ठोस अपशिष्ट प्रदूषण के प्रभाव
ठोस अपशिष्ट प्रदूषण के प्रभाव निम्न प्रकार है--
1. विभिन्न प्रकार के अपशिष्ट पदार्थ शहर की नालियो से बहकर जल स्त्रोतों मे पहुँच जाते है अथवा प्रत्यक्ष रूप मे ही इनमे डाल दिये जाते है जिससे जल प्रदूषण अत्याधिक होता है।
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2. औद्योगिक अपशिष्टों द्वारा भूमि की उर्वरा शक्ति पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है क्योंकि उसमे अनेक अघुलनशील एवं हानिकारक तत्व होते है।
3. ठोस अपशिष्ट प्रदूषण के कारण अनेक बीमारियों को फैलाने वाले जीवाणुओं की उत्पत्ति होती है, जिनने टी. बी. मलेरिया, हैजा, मोतीझरा, पेचिश, आंखो के रोग, आन्त्रशोथ आदि जन्म लेते है।
4. भारत जैस देश मे निस्तारण की समुचित व्यवस्था नही है। इसकी मात्रा कई गुना अधिक है, जिसके द्वारा उत्पन्न प्रदूषण से स्वास्थ्य को क्षति पहुंचती है।
5. कूड़े-करकट के सड़ने-गलने से अनेक प्रकार की गैसे एवं दुर्गन्ध निकलती है जो चारो ओर के वातावरण को प्रदूषित कर देती है। इस गंदगी मे यदि रसायन मिश्रित होते है तो उनसे भी खतरनाक गैसें निकलती है।
6. अपशिष्ट पदार्थों को समुद्रों मे डाल देने की प्रवृत्ति सामान्य है, लेकिन इनका लगातार उसमे डालना एवं मात्रा मे वृद्धि के कारण सामुद्रिक परिस्थितिक तंत्र मे असन्तुलन उत्पन्न होता जा रहा है।
ठोस अपशिष्ट प्रदूषण नियंत्रण के उपाय
ठोस अपशिष्ट का निस्तारण भूमि या हमासागरों किया जा सकता है। अपशिष्ट निस्तारण की सामान्य प्रक्रियाएं निम्न प्रकार है--
1. महासागरो मे निस्तारण
अनेक विकसित देशों मे ठोस अपशिष्टों को महासागरों मे डालने का कार्य किया जाता है। महासागर गहरे अथवा जल राशियाँ है, अतः यह मान्यता शुरू से ही बन गयी कि इसमा कूड़ा-करकट, औद्योगिक अपशिष्ट, रासायनिक अपशिष्ट डाले जा सकते है जो सागरीय गहराई मे विलीन हो जायेंगे। यह कार्य 200 स्थानों पर किया जा रहा है। इसलिए संयुक्त राज्य मे 1970 मे पर्यावरण गुणवत्ता परिषद् ने सावधान किया कि महासागरों मे अपशिष्ट डालने पर प्रतिबंध लगाना जरूरी है।
2. भस्मीकरण
इस विधि द्वारा अपशिष्ट की मात्रा 60 से 80 तक कम हो जाती है। इससे उत्पन्न स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं भी कम हो जाती है। इसमे दहन क्रिया द्वारा कूड़ा-करकट विनष्ट कर दिया जाता है। दहन के लिए विविध प्रकार के दहन संयंत्रो अथवा भट्टियों का प्रयोग होता है जो घरेलू दहन भट्टी से लेकर नगनगरपालिका द्वारा प्रयुक्त किये जाने वाले विशाल दहन प्लाण्ट तक के आकार के होते है।
3. रासायनिक प्रक्रिया द्वार
रासायनिक प्रक्रिया द्वारा भी ठोस अपशिष्ट पदार्थों का अन्त किया जा सकता है। कुछ अपशिष्ट जिनसे वस्तुओं का पुनर्निर्माण हो जाता है उनके लिए रासायनिक प्रक्रिया हितकारी होती है, जैसे-- कागज की लुगदी बनाना, पुनः प्लास्टिक बनाना, धातु छीलन का उपयोग करना आदि। कुछ उद्योगो मे इन अपशिष्टों का प्रयोग किया जाने लगा है। इससे एक ओर अपशिष्ट नष्ट हो रहा है तो दूसरी ओर उसका समुचित उपयोग हो रहा है।
4. कम्पोस्ट बनाना
कम्पोस्ट एक प्रकार का उर्वरक है, जिसका निर्माण नगरीय गंदगी से साधारण प्रक्रिया द्वारा किया जा सकता है। इसमे विभिन्न जैवकीय पदार्थ एवं कार्बनिक अपशिष्टो को भूमि मे दबाकर सड़ाकर अथवा अन्य विधियों से खाद्य बनाकर उपयोग मे लाया जाता है।
5. औद्योगिक अपशिष्ट
औद्योगिक संस्थाओं से व्यापक मात्रा मे कूड़ा-करटक एवं अपशिष्ट पदार्थ निकलता है। यह कचरा प्रत्येक उद्योग चाहे वह धातु उद्योग हो या रासायनिक उद्योग से निकाला जाता है और उद्योग के समीप खुले मे छोड़ दिया जाता है। अनेक उद्योगों से वृहत मात्रा मे राख निकलती है। अनेक विषैले, अम्लीय एवं क्षारीय पदार्थ भूमि को अनुपयोगी कर देते है। इनमे मिश्रित कार्बनिक पदार्थों को विशेष प्रक्रिया से गरम करके कुछ उपयोगी गैंसे जैसे मीथेन प्राप्त करना जिसका उपयोग ईधन के रूप मे किया जा सकता है।
उपरोक्त नियंत्रण के उपाय के अतिरिक्त जरूरी है कि सामान्य नागरिको के व्यवहार मे सुधार, ताकि वे चारो ओर गंदगी न फैलाकर निर्धारित स्थान पर एकत्र करे। जहां तक संभव हो कूड़ा-करकट का पुनः उपयोग करना चाहिए जिससे एक ओर प्रदूषण की समस्या कम होगी और दूसरी ओर अपशिष्ट पदार्थों का लाभकारी उपयोग किया जा सकेगा।
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