4/30/2021

चक्रवात किसे कहते हैं? प्रकार

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चक्रवात किसे कहते हैं? (chakrawat kya hai)

जब कोई वायुराशि किसी न्यून वायु दाब क्षेत्र की ओर चक्राकार रूप मे तीव्र गति से प्रवाहित होती है तो वह चक्रवात के रूप मे जानी जाती है।

पिटिगंटन के अनुसार," चक्रवात अस्थिर हवाओं का गोलाकार रूप है, इनके केन्द्र मे कम वायुदाब होता है और इनके चारो ओर तेज वायुदाब वाली हवाये चलती है, जिसके कारण चक्रवात उत्पन्न होते है।"

चक्रवात के प्रकार (chakrawat ke prakar)

मुख्यतः चक्रवात दो प्रकार के होते है--

1. शीतोष्ण कटिबंधीय चक्रवात 

प्रायः चक्रवातों के मध्य मे निम्न वायुदाब पाया जाता है। अतः ये निम्न वायुदाब वाले तूफान होते है। ऐसे चक्रवातों की उत्पत्ति 35⁰ से 65⁰ उत्तरी व दक्षिणी आक्षांशो के मध्य होती है, किन्तु विजकिन्स के अनुसार, इन चक्रवातों की उत्पत्ति ऊष्ण कटिबंधीय गर्म हवाओं व ध्रुवीय ठण्डी हवाओं के मिलने से होती है। इन चक्रवातों के आने से पहले आसमान मे सफेद बादल छा जाते है। साथ ही बैरोमीटर का पारा क्रमशः कम होने लगता है और जब चक्रवात आता है, तो हल्की-हल्की बारिश की बूँद गिरना प्रारंभ हो जाती है व साथ ही बादल और बढ़ जाते है। इसके बाद बारिश के समाप्त होते ही मौसम साफ व आसामान स्वच्छ हो जाता है परन्तु जब कभी चक्रवात का पिछला भाग सामने की ओर बढ़ता है तो मौसम पुनः खराब हो जाता है, व आसमान मे भारी बादल घिर आते है। बिजली की गर्जन-तर्जन के साथ ओले गिरने लगते है और कुछ समय बाद जब तापक्रम कम हो जाता है, तो वर्षा रूक जाती है और आसमान फिर से साफ व लुभावना हो जाता है।

2. ऊष्ण कटिबंधीय चक्रवात 

इन चक्रवातों के मध्य मे भी कम वायुभार पाया जाता है। इन चक्रवातों की उत्पत्ति मुख्यतः विषुवत रेखा के निकटवर्वी क्षेत्रो मे 15⁰ उत्तरी अक्षांश व 15⁰ दक्षिणी अक्षांशों के मध्य होती है। तेज हवायें जैसे ही इन निम्न वायुदाब क्षेत्रों मे प्रवेश करती है तो उनमे ऊर्ध्वाधर गति उत्पन्न हो जाती है, जिससे वर्षा भी होने लगती है।

ऐसे चक्रवात प्रायः ग्रीष्म ऋतु मे उत्पन्न होते है। पार्पन नामक वैज्ञानिक के अनुसार, जब वायु की एक विशाल राशि अपने समीपवर्ती वायु से अधिक आर्द्र व गर्म हो जाती है, तो वायु ऊपर की ओर उठने लगती है और उठती वायु का स्थान ग्रहण करने के लिये चारों ओर हवायें इस ओर आगमन करती है। ये हवायें पृथ्वी की परिभ्रमण गति के अनुसार सीधी न चलकर मुड़ जाती है, जिससे वायु घुमावदार हो जाती है और ये घटना को ही ऊष्ण कटिबंधीय चक्रवात कहते है, इन चक्रवातों के आने के पूर्व भीषण गर्मी, शांत वायु व आसमान मे सफेद बादर घिर आते है और धीरे-धीरे परतीले बादलों का आगमन भी प्रारंभ हो जाता है। इसके बाद आँधी व बिजली की गर्जन के साथ ही भारी वर्षा होती है, और इसके बाद आसमान साफ व स्वच्छ हो जाता है।

उक्त चक्रवातों के आने पर प्रभावित क्षेत्र मे तीव्र गति की तूफानी हवाएँ चलती है तथा भारी बर्षा होती है जिसके प्रभाव से वृक्ष व बिजली के खम्भे उखड़ जाते है, इमारतें गिर जाती है, कृषि, फसलें नष्ट हो जाती है तथा सागरीय भागों मे मछुआरे डूबकर मर जाते है। भारी वर्षा होने पर कभी-कभी चक्रवात प्रभावित क्षेत्रों मे बाढ़ की स्थितियां पैदा हो जाती है।

चक्रवात आपदा प्रबंधन के माध्यम से चक्रवात को रोका तो नही जा सकता, पर चक्रवात से होने वाली जन-धन की हानि को निम्न उपायों द्वारा कम किया जा सकता है--

1. भौगोलिक सूचना तंत्र तथा दूर-संवेदन तकनीक कृत्रिम उपग्रहों से प्राप्त आँकड़ों से चक्रवात के आने का सही पूर्वानुमान समय से पूर्व लगाया जा सकता है। चक्रवात आगमन के पूर्वानुमान द्वारा चक्रवात के आने की पूर्व सूचना प्रभावित क्षेत्रों के निवासियों को संचार माध्यमों के द्वारा समय रहते प्रसारित कर दी जाये, इससे चक्रवातों द्वारा होने वाली जन-धन की हानि को न्यूनतम किया जा सकता है।

2. वैज्ञानिकों द्वारा ऐसी तकनीक विकसित करने का प्रयत्न किया जा रहा है जिससे चक्रवात की तीव्रता को कम किया जा सके, साथ ही चक्रवात की दिशा मे आंशिक परिवर्तन किया जा सके। ऐसा होने पर चक्रवात के दुष्प्रभावों को कम किया जा सकता है।

3. चक्रवात प्रभावित क्षेत्रों मे राहत, बचाव तथा पुनर्वास जैसे कार्यक्रमों को यथाशीघ्र प्रभावी ढंग से लागू किया जायें।

4. सागरतटीय क्षेत्रों मे विभिन्न स्थानों पर मौसम चेतावनी संयंत्र स्थापित किये जाएं।

5. चक्रवात प्रभावित क्षेत्रों मे सघन वृक्षारोपण का कार्य वरीयता से कराने पर चक्रवात की गति को कम किया जा सकता है।

शायद यह जानकारी आपके के लिए बहुत ही उपयोगी सिद्ध होगी

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