12/10/2021

प्लेटो का आदर्श राज्य, अवधारणा, विशेषताएं, आलोचना

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प्रश्न; प्लेटो के आदर्श राज्य की अवधारणा की विवेचना कीजिए। 

अथवा" प्लेटो के आदर्श राज्य की प्रमुख विशेषताओं का विवेचन कीजिए। क्या ऐसा राज्य व्यावहारिक हैं? 

अथवा" प्लेटो के 'आदर्श राज्य' की आलोचनात्मक विवेचना कीजिए। 

अथवा" प्लेटो के आदर्श राज्य संबंधी विचारों की व्याख्या कीजिए।

अथवा" प्लेटो के आदर्श राज्य के स्वरूप की विवेचना कीजिए।

अथवा" प्लेटो के आदर्श राज्य की अवधारणा की आलोचनात्मक विवेचना कीजिए। 

अथवा" प्लेटो के आदर्श राज्य की व्याख्या कीजिए। 

अथवा" प्लेटो के आदर्श राज्य की विचारधारा का वर्णन कीजिए। 

अथवा" प्लेटो के आदर्श राज्य का आलोचनात्मक मूल्यांकन कीजिए। 

अथवा" प्लेटो के आदर्श राज्य के सिद्धांत का मूल्यांकन कीजिए।

उत्तर-- 

प्लेटो का आदर्श राज्य 

plato ka adarsh rajya ki avdharna;प्लेटो के काल में यूनान में जो राजनीतिक अराजकता व्याप्त थी, उसी की प्रतिक्रिया स्वरूप उसने एक 'आदर्श राज्य' की कल्पना कर उसे अपनी पुस्तक ‘रिपब्लिक’ में प्रस्तुत किया। प्लेटो का 'आदर्श राज्य' आने वाले सभी समय और स्थानों के लिए एक आदर्श का प्रस्तुतीकरण है। उसने 'आदर्श राज्य' की कल्पना करते समय उसकी व्यावहारिकता की उपेक्षा की है। यद्यपि प्लेटो के विचारों में व्यावहारिकता की कमी है, लेकिन हमें उस पृष्ठभूमि को नहीं भूलना चाहिए, जिसने उसके मस्तिष्क में 'आदर्श राज्य' की कल्पना जाग्रत की। अपने देश में व्याप्त तत्कालीन दोषों को देखकर ही उनको दूर करने के लिए उसने 'आदर्श राज्य' की रूपरेखा तैयार की और वह राजनीति से दर्शन की ओर उन्मुख हुआ। उसने राज्य के लिए यह आवश्यक समझा कि शासन का अधिकार केवल ज्ञानी दार्शनिकों को ही होना चाहिए जिन्हें 'अच्छे' या 'शुभ' का विस्तृत ज्ञान है।

प्लेटो चाहता था कि प्रत्येक व्यक्ति श्रेष्ठ से श्रेष्ठतम जीवन व्यतीत करे और उसके अनुसार यह केवल एक श्रेष्ठ राज्य अथवा एक आदर्श राज्य में ही संभव था। इसलिए रिपब्लिक में उसने एक आदर्श राज्य का चित्रण किया हैं। प्लेटो के आदर्श राज्य के चार आधार स्तम्भ हैं-- 

1. न्याय 

न्य्य प्लेटो के आदर्श राज्य का पहला आवश्यक तत्व हैं। प्लेटो राज्य को एक विराट व्यक्ति मानता हैं। जिस तरह व्यक्ति की आत्मा में तीन गुण होते हैं, उसी प्रकार राज्य में उन गुणों के आधार पर तीन प्रकार के व्यक्ति होते हैं। प्लेटो के अनुसार मनुष्य की आत्मा में इन तीन गुणों में से एक प्रबल होता हैं-- तृष्णा, साहस, विवेक। 

आत्मा के इन गुणों के आधार पर व्यक्ति का चरित्र निर्धारित होता हैं। जिनमें वासना तत्व प्रभावी होता हैं, वे उत्पादक बनते हैं, जिनमें साहस तत्व प्रभावी होता हैं, वे सैनिक बनते हैं और जिनमें विवेक तत्व प्रभावी होता हैं, वे शासक बनते हैं। इस प्रकार समाज में तीन वर्ग के व्यक्ति होते हैं। ये हैं-- उत्पादक, सैनिक, शासक। 

प्लेटो के अनुसार सभी व्यक्ति अपना कार्य करते रहें और दूसरों के कार्यों में हस्तक्षेप न करें, यही न्याय हैं। न्याय प्रत्येक व्यक्ति की आत्मा का वह गुण हैं, जो प्रत्येक व्यक्ति से यह कहता हैं कि समाज में अपना निर्धारित कार्य करे तथा दूसरे के कार्य में हस्तक्षेप न करे। 

यह न्यायपूर्ण व्यवस्था ही प्लेटो के आदर्श राज्य का आधार हैं। सैबाइन के अनुसार," न्याय वह स्वर्णिम बन्धन हैं जो समाज को एकता के सूत्र में बाँधे रखता हैं। 

2. शिक्षा 

शिक्षा प्लेटो के आदर्श राज्य का दूसरा महत्वपूर्ण तत्व हैं। रिपब्लिक में प्लेटो ने शिक्षा के महत्व का विशद् वर्णन किया हैं तथा अभिभावकों के लिए शिक्षा की एक विस्तृत योजना प्रतिपादित की हैं। प्लेटो के शिक्षा संबंधी इन्हीं विचारों से प्रभावित हो रूसो ने कहा था," रिपब्लिक शिक्षाशास्त्र पर लिखा एक सर्वश्रेष्ठ ग्रंथ हैं।"

3. सम्पत्ति और परिवार का साम्यवाद 

साम्यवाद प्लेटो के आदर्श राज्य का तीसरा महत्वपूर्ण तत्व हैं। रिपब्लिक में प्लेटो ने साम्यवादी व्यवस्था का चित्रण किया हैं। 

शिक्षा की तरह साम्यवाद भी केवल अभिभावकों के लिए हैं। प्लेटो मानता है कि श्रेष्ठ शिक्षा के बाद भी अभिभावक वर्ग अपने पथ से विचलित हो सकता हैं। उसके मार्ग में दो दुर्बलताएँ हैं-- संपत्ति और परिवार। प्लेटो इन दोनों के सामूहीकरण की व्यवस्था करता हैं।

सैनिक और शासक दोनों ही वर्ग के लोग विवाह नहीं करेंगे तथा वे निजी संपत्ति भी नहीं रखेंगे। वे सार्वजनिक आवासों में रहेंगे, सार्वजनिक भोजनालयों में भोजन करेंगे तथा मुक्त यौन संबंध रखेंगे। इस तरह उत्पन्न सभी बच्चों का लालन-पालन राज्य करेगा। अभिभावक पूरी तरह मुक्त होकर देश की रक्षा का और शासन का कार्य करेंगे। 

4. दार्शनिक शासक 

दार्शनिक शासक प्लेटो के आदर्श राज्य का चौथा सर्वाधिक महत्वपूर्ण तत्व हैं। दार्शनिक शासक की अवधारणा प्लेटो की सर्वाधिक अभिनव व मौलिक अवधारणा हैं। वह मानता हैं कि राज्यों की बुराइयों का मूल कारण यह होता हैं कि शासक वर्ग मुर्ख और अज्ञानी होता हैं। इसलिए प्लेटो का आग्रह हैं-- " जब तक शासक दार्शनिक शासक नहीं होगा राज्यों की बुराइयाँ समाप्त नहीं होगी।" 

दार्शनिक शासक वह हैं जिसे समाज के हित और अहित का सही ज्ञान हैं, जिसे यह बात अच्छी तरह पता हैं कि समाज की भलाई किसमें हैं और बुराई किसमें हैं। 

वेपर के शब्दों में," जिस प्रकार जहाज  की सुरक्षा कुशल चालक पर निर्भर करती हैं उसी प्रकार राज्य की सुरक्षा योग्य शासक पर निर्भर करती हैं।" 

आदर्श राज्य का भवन इन चार आधार स्तम्भों पर ही टिका हुआ हैं।

प्लेटो के आदर्श राज्य की विशेषताएं (plato ka adarsh rajya ki visheshta)

प्लेटों के काल्पनिक 'आदर्श राज्य' प्रमुख विशेषताओं का वर्णन इस प्रकार किया जा सकता हैं--

1. दार्शनिक सम्राट का सिद्धांत 

प्लेटो के आदर्श राज्य का प्रमुख दार्शनिक सम्राट हैं। प्लेटो का विश्वास था कि शासन जैसी 'महत्वपूर्ण कला' का नेतृत्व एक कुशल कलाकार द्वारा होना चाहिए। राज्य को सार्वभौमिक बनाने के लिये यह आवश्यक हैं कि उसका संपूर्ण संचालन एक 'पूर्ण' पुरुष के हाथों में हों। तभी राज्य तथा समाज दोष मुक्त हो सकते हैं। 

2. सम्राट की स्वार्थ रहित सेवायें 

सम्राट की स्वार्थ रहित सेवायें प्राप्त करने के उद्देश्य से प्लेटो अपने दार्शनिक शासक को न संपत्ति का शासक बनाता है और न ही परिवार का उत्तरदायित्व उसको सौपता हैं, क्योंकि यदि शासक परिवार तथा संपत्ति के चक्कर में फँस जायेगा तो शासन कार्य के शिथिल हो जाने का भय बन जायेगा। इसलिए प्लेटो के आदर्श राज्य का शासक निःस्वार्थ सेवक तथा दार्शनिक था। 

3. राज्य एवं व्यक्ति में समानता 

प्लेटो का विचार था कि राज्य व व्यक्ति के हित में समानता हैं। इनमें कोई अंतर नहीं हैं। प्लेटो के अनुसार," राज्य व्यक्ति का ही वृहद् रूप हैं।" राज्य का संगठन व राज्य का स्वरूप व्यक्ति की रचना पर आधारित हैं। राज्य के शासक, सैनिक तथा उत्पादक वर्ग व्यक्ति के अंदर पाये जाने वाले तीन गुणों- 'विवेक', 'साहस' तथा 'तृष्णा' के समान हैं। 

4. सम्राट का कलात्मक रूप 

प्लेटो के आदर्श राज्य की एक प्रमुख विशेषता यह भी हैं कि वह प्रशासन को एक कला मानता हैं। इसलिए उसके विचार में एक शासक को भी कलाकार तरह कुशल एवं अनुभवी होना चाहिए। अपने दार्शनिक सम्राट के लिए प्लेटो उचित प्रशिक्षण की भी व्यवस्था करता हैं। 

5. न्याय की सर्वोपरिता का सिद्धांत 

प्लेटो के न्याय सिद्धांत की मूल विशेषता यह हैं कि आदर्श राज्य में व्यक्ति अपनी योग्यता के अनुसार अहस्तक्षेप की नीति का पालन करते हुए कार्यशील हो, ताकि मानव जीवन ईर्ष्या द्वेष और संघर्षों से मुक्त हो सके और मनुष्यों की आत्मा सद्गुण की ओर आकृष्ट रह सके। प्लेटो मनोवैज्ञानिक आधार पर अपनी न्याय संबंधी धारणा को अवलम्बित करते हुए लिखता हैं कि 'न्याय मानव आत्मा का सर्वश्रेष्ठ गुण हैं। 

6. सुव्यवस्थित आदर्श शिक्षा पद्धित 

तत्कालीन दोषपूर्ण शिक्षा पद्धित की प्लेटो ने कड़ी आलोचना की थी, क्योंकि प्लेटो व्यक्तिवादी शिक्षा पद्धित का कट्टर विरोधी था। उसने आदर्श राज्य के लिये एक पृथक मनोविज्ञान पर आधारित तथा राज्य द्वारा निर्धारित व नियन्त्रित शिक्षा-योजना की स्थापना की थी। इस शिक्षा योजना का उद्देश्य स्पष्ट करते हुए प्लेटो ने लिखा था कि 'मनुष्य की अन्तर्दृष्टि को ज्ञान के प्रकाश की ओर आकर्षित करना हैं।' यह शिक्षा-योजना राज्य में सद्गुणी व न्यायप्रिय नागरिकों का निर्माण करती हैं। इसका व्यक्तिगत पक्ष व्यक्ति को समाज का हितैषी व सक्रिय सदस्य बनायेगा एवं समाज को श्रेष्ठता की ओर अग्रसर करेगा। 

7. नैतिकता के दो रूप 

प्लेटो राज्य को व्यक्ति द्वारा निर्मित सर्वोंच्च नैतिक संस्था मानता हैं। प्लेटो राज्य को एक आध्यात्मिक वस्तु भी समझता हैं और आत्मा की अभिव्यक्ति भी मानता हैं, इस सर्वोच्च संस्था में व्यक्ति अपना सर्वागीण विकास कर सकता हैं। प्लेटो के अनुसार राज्य के बाहर व्यक्ति कुछ नहीं कर सकता क्योंकि राज्य ही व्यक्ति को सामाजिक तथा व्यक्तिगत नैतिकता के गुणों से परिपूर्ण कर पोषक के रूप में खुद को गौरवान्वित समझता हैं। 

8. श्रम विभाजन को महत्व 

आदर्श राज्य के लिये प्लेटो ने 'श्रम विभाजन के सिद्धांत' का प्रतिपादन किया था। उसका कहना था कि राज्य में प्रशासक वर्ग, सैनिक वर्ग तथा उत्पादक वर्ग आदि तीन मुख्य वर्गों का अस्तित्व पाया जाता हैं। इन तीनों वर्गों के कार्य अलग-अलग हैं और ये तीनों अपने-अपने कार्य-क्षेत्रों में स्वतंत्र हैं। 

9. व्यक्ति आदर्श राज्य का आधार 

पाश्चात्य राजनीतिक चिंतन में प्लेटो के राजदर्शन का बड़ा महत्व हैं। प्लेटो द्वारा प्रतिपादित राज्य का सिद्धांत अपने में सर्वश्रेष्ठ हैं। प्लेटो ने 'राज्यों के स्वरूप का ही नहीं बल्कि राज्य का स्वरूप क्या होना चाहिए' का भी वर्णन किया हैं। प्लेटो के अनुसार, " एक अच्छे राज्य में ही अच्छे नागरिकों का निर्माण हैं।" उसने आदर्श राज्य का आधार व्यक्ति को बनाया था। उसने कहा हैं," राज्य व्यक्ति का ही वृहद आकार हैं।' 

10. आत्मा संबंधी आधार 

वर्तमान काल में राजनीतिशास्त्र के विद्वान राज्य के स्वरूप की कल्पना राज्य की उत्पत्ति के सिद्धांत, उसकी विकास प्रक्रिया तथा रचना के आधार पर करते हैं। परन्तु प्लेटों ने राज्य के आत्मिक आधार पर बल दिया हैं। 

11. साम्यवादी विचारधारा को मान्यता 

साम्यवादी योजना को प्लेटो ने न्याय की प्राप्ति हेतु तथा आदर्श राज्य की स्थापना को संभव बनाने के लिए अपनाया था, जो व्यक्तिगत पत्नी तथा व्यक्तिगत संपत्ति के सामूहिक प्रयोग को ध्यान में रखकर निर्मित की गयी थी। उसने यह कार्य इस उद्देश्य से किया था कि मानव जीवन स्वार्थ, संघर्ष, दुर्गुणों, पारस्परिक ईर्ष्या-द्वेष से ऊपर निःस्वार्थ सेवा कर सके। 

12. सद्गुण सम्पन्न शासन 

प्लेटो का विश्वास था कि 'यह जगत मिथ्या हैं, 'ज्ञान' तो केवल सद्गुणों में वास करता हैं।' इसलिए प्लेटो के राज्य को हम 'सद्गुणों के ज्ञान पर आधारित शासन' कह सकते हैं। प्लेटो अपने राज्य संबंधी सिद्धांतों को ही वास्तविक समझता था। 

13. यथार्थता पर आधारित 

यथार्थता पर ही प्लेटो का राज्य आधारित था, इस तथ्य को स्पष्ट करते हुए बार्कर ने लिखा हैं कि," यद्यपि प्लेटो सर्वाधिकारवादी राज्य का समर्थन करता हैं, किन्तु हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि प्लेटो का राज्य आदर्श राज्य हैं और सर्वोच्च बुद्धि द्वारा शासित होता हैं। 

14. स्त्री व पुरूष को समान अधिकार 

प्लेटो पुरूषों की ही तरह स्त्रियों को भी समान अधिकार देने का समर्थक था। उसने पुरूषों के समान ही सामाजिक व राजनीतिक अधिकार स्त्रियों को भी प्रदान किये थे। प्लेटो का विश्वास था कि 'स्त्रियों को पुरूषों के समान अधिकार प्रदान करने में ही राज्य का हित निहित हैं।' 

15. दैविक तथा दानविक गुणों से मेल 

प्लेटो चाहता था दैविक तथा दानिवक गुणों में मेल अथवा सामंजस्य स्थापित हों। उसके अनुसार 'परोपकार, दया-धर्म तथा त्याग दैविक गुण थे तथा स्वार्थ, ईर्ष्या तथा द्वेष दानविक गुण। मानव उन दोनों के सामंजस्य के अभाव में शैतान बन जायेगा।'

प्लेटो के आदर्श राज्य की आलोचना/समीक्षा 

उपरोक्त विवेचन के आधार पर हमें यह नही समझ लेना चाहिए कि प्लेटो का आदर्श राज्य दोष मुक्त हैं। यह आश्चर्य की बात हैं प्लेटो ने आदर्श राज्य की 'अति कल्पना' को वास्तविक समझा। उसके अनेक सिद्धांतों की कड़ी आलोचना उसके शिष्य अरस्तू ने भी की थी। अन्य विचारकों ने भी उसकी आलोचना निम्नलिखित आधारों पर की हैं-- 

1. आत्मिकता का अमान्य सिद्धांत 

राज्य को प्लेटो व्यक्ति का 'वृहद रूप' तथा 'आत्मा' की अभिव्यक्ति मानता हैं। प्लेटो ने व्यक्ति के मन में विवेक, साहस तथा तृष्णा के समान राज्य मे शासक, सैनिक तथा उत्पादक वर्ग को मान्यता प्रदान की हैं, जो पूर्णतया अमान्य सिद्धांत हैं। आधुनिक युग में इस प्रकार के आत्मिक सिद्धांत को मान्यता प्रदान नहीं की जा सकती हैं, क्योंकि यह दोनों ही परिवर्तनशीलता के गुण से सम्पन्न हैं। 

2. साम्यवाद के दोषों का समर्थन 

प्लेटो की साम्यवादी व्यवस्था पूर्णतया दोषपूर्ण थी। प्लेटो ने सामाजिक पुनर्गठन के लिए साम्यवादी योजना का प्रतिपादन किया था तथा इसके द्वारा जिन बुराइयों को दूर करने का प्रयत्न किया, वह दूर तो नहीं हुईं, बल्कि उन्होंने मनुष्य की मूलभूत मनोवैज्ञानिक आवश्यकताओं को बहुत ठेस पहुंचाई। 

3. अव्यावहारिक राज्य सिद्धांत 

प्लेटो ने स्वयं कहा था कि 'इस नगर की स्थापना केवल शब्दों में ही हो सकती हैं। पृथ्वी के किसी भी कोने में ऐसा राज्य स्थापित नहीं हैं।' राज्य के आदर्शवादी सिद्धांतों में प्लेटो ने शिक्षा-योजना, दार्शनिक शासक तथा साम्यवाद का सिद्धांत प्रयुक्त किया हैं, जो सभी प्रकार से पूर्णतया अव्यावहारिक हैं। उपरोक्त सिद्धांतों के आधार पर 'आदर्श राज्य की स्थापना' प्लेटो की सिर्फ कल्पना मात्र हैं। 

4. दास-प्रथा का समर्थन 

प्लेटो के समय यूनान में दास-प्रथा का अत्यधिक प्रचलन था, फिर भी प्लेटो ने इस संबंध में कोई विचार प्रकट नहीं किया। इससे स्पष्ट हैं कि प्लेटो ने दास प्रथा के संबंध में मौन रहते हुई अप्रत्यक्ष रूप से उसका समर्थन किया हैं। इस प्रथा को आदर्श राज्य में स्थान देना वस्तुतः प्लेटो की सबसे बड़ी भूल थी, क्योंकि प्लेटो का उद्देश्य तत्कालीन नगर योजना की दुर्दशा में सुधार करना था। 

5. सावयवी दृष्टिकोण की भ्रमात्मकता 

राज्य को सावयवी बतलाते हुए प्लेटो ने राज्य की तुलना व्यक्ति से की हैं। यह संबंध उस समय तो और घनिष्ठ जान पड़ता हैं जब हम यह देखते हैं 'राज्य व्यक्ति का ही विस्तृत रूप हैं।' परन्तु व्यक्ति तथा राज्य के वास्तविक भेद की उपेक्षा के करणा यह सावयवी दृष्टिकोण अत्यधिक भ्रमात्मक लगता हैं। 

6. आदर्श राज्य में वर्गीय असन्तोष 

प्लेटो द्वारा किया गया मानव-समाज का वर्गीकरण पूर्णरूपेण असन्तोषजनक था। समाज को शासक वर्ग, सैनिक वर्ग व उत्पादक वर्ग में विभाजित करके प्लेटो ने ऐसी बन्द वर्ग व्यवस्था की स्थापना की, जो भावी असन्‍तोष की सूचक थी। इस दशा में शांति स्थापना का लक्ष्य तो स्वयं ही चूर-चूर हो जाता हैं।

7. लोकतंत्र विरोधी 

प्रजातंत्र को तो प्लेटो ने अपने आदर्श राज्य में प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष किसी भी रूप में कोई स्थान ही नहीं दिया, जो कि वर्तमान काल की महत्वपूर्ण माँग हैं। अच्छा शासन वह कहलाता है कि जिसमें शासन के अंतर्गत किसी न किसी प्रकार जनता का प्रतिनिधित्व हो। परन्तु प्लेटो के आदर्श राज्य में इस विशेषता का सर्वथा अभाव हैं। इस आधार पर ही इसे प्रजातंत्र का विरोधी कहा जाता हैं। 

8. नैतिकता पर अधिक बल 

प्लेटो ने सिर्फ व्यक्ति के कर्त्तव्य पालन पर बल दिया, क्योंकि उसका आदर्श राज्य नैतिकता पर आधारित था। इसके अतिरिक्त प्लेटो ने प्रशासक वर्ग को विशेष अधिकार प्रदान करके 'अधिनायकवाद' को ही बढ़ावा दिया हैं, जबकि उसने अनेक आवश्यक तत्वों को यूं ही छोड़ दिया हैं। 

9. पूर्णतः काल्पनिक

प्रो. जैनेट ने प्लेटो के आदर्श राज्य को पूर्णतः काल्पनिक बताते हुए लिखा कि प्लेटो की राजनीति में एक भाग काल्पनिक हैं तो दूसरा भाग शाश्वत हैं। बार्कर का कथन हैं कि 'रिपब्लिक के अनुसार जो नगर हैं, उसका कहीं भी वर्णन नहीं हैं। यह वास्तव शर्तों पर आधारित हैं। इसका अर्थ जीवन की वास्तविकता को प्रभावित करना हैं।' 

उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट हैं कि प्लेटो के दर्शन में प्रतिपादित आदर्श राज्य में जितनी विशेषतायें हैं उतने ही दुर्गुण हैं। फिर भी प्लेटो द्वारा प्रतिपादित आदर्श राज्य निर्मूल सिद्ध नहीं किया जा सकता। आधुनिक प्रशासकों तथा राजनीतिज्ञों का प्लेटो ने पथ प्रशस्त किया हैं। उसका कहना था कि राज्य को हमेशा पक्षपात रहित होकर उद्देश्यों की पूर्ति और प्रशासन का कार्य करना चाहिए। यह महत्त्वपूर्ण संदेश हमें प्लेटो के आदर्श राज्य संबंधी विचारों से ही मिलता हैं कि प्रशासक वर्ग चरित्रवान, न्यायप्रिय होना चाहिए एवं नागरिक राज्य भक्ति का सदा प्रदर्शन करें तथा हमेशा जनहित में कार्य करें।

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