12/05/2021

पाश्चात्य/यूनानी राजनीतिक चिंतन की विशेषताएं

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पाश्चात्य या यूनानी राजनीतिक चिंतन की विशेषताएं

यूनान को पाश्चात्य राजनीतिक चिंतन का जनक माना जाता है। अधिकांश पाश्चात्य विद्वानों की धारणा है कि राजनीतिक चिंतन को जन्म देने का श्रेय यूनानियों को है और उसे विकसित करने का कार्य यूरोप वासियों ने किया है। इन क्षेत्रों में पूर्व के देशों का कोई विशेष योगदान नहीं है। वार्कर ने लिखा है कि," राजनीतिक चिंतन का श्री गणेश यूनानियों से ही होता है। उसके जन्म का यूनानी मानव का शांत तथा स्वच्छ तर्क बुद्धिवाद (Rationalism) के साथ संबंध है। क्रमिक एवं श्रृखंलाबद्व राजनीतिक चिंतन के जन्मदाता यूनानी ही इसलिए माने जाते हैं क्योंकि यूनान में ही इस राजनीतिक चिंतन को सर्वप्रथम क्रमबद्वता प्राप्त हुई है। इसका एक प्रमाण यह है कि राजनीति से संबंध रखने वाले अनेक महत्वपूर्ण शब्द और धारणाओं का उदय यूनान से ही हुआ है। सुकरात, प्लेटो, अरस्तू, सिसरो और पोलीबियस ने राज्य और राजनैतिक संस्थाओं के स्वरूप , उत्पति, प्रकार, कार्य, उपयोगिता आदि पर विचार किया। मानव स्वभाव तथा मानव समाज की प्रकृति के साथ-साथ मानव जीवन का उद्देश्य भी राज्य की प्रकृति निर्धारित करने के आधार बने राज्य अपने नागरिकों का कल्याण किस प्रकार कर सकता है इसको लेकर शिक्षा दर्शन, आर्थिक दर्शन नीति और राजनीति कार्य की स्वतंत्रता और समानत , राज्य के नियंत्रण की सीमा, कानून, अंतर्राष्ट्रीय संबंध, युद्ध और शांति संबंधी प्रश्नों पर विचार किया गया। प्राचीन यूनानी राजनीतिक चिंतन का मध्यकालीन ही नहीं बल्कि आधुनिक राजनीतिक चिंतन पर भी प्रभाव पड़ा। 
पाश्चात्य/यूनानी राजनीतिक चिंतन की निम्नलिखित विशेषताएं हैं--
1. स्वतंत्र चिंतन 
यूनानी चिंतन स्वतंत्र चिंतन था।
यूनानी दार्शनिकों को समाज में चिंतन और अन्वेषण की पर्याप्त स्वतंत्रता थी। अतः उन्होंने राजनीतिक चितन के अनेक विषयों को अपने अध्ययन क्षेत्र में लिया जैसे प्रजातंत्र क्रान्ति, वर्ग संघर्ष प्रावेक्षण (leadership) , लिखने और सोचने की स्वतंत्रता आदि। 
2. यूनानी राजनीतिक चिंतन प्रधानतः लौकिक 
यूनानी राजनीतिक चिंतन समाज प्रधान बना रहा। उन्होंने इहलोक को प्रमुखता दी, परलोक को नहीं इस समाज में रहते हुए सुखी एवं समृद्ध नैतिक जीवन की खोज उनका मुख्य उद्देश्य रहा। जिन प्रश्नों ने यूनीनी राजनीतिक चिंतन को निरंतर प्रेरित किया वे थे राज्य का सबसे अच्छा प्रकार क्या है? कौन सी शासन व्यवस्था या संविधान सर्वश्रेष्ठ है? अधिकार किसके हाथ में होने चाहिए? नागरिक कौन होंगे, उनके आचरण संबंधी नियम क्या होंगे और नागरिकों की श्रेणी में प्रवेश करने के क्या नियम होंगे? समाज का संगठन कैसा होना चाहिए? ताकि व्यक्ति अपना अधिकतम विकास कर सके। 
3. राज्यों पर आधारित चिंतन की अवधारणा 
पाश्चात्य राजनीतिक चिंतन नगर, राज्यों पर आधारित था। यूनानियों का यह मत था, कि समाज में आदर्श जीवन की समृद्धि के लिये समाज में रहने वाले प्रत्येक व्यक्ति को राज्य की गतिविधियों में पूर्ण सक्रिय रूप से भाग लेना जरूरी हैं। यह तभी संभव हैं, जबकि राज्य, छोटे-छोटे नगर-राज्य हों। इसलिए यूनानी काल में वहाँ प्रत्यक्ष जनतंत्र और नगर-राज्यों की स्थापना हुई और वे सामाजिक, राजनीतिक जीवन का केन्द्र बने। इसलिए पाश्चात्य राजनीतिक चिन्तकों ने इन्हीं नगर-राज्यों को ध्यान में रखकर अपने बहुमूल्य विचार प्रस्तुत किये। 
4. राष्ट्रीयता-अन्तर्राष्टीयता का अभाव 
यूनानी राजदर्शन मे राज्यों के संबंध में बहुत कुछ कहा गया किन्तु अन्तर्राष्ट्रीय अथवा राष्ट्रीयता के विषय में कुछ नहीं। समस्त यूनानी राज्य अपने-अपने स्वार्थों से प्रेरित होकर अपने ही राज्य के लिये जीते तथा मरते थे। उसी के लिये कार्य करना, सोचना-विचारना, उसे संगठित करना, उसमें सुखी-समृद्ध जीवन व्यतीत करना आदि सभी कुछ एक राज्य से संबंधित था। यही कारण था कि यूनान के अन्य राज्य युद्ध में भी भाग लेते थे, जबकि यूनान की भौगोलिक स्थिति उसकी राजनैतिक शांति के लिये उत्तरदायी थी। राज्यों के संघ बनाना आदि भी उस युग में अनावश्यक विचार था।
5. नगर राज्य 
यूनान के राजनीतिक जीवन की इकाई वहां का नगर राज्य (Polis) था अतः नगर ही यूनानियों के चिंतन का मुख्य केंद्र बना वहां मनुष्य राजनीतिक प्राणी इस अर्थ में समझे जाते थे कि वे नगर राज्य के सदस्य थे। यूनानियों में स्थानीयता की भावना तीव्र और प्रखर थी तथा नगरों के प्रति बड़ी निष्ठा थी। एक नगर वासी दूसरे नगर राज्य में चला जाता था तो वह स्वयं को विदेशी समझता था यूनानी नगर राज्य स्वावलंबी थे और उनमें राज्य तथा व्यक्ति एक दूसरे पर आश्रित थे। राज्य के कार्य राजनीतिक, शैक्षणिक एवं नैतिक तीनों ही प्रकार के थे किन्तु इन कार्यों का कोई विधिवत बंटवारा नहीं था। यूनानी नगर राज्यों में राष्ट्रीयता तथा अंतर्राष्ट्रीयता की भावना का अभाव था। नगर राज्यों में परस्पर संघर्ष और युद्ध होते रहते थे। समानता तथा भ्रातृत्व के सिद्धांतों में यूनानी विचारकों का विश्वास नहीं के बराबर था। उनकी अपनी दृष्टि में यूनानियों के अतिरिक्त अन्य सभी व्यक्ति निम्न कोटि के थे इसलिए उन्होंने दास प्रथा को राजनीतिक जीवन और यूनानी सभ्यता के लिए आवश्यक माना। 
6. विवेकवादी चिंतन 
यूनानी राजनीतिक चिंतन को विवेकवादी चिंतन भी कहा जाता है। वे विवेक को महत्व देते थे और उन्होंने तर्क के आधार पर निष्कर्षों को स्वीकार करने के लिए आग्रह किया। वे श्रद्धा एवं अंधविश्वासों से दूर थे। प्लेटो ने कुछ मौलिक बुद्धिजीवी मान्यताओं के आधार पर अपने दर्शन का प्रतिपादन किया। अरस्तू की विचारधारा पूर्णत : वैज्ञानिक थी। यूनानी विचारक विवेक द्वारा समस्याओं का समाधान करना चाहते थे। उन्होंने चितन द्वारा निष्कर्ष पर पहुंचने का प्रयत्न किया तथा उन विचारों में कोई विश्वास प्रकट नहीं किया जिनके कारण ईश्वर तथा मानवेतर किसी अमूर्त सत्ता की स्थापना की जा सके।
7. दास प्रथा 
यूनानी राजनीतिक चिंतन को तत्कालीन दास प्रथा ने भी पर्याप्त रूप से प्रभावित किया था। यूनानी विचारकों ने समानता को अनुचित एवं अवांछनीय माना और जन्मजात असमानता के आधार पर दासों को नागरिकता के अधिकारों से वंचित रखा। 
8. राज्य एक नैतिक संस्था
यूनानी विचारक राज्य को एक नैतिक संस्था मानते थे। उन्होंने राज्य को उच्चतम जीवन का श्रेष्ठतम साधन माना। उनकी मान्यता थी कि राज्य के अभाव में आदर्श की स्थापना असंभव है परंतु यूनान में कुछ ऐसे कटटरपंथी व्यक्तिवादी भी हुए हैं जिन्होंने राज्य के नैतिक महत्व को स्वीकार न कर उसे एक मानवकृत संस्था के रूप में ग्रहण किया है। इस संबंध में सोफिस्ट, एपीक्यूरियन एवं सिनिक संप्रदाय का उल्लेख विशेष रूप से महत्वपूर्ण कहा जा सकता है। राज्य को नैतिक संस्था मानने का ही एक स्वाभाविक परिणाम था कि यूनानी राजनीतिक चिंतन में यह माना गया कि राज्य और व्यक्ति के हित परस्पर विरोधी नहीं है। राज्य का अपना सजीव व्यक्तित्व है जिसमें वह नागरिकों के व्यक्तित्व को समेट लेता है। व्यक्ति के लिए राज्य के माध्यम से ही अपने आदर्शों को प्राप्त करना संभव है अतः राज्य के कार्यों की कोई सीमा निर्धारित नहीं की जा सकती है। 
9. समाज और राज्य में विभेद 
यूनानी विचारकों से समाज और राज्य के बीच कोई स्पष्ट भेद नहीं किया। उनके अनुसार समाज और राज्य अलग-अलग इकाई न होकर एक-दूसरे की अभिन्न इकाई हैं।
10.  विभिन्न प्रकार की शासन पद्धतियां 
प्राचीन यूनानी राज्यों में विभिन्न प्रकार की शासन पद्धतियां प्रचलित थी। जैसे कुलीनतंत्र  Aristocracy) राजतंत्र (Monarchy) अन्यायतंत्र (Tyranny) एवं लोकतंत्र (Democracy) आदि। 
11.  न्याय को महत्व 
प्राचीन यूनान में न्याय को सर्वाधिक महत्व प्रदान किया गया था। उनके विचार में सर्वोच्च शासन प्रणाली वही थी जिसमें न्याय का पालन किया गया हो। प्लेटो ने अपने सर्वाधिक महत्वपूर्ण ग्रंथ 'रिपब्लिक' को न्याय से संबंधित (Concerning Jusice) कहकर संबोधित किया था। इस प्रकार प्राचीन युग में पाश्चात्य राजनीतिक चिंतन धर्म निरपेक्षता, बुद्धिवाद, आध्यात्मवा , भौतिकवाद आदि विशेषताओं से युक्त था तथा राज्य के हितों के संपादन के साथ-साथ व्यक्ति को अपने विकास के लिए पूर्ण स्वतंत्रता देता था।

निष्कर्ष 

पाश्चात्य राजनीतिक चिंतन की उपर्युक्त विशेषताओं का अध्ययन कर यह कहा जा सकता हैं कि यह मध्ययुगीन और आधुनिक चिंतन से भिन्न था। उपरोक्त कथन से यह अर्थ निकालना तो गलत होगा कि इन यूनानियों के विचारों का आधुनिक युग में कोई महत्व नहीं हैं। यद्यपि आजकल नगर-राज्यों का युग लद गया हैं, परन्तु इससे स्थानीय शासन और नागरिकों के शासकीय कार्यों में सहभागिता का महत्व तो आज भी हैं। 
वास्तव में पाश्चात्य राजनीतिक विचारकों ने (जिसमें सुकरात, प्लेटो और अरस्तू मुख्य हैं) राजनीति विज्ञान को कई महत्वपूर्ण आधारभूत सिद्धांत प्रदान किये। यह ठीक हैं, कि तात्कालिक परिस्थितियों के अनुसार उनका अध्ययन का क्षेत्र सीमित था, परन्तु उनके निष्कर्ष अमूल्य हैं। इनके बहुमूल्य विचारों (जो आज भी महत्वपूर्ण हैं) को पढ़कर ऐसा लगता हैं, कि उनका मानव-स्वभाव और समाज का विश्लेषण इतना सटीक था, कि उनके सूक्ष्मता से अध्ययन किये हुये सिद्धांत आज भी मूल्यवान प्रतीत होते हैं।
 "सुकरात के इस बहुमूल्य विचार से भला किस प्रकार असहमत हुआ जा सकता हैं कि ज्ञान ही सद्गुण हैं और सद्गुण ही ज्ञान हैं।" 
इसी प्रकार प्लेटो की इस देन को भला कैसे झुठलाया जा सकता हैं कि समाज के शासक, दार्शनिक (ज्ञानवान) व्यक्ति होने चाहिए। भला यह कैसे माना जा सकता हैं कि सत्ता मूर्खों के हाथ में सौंप दी जायें। अरस्तू को राजनीति का मूल मंत्र कि मनुष्य एक सामाजिक प्राणी हैं और राज्य का उद्देश्य सद्जीवन हैं, उसका संविधानों का वैज्ञानिक वर्गीकरण, क्रान्ति संबंधी उसके विचार आज भी सत्य हैं। उसकी दासता विभिन्न सरकारी अफसरों को भृत्यों की व्यवस्था कर आज भी प्रशासन का मुख्य सिद्धांत बनी हुई हैं। 
अतः यह कहना अतिश्योक्ति नहीं हैं कि यद्यपि यूनानियों ने छोटे से निवास पर चिंतन किया परन्तु इनके चिंतन में गहराई व शाश्वत सत्य हमें आज भी दिखते हैं।
यह जानकारी आपके के लिए बहुत ही उपयोगी सिद्ध होगी

4 टिप्‍पणियां:
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  1. बेनामी23/9/22, 3:16 pm

    Sir please Athenian Democracy, political thought of Socrates and sophists ka bhi notes upload kijiye..waise apka diya notes bahut helpful hai thank you sooo muchh☺️

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  2. बेनामी20/4/23, 12:51 am

    Apka content bhut unique aur helpful rehta hai hamesha se hr topic ka me aapki website follow krti hu because of good content thank you so much sir for help us

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