12/09/2021

प्लेटो का जीवन परिचय

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प्लेटो का जीवन परिचय 

plato ka jivan parichay;महान् यूनानी दार्शनिक प्लेटो का जन्म 427 ई . पूर्व में एथेन्स के एक कुलीन परिवार में हुआ था। उनके पिता अरिस्टोन एथेन्स के अन्तिम राजा कोर्डस के वंशज तथा माता पेरिकतिओन यूनान के सोलन घराने से थी। प्लेटो का वास्तविक नाम एरिस्तोकलीज था, उसके अच्छे स्वास्थ्य के कारण उसके व्यायाम शिक्षक ने इसका नाम प्लाटोन रख दिया। प्लेटो शब्द का यूनानी उच्चारण 'प्लातोन' है तथा प्लातोन शब्द का अर्थ चौड़ा चपटा होता है। धीरे-धीरे प्लातोन के स्थान पर प्लेटो कहा जाने लगा। 

प्लेटो का लालन-पालन उसके मौसा के यहाँ हुआ था। उसके मौसा उस समय एथेन्स में महत्वपूर्ण पद पर आसीन थे। प्लेटो का मन राजनीति में सक्रिय भाग लेने का था। उसने लिखा हैं," जब मैं युवा था तब मैं भी वही सोचा करता था जैसा अन्य युवक सोचते हैं। मैंने सोचा था कि जैसे ही मेरा बहुमत होगा, मैं राजनीति में सक्रिय भाग लेने लगूँगा।" पर एथेन्स में क्रांति के बाद जब तीस लोगों का 'शासन मण्डल' स्थापित हुआ तो प्लेटो को भी उसमें सम्मिलित होने के लिए कहा गया। पर 'शासक मण्डल' के सदस्यों का व्यवहार उसे पसंद नहीं आया और 'शासक मण्डल' में वह सम्मिलित नहीं हुआ। कुछ समय बाद 'प्रजातंत्रवादी' पुनः सत्ता में आए। उन्होंने प्लेटो की सहानुभूति भी अर्जित की पर प्लेटो शीघ्र ही राजनीति से दूर हो गया। उसने यूनान के नगर राज्यों में प्रत्यक्ष प्रजातंत्रीय कार्यप्रणाली के आत्मनिरीक्षण द्वारा यह अनुभव किया और निष्कर्ष निकाला कि प्रजातंत्र अयोग्यता की उपासना हैं तथा राजनीतिज्ञों की अयोग्यता के कारण ही राजनीतिक व्यवस्थाएँ असफल होती हैं। 

प्लेटो 18 या 20 वर्ष की आयु में सुकरात की ओर आकर्षित हुआ। यद्यपि प्लेटो तथा सुकरात में कुछ विभिन्नताएं थी लेकिन वह सुकरात की शिक्षाओं से बहुत अधिक प्रभावित था। 

प्लेटो सुकरात का शिष्य बन गया। सुकरात ने जिन शाश्वत प्रश्नों को उठाया प्लेटो पर उनका निर्णायक प्रभाव पड़ा। प्लेटो सुकरात को सर्वश्रेष्ठ मानव मानता था।

सुकरात के विचारों से प्रेरित होकर ही प्लेटो ने राजनीति की नैतिक व्याख्या की, सद्गुण को ज्ञान माना, शासन कला को उच्चतम कला की संज्ञा दी और विवेक पर बल दिया। सुकरात की शिक्षाओं का जितना प्रभाव प्लेटो पर हुआ उतना ही प्रभाव सुकरात की मृत्यु का भी हुआ। 

399 ई. पू. में सुकरात को मृत्यु दण्ड दिया गया तब प्लेटो की आयु 28 वर्ष थी। 

इस घटना से परेशान होकर वह राजनीति से विरक्त होकर एक दार्शनिक बन गए।  उसने अपनी रचना 'रिपब्लिक' में सुकरात के सत्य तथा न्याय को उचित ठहराने का प्रयास किया है। यह उसके जीवन का ध्येय बन गया। उसने सुकरात को प्राणदण्ड दिया जाने पर एथेन्स छोड़ दिया तथा बारह वर्षों तक मीग्रा, साइनर, मिश्र तथा इटली घूमता रहा। क्योंकि वह लोकतन्त्र से घृणा करने लग गया था। मेगरा जाने पर 12 वर्ष का इतिहास अज्ञात है। लोगों का विचार है कि इस दौरान वह इटली, यूनान और मिस्र आदि देशों में घूमता रहा। वह पाइथागोरस के सिद्धान्तों का ज्ञान प्राप्त करने के लिए 387 ई. पू. में इटली और सिसली गया। सिसली के राज्य सिराक्यूज में उसकी भेंट दियोन तथा वहाँ के राजा डायोनिसियस प्रथम से हुई। उसके डायोनिसियस से कुछ बातों पर मतभेद हो गए और उसे दास के रूप में इजारन टापू पर भेज दिया गया। उसे इसके एक मित्र ने वापिस एथेन्स पहुँचाने में उसकी मदद की। प्लेटो ने 

386 ई. पू. में इजारन टापू से वापिस लौटकर अपने शिष्यों की मदद में से एथेन्स में अकादमी खोली जिसे यूरोप का प्रथम विश्वविद्यालय होने का गौरव प्राप्त है। उसने जीवन के शेष 40 वर्ष अध्ययन अध्यापन कार्य में व्यतीत किए। प्लेटो की इस अकादमी के कारण एथेन्स यूनान का ही नहीं बल्कि सारे यूरोप का बौद्धिक केन्द्र बन गया। उसकी अकादमी में गणित और ज्यामिति के अध्ययन पर विशेष जोर दिया जाता था। उसकी अकादमी के प्रवेश द्वार पर यह वाक्य लिखा था "गणित के ज्ञान के बिना यहाँ कोई प्रवेश करने का अधिकारी नहीं है।" यहाँ पर राजनीतिज्ञ, कानूनवेता और दार्शनिक शासक बनने की भी शिक्षा दी जाती थी। डायोनिसियस प्रथम की मृत्यु के बाद 367 ई. पू. डायोनिसियस द्वितीय सिराक्यूज का राजा बना। अपने मित्र दियोन के कहने पर वह वहाँ जाकर राजा को दर्शनशास्त्र की शिक्षा देने लग गया। इस दौरान राजा के चाटुकारों ने दियोन के खिलाफ बोलकर उसे देश निकाला दिलवा दिया और उसकी सम्पत्ति व पत्नी जब्त कर ली। इससे नाराज प्लेटो एथेन्स वापिस चला गया। 361 ई. पू. में डायोनिसिय ने उसे दोबारा सिराक्यूज आने का निमन्त्रण दिया, परन्तु वह यहाँ आने को तैयार नहीं था, लेकिन तारेन्तय के दार्शनिक शासक की प्रेरणा से वह वहाँ आकर डायोनियस को दर्शनशास्त्र का ज्ञान देने लग गया। लेकिन दोबारा डायोनिसिथस व प्लेटो में सैद्धान्तिक बातों पर मतभेद हो गए और वह वापिस एथेन्स आ गया। इससे उसकी आदर्शवादिता को गहरा आघात पहुँचा और वह व्यावहारिकता की ओर मुड़कर 'The Laws' नामक ग्रन्थ लिखने लग गया। अपने किसी शिष्य के आग्रह पर वह एक विवाह समारोह में शामिल हुआ और वहीं पर सोते समय 81 वर्ष की अवस्था में उसकी मृत्यु हो गयी।

प्लेटो की रचनाएँ

प्लेटो ने कई पुस्तकें लिखीं और अकादमी में तथा बाहर भी मौखिक रूप से बहुत कुछ कहा। जो मौखिक कहा उसे उसके शिष्यों ने सुरक्षित नहीं रखा पर उसका लिखा हुआ साहित्य कम नहीं हैं। प्लेटो द्वारा रचित गंथ्रों की संख्या लगभग 36 या 38 मानी जाती हैं किन्तु इनमें से प्रामाणिक ग्रंथ केवल 28 हैं। उसके सभी प्रामाणिक ग्रंथों का बर्नेट द्वारा सम्पादित यूनानी संस्करण, 2,662 पृष्ठों (ऑक्सफोर्ड द्वारा प्रकाशित) में प्रकाशित हुआ हैं। इनमें से कुछ मुख्य ग्रंथों के नाम निम्नलिखित हैं-- 

1. अपाॅलाॅजी (Apology), 

2. क्रीटो (Crito), 

3. यूथीफ्रो (Euthyphro), 

4. जोर्जियस (Gorgias), 

5. मीनो (Meno),

6. प्रोटागोरस (Protagoras), 

7. सिंपोजियम (Symposium), 

8. फेडो (Phaedo), 

9. रिपब्लिक (Republic),

10. सोफिस्ट (Sophiest), 

11. स्टेट्समैन (Statesman), 

12. लाॅज (Laws),

यह जानकारी आपके के लिए बहुत ही उपयोगी सिद्ध होगी

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