8/03/2020

सूखा किसे कहते है? कारण, प्रभाव, बचाव के उपाय

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सूखा किसे कहते है (sukha kya hai)

किसी भी क्षेत्र मे होने वाली सामान्य वर्षा मे 25% या उससे ज्यादा कमी होने पर उसे आमतौर पर सुखे की स्थिति कहा जाता है। गंभीर सूखे की स्थिति ज्यादा देर से आती है। गंभीर सूखे की स्थिति को हम तब कहते है जब या तो वर्षा मे 50% से अधिक की कमी हो या दो वर्षों तक निरंतर सूखे की परिस्थिति बनी रहें।
सिंचाई आयोग की 1972 की एक रिपोर्ट के अनुसार देश के वे क्षेत्र जहाँ औसत वार्षिक वर्षा 75 से.मी. से कम हो, साथ ही कुल वार्षिक वर्षा मे सामान्य से 25% तक परिवर्तन हो सुखा ग्रस्त क्षेत्र कहा गया है।

सूखा आपदा के कारण (sukha ke karan)

सूखे का आगमन धीरे-धीरे होता है और इसके आगमन तथा समाप्त होने का समय तय करना कठिन होता है। वर्षा का गिरता स्तर, गिरता हुआ भू-जल स्तर सूखे कुएं, सूखी नदियां और जलाशय तथा अपर्याप्त कृषि उपज सूखे के आगमन की चेतावनी देते है। यद्यपि सूखा एक प्राकृतिक आपदा है, सूखे की स्थिति हेतु मुख्य उत्तरदायी कारक निम्नलिखित हैं---
1. भूमि प्रबंध की उपेक्षा।
2. सिंचाई के पारंपरिक स्त्रोतों जैसे तालाब, कुओं और टेंकों की उपेक्षा।
3. सामुदायिक वनों का विनाश।
4. वन विनाश से प्राकृतिक जलधाराओं का सूखना, वर्षा कम होने से भूमिगत जल स्तर का नीचे जाना नदियों के जल स्तर का गिरना।
5. पशुओं के लिए चारा संकट।
6. अनिश्चित क्षेत्रों मे अर्थव्यवस्था का अस्त-व्यस्त होना।
7. फसल चक्र मे तीव्र परिवर्तन।
8. वातावरण के आपसी सम्बन्ध टूटने से कृषि, उद्योग एवं घरेलू कार्य मे पानी की मांग मे अभूतपूर्व वृद्धि।
9. जल संसाधनों के दोहन की दोषपूर्ण व्यवस्था।

सूखा अपदा के प्रभाव (sukha ke prabhav)

प्रारंभ मे सुखे का प्रभाव आधारित फसलों पर तथा बाद मे सिंचित फसलों पर पड़ता है। जिन क्षेत्रों मे वर्षा को छोड़कर वैकल्पिक जल स्त्रोत कम हो, जहाँ कृषि को छोड़कर अन्य आजिविकाएं कम से कम विकसित हो, सूखे की दृष्टि से सर्वाधिक असुरक्षित होते है। सूखा आपदा का सबसे बड़ा असर देश के करोड़ों भूमिहीन किसानों ग्रामीण कारीगरों, सीमान्त कृषकों, महिलाओं, बच्चों और खेती से जुड़े मवेशियों पर पड़ता है।
अन्य प्राकृतिक आपदाओं से हटकर सूखे के कारण कोई संरचनात्मक क्षति नही होती है। खूखा लोगों को पेयजल की तलाश मे मीलों तक चलने के लिए विवश कर देता है सूखा पड़ने पर फसल का न होना एक सामान्य घटनाक्रम है। पृष्ठभूमि मे अत्यंत न्युन पेड़ पौधे दिखाई पड़ते है। फसले, दुग्ध उत्पादन, लकड़ी उत्पादन, बिजिली की अधिक मांग, बिजली का कम उत्पादन, बढ़ी हुई बेरोजगारी, जैव विविधता मे कमी, पानी, वायु तथा प्रकृतिक सौंदर्य के स्तर मे गिरावट, भूजल की कमी, स्वास्थ्य विकार तथा मृत्यु दर मे वृद्धि, गरीबी मे वृद्धि, जीवन स्तर मे गिरावट, सामाजिक अशांति तथा स्थान बदलने की प्रक्रिया (पलायन) सूखे के मुख्य दुष्प्रभाव है।
सूखे के अन्य प्रभाव 
1. वनों का ह्रास।
2. स्वास्थ्य एवं कुपोषण जैसी समस्याओं की वृद्धि।
3. नियोजन आर्थिक विकास मे बाधा।
4. जमाखोरी के कारण महँगाई मे वृद्धि।
5. जनता की क्रय-शक्ति मे कमी होना।
6. मानव की कार्यक्षमता मे कमी।

सूखे से बचाव के उपाय 

सूखे से बचने के उपाय अथवा सुझाव इस प्रकार हैं--
1. जल का बहुत बड़ा हिस्सा सिंचाई के काम आता है। सिंचाई तंत्र मे जल का उचित प्रबंधन करके जल मे की गयी बचत सूखे मे राहत दे सकती है।
2. नहरो द्वारा हमे अति सिंचाई से बचना चाहिए ताकि जल-स्तर के नीचे होने और मिट्टी मे लवण व क्षार बढ़ने की समस्या पैदा न हो।
3. देश की प्रमुख नदियों के बेसिन आपस मे जोड़कर नदियों का एक ग्रिड बना दिया जाये ताकि शुष्क तथा अनावृष्टि वाले क्षेत्रों मे जल की आपूर्ति होती रहे।
4. शुष्क व अर्ध-शुष्क प्रदेशों मे शुष्क कृषि-प्रणाली (Dry Land Farming System) तथा बौछारी सिंचाई (Sprinkler Lrrigation), टपकन सिंचाई (Dripor Trickle Lrrigation) की व्यवस्था सूखे का कारगर मुकाबला कर सकते है।
5. नदियों के ऊपरी अपवाह-क्षेत्र (Catchment Area) पर छोटे-छोटे बाँध बनाये जायें ताकि पानी व्यर्थ न बह जाये। लघु जल संभर (Micro Water Shed) के आधार पर जल और मृदा दोनों का संरक्षण सूखे के प्रबंधन के लिये जरूरी है। जल संभर ही एक ऐसा उपाय है जिसके द्वारा सूखा तथा उससे जुड़ी समस्याओं जैसे निम्न कृषि-उत्पादन तथा पर्यावरण ह्रास आदि को सुलझाया जा सकता है।
6. सूखे की समस्या का निदान कटक से घाटी (Ridge to Valley) तक अर्थात् संपूर्ण नदी बेसिन के उपचार मे निहित है ताकि जल, मिट्टी और जीव का सहजीवी विकास हो सके। सूखे का इलाज टुकड़ो मे (Patch work) करने से नही होगा।
7. वृक्षों की अविचारित कटाई को रोककर सूखा-सम्भावित क्षेत्रों मे सामाजिक वानिकी तथा फार्म वानिकी जैसे कार्यक्रमों जिनसे चारे व ईंधन की उपलब्धता बढ़ी है, को प्रोत्साहित किया जाना जरूरी है। विस्तृत क्षेत्र पर फैला स्थायी हरित है, को प्रोत्साहित किया जाना जरूरी है। विस्तृत क्षेत्र पर फैला स्थायी हरित आवरण ही बार-बार पड़ रहे सूखे का इलाज है।
8. टिकाऊ जल-भण्डारण के प्राकृतिक साधनों जैसे मृदा-परिच्छेदिका वृक्ष और जलभृत को हम भूलतूमे जा रहे है।
9. 'जल जहां गिरे उसे कब्जा लो' की एक प्राचीन अवधारणा को देश के वृष्टि छाया प्रदेशों मे एक नये सिरे से इस्तेमाल मे लाया जा रहा है। इसमे घरों की छतों से वर्षा का जल मकानों के नीचे भूमिगत टंकियों मे इकट्ठा किया जाता है। इसमे कुयें भी भर जाते है।
10. सूखे का पूर्वानुमान प्रसारित करके भी सुखे के प्रभाव को कम किया जा सकता है। ऐसे मे किसान कम जल माँगने वाली फसलों का चयन कर सकते है।
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