ठोस अपशिष्ट प्रबंधन क्या है?
मानव द्वारा उपयोग के बाद त्याग दिये जाने वाले ठोस तत्वों अथवा पदार्थों को ठोस अपशिष्ट कहते है। इसमे विविध प्रकार के डिब्बे, बोतल, काँच, पाॅलिथिन बैग, प्लास्टिक समान, राख, घरेलू कचरा, लौहा-लक्कड़ इत्यादि शामिल होते है।
ठोस अपशिष्ट, प्रबंधन के अंतर्गत अपशिष्टो तथा कचरो के समुचित संग्रह, डम्पिंग स्थलो पर इनका इकट्ठा करना तथा इनका समुचित निपटान सम्मिलित होता है। इस प्रकार ठोस अपशिष्ट प्रबंधन मे दो प्रक्रियाये सम्मिलित होती है-- 1. संग्रह, 2. निस्तारण। इन प्रक्रियाओं के साथ ठोस अपशिष्ट प्रबंधन मे कभी-कभी पुनर्चक्रण प्रक्रिया का उपयोग भी किया जाता है। ठोस अपशिष्ट प्रमुख रूप से नगरीय तथा औद्योगिक क्षेत्रों से प्राप्त होते है।
ठोस अपशिष्ट के कारण अथवा स्त्रोत
ठोस अपशिष्ट पदार्थों के प्रमुख स्रोत निम्न है--
1. औद्योगिक अपशिष्ट
औद्योगिक इकाइयों द्वारा अनेक प्रकार के अपशिष्ट त्यागे जाते है, जो भूमि या मृदा प्रदूषण के मुख्य कारक है। चीनी कारखानो से व्यापक मात्रा मे निकलने वाली खोई, तापीय ऊर्जा संयंत्रो से उत्पादित राख, ताँबा व एल्यूमीनियम प्रगलन संयंत्रो से निकलने वाले खतरनाक रसायन, उर्वरक इकाइयों के अपशिष्ट पदार्थ आदि इसके उदाहरण है।
2. घरेलू व नगरपालिका अपशिष्ट
घरो से निकलने वाला कूड़ा-करकट तथा सार्वजनिक स्थलों पर एकत्रित कचरा नगर निकायों के लिए भारी समस्या है। इसमे पाॅलिथिन, प्लास्टिक, कागज, बोतलें, टिन, ब्लेड, घरों से निकलने वाला कूड़ा आदि शामिल है। विकसित देशों मे पुराने वाहन, टायर, फ्रिज, इलेक्ट्रॉनिक सामान आदि के निष्पादन की भीषण समस्या है। अकेले न्यूयार्क महानगर मे प्रतिदिन 25,000 टन कचरा निकलता है। भारत मे सार्वधिक मुम्बई महानगर से प्रतिदिन लगभग 6 हजार कूड़ा-करकट निकलता है। नगर निकायों द्वारा सम्पूर्ण कचरे का निस्तारण न कर पाने के कारण अधिशेष कचरा निरन्तर बढ़ता जाता है।
3. कृषिजनित अपशिष्ट
फसल लेने के बाद खेतों मे बचे डण्ठल, पत्ते, घास-फूस आदि कृषि अपशिष्ट कहलाते है। खेतों मे पड़े रहने वाले ये पदार्थ अधिक मात्रा मे होने पर समस्या पैदा करते है। विकासशील देशों मे इन अपशिष्टों का अनेक रूपों मे उपयोग कर लेने के कारण कोई विशेष समस्या नही है, लेकिन विकसित देशों मे इनका निष्पादन विकट समस्या है।
4. खनन अपशिष्ट
खनिजो की प्राप्ति के दौरान काफी मात्रा मे अपशिष्ट निकलते है। खनन के लिए सबसे पहले भू-पृष्ठ को तोड़ा या खोदा जाता है। इससे मलबे का ढेर लग जाता है। खनन की प्रक्रिया के समय निम्न श्रेणी के खनिज को छोड़ दिया जाता है। परिवहन के समय भी खनिजयुक्त मलबा यहाँ-वहाँ फैलता है। खनन क्षेत्र मे अपशिष्ट से निर्मित मलबे के बड़े-बड़े ढेर देखे जा सकते है।
5. अन्य मृत जानवरों के कंकाल, इमारती पत्थरों की कटिंग व पाॅलिश के समय निकलने वाली स्लरी, बुचड़घरों से निकलने वाले अपशिष्ट, अस्पतालों से निकलने वाला बायो मेडिकल बेस्ट, पाॅल्ट्री फाॅर्म का कचरा आदि ठोस अपशिष्ट के अन्य कारण है।
ठोस अपशिष्टों का प्रबंधन
ठोस अपशिष्टों का प्रबंधन निम्न प्रकार किया जा सकता है--
1. ठोस अपशिष्टों के प्रबंधन मे उनको नियमित रूप से इकट्ठा करना प्रथम चरण है। इसके लिए प्रत्येक गली-मोहल्ले मे निर्धारित स्थल पर कूड़ादान रखा जाये तथा वहां से कचरा नियमित रूप से उठाया जाये।
2. विघटनीय एवं अविघटनीय कचरे का संग्रहण अलग-अलग किया जाये, ताकि उनका निष्पादन एवं पुनःचक्रण मे सुविधा रहे। सड़ा-गला भोजन, फल, सब्जियां आदि विघटनीय पदार्थ की श्रेणी के अंतर्गत आते है।
3. किसी भी प्रकार के अपशिष्ट का खुले मे विसर्जन न किया जाये।
4. एकत्रित सम्पूर्ण कूड़े-करकट को प्रतिदिन डम्पिंग स्थल तक पहुंचाने के समुचित उपाय नगर निकायों द्वारा किये जाये।
5. नगरो के व्यस्त क्षेत्रो (बाजार, सार्वजनिक स्थल आदि) मे कचरे का संग्रहण प्रतिदिन एकाधिक बार किया जाये।
6. अपशिष्ट पदार्थों को एकत्रित करने के बाद उनका समुचित निस्तारण अथवा निपटान महत्वपूर्ण कार्य है। एकत्रित कचरे की छँटाई करके विभिन्न श्रेणियों मे वर्गीकृत करना चाहिए। विघटनीय पदार्थो को गड्ढ़ों मे गाढ़कर खाद्य बनानी चाहिए। ज्वलनशील पदार्थों का दहन करना चाहिए। धातुओं की अपशिष्ट सामग्री व अज्वलनशील अपशिष्टों को आबादी क्षेत्रो व जल स्त्रोतों से दूर बनाये गये डम्पिंग स्थलो पर डालना चाहिए।
7. ज्वलनशील अपशिष्टों के निपटान के लिए नगर निकायो द्वारा इन्सिनेटर की स्थापना की जानी चाहिए।
8. ठोस अपशिष्टों का समुचित निस्तारण न करने वाली संस्थाओं एवं व्यक्तियों के विरूद्ध कड़ी कार्यवाही की जानी चाहिए।
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ठोस अपशिष्ट प्रबंधन की भूमिका
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