1/08/2022

भारतीय एवं पाश्चात्य राजनीतिक चिंतन में समानताएं और अंतर

By:   Last Updated: in: ,

भारतीय एवं पाश्चात्य राजनीतिक चिंतन में समानताएं 

भारतीय एवं पाश्चात्य राजनीतिक चिंतन में निम्नलिखित समानताएं पाई जाती हैं---

1. वर्णनात्मक एवं विश्लेषणात्मक

भारतीय एवं पाश्चात्य राजनीतिक चिंतन दोनों ही वर्णात्मक एवं विश्लेषणात्मक पद्धति पर आधारित हैं। दोनों में ही प्रत्येक विषय का विस्तार से वर्णन एवं विश्लेषण किया गया है। 

2. परिवार को महत्व 

भारतीय एवं पाश्चात्यय राजनीतिक चिंतन, दोनों ही परिवार संस्था को महत्व देते हैं और परिवार को राज्य का आधार मानते हैं। 

3. मानव जीवन के लिए उपयोगी एवं सहयोगी 

भारतीय एवं पाश्चात्य चिंतन में यह भी समानता है कि दोनों ही मानव जीवन के लिए उपयोगी एवं मानव विकास में सहयोगी हैं। दोनों का ही उद्देश्य मानव जीवन को सरल तथा उच्च बनाना हैं। 

4. राज्य को महत्व 

भारतीय एवं पाश्चात्य राजनीतिक चिंतन की एक समानता यह भी है कि इनमें राज्य को विशेष महत्व दिया गया है। राज्य को मानव विकास के लिए अत्यंत उपयोगी माना गया है एवं उसका विस्तार से वर्णन किया गया है। राज्य ही उसे 'अधिकार' प्रदान करता है और राज्य में ही रहकर व्यक्ति अपना सर्वागीण विकास कर सकता है। 

5. स्वतंत्रता, समानता एवं न्याय

भारतीय और पाश्चात्य दोनों ही चिंतन में स्वतंत्रता, समानता एवं न्याय की धारणाओं को विशेष महत्व दिया गया है और इनका विस्तार से वर्णन किया गया है। 

6. लोकतंत्र को महत्व

दोनों ही चिंतन में लोकतंत्र को अन्य शासन प्रणालियों की अपेक्षा सर्वश्रेष्ठ प्रणाली बताया गया है।

7. शिक्षा को महत्व 

भारतीय और पाश्चात्य दोनों ही चिंतन में राजनैतिक जागरूकता लाने के लिए शिक्षा को विशेष महत्व दिया गया है।

भारतीय एवं पाश्चात्य राजनीतिक चिंतन में अंतर 

भारतीय और पाश्चात्य राजनीतिक चिंतन में कुछ समानताएं होते हुए भी दोनों में विशेष अंतर पाया जाता है। भारतीय एवं पाश्चात्य राजनीतिक चिंतन में निम्नलिखित अंतर पाए जाते हैं--

1 . भारतीय राजनीतिक चिंतन भारतीय व्यवस्था तथा पाश्चात्य राजनीतिक चिंतन पाश्चात्य व्यवस्था पर आधारित है

राजनीतिक चिंतन और राजनीतिक परिस्थितियों में घनिष्ठ संबंध होता है। किसी भी राजनीतिक चिंतन पर तत्कालीन परिस्थितियों, समय और व्यवस्था का विशेष प्रभाव पड़ता है। अतः भारतीय राजनीतिक चिंतन भारतीय व्यवस्था तथा परिवेश पर आधारित है जबकि पाश्चात्य राजनीतिक चिंतन पश्चिमी व्यवस्था एवं परिवेश पर आधारित हैं। 

2. पाश्चात्य राजनीतिक चिंतन अधिक व्यापक 

भारतीय राजनीतिक चिंतन में केवल भारतीय चिंतकों के विचारों का ही अध्ययन किया जाता है जैसे कौटिल्य राजा राम मोहन राय, स्वामी दयानंद दादा भाई नौरोजी, गोपाल कृष्ण गोखले, स्वामी विवेकानंद, अरविंद घोष, लाला लाजपत राय, बाल गंगाधर तिल , जय प्रकाश नारायण राम मनोहर लोहिया महात्मा गांधी, एम. एन. राय, जवाहर लाल नेहरू, डाॅ. भीमराव अम्बेडकर, दीनदयाल उपाध्याय आदि जबकि पाश्चात्य राजनीतिक चिंतन में भिन्न-भिन्न पश्चिमी देशों से संबंध रखने वाले अनेक चिंतकों के विचारों का अध्ययन किया जाता है।

अतः भारतीय राजनीतिक चिंतन का क्षेत्र केवल भारतीय राजनीतिक चिंतकों तक ही सीमित है जबकि पाश्चात्य राजनीतिक चिंतन में कई देशों के विद्वानों के विचार शामिल होने के कारण यह अधिक व्यापक एवं विस्तृत हैं।

3. भारतीय राजनीतिक चिंतन अध्यात्मवाद जबकि पाश्चात्य राजनीतिक चिंतन भौतिकवाद पर आधारित है

भारतीय और पाश्चात्य राजनीतिक चिंतन में एक बड़ा अंतर यह भी है कि जहां भारतीय राजनीतिक चिंतन अध्यात्मवाद पर आधारित है, पाश्चात्य राजनीतिक चिंतन भौतिकवाद पर अधिक बल देता है। 

4. धर्म एवं राजनीति में संबंध के आधार पर अंतर 

जहां महात्मा गांधी जैसे भारतीय राजनीतिक चिंतकों ने धर्म का राजनीति से गहरा संबंध बताया है वहीं मैकियावली जैसे पाश्चात्य राजनीतिक चिंतकों ने राजनीति को धर्म से पृथक रखा और उनका क्षेत्र अलग-अलग बताया है। 

4. धर्म निरपेक्षता की प्रकृति में अंतर 

भारतीय और पाश्चात्य दोनों ही राजनीतिक चिंतन धर्म निरपेक्षता का समर्थन करते हैं परंतु भारतीय एवं पाश्चात्य राजनीतिक चिंतन की धर्म निरपेक्षता की प्रकृति में अंतर है जहां भारतीय धर्मनिरपेक्षता में राज्य द्वारा धार्मिक सुधारों की अनुमति धार्मिक अल्पसंख्यकों के अधिकारों की रक्षा व्यक्ति तथा धार्मिक समुदायों के बीच समानता स्थापित करना शामिल है वहीं पाश्चात्य धर्म निरपेक्षता में धर्म और राज्य का एक दूसरे के मामले में हस्तक्षेप न करने की अटल नीति तथा समुदाय आधारित अधिकारों की अपेक्षा व्यक्ति तथा उसके अधिकारों को केंद्रीय महत्व दिया गया है। 

6. साध्य एवं साधन की पवित्रता के आधार पर अंतर 

महात्मा गांधी जैसे भारतीय राजनीतिक चिंतकों ने साध्य एवं साधन की पवित्रता पर बहुत अधिक जोर दिया है उनका कहना है कि साध्य की पवित्रता के साथ-साथ उसको प्राप्त करने के लिए साधन भी पवित्र होने चाहिए, जबकि पाश्चात्य चिंतन में साध्य एवं साधन की पवित्रता पर बहुत अधिक बल नहीं दिया गया है। कई पाश्चात्य राजनीतिक चिंतक जैसे मार्क्सवादी और अराजकतावादी राज्य को शोषण का एक यंत्र मानते हैं तथा उसे समाप्त करने के पक्ष में है, जबकि भारतीय राजनीतिक चिंतन इससे सहमत नहीं है। वे राज्य को एक आवश्यक एवं उपयोगी संस्था मानते हैं। 

7. पाश्चात्य राजनीतिक चिंतक 

जैसे मान्टेस्कयू, ब्लैक स्टॉन आदि मुख्यतः शक्तियों के पृथककरण पर जोर देते हैं। जबकि भारतीय राजनीतिक चिंतक शक्तियों के पृथककरण के साथ-साथ सत्ता के विकेंद्रीयकरण पर भी जोर देते हैं।

निष्कर्ष 

संक्षेप में हम कह सकते हैं कि भारतीय और पाश्चात्य राजनीतिक चिंतन वहां की विशेष एवं पृथक सामाजिक व्यवस्थाओं, तात्कालीन परिस्थितियों, समस्याओं एवं पृष्ठभूमि का परिणाम है। राजनीतिक चिंतन एक लंबी विकास की प्रक्रिया होती है और किसी भी राष्ट्र के राजनीतिक चिंतन पर उस राष्ट्र के सामाजिक वातावरण, राजनीतिक परिस्थितियाँ एवं विकास की प्रक्रिया का गहरा प्रभाव पड़ता है। अतः भारतीय एवं पाश्चात्य राजनीतिक चिंतन में कुछ समानताएं होते हुए भी विशेष अंतर है।

कोई टिप्पणी नहीं:
Write comment

आपके के सुझाव, सवाल, और शिकायत पर अमल करने के लिए हम आपके लिए हमेशा तत्पर है। कृपया नीचे comment कर हमें बिना किसी संकोच के अपने विचार बताए हम शीघ्र ही जबाव देंगे।