5/08/2022

प्लेटो, साम्यवाद का सिद्धांत

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प्रश्न; प्लेटो के साम्यवाद का आलोचनात्मक परीक्षण कीजिए। 
अथवा" प्लेटो के साम्यवाद के सिद्धांत पर प्रकाश डालिए। 
अथवा" प्लेटो के सम्पत्ति एवं परिवार संबंधी विचारों का वर्णन और विवेचन कीजिए। 
अथवा" प्लेटो के साम्यवादी व्यवस्था की आलोचनात्मक व्याख्या कीजिए। 
अथवा" प्लेटो का साम्यवाद क्या हैं? क्या यह व्यावहारिक हैं? 
अथवा" प्लेटो के साम्यवाद सिद्धांत की विस्तार से विवेचनि कीजिए तथा इस सिद्धांत की आलोचना कीजिए। 
अथवा" प्लेटो के साम्यवाद की आधुनिक साम्यवाद के साथ तुलना कीजिए।
अथवा" प्लेटो के साम्यवाद पर एक निबंध लिखिए।
उत्तर--

प्लेटो का साम्यवाद का सिद्धांत

plato ka samyavad ka siddhant;साम्यवाद की योजना-- शिक्षा के पूरक के में 

-- न्याय के लिए शिक्षा तथा साम्यवाद आवश्यक 

-- शिक्षा: आध्यात्मिक उन्नति का सकारात्मक साधन 

-- साम्यवाद: आध्यात्मिक उन्नति का नकारात्मक साधन 

प्लेटो ने रिपब्लिक में न्याय हेतु केवल शिक्षा सिद्धांत का ही नहीं अपितु साम्यवाद के सिद्धांत (Theory of Communism) का भी प्रतिपादन किया हैं। उसकी यह धारणा है कि शिक्षा द्वारा नागरिक के चरित्र-निर्माण का जो वातावरण राज्य में निर्मित होता है उसे नवजीवन एवं नवीन शक्ति प्रदान करने का साम्यवाद पूरक साधन हैं। प्लेटो की आस्था है कि शिक्षा योजना द्वारा ज्ञानवान शासकों का निर्माण किया जायेगा। इन शासकों को कुटुंब तथा सम्पत्ति के प्रलोभनों से मुक्त रखने की आवश्यकता हैं: प्लेटो शासकों के लिए ऐसी सामाजिक आर्थिक व्यवस्था प्रस्तुत करता है जिसमें शासकों की न तो सम्पत्ति ही होगी और न उनके निजी परिवार। प्लेटो इस व्यवस्था को 'सम्पत्ति का साम्यवाद तथा 'पत्नियों' का साम्यवाद कहता हैं।

साम्यवाद की व्यवस्था

साम्यवाद की इस नवीन सामाजिक एवं आर्थिक व्यवस्था को प्लेटो केवल दार्शनिक शासकों तथा सैनिकों पर ही लागू करता है। इस व्यवस्था का स्वरूप कैसा होगा, इस प्रश्न का स्पष्टीकरण यहाँ किया जाता है। प्लेटो के अनुसार साम्यवाद की व्यवस्था के अंतर्गत संरक्षक वर्ग अपने कुटुंब और निजी सम्पत्ति का परित्याग करेंगे जिससे कि राज्य संचालन के कार्य में उनके सम्मुख कुटुंब और सम्पत्ति से पैदा होने वाले मोह उन्हें पथ-भ्रष्ट न कर सकें। जिस तरह शिक्षा का अंतिम लक्ष्य व्यक्ति की आध्यात्मिक उन्नति हैं, उसी प्रकार साम्यवाद का ध्येय भी शासकों की आध्यात्मिक उन्नति करना ही हैं। प्लेटो शिक्षा और साम्यवाद को न्याय की प्राप्ति के दो अभिन्न साधन मानता हैं: शिक्षा न्याय की स्थापना का सकारात्मक आध्यात्मिक साधन हैं। साम्यवाद उसका एक नकारात्मक भौतिक साधन हैं। प्लेटो मानता हैं कि शासक की कर्त्तव्यपरायणता के मार्ग में कुटुंब और सम्पत्ति जैसी संस्थाओं की बाधाएँ आती हैं। साम्यवाद की व्यवस्था इन बाधाओं से दूर करती हैं।  यह शासकों के आध्यात्मिक उत्थान का भौतिक साधन हैं। प्लेटो की मान्यता है कि जब शासक का प्रलोभन देने वाले कुटुंब और निजी सम्पत्ति जैसे कारण ही नहीं रहेंगे तब शासकों के नैतिक उत्थान की संभावनाएँ अधिक हो जायेगी। वास्तव में प्लेटो के साम्यवाद का सिद्धांत उसकी न्याय की धारणा का आवश्यक परिणाम हैं। यदि राज्य की एकता और व्यक्ति के नैतिक उत्थान के लिए न्याय आवश्यक हैं तो न्याय के लिए साम्यवाद भी उतना ही अपरिहार्य हैं जितनी आवश्यक शिक्षा हैं।

प्लेटो के साम्यवाद का स्वरूप 

साम्यवाद की व्यवस्था का क्या स्वरूप हैं, इसे बहुत संक्षेप में यहाँ प्रस्तुत किया जाता है। यह केवल दार्शनिक शासक वर्ग तथा सैनिक वर्ग  पर ही लागू होने वाली व्यवस्था हैं, यह उत्पादक वर्ग पर लागू नहीं होती। इसके अन्तर्गत शासकों की न तो निजी सम्पत्ति होगी और न ही उनके निजी कुटुंब होंगे। शासकों की सामूहिकता की इस जीवन-व्यवस्था को प्लेटो ने 'सम्पत्ति का साम्यवाद' (Community of property) तथा 'पत्नियों का साम्यवाद' (Community of wives) कहा हैं। 

साम्यवाद के समर्थन में प्लेटो के तर्क 

साम्यवाद के समर्थन में प्लेटो के तर्क निम्नलिखित हैं-- 

1. नैतिक तर्क 

साम्यवाद व्यवस्था के समर्थन में प्लेटो का नैतिक तर्क यह है कि इसके द्वारा शासक को समाज की व्यापक व्यवस्था का एक अभिन्न अंग बनाया जाता है। हम जानते हैं कि प्लेटो व्यक्ति को स्वतंत्र एवं स्वार्थमयी इकाई नहीं मानता। व्यक्ति का महत्व केवल इसमें ही है कि वह व्यवस्था का अंग बना रहे एवं नियत स्थान पर बने रहकर नियत कार्य को कुशलतापूर्वक करें। जब प्रत्येक व्यक्ति अपने कार्य को सम्य्क रूप से करेगा एवं दूसरों के कार्यों में स्वार्थभाव से हस्तक्षेप नहीं करेगा, तभी सामाजिक सदाचार की स्थापना होगी। ऐसे नैतिक जीवन की उपलब्धि के लिए प्लेटो संरक्षक वर्ग के लिए साम्यवादी व्यवस्था का प्रतिपादन करता हैं। सरांश यह हैं कि साम्यवाद समाज के नैतिक जीवन के लिए आवश्यक हैं।

2. मनोवैज्ञानिक तर्क 

प्लेटो ने साम्यवाद के समर्थन में जो दूसरा तर्क प्रस्तुत किया है वह मनोवैज्ञानिक है। हम देख चुके है कि प्लेटो के आदर्श राज्य के दो वर्ग-शासक एवं सैनिक- आत्मा के विवेक एवं साहस तत्व का प्रतिनिधित्व करते हैं। 'विवेक' एवं 'साहस' को यदि निष्ठा और निःस्वार्थ भाव से कार्य करना है तो उनके लिए यह परमावश्यक है कि वे 'क्षुधा' के प्रलोभनों एवं प्रताड़नाओं से मुक्त रहे। दूसरे शब्दों में, दार्शनिक शासकों एवं सैनिकों को भौतिक वासनाओं से मुक्त रहना चाहिए: न्याय के लिए विवेक और साहस को वासना से मुक्त रहना चाहिए। केवल साम्यवाद द्वारा विवेक का शासन भौतिक प्रलोभनों से मुक्त रह सकता है। साम्यवाद की पुष्टि में प्लेटो का यही मनोवैज्ञानिक तर्क है कि दार्शनिक शासन हेतु 'विवेक' को 'वासना' तत्व से पूर्णतः मुक्त रखा जाये जिसमें कि निःस्वार्थ विवेक सामाजिक हित के कार्य में लग जाये: शासक को क्षुधा/वासना से पूर्णतः मुक्त रखा जाये जिससे कि निःस्वार्थ शासक सामाजिक हित के कार्य में जुट जाये। 

3. व्यावहारिक तर्क 

प्लेटो व्यावहारिक अथवा राजनीतिक आधार पर भी साम्यवाद को उचित मानता हैं। प्लेटो की यह दृढ़ धारणा है कि शासकों के हाथों में राजनीतिक और आर्थिक शक्तियों का केन्द्रीकरण नहीं होना चाहिए। राजनीतिक और आर्थिक शक्तियों का केन्द्रीकरण राजनीतिक जीवन की शुद्धता अथवा पवित्रता के लिए घातक सिद्ध होता है। इससे शासक वर्ग में भ्रष्टचारी एवं स्वार्थी मनोवृत्ति उत्पन्न होती हैं। जब शासकों का न तो कुटुंब होगा और न ही उनकी निजी सम्पत्ति होगी तब उन्हें पथ-भ्रष्ट करने वाली भ्रष्टाचारी मनोवृत्ति समूल नष्ट हो जायेगी जिससे शासक निःस्वार्थ भाव से सामाजिक हित के लिए समर्पित होकर कार्य कर सकेंगे। 

4. दार्शनिक तर्क

प्लेटो ने दार्शनिक आधार पर भी साम्यवाद व्यवस्था को उचित माना है। साम्यवाद का सिद्धांत प्लेटो के कार्यों के विशेषीकरण के सिद्धांत पर आधारित हैं। उसकी यह धारणा है कि जिन लोगों के कंधों पर शासन का विशिष्ट दायित्व हैं उनका जीवन भी विशिष्ट शैली का होना चाहिए। उच्चादर्श की प्राप्ति के लिए समर्पित जीवन सांसारिक प्रलोभनों से मुक्त होना चाहिए। इसी दार्शनिक आधार पर प्लेटो ने दार्शनिक के लिए कुटुम्बहीन एवं सम्पत्तिहीन साम्यवादी जीवन शैली का प्रतिपादन किया हैं।

प्लेटो के साम्यवाद सिद्धांत की विशेषताएं

प्लेटो के साम्यवादी सिद्धांत की निम्नलिखित विशेषताएं हैं--

1. यह व्यवस्था राज्य के सभी वर्गों पर लागू नहीं होती। यह केवल दार्शनिक शासक और सैनिक वर्ग के लिए हैं, उत्‍पादक वर्ग के लिए नहीं। इसीलिए यह कहा जाता हैं कि प्लेटो का साम्यवाद 'अर्द्ध साम्यवाद' हैं क्योंकि यह व्यवस्था समाज के केवल आधे भाग पर, केवल शासक वर्ग पर लागू होती हैं, उत्‍पादक वर्ग पर नहीं। संरक्षक वर्ग सम्पत्ति और कुटुंब से अछूता रहेगा, उत्‍पादक वर्ग के लोगों की निजी सम्पत्ति रहेगी तथा वे अपने कुटुंबों को भी रखेंगे। 

2. दूसरा, प्लेटो का साम्यवाद समाज के आर्थिक ढाँचे को यथावत् बनाए रखता हैं। आधुनिक समाजवादियो की तरह यह उत्‍पादन के साधनों पर राज्य अथवा समाज का आधिपत्य स्थापित नहीं करता। प्लेटो के साम्यवाद में सम्पत्ति के समाजीकरण अथवा राष्ट्रीयकरण का कोई प्रश्न ही नहीं उठता। यहाँ उत्‍पादन वर्ग के हाथों में निजी सम्पत्ति रहती हैं। आधुनिक प्रशासन की भाषा में यह कहा जा सकता है कि यह व्यवस्था आर्थिक जीवन के व्यक्तिवादी प्रबन्ध की व्यवस्था हैं। जिसका नियंत्रण राज्य हितार्थ किया जाता हैं। 

3. प्लेटो का साम्यवाद समाज में एकता की स्थापना को अपना परम लक्ष्य मानता हैं। समानता स्थापित करना उसका लक्ष्य नहीं हैं। साम्यवादी व्यवस्था को लागू करने के पीछे प्लेटो का मन्तव्य लोकतांत्रीय शासन की स्थापना करना नहीं हैं। उसका उद्देश्य 'बौद्धिक कुलीनतंत्र' के शासन की स्थापना करना है जिसमें शासन की बागडोर थोड़े से ज्ञानी शासकों के हाथों में हैं। साम्यवाद का प्रयोजन केवल इन थोड़े से शासकों के जीवन को नियन्त्रित करने के लिए हैं जिससे कि व आर्थिक और कौटुम्बिक प्रलोभनों से दूर रहते हुए सामाजिक हित के लिए कार्य करते रहें। 

4. प्लेटो के साम्यवाद का लक्ष्य आर्थिक सुख की प्राप्ति नहीं हैं। उसका लक्ष्य नागरिकों के आर्थिक स्तर का ऊँचा उठाना नहीं हैं। वास्तव में प्लेटो के आदर्श राज्य का शासक वर्ग 'निर्धनता की साझेदारी' का जीवन बिताता हैं जिसके पास न भूमि हैं, न घरबार हैं, और न ही निजी सम्पत्ति। समाज से प्राप्‍त भोजन, बैरकों में सामूहिक से रहना तथा सोनेचाँदी और आभूषणों के हाथ न लगाना, ऐसी उनकी जीवन शैली हैं। उनका जीवन त्याग का हैं, भौतिक सुखों के भोग का नहीं। प्लेटो का साम्यवाद साधुवादी हैं जिसमें राज्य के श्रेष्ठ व्यक्ति आर्थिक सुख-सुविधाओं का त्याग करते हैं। प्लेटो के साम्यवाद का उद्देश्य राजनीतिक हैं, आर्थिक नहीं। यह राज्य की एकता की आकांक्षा करता हैं, आर्थिक सुधार की नहीं।

प्लेटो के साम्यवाद के प्रकार  (plato ka samyave prakar)

प्लेटो का साम्यवाद दो प्रकार का है- 

1. सम्पत्ति का साम्यवाद 

2. पत्नियों का साम्यवाद  

प्लेटो का सम्पत्ति संबंधी साम्यवाद  

व्यक्तिगत सम्पत्ति का उन्मूलन प्लेटो की साम्यवादी विचारधारा का एक अंग है। प्लेटो की धारणा है कि व्यक्तिगत सम्पत्ति व्यक्ति को स्वार्थी लालची, ईर्ष्यालु प्रतिद्वन्द्वी और हीन बनाती है और राज्य की एकता और न्याय को संकट में डाल देती है। 

अत : प्लेटो अपने आदर्श राज्य के दार्शनिक शासकों और सैनिकों को व्यक्तिगत सम्पत्ति से वंचित रखता है। वह धन या सम्पत्ति को अनैतिक बतलाते हुए कहता है कि एक ही व्यक्ति के हाथ में सम्पत्ति और शासन की शक्ति रहने से वह पथभ्रष्ट होकर भीषण परिस्थितियों उत्पन्न कर सकता है। 

अतः सम्पत्ति को शासन से अलग रखना ही श्रेयस्कर है शासक तथा सैनिक वर्ग निजी सम्पत्ति के अधिकारी नहीं बन सकते। 

प्लेटो संरक्षक वर्ग के लिए सम्पत्ति विषयक साम्यवाद का प्रतिपादन करते हुए कहता है कि, " पहली बात यह है कि उनके पास तो केवल उतनी ही सम्पत्ति होगी जितनी जीवन के लिए नितान्त अनिवार्य है। न तो उनके पास अपना कोई घर होगा और न कोई ऐसा गोदाम जो सबके लिए खुला न हो। उन्हें सामान्य भोजनालयों में भोजन करना चाहिए। सिपाहियों की तरह डेरों में रहना चाहिए और केवल ये ही ऐसे नागरिक हैं जिन्हें सोना-चांदी छूना तक नहीं चाहिए। इसी में उनकी मुक्ति है और ऐसा करने से वे राज्य के रक्षक बन सकेंगे।"

प्लेटो की साम्यवादी व्यवस्था में संरक्षक वर्ग के पास किसी प्रकार की कोई सम्पत्ति नहीं होगी। उनकी सेवाओं के पुरस्कारस्वरूप उत्पादक वर्ग उन्हें प्रति वर्ष वस्तुओं के रूप में निश्चित वेतन देगा। इन वस्तुओं का उपयोग एवं स्वामित्व भी व्यक्तिगत आधार पर नहीं होगी, सामूहिक रूप से ही वे इनका उपयोग कर सकेंगे। 

राज्य के तीसरे वर्ग- उत्पादक वर्ग (Producing Class) को ही प्लेटो ने व्यक्तिगत सम्पत्ति रखने का अधिकार दिया है। राज्य के अंग के रूप में इस वर्ग का गुण क्षुधा  (Appetite) है, अतः सम्पत्ति पैदा करने एवं संचय करने का अधिकार केवल इसी को दिया जा सकता है, किन्तु प्लेटो इस वर्ग को यह अधिकार स्वच्छन्द रूप से प्रदान नहीं करता। यह वर्ग सम्पत्ति का उत्पादन राज्य के कठोर नियन्त्रण में ही करेगा। सरकार व्यापार व्यवसाय तथा उद्योग-धन्धों पर कठोर नियन्त्रण रखेगी। राज्य इस बात को भी ध्यान में रखेगा कि उत्पादक वर्ग में कोई बहुत अधिक धनी तथा कोई बहुत अधिक निर्धन न हो जाय। कतिपय हाथों में धन का बाहुल्य होना तथा बहुसंख्यक लोगों का आर्थिक अभाव से पीड़ित होना- ये दोनों ही स्थितियां प्लेटो के अनुसार आदर्श राज्य के लिए अवांछनीय है। यह आर्थिक क्षेत्र में व्यक्तिगत आधार पर उत्पादन एवं राज्य नियन्त्रण (State Control) का समर्थक है। 

प्लेटो के अनुसार राज्य को न केवल सम्पत्ति के अत्यधिक बाहुल्य एवं अत्यधिक न्यूनता को ही नियन्त्रित करना है, बल्कि यह भी देखना कि सम्पत्ति उचित साधनों से अर्जित की गई है अथवा नहीं ऊंचे ब्याज पर अथवा अधिक मुनाफा रखकर किया गया सम्पत्ति का संचय उसने अनुचित माना है। कृषि विषय में प्लेटो का यह विचार था कि उत्पादन व्यक्तिगत आधार पर किया जाये और भूमि पर व्यक्तिगत स्वामित्व हो भूमि प्रकृति की देन है, अतः सभी कृषकों में इसका समान रूप से वितरण किया जाना चाहिए सभी प्रकार की सम्पत्ति के उपयोग के बारे में प्लेटो ने यह विचार व्यक्त किया है कि यह उपयोग किसी भी तरह से समाज के लिए अनिष्टकारी सिद्ध नहीं होना चाहिए। समाज के सभी वर्गों के उचित हितों को ध्यान में रखकर सम्पत्ति के उपयोग की व्यवस्था की जानी चाहिए क्योंकि अन्ततोगत्वा सम्पत्ति समाज के द्वारा ही पैदा की जाती है। 

प्लेटो के सम्पत्ति विषयक साम्यवाद की विशेषताएं

प्लेटो के सम्पत्ति विषयक साम्यवाद की निम्नलिखित विशेषताएँ हैं--

1. यह साम्यवाद सभी नागरिकों के लिए नहीं, वरन् केवल शासक और सैनिक वर्ग के लिए है इसका उद्देश्य यद्यपि सम्पूर्ण समाज का कल्याण है किन्तु इसे सम्पूर्ण समाज के द्वारा व्यवहार में नहीं लाया जाता है। 

2. इसका उद्देश्य राजनीतिक है , आर्थिक नहीं है। आधुनिक साम्यवाद की तरह इसका उद्देश्य आर्थिक विषमता दूर करना नहीं वरन् राजनीति और शासन व्यवस्था को दोषमुक्त करना है। 

3. प्लेटो का साम्यवाद भोग का नहीं वरन् त्याग का मार्ग है। यह समाज के शासक वर्ग को कंचन और कामिनी का मोह छोड़कर जनकल्याण में रत रहने के लिए प्रेरित करता है। 

फोस्टर के शब्दों में, " प्लेटो के संरक्षक वर्ग को सामूहिक रूप से सम्पत्ति का स्वामित्व ग्रहण करना नहीं वरन् इसका त्याग करना है।"  

प्लेटो के सम्पत्ति विषयक साम्यवाद के पक्ष में तर्क  

सम्पत्ति के साम्यवाद के औचित्य को सिद्ध करने के लिए प्लेटी ने नैतिक, दार्शनिक, मनोवैज्ञानिक, व्यावहारिक और राजनीतिक तक के रूप में अनेक आधार प्रस्तुत किये हैं, परन्तु सम्पत्ति के साम्यवाद का मूल आधार व्यावहारिक तथा राजनीतिक है। प्रमुख आधार इस प्रकार हैं-- 

1. मनोवैज्ञानिक आधार 

प्लेटो आत्मा के तीन तत्य या विशेष गुण मानता है विवेक, शौर्ष और इन्द्रिय तृष्णा इन तीनों गुणों के आधार पर प्लेटों ने समाज को तीन वर्गों में बांटा है- शासक, सैनिक और उत्पादक वर्ग प्लेटो के अनुसार प्रत्येक व्यक्ति को अपने कर्तव्य का पालन करना चाहिए और शासक तथा सैनिक वर्ग के लिए अपने कर्तव्य पालन के लिए आर्थिक वृत्तियों का त्याग किया जाना आवश्यक है क्योंकि यदि वे ऐसा नहीं करेंगे तो उनमें विवेक एवं शौर्य के स्थान पर इन्द्रिय तृष्णा का तत्व प्रबल हो जाएगा। 

इस प्रकार शासक वर्ग में विशुद्ध विवेक तथा सैनिक वर्ग में शीर्ष बनाए रखने के लिए इन वर्गों के संबंध में सम्पत्ति विषयक साम्यवाद को अपनाना आवश्यक है। 

2. दार्शनिक आधार 

प्लेटो के साम्यवाद का दार्शनिक आधार कार्य विशिष्टीकरण एवं विभाजन का सिद्धांत है। इस सिद्धांत का आशय यह है कि जिन्हें शासन जैसा महत्वपूर्ण कार्य सौंपा गया है, उन्हें ऐसे सभी सांसारिक तत्वों से बचकर रहना चाहिए जो शासन कार्य में बाधा डालते हैं धन एक ऐसा तत्व है, अत : संरक्षक वर्ग को इससे अलग रखा जाना चाहिए। इसके अतिरिक्त जब शासकों का प्रशिक्षण विशिष्ट कार्य के लिए हुआ है तो उन्हें श्रेष्ठ नियमों के अधीन होना चाहिए।

3. नैतिक आधार 

बार्कर के अनुसार, " सम्पत्ति के उन्मूलन के लिए जो तर्क उसने प्रस्तुत किये हैं, वे पूर्णतया नैतिक है।"

प्लेटो के राजनीतिक चिन्तन का एक प्रमुख उद्देश्य व्यक्ति एवं समष्टि (राज्य-समाज) के पारस्परिक संबंधों को समुचित स्वरूप निर्धारित करने का था। यह इस गलत धारणा को समूल नष्ट करना चाहता था कि व्यक्ति का इकाई के रूप में केवल मात्र अपने सन्तोष के लिए ही अस्तित्व है। उसकी मान्यता थी कि जिस सम्पूर्ण जीवन की कामना एवं लालसा किसी व्यक्ति को होनी चाहिए। उस सम्पूर्ण जीवन को प्राप्ति केवल तभी हो सकती है जबकि व्यक्ति समष्टि (राज्य) के एक अंग के रूप में अपने अस्तित्व को स्वीकार करे और अपने योग्य स्थान तथा कार्यक्षेत्र का निर्धारण करके अपने कर्तव्यों का अत्यन्त निष्ठा के साथ पालन करे। इस प्रकार जीवन को अनुशासित करने को ही प्लेटो ने न्याय की संज्ञा दी है। साम्यवाद 'प्लेटो की दृष्टि में' न्याय के सिद्धांत का एक अनिवार्य परिणाम है, अतः राज्य के दो वर्गों दार्शनिक शासक एवं सैनिक वर्ग के लिए उपयुक्त है कि ये साम्यवाद के अनुशासन में रहें जिससे ये विकतात के साथ अपने कर्तव्यों का समुचित ढंग से पालन कर सकें। 

4. व्यावहारिक आधार 

प्लेटो की साम्यवादी योजना का व्यावहारिक आधार भी है। सम्पत्ति विषयक साम्यवाद को वह इसलिए आवश्यक मानता था कि राज्य की राजनीतिक शक्ति तथा आर्थिक शक्ति का एक ही हाथों में आ जाना किसी भी प्रकार से बांछनीय नहीं है। साथ ही उसमें अनेक गम्भीर खतरे छिपे हुए हैं। आर्थिक एवं राजनीतिक शक्ति का एकीकरण 'आदर्श राज्य' के अस्तित्व को बड़े भारी संकट में डाल सकता है क्योंकि यह एकीकरण शासक के विवेक को कण्ठित कर देता है। यह निःस्वार्थता, सेवा तथा कर्तव्यपरायणता को तिलांजलि देकर एक अन्धे एवं विवेकहीन की भांति अपनी समस्त राजनीतिक शक्ति का प्रयोग अधिकतम व्यक्तिगत आर्थिक लाभ के लिए करने लगता है। उसके इस प्रकार के अनुचित आचरण की प्रतिक्रिया शासित वर्ग में होती है। वे उसके अज्ञान, लोलुपता तथा स्वार्थपूर्ण व्यवहार से पूणा करने लगते हैं। समय के साथ उनमें (शासक एवं शासित) वैमनस्य की खाई बढ़ने लगती है, जिसके विकराल रूप धारण करने पर राज्य के विभाजन एवं समाज के अन्त होने तक का खतरा पैदा हो जाता है। 

अतः व्यावहारिकता का यह तकाजा है कि इस प्रकार के सम्भावित खतरे से त्राण पाने के लिए शासक वर्ग को सम्पत्ति के स्वामित्व से सदैव वंचित रखा जाये। 

5. राजनीतिक आधार 

सेबाइन के शब्दों में, "प्लेटो का साम्यवाद मुख्यत : राजनीतिक उद्देश्य लिए हुए था।" साम्यवाद की स्थापना में प्लेटो ने अनेक राजनीतिक समस्याओं का समुचित समाधान देखा है। इस सिद्धांत से एक राजनीतिक समस्या यह हल होगी कि राज्य की एकता तथा खुशहाली निरन्तर बनी रहेगी, क्योंकि राज्य के विभिन्न वर्गों के लोगों में पद-लोलुपता से उत्पन्न प्रतिस्पर्द्धा का अभाव होगा वे अपने दायित्वों को पूरा करने में श्रेष्ठ ढंग से निरन्तर लगे रहेंगे। बार्कर ने इस सिद्धांत का राजनीतिक आधार इस कारण से माना है कि यह सिद्धांत केवल मात्र शासक वर्ग के लोगों के लिए है। अत : इसका संबंध राज्य के उन लोगों से है जिनके हाथ में राजनीतिक जीवन की बागडोर है । 

प्लेटो के सम्पत्ति के साम्यवाद का मूल्यांकन अथवा आलोचना

प्लेटो के सम्पत्ति के साम्यवाद की अनेक आधारों पर आलोचना की गई है। आलोचकों का कथन है कि यह 'अर्द्ध - साम्यवाद' है। यह एक राज्य में दो राज्यों को जन्म देता है। यह एकता के स्थान पर विघटन उत्पन्न करता है; यह अतिवादी, अस्पष्ट और मानव प्रकृति तथा स्वभाव के विपरीत है। यह आध्यात्मिक रोग के लिए भौतिक उपचार प्रस्तुत करता है जो अपर्याप्त है। प्लेटो के सम्पत्ति के साम्यवाद की आवोचना निम्नलिखित आधार पर की जाती  है-- 

1. अर्द्ध साम्यवाद 

प्रो. बार्कर और प्रो नैटिलशिप का मत है कि प्लेटो का सम्पत्ति का साम्यवाद अर्द्ध साम्यवाद है क्योंकि यह समाज के सभी वर्गों पर लागू नहीं होता। यह तो समाज के केवल दो वर्गों (शासक व सैनिक वर्ग) पर ही लागू होता है जो संख्या में अत्यधिक अल्पमत में है।

2. अव्यावहारिक एवं नकारात्मक 

प्लेटो का साम्यवाद अव्यावहारिक भी है और नकारात्मक भी यह राज्य की समस्त जनता के भौतिक कल्याण की बात नहीं करता उत्पादकों को व्यक्तिगत सम्पत्ति का अधिकार देकर और शासकों तथा सैनिकों को उससे वंचित रखकर यह राज्य की एकता को बनाये रखने के स्थान पर विभाजन को बढ़ावा देता है। यह एक राज्य में दो राज्यों को जन्म देता है। 

3. सम्पत्ति की समस्याओं को सुलझाने में असमर्थ 

सम्पत्ति का साम्यवाद सम्पत्ति से उत्पन्न होने वाली समस्याओं झगड़ों और जटिलताओं को समुचित रूप से सुलझाने में भी असमर्थ है। जो वर्ग (शासक वर्ग) सम्पत्तिविहीन है। एक तो वह सम्पत्ति से उत्पन्न होने वाली समस्याओं को समझ नहीं सकता और दूसरे उसके द्वारा किए गए समाधान अपर्याप्त एवं अनुचित होंगे। नैतिक जीवन बिताने वालों और सम्पत्ति के संबंध में अनुभवहीन व्यक्तियों से सम्पत्ति की समस्याओं के समुचित समाधान की आशा कोरा आदर्शवाद हैं।

4. मानव प्रकृति और स्वभाव के विपरीत

युगों-युगों से व्यक्तिगत सम्पत्ति मानव व्यक्तित्व की अभिव्यक्ति और उसके सामाजिक स्तर का चिन्ह रही है। अतः व्यक्तिगत सम्पत्ति से समाज के एक बहुत बड़े भाग को मंचित करना मानव प्रकृति की उपेक्षा करना ही नहीं बल्कि व्यक्ति के व्यक्तित्व को प्रगति को अवरुद्ध करना भी है। 

अरस्तू द्वारा प्लेटो के सम्पत्ति विषयक साम्यवाद की आलोचना  

प्लेटो के प्रमुख शिष्य अरस्तू ने प्लेटो के सम्पत्ति विषयक साम्यवाद की निम्न प्रकार से आलोचना की है-- 

1. अरस्तू के अनुसार प्लेटोका साम्यवाद 'आध्यात्मिक बुराइयों का भौतिक निदान' है जिसके परिणाम आशनुकूल नहीं हो सकते।

2. प्लेटका साम्यवाद समाज की वेदी पर व्यक्ति का बलिदान कर देता है। 

3. साम्यवाद जीवन के सामान्य अनुभव के विरुद्ध है।

4. यह व्यवस्था समाज में झगड़ों और फूट को बढ़ाने वाली है। वैयक्तिक सम्पत्ति में व्यक्तिगत स्वार्थ का क्षेत्र अलग होने से पारस्परिक कलह का एक मुख्य कारण दूर हो जाता है , साम्यवाद में वैयक्तिक क्षेत्र सुनिश्चित न होने के कारण विवाद अधिक होगा। समाज की उन्नति अवरुद्ध हो जायेगी। 

5. प्लेटो का साम्यवाद उत्पादक वर्ग पर लागू नहीं किया गया है जिसकी संख्या समस्त जनसंख्या की आधे से भी अधिक होती है। इस प्रकार यह राज्य की समस्त जनसंख्या के भौतिक कल्याण का ध्यान नहीं रखता और राज्य को दो विषम समुदायों में बाट देता है जिससे देश की एकता बनाए रखना असम्भव हो जाता है। 

6. मनुष्य में यह स्वाभाविक प्रवृत्ति है कि वह अपनी निजी सम्पत्ति रखना चाहता है, उसमें गर्व और गौरव का अनुभव करता है, उसे बढ़ाने में दिन-रात लगा रहता है। किसी वस्तु को अपना समझने में मनुष्य को अवर्णनीय आनन्द होता है। साम्यवाद में यह लाभ नहीं मिल सकता है। 

7. इससे परोपकार और उदारता की श्रेष्ठ मानवीय सम्भावनाएँ नष्ट हो जायेंगी क्योंकि परोपकार संबंधी कार्य वैयक्तिक सम्पत्ति के आधार पर ही कर सकता है। 

8.  प्लेटो राज्य की एकता बनाए रखने के लिए वैयक्तिक सम्पत्ति का अन्त करना चाहता है किन्तु यह एकता उपयुक्त शिक्षा द्वारा ही प्राप्त की जा सकती हैं, न की साम्यवाद के द्वारा।

प्लेटो का परिवार अथवा पत्नियों का साम्यवाद 

प्लेटो अभिभावक वर्ग के लिए निजी सम्पत्ति को ही निषिद्ध नहीं करता अपितु उनके निजी कुटुंबों को भी समाप्त कर कुटुंब के अथवा पत्नियों के साम्यवाद की व्यवस्था की योजना को रिपब्लिक में प्रस्तुत करता हैं। इस योजना के अनुसार दार्शनिक शासकों तथा सैनिकों के निजी परिवार नहीं होंगे। राज्य द्वारा केवल उनके 'अस्थायी' विवाह की व्यवस्था की जायगी जिससे उत्पन्न संतान को राज्य द्वारा ले लिया जाएगा, किन्तु शासकों को यह पता नहीं लगने दिया जायेगा कि उनकी संतान कौन हैं और न ही संतान को यह पता होगा कि उनके माता-पिता कौन हैं।

यह योजना उसके सम्पत्ति के साम्यवाद का तार्किक उपप्रमेय है। प्लेटो की राज्य की सर्वोच्च एकता को स्थापित करने की अभिलाषा तब तक पूर्ण नहीं हो सकती जब तक कि वह संपत्ति के प्रयोजन हेतु आवश्यक संस्था परिवार को समाप्त नहीं करता। प्लेटो परिवार को इस उद्देश्य में बाधक मानता है। अतः वह परिवार के साम्यवाद की योजना को भी दर्शाता है। 

इससे पूर्व कि हम प्लेटो के परिवार के साम्यवाद की व्यवस्था के उद्देश्यों का विवेचन करें कुछ तथ्यों को अवश्य एवम् स्पष्टतः ध्यान में रखा जाना चाहिए। प्रथमतः संपत्ति के साम्यवाद की ही तरह यह योजना भी केवल संरक्षक वर्गों अर्थात् शासक एवम् सैनिकों पर लागू होगी। द्वितीयतः प्लेटो परिवार के साम्यवाद की योजना को कहीं अधिक विस्तार से बताता है साथ ही ऐसी व्यवस्था की आलोचना का प्रत्युत्तर भी सशक्त रूप में देता है। तृतीयतः जैसा कि फोस्टर का मानना है," पत्नियों के साम्यवाद की योजना प्लेटो द्वारा दर्शायी गई सर्वाधिक विलक्षण संस्था है, और यह बिल्कुल वैसे ही है जैसे कि दर्शन का शासन उसके द्वारा दर्शायी गई सर्वाधिक मौलिक संस्था है।' अरस्तू ने भी इस बात की ओर इशार किया था कि ऐसे अनूठेपन का प्रवर्तन अन्य किसी व्यक्ति द्वारा नहीं किया गया था। चौथे, निःसंदेह एथेंस में ऐसी किसी व्यवस्था के पूर्वोदाहरण नहीं मिलते परन्तु स्पार्टा में महिलाऐं पुरुषों के समान ही सैनिक प्रशिक्षण प्राप्त करती थीं, वहाँ पर महिलाओं का दायित्व राज्य के लिए सन्तानोत्पत्ति माना जाता था। अतः महिलाऐं भी राज्य की सेवा हेतु पुरुषों के समान ही अपनी भूमिका निर्वहित करती थीं, पाँचवें, एथेंस में महिलाओं की स्थिति को संतोषप्रद नहीं कहा जा सकता था। उनकी भूमिका बच्चों के पालन पोषण तथा घर के दैनिक कार्यों तक ही सीमित थी, सार्वजनिक मामलों में उनकी कोई भूमिका नहीं थी महिलाओं को ऐसी स्थिति प्लेटो को स्वीकार्य नहीं थी वह इस स्थिति में सर्वप्रथम कुछ सुधारों को सुझाता है। प्लेटो द्वारा पत्नियों के साम्यवाद (परिवार के साम्यवाद) की योजना को बताने के पीछे तीन मुख्य उद्देश्यों को देखा जा सकता है-- 

1. राजनीतिक उद्देश्य 

परिवार की समाप्ति के पीछे प्लेटो का एक प्रमुख लक्ष्य राज्य की सर्वाधिक एकता को स्थापित करना था। इसी लक्ष्य की प्राप्ति हेतु वह संरक्षक वर्ग के वैयक्तिक संपत्ति रखने के अधिकार को समाप्त करता है क्योंकि वह संपत्ति को एकता के मार्ग की बड़ी बाधा समझता है। प्लेटो परिवार को राज्य की एकता का शत्रु मानता है। अतः वह संरक्षक वर्ग के लिए वैयक्तिक परिवार की अनुमति नहीं देता प्लेटो के अनुसार परिवार प्रेम राज्य-स्वामिभक्ति एवं राज्य की एकता हेतु एक प्रबल प्रतिद्वंद्वी के रूप में उपस्थित हो जाता है। अनुभव भी ऐसा ही दर्शाता है कि परिवार बनाम राज्य के संघर्ष में व्यक्ति की प्रथम प्राथमिकता परिवार ही होता है। इसलिए प्लेटो परिवार को स्वार्थ का केन्द्र मानकर इसकी भर्त्सना करता है। पारिवारिक स्वार्थ विकृत होकर पारिवारिक संघर्ष, अव्यवस्था एवं राजद्रोह में परिणत हो सकते हैं। 

अतः प्लेटो नागरिकों में राज्य के प्रति स्वामिभक्ति के स्थान पर पारिवारिक स्वामिभक्ति न जन्म ले सके इस उद्देश्य से परिवार की समाप्ति की वकालत करता है। संभवतः वह वैयक्तिक स्तर पर परिवार के स्थान पर सार्वजनिक स्तर पर परिवार को स्थापित करता है, जैसा कि बार्कर का कथन भी है वह परिवार को राज्य में आयातित कर देता है। वह राज्य को परिवार और परिवार को राज्य बनाना चाहता था। 

2. नैतिक उद्देश्य 

जैसा कि ऊपर कहा जा चुका है प्लेटो एथेंस में महिलाओं की दयनीय स्थिति को अनुभव करता था। अतः वह महिलाओं को पारिवारिक बंधन के दासत्व से मुक्ति दिलाना चाहता था। उसकी मान्यता थी कि महिलाओं के कार्यक्षेत्र को प्रजनन तथा बच्चों के लालन पोषण तक सीमित कर देने से उनकी प्रतिभा की सेवा हेतु समुचित उपयोग नहीं हो रहा था, साथ ही महिलाएं अपने व्यक्तित्व के विकास से भी वंचित की जा रही थी। प्लेटो का तर्क था कि पुरुष व स्त्री में लिंग भेद के अतिरिक्त प्रतिभा संबंधी कोई भेद नहीं है। समान प्रशिक्षण देकर महिलाओं से पुरुषों जैसी ही प्रतिभा तथा सेवाएं प्राप्त की जा सकती हैं। यहाँ पर प्लेटो राज्य के संरक्षकों की तुलना प्रहरी कुत्तों से करता है और तर्क देता है कि यह भूमिका किसी भी लिंग के कुत्ते से ली जा सकती है तब महिला संरक्षक भी पुरुषों के समान ही राज्य की सेवा कर सकती हैं। प्लेटो द्वारा दर्शाए न्याय के सिद्धान्त की भावना भी ऐसी ही है कि महिलाएं राज्य के प्रति कार्यों व दायित्वों के निर्वहन में अपनी प्राकृतिक क्षमता एवम् प्रशिक्षण के आधार पर पुरुषों के समान समझी जाए। प्लेटो यह भी स्पष्ट कर देता है कि वह अपनी योजना की वकालत मात्र महिलाओं के उद्धार के उद्देश्य से नहीं कर रहा बल्कि यह तो एक उद्देश्य का साधन है और उद्देश्य राज्य की सेवा का है। 

अतः प्लेटो महिलाओं के अधिकारों से कहीं अधिक महिलाओं के कर्तव्यों की शिक्षा दे रहा है।

3. सृजननिकी 

यह उद्देश्य नस्ल सुधार की प्लेटो की योजना है। यहाँ पर वह स्थायी विवाहों की व्यवस्था के स्थान पर अस्थायी विवाहों को सुझाता है ताकि पुरुष एवं महिलाओं के युगलों में से सर्वोत्तम का चयन करके अस्थायी रूप में उनके मध्य राज्य नियंत्रित पद्धति से सर्वोत्तम संतति प्राप्त की जा सके। 

प्लेटो के परिवार के साम्यवाद की योजना का स्वरूप 

प्लेटो के परिवार एवं पत्नियों की यह योजना निम्नवत् है--

1. संरक्षक वर्ग की सभी महिलाएं व पुरुष एक दूसरे के लिए सामूहिक हैं। सभी संरक्षक पुरुष एवं महिलाएं सामूहिक बैरकों में निवास करेंगे। 

2. राज्य इन पुरुषों एवं महिलाओं के मध्य अस्थायी रूप से संगम की व्यवस्था करवाएगा। प्लेटो इस हेतु पुरुषों के पच्चीस से पचास वर्ष के आयु वर्ग तथा महिलाओं के बीस से चालीस वर्ष के आयु वर्ग के लिए सुझाव देता है। 

3. बच्चे का जन्म होने के उपरान्त इन युग्मों को अलग-अलग कर दिया जाएगा और नए युग्म बनाए जाएंगे। 4. सभी उत्पन्न बच्चे सभी संरक्षकों के सामूहिक बच्चे कहलाएंगे। 

5. सभी बच्चों का पालन-पोषण राज्य द्वारा किया जाएगा। 

6. प्लेटो कमजोर बच्चों को समाप्त कर देने की भी सलाह देता है। 

संपति के साम्यवाद और परिवार के साम्यवाद के मध्य एक अंतर यह दिखायी पड़ता है कि जहाँ संपत्ति के साम्यवाद की योजना संपत्ति के सामूहिक त्याग की योजना है वहीं परिवार के साम्यवाद अर्थात् पत्नियों के साम्यवाद में यह योजना पत्नियों/स्त्रियों के सामूहिक स्वामित्व की हैं। 

प्लेटो के परिवार अथवा स्त्रियों के साम्यवाद की आलोचना

साम्यवाद की इस योजना की आलोचना इस आधार पर की जा सकती है कि प्लेटो के उद्देश्य के उचित रहते हुए भी इसके लिए अपनाए गए साधन अनुचित हैं, विशेषकर परिवार के साम्यवाद की योजना कभी भी किसी भी समाज को स्वीकार्य नहीं हो सकती पुनः कुछ आलोचनाएं निम्न बिन्दुओं में दर्शायी जा सकती हैं-- 

1. पुरुष एवं स्त्रियों के मध्य मात्रा का नहीं रूप का अंतर है। 

2. पुरुष व महिलाओं के मध्य संबंध विशेषकर जब वे पति-पत्नियों के रूप में बँधे हों तो वे विवाह से ऊपर आध्यात्मिक भी होते हैं। 

3. एक माता एवं उसके बच्चों का संबंध आंगिक एवं आजीवन संबंध है। 

4. प्लेटो इस योजना द्वारा एक सम्मानजनक नैतिक संस्था (परिवार) को समाप्त करने की वकालत करता है। 

5. प्लेटो अपनी योजना के समर्थन में व्यक्तियों से अत्यधिक आत्मनियंत्रण की मांग करता है जो मुश्किल है। साथ ही वह व्यक्ति को एक साधन बना देता है। 

6. प्लेटो कितना ही तार्किक क्यों न हो, मानव जीवन मात्र तर्क से नहीं चल सकता। 

अरस्तू प्लेटो की इस योजना का बहुत बड़ा आलोचक है। वह विशेषकर निम्नांकित रूपों में इसकी आलोचना करता है-- 

1. प्लेटो राज्य की अति एकता पर बल देता है।

2. इससे समाज में विषमताएं ही जन्म लेंगी। 

3. सामूहिक बच्चे आवश्यक रूप से उपेक्षित रहेंगे क्योंकि जो वस्तु सबकी होती है वह वास्तव में किसी एक की नहीं होती। यह योजना पूर्णतः अव्यावहारिक है। 

4. इस योजना के तहत नजदीकी संबंधियों के मध्य अपवित्र कृत्यों की संभावना बनी रहेगी।

5. इस योजना से संरक्षक वर्ग कभी भी खुश नहीं रह सकते। 

6. ऐसी योजना का कोई पूर्व उदाहरण नहीं देखा जा सकता। 

7. अरस्तू राज्य को आवश्यक रूप से एक बहुलता मानता है। 

निष्कर्ष रूप में इस योजना के बारे में भी यही कहा जाएगा कि प्लेटो के उद्देश्यों में सत्यता हो सकती है पर उसके प्रस्तावों को अपनाने में आपत्ति होगी। यद्यपि यह बात भी ध्यान में रखी जानी चाहिए कि प्लेटो जिस वर्ग के लिए इस योजना को प्रस्तावित करता है उसी वर्ग के लिए वह एक अनिवार्य तथा राज्य नियंत्रित कठोर शिक्षा व्यवस्था को पहले ही बता चुका हैं।

प्लेटो के साम्यवाद की आधुनिक साम्यवाद के साथ तुलना 

प्लेटो के साम्यवाद की आधुनिक साम्यवाद से तुलना किए जाने से पूर्व यह आवश्यक है कि आधुनिक साम्यवाद के अर्थ को जान लिया जाए। आधुनिक साम्यवाद का विचार अपने शास्त्रीय रूप में कार्ल मार्क्स के विचारों में परिलक्षित होता है। मार्क्स को वैज्ञानिक समाजवाद का जनक कहा जाता है। उसके विचार से एक शोषणयुक्त समाज में सदैव से दो वर्गों क्रमशः शोषकों एवं शोषितों (जिनके मध्य वह उत्पादन के साधनों के स्वामित्व के आधार पर अंतर करता है) का अस्तित्व रहा है। मार्क्स संपूर्ण मानव जाति के इतिहास को वर्ग संघर्ष के इतिहास के रूप में दर्शाता है। एक ओर वह अल्पवर्ग है जिसके पास उत्पादन के साधनों का स्वामित्व है, जिसे वह पूँजीपति वर्ग कहता है और दूसरी ओर एक विशाल वर्ग , जिसे वह 'सर्वहारा' की संज्ञा देता है, मजदूरों एवं श्रमिकों का वर्ग है जिसकी एकमात्र शक्ति उसका श्रम है। मार्क्स राज्य को एक ऐसे उपकरण के रूप में देखता है जिसका प्रयोग पूँजीपति वर्ग सर्वहारा के शोषण के लिए करता है उसका उद्देश्य एक 'वर्ग विहीन समाज' की स्थापना करना है जहाँ पर राज्य के लिए कोई स्थान नहीं होगा। 

अतः यह वर्ग विहीन समाज राज्य विहीन समाज होगा मार्क्स की परिकल्पना में यह सर्वहारा वर्ग द्वारा पूँजीपतियों के विरुद्ध क्रांति के माध्यम से संभव है। मार्क्स के विचारों से प्रभावित होकर सर्वप्रथम लेनिन ने रूस में (1917) समाजवादी क्रांति को करवाने में सफलता प्राप्त की पर ऐसी सफलता एक साम्यवादी दल द्वारा प्राप्त की गयी जिसे लेनिन सर्वहारा के संरक्षक के रूप में आवश्यक मानता था। साम्यवादी दलों द्वारा ऐसी क्रांतियाँ कई अन्य देशों में भी संपन्न हुई। परन्तु कहीं पर भी राज्य की समाप्ति नहीं हो पायी राजनीतिक तंत्र साम्यवादी दलों की तानाशाही व्यवस्थाओं के रूप में स्थापित हुए। बीसवीं सदी के अंतिम दशक में रूस तथा पूर्वी यूरोप की ये सारी साम्यवादी व्यवस्थाएं भह गयीं और आज सिर्फ चीन तथा कतिपय छोटे-छोटे राज्यों में ऐसी व्यवस्थाएं देखी जा सकती हैं। 

आधुनिक साम्यवाद का यह परिचय प्लेटो की साम्यवादी योजना के साथ तुलना करने हेतु पर्याप्त है एक विद्वान ने तो यहाँ तक लिखा कि," वस्तुतः समस्त समाजवादियों एवं साम्यवादियों की जड़ें प्लेटो में विद्यमान हैं, परन्तु यह एक अतिशयोक्ति प्रतीत होती है तथापि प्लेटो और आधुनिक साम्यवाद में कतिपय समानताएं ढूंढी जा सकती हैं।

प्लेटो के साम्यवाद और आधुनिक में समानताएं 

प्लेटो के साम्यवाद और आधुनिक साम्यवाद मे निम्नलिखित समानताएं हैं-- 

1. दोनों ही के लिए एक समान आदर्श यह है कि समाज का संगठन सामूहिक सामाजिक सेवाओं के लिए है। 

2. दोनों का उद्देश्य समाज की एकता एवं सुदृढ़ता को बनाए रखना है। 

3. दोनों ही में किसी समाज में एकाधिक वर्गों के अस्तित्व की परिकल्पना विद्यमान है। 

4. दोनों के लिए आर्थिक प्रतिद्वन्द्विता के रूप में एक समान शत्रु को देखा जा सकता।

5. दोनों ही समान रूप से व्यक्ति की वैयक्तिकता की अनदेखी करते हैं और उसे समाज में विलीन कर देते हैं। 

6. दोनों ही व्यक्तिगत संपत्ति को एक बुराई के रूप में देखते हैं। अतः उसके अधिकार को स्वीकार नहीं करते। 

7. दोनों ही में समाज को एक सम्पूर्णता के रूप में देखा जा सकता है।

प्लेटो के साम्यवाद और आधुनिक साम्यवाद में असमानताएं

प्लेटो के साम्यवाद और आधुनिक साम्यवाद में निम्नलिखित असमानताएं हैं--

1. दोनों की उत्पत्ति का समय तथा इसके विवेचन की परिस्थितियां बिलकुल भिन्न-भिन्न हैं। 

2. जहाँ प्लेटो का साम्यवाद उत्पादन की व्यक्तिगत व्यवस्था को प्रभावित नहीं करता आधुनिक साम्यवाद में यह प्रभावित होती हैं। 

3. प्लेटो की साम्यवादी योजना में उपभोग की वस्तुएं प्रभावित होती हैं जबकि आधुनिक साम्यवाद में उत्पादन के उपकरण प्रभावित होते हैं। 

4. प्लेटो की साम्यवादी योजना एक छोटे से सामाजिक वर्ग के लिए है। अतः यह 'अर्द्ध-साम्यवादी' कही गयी है, पर आधुनिक साम्यवाद की योजना व व्यवस्था सभी पर लागू होती है। 

5. प्लेटो के साम्यवाद की योजना का विशुद्धतः एक राजनीतिक उद्देश्य था, जबकि आधुनिक साम्यवाद का उद्देश्य आर्थिक है। 

6. प्लेटो की योजना में जिस वर्ग के लिए साम्यवाद की योजना दर्शायी गयी है वह संपत्ति का सामूहिक परित्याग करता है, जबकि आधुनिक साम्यवाद में संपत्ति का सामूहिक रूप से उपयोग किए जाने का प्रावधान है। 

7. प्लेटो की योजना प्राचीन यूनानी लघु नगर राज्यों के लिए सुझाई गयी एक योजना है और यह प्लेटो के आदर्श राज्य की प्राप्ति हेतु एक साधन है, जबकि आधुनिक साम्यवाद आधुनिक विशाल राष्ट्रीय राज्यों के संदर्भ में दर्शाया गया विचार है इस विचार का कार्यान्वयन विश्व में कई राज्यों में साम्यवादी क्रांतियों के माध्यम से स्थापित राजनीतिक व्यवस्थाओं के अभ्युदय के रूप में देखा जा सकता है। 

8. प्लेटो की योजना अभिजात (कुलीन) वर्गीय साम्यवाद की योजना है जबकि आधुनिक साम्यवाद सर्वहारा का साम्यवाद है। 

9. प्लेटो की योजना में परिवार अथवा पत्नियों के साम्यवाद की एक अति विशिष्ट योजना भी प्रस्तावित थी जबकि आधुनिक साम्यवाद में ऐसी कोई योजना नहीं देखी जा सकती।

10. प्लेटो के साम्यवाद की योजना को कभी कार्यरूप में परिणत होते हुए नहीं देखा गया जबकि आधुनिक साम्यवाद के व्यवहारिक प्रयोग को देखा जा सकता है।

यह जानकारी आपके के लिए बहुत ही उपयोगी सिद्ध होगी

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