मुगल आक्रमण के समय भारत की राजनीतिक दशा
mughal aakraman ke samay bharat ka rajnitik dasha;16 वीं शताब्दी में भारत की दशा बहुत दयनीय थी। भारत में छोटे-छोटे राज्य थे। वे उसी प्रकार थे जैसे कि 11वीं शताब्दी में भारत अनेक राज्यों में विभक्त था। अंतर केवल इतना था कि 11वीं शताब्दी में भारतीय शासक राज्य कर रहे थे। लेकिन 16वीं शताब्दी में अनेक विदेशी शासको का राज्य भारत में था। मुहम्मद तुगलक के काल से दिल्ली सल्तनत का पतन शुरू हो गया था। फिरोज तुगलक के काल में यह दिखने लगा था। तैमूर के आक्रमण से इसे काफी नुकसान हुआ था। इस प्रकार दिल्ली सल्तनत कमजोर हो गई थी और अब वह पुराने गौरव को प्राप्त करने में असमर्थ थी। ईश्वरीप्रसाद लिखते है कि ‘‘सोलहवीं शताब्दी में भारत राज्यों का एक समूह था जो किसी भी आक्रमणकारी का जो कि उसे जीतने की शक्ति और इच्छा रखता था, सरलता से शिकार हो सकता था।‘‘ एक केन्द्रीय सत्ता के अभाव में ऐसा हो रहा था। छोटे-छोटे राज्य आपस में लड़ रहे थे और उनमें महत्वाकांक्षा, प्रतिद्वंद्विता, जातीय गौरव आदि कारणों से विभाजन हो गया था।
इधर लोदियों में विद्रोह की भावना, अशातिं की आग को भड़का रही थी। उत्तर में उस समय दिल्ली, पंजाब, बंगाल, जौनपुर,मालवा, गुजरात, कश्मीर, उड़ीसा आदि अनेक छोटे-छोटे राज्य थे। प्रमुख राज्ये का विवरण इस प्रकार था--
1. दिल्ली में लोदी वंश
दिल्ली में इस समय लोदी अफगानों का शासन था। तुगलकों के पतन के बाद 1414 से 1450 तक सैयद वंश ने शासन किया था। 1451 में लोदियों का शासन स्थापित हुआ था। लोदी वंश का प्रथम शासक बहलोल लोदी था। उसने अफगान सरदारों को बराबरी का दर्जा देकर भाईचारे के तरीके से 38 वर्ष तक शासन किया। दूसरे लोदी सुल्तान सिकन्दर लोदी ने दमन और पुचकारने की नीति आवश्यकतानुसार अपनाई। उससे 1489 से 1517 तक राज्य किया। तीसरा और अंतिम लोदी सुल्तान इब्राहीम लोदी था। बाबर के आक्रमणों के समय दिल्ली में इब्राहीम लोदी शासन कर रहा था।
दिल्ली की सल्तनत इस समय तक बहुत सिकुड चुकी थी। दिपालपूर, ग्वालियर, जोनपूर, का शर्की राज्य, पूरा दोआब तथा बिहार दिल्ली साम्राज्य के हिस्से थे। आगरा इस समय दिल्ली राज्य की राजधानी थी। इब्राहीम का राजत्व सिद्धांत बहलोल और सिकन्दर लोदी की बजाय बलबन और अलाउद्दीन खलजी से मिलता था। उसके निरंकुश और कठोर स्वभाव से अफगान सरदार नाराज थे। कईयों ने विद्रोह का झंडा उठा रखा था। इनमें से कुछ को बहुत कठोर दण्ड दिये गये थे। इब्राहीम लोदी के चाचा आलम खां ने बाबर को भारत आक्रमण के लिए आंमत्रित किया था। बिहार में लोहानी अफगान भी विद्रोही हो रहे थे।
2. पंजाब
वैसे तो पंजाब दिल्ली सल्तनत के अंतर्गत ही था लेकिन वहां का शासक दौलत खां लोदी स्वतंत्र शासक जैसा व्यवहार करता था। उसने भी इब्राहीम के खिलाफ विद्रोह कर दिया और बाबर को आक्रमण के लिए आमंत्रण दिया था।
3. बंगाल
तुगलकों के शासन काल में ही बंगाल दिल्ली सल्तनत से स्वतंत्र हो चुका था। बाबर के आक्रमण के समय वहां हूसैनी वंश का नसरत शाह शासन कर रहा था। वह बड़ा प्रतिभा सम्पत्र शासक था।
4. उड़ीसा
उड़ीसा एक हिन्दू राज्य था। यहां के गजपति नरेशों ने विजय नगर एंव बहमनी राज्यों से अनेक युद्ध किये। बंगाल के साथ भी उनका संघर्ष लगातार होता रहा।
5. मालवा
मालवा में एक स्वतंत्र राज्य की स्थापना 1401 में दिलावर खां गोरी ने की थी। 1435 ई. से यहां खलजी वंश का शासन शुरू हुआ। बाबर के आक्रमण के समय महमूद खलजी द्वितीय शासन कर रहा था। मांडू मालवा राज्य की राजधानी थी। प्रधानमंत्री मेदिनी राय तथा सुल्तान महमूद के बीच हुए संघर्ष से इस समय मालवा एक कमजोर राज्य था। गुजरात से भी मालवा का संघर्ष शुरू हो गया था। चन्देरी पर मेदिनी राय ने अधिकार कर लिया था।
6. राजपुताना
राजपूताने में अनके राजपूत राज्य थे। यह राजपूत अपनी ही समस्याओं में उलझे हुये थे। उनमें परस्पर फूट और संघर्ष थे। इस कारण किसी ने भी दिल्ली से विदेशी सत्ता को समाप्त करेन का प्रयत्न नहीं किया। राजपूतों में देशभक्ति का अभाव था। वे अत्यधिक व्यक्तिगत प्रतिष्ठा के प्रेमी थे। उनमें दूरदर्शिता और संगठन की कमी थी। अलाउद्दीन के काल में मेवाड़ का सुयोग्य शासक राणा हम्मीर था। इसके एंव इसके उत्तराधिकारी के काल में मेवाड़ ने अच्छी प्रगति की। 1509 ई. में राणा संग्राम सिंह वीर राजा हुआ जिसने गुजरात, मालवा को पराजित किया और दिल्ली को पराजित करने का अवसर खोज रहा था, क्योकि इब्राहीम धर्मान्ध और अत्याचारी मुसलमान था। इसने राजपूतों का संगठन करने का भी प्रयत्न किया। मालवा के शासक को क्षमा किया राणा की शासन व्यवस्था भी अति उत्तम थी। अतः मेवाड़ शक्तिशाली और सम्पन्न भू-प्रदेश था। बाबर के आक्रमण के समय राजपूताने में राणा सांगा का राज्य था।
7. कश्मीर
इन दिनों कश्मीर में मुहम्मद शाह शासन कर रहा था। सत्ता संघर्ष के कारण कश्मीर की राजनीति में अस्थिरता का दौर भी चल रहा था।
8. सिन्ध
14वीं सदी के अतिंम चरण में सम्मा वंश के स्वतंत्र शासन की स्थापना हो गयी थी। बाबर द्वारा भगाये जोन पर कन्धार के शासक शाह अरगन ने 1520 में सिन्ध पर अधिकार कर लिया। बाबर के आक्रमण में समय सिन्ध और मुल्तान अशांति और गृह कलह के दौर से गुजर रहे थे।
9. विजयनगर साम्राज्य
सूदूर दक्षिण में विजयनगर का स्वतंत्र राज्य था। इस समय वहां साम्राज्य का सर्वश्रेष्ठ राजा कृष्ण देव राय शासन कर रहा था। विजय नगर साम्राज्य उत्तर में कृष्णा नदी से लेकर दक्षिण में रामेश्वरम् तक तथा पूर्वी समुद्र तक फैला हुआ था। विजयनगर की सीमांए तीनों समुद्रों को छूती थीं।
10. बीजापूर, अहमदनगर, गोलकुंडा, बीदर और बरार
दक्षिण भारत का दूसरा बड़ा साम्राज्य बहमनी साम्राज्य टूटकर पांच स्वतंत्र राज्यों में बंट गया था। अहमदनगर में निजामशाही वंश, बीजापुर में आदिलशाही वंश, गोलकुण्डा में कुतुबशाही वंश, बीदर में बीदरशाही तथा बरार में इमादशाही वंश स्थापित हो गये थे। पांचो ही राज्य विजयनगर को अपना शत्रु मानते थे।
ऊपर दिये गये विवरण से स्पष्ट है कि बाबर के आक्रमण के पूर्व भारत की राजनीतिक तस्वीर संतोषजनक नहीं थी। दिल्ली राज्य का गौरव और केन्द्रीय सत्ता अब समाप्त-सी थी। सैनिक योग्यता एंव कुशलता में भी कमी आ गयी थी। ज्यादातर स्वतंत्र राज्य आंतरिक कलह से पीडि़त थे। उत्तरी भारत में अनेक राज्यो में आपसी संघर्ष भी जारी था। ज्यादातर सीमांत असुरक्षित थे। गुप्तचर व्यवस्था बहुत कमजोर थी। बाबर जैसे साहसी और महत्वाकांक्षी व्यक्ति को दिल्ली की सत्ता समाप्त करने में विशेष कठिनाई नहीं हुई।
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