होता है। इस अवस्था मे व्यक्ति को नवीन परिस्थितियों से सामंजस्य करना पड़ता है। वस्तुतः इस स्तर पर व्यक्ति अपने राजनीतिक ज्ञान तथा राजनीतिक मूल्यों से अवगत होता है। अन्य व्यक्तियों के संपर्क में आकर वह राजनीतिक व्यवहार को सीखने लगता है। इस स्तर पर व्यक्ति अपने राजनीतिक भविष्य की संभावनाओं को ज्ञात करता है। दूसरे शब्दों में," इस समय निर्मित विचारधारा व्यक्ति के संपूर्ण जीवन का आधार बन जाती हैं।
5. पंचम स्तर
यह स्तर गृहस्थ जीवन से शुरू होता है। व्यक्ति न सिर्फ अपनी विवाहेतर समस्याओं का समाधान करता हैं, बल्कि राजनीति में भी सक्रिय रूप से भाग लेने लगता हैं। विशेष रूप से चुनाव के समय वह विभिन्न राजनीतिक दलों के संपर्क मे आता है तथा फिर किसी एक राजनीतिक विचारधारा का समर्थक बन जाता है। इस तरह वह राजनीति के सभी दाँव-पेच सीखकर वह प्रशासनिक व्यवस्था अथवा राजनीति में सक्रिय रूप से भाग लेने लगता हैं।
6. छठा स्तर
यह अंतिम स्तर व्यक्ति की वृद्धावस्था से शुरू होता है। इस स्तर पर व्यक्ति की राजनीतिक समझ परिपक्व हो चुकी होती हैं। वह राजनीति के सभी दाँव-पेच अपने पूर्वजों तथा राजनीतिक गुरूओं से सीख चुका होता हैं। इस स्तर पर वह देश की राजनीति का सक्रिय सदस्य बन जाता हैं। वस्तुतः वह चुनाव जीतकर उच्च पदों पर आसीन हो जाता हैं।
राजनीतिक समाजीकरण का महत्व (raajnitik samajikaran ka mahatva)
ऑमण्ड तथा पाॅवेल ने राजनीतिक समाजीकरण के महत्व पर विचार व्यक्त करते हुए कहा हैं," राजनीतिक समाजीकरण एक ऐसी विधि है जिसके द्वारा राजनीतिक संस्कृतियों को स्थिर रखा तथा बदला जाता हैं। राजनीतिक समाजीकरण के द्वारा ही व्यक्तियों को राजनीतिक संस्कृति में प्रवेश कराया जाता हैं तथा राजनीतिक उद्देश्यों के प्रति उनके दृष्टिकोणों का निर्माण करवाया जाता है। राजनीतिक संस्कृति के विशेष नमूनों में भी परिवर्तन राजनीतिक समाजीकरण के द्वारा किया जाता हैं।"
राजनीतिक समाजीकरण के महत्व का वर्णन निम्नलिखित हैं--
1. राजनीतिक संस्कृति के संचरण द्वारा राजनीतिक प्रणाली के स्थायित्व का आश्वासन
राबर्ट सीजल का मत है कि," राजनीतिक समाजीकरण का उद्देश्य व्यक्तियों को ऐसा प्रशिक्षण देना है जिससे वे राजनीतिक समाज में अच्छे क्रियाशील सदस्य बन सकें। जब तक राजनीतिक समाज प्रचलित राजनीतिक मूल्यों के अनुकूल नहीं होता तब तक राजनीतिक प्रणाली को कार्य करने में तथा अपनी स्थिरता बनाने में कठिनाई पेश आयेगी।"
2. राजनीतिक समाजीकरण का आधुनिक युग में विशेष महत्व
आधुनिक युग में मानव जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में नित्य नवीन परिवर्तन हो रहे हैं। वैज्ञानिक और यांत्रिक विकास ने सामाजिक जीवन के मूल आधारों को ही बदल दिया है। मानव विचारधार में आधारभूत परिवर्तन आया है। उग्र राष्ट्रवाद के स्थान पर अंतरराष्ट्रीयवाद की भावना प्रस्फुटित हो रही हैं। ऐसे क्रांतिकारी परिवर्तन राजनीतिक प्रणालियों तथा राजनीतिक विचारधाराओं पर भी प्रभाव डालते हैं। ऐसी स्थिति मे राजनीतिक समाजीकरण का महत्व अधिक बढ़ जाता हैं।
3. राजनीतिक समाजीकरण राजनीतिक प्रणाली को वैधता प्रदान करने हेतु सहायक
राजनीतिक प्रणाली उसी समय सफलता तथा कुशलतापूर्वक कार्य कर सकती है जब उसकी वैधता के प्रति कोई संशय न हो। अगर लोग राजनीतिक प्रणाली की वैधता को स्वीकार नहीं करते तो प्रणाली दमनकारी शक्ति के आधार पर ही अस्तित्व में रह सकती है। राजनीतिक समाजीकरण एक ऐसी विधि है जिसके द्वारा राजनीतिक प्रणाली के प्रति लोगों के मनों में विश्वास, राजनीतिक उद्देश्यों के प्रति सहमति तथा राजनीतिक प्रणाली का मूल्यांकन करने के लिए राजनीतिक मूल्य विकसित किये जाते हैं। अगर लोग इस तथ्य के आधार पर राजनीतिक प्रणाली की वैधता को स्वीकार कर लें तो वह प्रणाली सहज ही अपने उद्देश्यों को प्राप्त करने में सफल हो जाती हैं।
4. राजनीतिक समाजीकरण के द्वारा सुचेत नागरिकता का निर्माण
राजनीतिक प्रणाली की सफलता के लिए यह आवश्यक है कि प्रणाली के राजनीतिक उद्देश्य स्पष्ट हों और उन उद्देश्यों के प्रति लोगों को पूर्ण ज्ञान तथा उनकी सहमति हो। लोगों में राजनीतिक विश्वासों, राजनीतिक दृष्टिकोणों, राजनीतिक मूल्यों इत्यादि को विकसित करने के लिए प्रयास किये जाने चाहिए। यह राजनीतिक समाजीकरण की क्रिया हैं।
व्यक्ति के राजनीतिक समाजीकरण में बाधाएं
व्यक्ति के राजनीतिक समाजीकरण में प्रायः निम्नलिखित कारक बाधा उपस्थित करते हैं--
(अ) असामाजिक कारक
असामाजिक कारक वे कारक है जो समाज के नियंत्रण के बिना ही स्वतः व्यक्ति के व्यवहार को नियंत्रित करते हैं। इन कारणों में निम्न उल्लेखनीय हैं--
1. वंशानुसंक्रमण
वंशानुसंक्रमण से ही माता-पिता से बच्चा कुछ रोगों को लेकर आता है। इन रोगों के कारण बच्चा समूह तथा राज्य के नियमों को ठीक प्रकार नहीं सीख पाता हैं।
2. प्राकृतिक पर्यावरण
प्राकृतिक पर्यावरण समाज व राज्य पर उल्लेखनीय प्रभाव डालता हैं। प्राकृतिक पर्यावरण के दोषी होने के कारण कुछ ऐसी शारीरिक व मानसिक बीमारियां एवं कमियां व्यक्ति में उत्पन्न हो जाती हैं, जिनके कारण व्यक्ति राजनीतिक व्यवहार प्रतिमानों को सीखने में या पिछड़ जाता है अथवा उन्हें बिल्कुल नहीं सीख पाता।
(ब) सामाजिक कारक
बच्चे के समाजीकरण को प्रायः निम्न सामाजिक परिस्थितियां प्रभावित करती हैं--
1. शिशु अवस्था एवं प्रारंभिक बचपन की सीख
व्यक्ति के विकास में शिशु अवस्था तथा बचपन की सीख बड़ा महत्व रखती है। मां और शिशु में पाया जाने वाला प्रेम संसार में विलक्षण और अनोखा है। शिशु तथा मां में सर्वप्रथम क्रिया प्रतिक्रिया आरंभ होती है। अतः यह संबंध अनुपमेय हैं। मां के बाद पिता बच्चे के समाजीकरण तथा व्यक्तित्व के विकास मे महत्वपूर्ण होता है। वही संपूर्ण परिवार का नियंत्रण रखता है। समाजीकरण का प्रारंभ बचपन से होता है एवं विश्लेषणात्मक जीवन भर चलता हैं।
2. किशोरावस्था की परिस्थितियां
किशोरावस्था में मिली परिस्थतियां भी उनके
समाजीकरण को प्रभावित करती है। अगर वह अच्छे संगी-साथियों के मध्य रहता है तो उसका समाजीकरण अच्छा होगा। अगर बच्चा बचपन में माता-पिता से तिरस्कृत रहा तथा किशोरावस्था में भी उसकी परिस्थतियां ठीक न रहीं तो वह समाज विरोधी व्यवहार आसानी से सीख जाता हैं।
3. सांस्कृतिक प्रभाव
बुरे समाजीकरण या समाज के नियमों का उल्लंघन करने की प्रक्रिया में सांस्कृतिक प्रभाव का भी महत्वपूर्ण स्थान है।
राजनैतिक समाजीकरण के प्रकार (raajnitik samajikaran ke prakar)
विद्वानों ने राजनीतिक समाजीकरण के दो प्रकारों का उल्लेख किया हैं--
1. स्पष्ट तथा प्रत्यक्ष राजनीतिक समाजीकरण
राजनैतिक समाजीकरण का प्रथम रूप स्पष्ट व प्रत्यक्ष हैं। इसके अन्तर्गत स्पष्ट या प्रत्यक्ष रूप से राजनैतिक प्रणाली के प्रति लोगों की मनोभावनाओं को निर्धारित करने का प्रयास किया जाता है। स्पष्ट राजनैतिक समाजीकरण का प्रमुख उदाहरण रूस तथा चीन आदि साम्यवादी देशों की राजनैतिक प्रणालियाँ हैं।
इन देशों में राजनैतिक व्यवस्था को साम्यवादी होने से हर राजनैतिक संस्था को साम्यवादी व्यवस्था के आधार पर चलाने का प्रयत्न किया जाता है। सभी संचार साधनों का प्रयोग साम्यवादी व्यवस्था के प्रचार-प्रसार हेतु किया जाता है। ऐसे देशों की शिक्षा व्यवस्था भी साम्यवादी विचारधारा से प्रभावित होती है क्योंकि स्कूलों तथा काॅलेजों में शिक्षा का मूल उद्देश्य लोगों के मनों में साम्यवादी प्रवृत्तियों को पैदा करना हैं।
2. गुप्त तथा अप्रत्यक्ष राजनैतिक समाजीकरण
जब गैर-राजनीतिक तथ्यों के प्रति किसी मनुष्य की अभिवृत्ति उसके राजनैतिक मूल्यों, विश्वासों या प्रवृत्तियों पर प्रभाव डालती है तब उसे गुप्त तथा अप्रत्यक्ष राजनीतिक समाजीकरण की संज्ञा दी जाती हैं क्योंकि गुप्त तथा प्रत्यक्ष राजनैतिक समाजीकरण का अभिप्राय उस प्रणाली से हैं, जो स्पष्ट या प्रत्यक्ष रूप से राजनैतिक तथ्यों से संबंधित नहीं होती, फिर भी यह बिल्कुल नहीं कहा जा सकता कि इस तरह का राजनैतिक समाजीकरण स्वयं होता है। स्पष्ट तथा अप्रत्यक्ष राजनैतिक समाजीकरण का मुख्य उदाहरण परिवार हैं।
राजनीति विकास : अर्थ व दृष्टिकोण
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