4/03/2021

अकबर की उपलब्धियां/विजय अभियान

By:   Last Updated: in: ,

अकबर की उपलब्धियां/विजय अभियान 

akbar ke vijay abhiyan;अकबर का कालनौर पंजाब में सन् 1556 ई. में जब अभिषेक हुआ था। अकबर ने अद्भुत् कुशलता और क्षमता का परिचय दिया और 1556 ई. में हेमू को पानीपत के युद्ध में पराजित किया। बंगाल ने 1560 ई. में अकबर के सम्‍मुख समर्पण कर दिया। तथा अनेक विद्रोहों और माहम अंगा तथा बैरम खां से मुक्‍त होकर अकबर ने साम्राज्‍य-विस्‍तार के लिये सैनिक अभियान प्रारम्‍भ किये। 

यह भी पढ़ें; अकबर कौन था?

यह भी पढ़ें; अकबर की धार्मिक नीति एवं दीन ए इलाही की विशेषताएं

यह भी पढ़ें; अकबर की राजपूत नीति

यह भी पढ़ें; अकबर एक राष्ट्रीय सम्राट

1. मालवा विजय अभियान 

अकबर ने 1561 में मालवा के बाजबहादूर की राजधानी सांरगपुर पर आक्रमण किया। बाजबहादूर शुजात खां का पूत्र था। बाजबहादूर एक विलासी, अयोग्‍य सुल्‍तान था। अकबर ने आधम खां को आक्रमण करने को भेजा। बाजबहादूर पराजित हुआ। आधमखां ने लोभ में पड़कर थोड़ा-सा धन अकबर को भेज दिया और शेष स्‍वंय रख लिया। अत्‍याचार तथा लोभ का समाचार जब अकबर के पास पहुंचा तो वह स्‍वंय सजा देने गया परन्‍तु माहम अंगा के प्रभाव के कारण अकबर ने उसे क्षमा कर मालवा का गवर्नर बना दिया।

2. गोंडवाना का विजय अभियान 

गोंड़वाना में महोबा की चंदेल रानी दुर्गावती का वास्‍तविक राज्‍य था। अबुल फजल ने उसके प्रशासन, चरित्र, वीरता की भूरि-भूरि प्रशंसा की है। इस पर अकबर और कड़ा के राज्‍यपाल आसफ खां ने अकारण ही आक्रमण किया। महारानी अत्‍यन्‍त वीरता से राज्‍य और आत्‍मरक्षा करती हुई मारी गई। उसके पुत्र नारायण राव को भी मुगलों ने मार दिया। स्मिथ ने लिखा कि दूर्गावती पर आक्रमण किसी भी प्रकार से न्‍यायोचित नहीं कहा जा सकता है। उसने केवल लूट एंव विजय-पिपासा या साम्राज्‍य-लिप्‍सा के कारण ही यह आक्रमण किया। 

  3. चित्‍तौड़ पर आक्रमण 

1567 में मेवाड़ में चित्तौड़ के शासक राणा उदयसिंह पर आक्रमण गया तथा अंततोगत्‍वा उस पर अधिकार कर लिया गया। 

4. रणथम्‍भौर पर आक्रमण 

1568 ई. में रणथम्‍भौर पर चौहान राजपूतों के हाड़ा वंश का राज्‍य था। फरवरी, 1569 मे अकबर की तोपों की मार के सम्‍मुख रणथम्‍भौर की दीवारें नहीं ठहर सकी। राजा भगवानदास और राजा मानसिंह के द्वारा राय सुरजन ने अपने दो पुत्र दूदा और भोजा को अकबर के पास भेजा। अकबर ने रायसुरजन की सभी शर्तो को मानकर आधीनता स्‍वीकार करवाने में सफलता पाई। 

5. कालिंजर पर आक्रमण 

बुंदेलखंड में कालिंजर का किला रीवा के राजा रामचंद्र के अधीन था। 1569 में मजनूखां ककसाल को से जीतने के लिए भेजा गया। राजा रामचंद्र ने मुगल अधीनता स्‍वीकार कर ली। 

6. जोधपुर और बीकानेर 

जोधपुर के राजा मालदेव का पुत्र चन्‍द्रसेन अकबर की शरण में आ गया था, परन्‍तु यह मित्रता अधिक समय नहीं चली अतः यह सिवाना चला गया अतः अकबर ने जोधपुर पर आक्रमण किया और उसे आधीन बनाकर बीकानेर के राजसिंह को दे दिया। राजसिंह के पिता कल्‍याणमल ने भेंट कर अपनी पुत्री का विवाह अकबर के साथ कर दिया। 

7.  मेवाड़ के लिए हल्‍दी घाटी का युद्ध 

अकबर ने अपनी कुशल नीति के द्वारा अधिकांश राजपूतों को अपने पक्ष में कर लिया था। अब वह राणा की स्‍वंतत्रता, प्रमुखता, श्रेष्‍ठता को कैसे सहन कर सकता था। अतः उसने सोचा कि राणा स्‍वंय नहीं झुका तो उसे आक्रमण से झुकाना चाहिये। अकबर ने 1576 ई. में हल्‍दीघाटी में राणा को विशाल सेना के द्वारा घेर लिया। भीषण संग्राम के पश्‍चात् युद्ध कोशल का परिचय देते हुये प्रताप युद्ध भूमि से चले गये। भीषण कष्‍टों का सामना करते हुये उन्‍होनें निरन्‍तर संघर्ष किये, परन्‍तु पराजय स्‍वीकार नहीं की। राणा प्रताप ने अकबर को अनेक स्‍थानो पर पराजित करके खोये हुये किलों को वापस लेना प्रारम्‍भ कर दिया। केवल दो किलो को छोड़कर सभी स्‍थानों से अकबर की सेनाओ को खदेड़ दिया गया। अकबर राणा प्रताप के जीवित रहते मैवाड़ में कुछ नहीं कर सका और न राणा प्रताप को पकड़ सका, न अधीन बना सका। इस नीति से मुगल साम्राज्‍य की आर्थिक दशा पर बुरा प्रभाव पड़ा। राणा प्रताप की मृत्‍यु और स्‍वंय अकबर की मृत्‍यु तक मुगल मेवाड़ में कुछ न कर सके। मेवाड़ स्‍वंतत्र बना रहा।

8. गुजरात पर आक्रमण 

मुजफ्फरशाह के एक सरदार इत्‍माद खां ने अकबर को गुजरात में हस्‍तक्षेप करने को प्रोत्‍साहित किया अतः अकबर ने 1572 ई. में आक्रमण किया। मुजफ्फरशाह ने आत्‍मसमर्पण कर दिया, परन्‍तु अकबर के लौटने के पश्‍चात् वहां पुनःविद्रोह हो गया, किन्‍तु अकबर ने बहुत तेजी से लौटकर और 600 मील की दूरी नौ दिन में पूरी करके गुजरात को 1584 ई. में अपने साम्राज्‍य में मिला लिया। गुजरात पर अधिकार से अकबर के राज्‍य की सम्‍पन्‍नता में वृद्धि हुई और दक्षिण अभियान के लिये केन्‍द्र मिल गया। यही राजा टोडरमल ने प्रथम बार राजस्‍व व्‍यवस्‍था का प्रयोग किया।  

9. कश्‍मीर पर आक्रमण 

अकबर ने कश्‍मीर पर आक्रमण करने के लिऐ राजा भगवानदास को भेजा। जिस समय अकबर ने कश्‍मीर पर आक्रमण किया उस समय कश्‍मीर का राजा युसुफ खां था जो की अत्‍यन्‍त अत्‍याचारी और धर्मान्‍ध था। भगवान दास युसुफ खां को पराजित कर कश्‍मीर को काबूल प्रान्‍त का भाग बनाकर अपने अधीन कर लिया। 

10. बंगाल विजय

बंगाल में सूलेमान का पुत्र दाउद खां बंगाल का अफगानी शासक था। 1572 ई. में दाऊद खां सिंहासन पर बैठा। वह एक साहसी तथा वीर युवक था। उसने अकबर की आधीनता स्‍वीकार नहीं की। उसे अफगान शक्ति पर पूरा विश्‍वास था। जब उसने अकबर के अधीन एक दूर्ग पर आक्रमण किया और जौनपुर के राज्‍यपाल को पराजित किया तब पहले राजा टोडरमल ने और फिर मानसिंह ने आक्रमण करके उसे पराजित किया। अफगानों ने दाऊद खां का साथ नहीं दिया अतः 1576-92 में बंगाल भी मुगल साम्राज्‍य का अंग बन दिया।

दक्खन के अभियान 

1. खानदेश 

1599 में अकबर मे अलीखां की राजधानी बुरहानपुर पर आक्रमण कर उसे विजित कर लिया। 

2. अहमदनगर

अकबर ने 1595 से 1600 के मध्‍य कई बार अहमदनगर पर आक्रमण किया। अतः 1600 में अहमदनगर के किले को विजित कर लिया गया। यहां की शासिका चांदबीबी ने या तो आत्‍महत्‍या कर ली या फिर उसके सरदारों ने ही उसे मार डाला। 

3. असीरगढ़ पर विजय 

खानदेश के शासक राजा आलीखां की मृत्‍यु के पश्‍चात् मीरन बहादूर खानदेश का शासक बना। जिसने मुगल अधीनता ठुकरा दी। फलतः 1601 में अकबर ने असीरगढ़ दुर्ग पर अधिकार कर लिया। यह उसके जीवन की अंतिम विजय थी। 

निष्‍कर्ष 

अकबर ने उत्तर-भारत में विजय प्राप्‍त करके विशाल साम्राज्‍य का निर्माण किया और उत्‍तर-पश्चिम सीमान्‍त को जीतकर साम्राज्‍य को निष्‍कण्‍टक बनाया। अब अकबर का राज्‍य पश्चिम में काबुल कन्‍धार से पूर्व में बंगाल तक और उत्तर में कश्‍मीर से दक्षिण मे मालवा अ‍थवा विन्‍ध्‍याचल पर्वत तक विस्‍तृत हो गया था और अस्‍थाई रूप से अहमदनगर की सीमाओं को छू रहा था।

यह भी पढ़ें; मुगल आक्रमण के समय भारत की राजनीतिक दशा
यह भी पढ़ें; अकबर का इतिहास 

1 टिप्पणी:
Write comment

आपके के सुझाव, सवाल, और शिकायत पर अमल करने के लिए हम आपके लिए हमेशा तत्पर है। कृपया नीचे comment कर हमें बिना किसी संकोच के अपने विचार बताए हम शीघ्र ही जबाव देंगे।