बाबर एक विजेता
babar ka bharat par akraman;बाबर का जन्म 14 फरवरी 1483 ई. में मध्य एशिया के फरगना नामक राज्य में हुआ था। उसके पिता का नाम उमर शेख मिर्जा तथा मां का नाम कुतुलुक निगार थी। बाबर का पिता तैमूरलंग के वंश का और मां चंगेजा खां के कुल की थी। इस प्रकार बाबर की धमनियों में एशिया की दो वीर और विख्यात जातियो का रक्त प्रवाहित हो रहा था। बाबर तैमूर के वंश की छठीं पीढ़ी में था। उस समय के मध्य एशिया के एक प्रसिद्ध सूफी संत ख्वाजा अब्दूल्ला अहरार ने बाबर का नाम जहीरूद्दीन मोहम्मद रखा। चूकिं चगताई मंगोलों को इस नाम का उच्चारण करने में दिक्कत होती थी, अतः उसका छोटा या उपनाम बाबर रख दिया गया। इतिहास में वह इसी नाम से प्रसिद्ध हुआ। परिवार के बुजुर्गो के अलावा बाबर को जिन शिक्षकों ने शिक्षा दी, उनमें शेख मजीद खुदा-ए-बीरदी, बाबा कुसी और ख्वाजा मौलाना काजी उल्लेखनीय हैं। बाबर को तुर्को, फारसी, इतिहास और ज्योतिष की अच्छी शिक्षा मिली थी।
भारत पर बाबर के आक्रमण के कारण
बाबर ने 1519 से 1526 के मध्य भारत पर आक्रमण किए। जिसमें निम्न कारण थे-
1. बाबर का बेघर होना
बाबर को अपने चाचा और मामा से फरगाना और समरकंद के लिए संघर्ष करना पड़ा। बाद में शैबानी खां, ईरानी, ईस्माइल, शफानी और उजबेग उबैदुल्ला से संघर्ष हुए। अतः बाबर को अपने राज्य को छोड़कर भारत आना पड़ा।
2. सैनिक शक्ति में वृद्धि
बाबर ने विभिन्न जातियों से युद्ध, कला और शस्त्रों को सीखा। ईरानियो से तोपखाने और बंदूकों का प्रयोग, उजवेगों से तुलगमा का प्रयोग, अफगानों से सेना छिपाना और शत्रु को प्रलोभन में डालना, सजातियों से घोड़ों का संचालन सीख लिया। इससे बाबर में जीतनें का विश्वास उत्पन्न हुआ। जबकि राजपूतों ने और भारत के मूसलमानों ने ऐसा कुछ भी नहीं किया और न कुछ सीखा।
3. धन की लोलूपता
बाबर नामें में बाबर ने लिखा है कि - ‘भारत में स्वर्ण शिलाओं और सिक्कों का बाहुल्य है।‘ अतः लुटे-पिटे बाबर को स्वर्णमुद्राओं का लोभ खींच लाया तथा अन्य कामूक सैनिकों को भी स्वर्ण और स्त्रियों के लोभ ने आकर्षित किया।
4. जेहाद़ का जोश
बाबर स्वंय निर्दयी, अत्याचारी और कट्टर मुसलमान था। दूसरी और कट्टापंथी उलेमाओं ने भी बाबर को भारत में हिन्दूओं केा मूसलमान बनाने, मुस्लिम राज्य की स्थापना करने मंदिर मूर्तियो को तोड़ने, बच्चों और स्त्रियों के अपहरण और उन पर अत्याचार करने का जोश दिलाया। इससे उसे महान धर्म विजेता या गाजी की उपाधि मिलेगी और वह सबसे बड़ा इस्लाम का सेवक कहलाएगा। अतः उसने आक्रमण किया।
5. उत्तर भारत की दशा
उत्तर भारत की राजनैतिक दशा बहुत खराब थी। मुस्लिम राज्य अमीरों के संघर्ष और हिन्दू राज्य परस्पर के युद्धों में व्यस्त थे। अतः बाबर के आक्रमण की चिंता किसी ने नहीं की बल्कि कुछ मुस्लिम सरदारों ने बाबर को आमंत्रित किया और मदद की अतः उसने आक्रमण का निश्चय किया।
बाबर का भारत पर आक्रमण
पानीपत का युद्ध
बाबर ने काबुल पर अधिकार करने के बाद भारत पर चार आरम्भिंक आक्रमण किए। जिनमें प्राप्त सफलता और असफलताओं से लाभ उठाया और तैयारी करके 1526 ई. में इब्राहिम लोदी पर पानीपत के मैदान में आक्रमण करके उसे पराजित किया। आलम खां और दौलत खां लोदी ने बाबर की मदद की।
व्यूह रचना
पानीपत के युद्ध में बाबर की व्यूह रचना भारत के लिए बिल्कुल नई थी। बाबर ने 700 गाडि़यो की एक सीधी कतार लगाई उन्हें रस्सियों से बांध दिया। शत्रु सेना को मोर्चे पर बिखरा देने के लिए ऐसा किया गया था। इन गाडि़यों के पीछे एक से दो सौ तक घुड़सवारों के जाने लायक स्थान खाली रखा गया था। गाडि़यों के पीछे बंदूकची और तोपखाना लगाया गया था। बाबर की शेष सेना आठ भागों में विभाजित थी। अग्ररक्षक, वामकेन्द्र, दक्षिण केन्द्र, वामपक्ष, दक्षिण पक्ष, सुरक्षित सेना, वाम तुलुगमा व दक्षिण तुलुगमा। केन्द्र का संचालन बाबर ने स्वंय किया। इस व्यूह रचना में तोपखाना, तुलुनामा टुकडि़यां तथा सुरक्षित सेना का विशेष महत्व है।
युद्ध
छुट-पुट झड़पों के बाद 21 अप्रैल 1526 को दोनों सेनाओं के बीच निर्णायक युद्ध हुआ। इब्राहीम की सेना ने आक्रमण किया। गाडि़यों का अंदाज न होने से वह अचानक बिखर गयी। बाबर ने तुलुगमा रणनीति का प्रयोग किया। सामने से तोपों और बंदूको से बारूद की बौछार होती रही। तेज तुलूगमा टुकडि़यों ने दाएं और बाएं पक्ष से बढ़कर पीछे से दिल्ली की सेना को घेर लिया। दोपहर तक घमासान युद्ध के बाद बाबर को विजयश्री प्राप्त हुई। इब्राहीम लोदी तथा ग्वालियर का राजा विक्रमादित्य युद्ध के मैदान में ही शहीद हो गये। लगभग 15000 सैनिक भी मारे गये। हुमायूं को आगरा पर अधिकार करने भेजा गया। स्वयं बाबर दिल्ली पहुंच गया।
सफलता के कारण
पानीपत के युद्ध में बाबर की सफलता या इब्राहीम की असफलता के कारणों में इब्राहीम की नीतियां या उसकी अयोग्यता महत्वूपर्ण कारण नहीं थे। राणासांगा में तो यह दोष नहीं थे, फिर वह भी एक वर्ष बाद क्यों हार गया? बाबर की सफलता का वास्तविक कारण था-- उसका तोपखाना, तुलुगमा रणनीति तथा उसका शानदार नेतृत्व। इब्राहीम की जगह और भी कोई होता तो इन साधनों और परिस्थितियेां में वह भी हार जाता। वह आदमी पर बारूद की विजय थी।
पानीपत का महत्व
पानीपत का प्रथम युद्ध भारतीय इतिहास के युग प्रवर्तक युद्धों में से एक है इस युद्ध के अत्यन्त महत्वपूर्ण परिणाम हुए--
1. भारत में एक नये राजवंश की स्थापना हुई जिसे मुगल राजवंश के नाम से जाना गया। बाबर ने दिल्ली पहुंचकर स्वंय को बादशाह घोषित कर दिया। इस प्रकार एक ऐसे साम्राज्य की नींव रखी गयी जिसकी सीमाओं में काबुल-कन्धार शुरू से ही सम्मिलित थे। यह एक नये युग का प्रारम्भ था।
2. पानीपत में इब्राहीम की पराजय एंव मृत्यु के साथ ही दिल्ली सल्तनत तथा लेादी वंश के शासन का पतन हो गया। पूरी अफगान शक्ति अभी नष्ट नहीं हुई थी। दूर्बल अवश्य हो गयी थी।
3. दिल्ली और आगरा का स्वामी बन जाने के बाद बाबर के गौरव और शक्ति में ही वृद्धि नहीं हुई, यद्यपि उसका आत्म विश्वास भी बढ़ा था। भारत से वापस लौटने के सम्बन्ध में ख्वाजा कलां को दिये गये उत्तर में उसके आत्म विश्वास तथा दृढ़ निश्चय का पता चलता है।
4. आगरा पर अधिकार के दौरान कोहिनूर जैसा जगत प्रसिद्ध हीरा भी हुमायूं को प्राप्त हुआ था जो उसने बाबर को लाकर दिया। बाबर ने उसे वापस हुमायूं को भेंट कर दिया।
पानीपत की सफलता के बाद बाबर के कुछ साथी भारत की गर्मी तथा घर की याद के कारण वापस लौटना चाहते थे। बाबर ने इस समस्या का समाधान अपनी नेतृत्व शक्ति तथा शायरान अंदाज में किया। फिर भी ख्वाजा कलां नामक उसका अजीज साथी लौट गया।
खानवा का युद्ध
27 मार्च 1527 को बाबर और राणा सांगा ( संग्राम सिंह) में खानवा नामक स्थान पर भयंकर युद्ध हुआ। इस आक्रमण के वही कारण थे जो पानीपत के युद्ध के थे। अंतर सिर्फ यही था कि अब एक महान हिन्दू राजा से संघर्ष था।
कारण
राणा सांगा राजपूतों में सबसे अधिक वीर और सम्माननीय राजा थे। इनकी विजय से अनेक राजपूत राजा सरलता से आत्मसमर्पण करने को तैयार हो सकते थे। इसके बाद बाबर को चुनौती देने वाली कोई शक्ति शेष नही बचती। राणा सांगा पर विजय से सर्वाधिक प्रतिष्ठा, धार्मिक यश, धन स्त्रियां प्राप्त होतीं तथा इससे विशाल साम्राज्य भी स्थापित हो जाता।
घटनाएं
राणा सांगा अपने पंरपरागत शस्त्रो, युद्ध प्रणाली से युद्ध करने आया जबकि बाबर चेन वाली गाडि़यों, तोपों, सुरक्षित सेना और बंदूकों के साथ जमा था। तुलगमा घेाड़ों से उसने सांगा पर पीछे से हमला करने और घेरा डालने का सफल प्रयत्न किया। फिर भी बाबर की सेना भागने लगी तब बाबर ने शराब के बर्तनों को तोड़कर और सैनिकों को जोश दिलाकर रोका और इस्लाम की याद दिलाई। अंत में बाबर की विजय हुई।
परिणाम
खानवा का युद्ध अत्यंत निर्णायक युद्ध था। इसके बारें में कहा जाता है कि इसने पानीपत के युद्ध की कमी को पूरा कर दिया। यह भी कहा जाता है कि पानीपत की पहली लडाई एंव खानवा का युद्ध भारत के इतिहास में निर्णायक थे। इसके परिणाम निम्नाकिंत है--
1. पानीपत की अधूरी विजय को पूरा किया
दिल्ली पर अधिकार से बाबर को भारत में सत्ता स्थापित करने का अवसर अवश्य मिल गया। परंतु उसको भारत में अन्य हिन्दू और मूस्लिम राजाओं ने स्वीकार नहीं किया था। बाबर को सदैव राज्य खोने का भय लगा रहता था। राणा सांगा की पराजय से उसका भय समाप्त हो गया तथा हिन्दू राजाओं ने बाबर को दिल्ली का स्वामी स्वीकार कर लिया। अब बाबर को स्थाई राज्य और स्थाई घर मिल गया। इस प्रकार पानीपत ने जो कुछ नहीं दिया था वह खानवा युद्ध ने दिला दिया।
2. भारतीय और ईरानी सांस्कृति का मिलन
आक्रमण से फारसी और हिन्दी से उर्दू का जन्म हुआ। हिन्दू और ईरानी कलाओं के मेल से मोगल कलम का जन्म हुआ। इसी प्रकार बाबर अपने साथ भारत से मूर्तिकार, वास्तुकार भारत से ले गया और उनके द्वारा उसने महल, बगीचे, मूर्तिया आदि का निर्माण करवाया। बाद में भारत में भी यही मिश्रण होने लगा।
3. राजपूतों के घमंड चूर-चूर हो गए
अभी तक राजपूत स्वंय को बहुत वीर समझते थे। उन्हें घमंड था कि उनके समान केाई युद्ध कुशल नहीं है। उनकी सांस्कृति धर्म सर्वश्रेष्ठ है। परंतु राणा सांगा की पराजय से यह सभी घमंड चूर-चूर हो गए तथा भविष्य में राणा प्रताप और अन्य राजपूतों को छापामार प्रणाली अपनाना पड़ी।
4. संस्कृति धर्म कला का नाश
निर्दयी और जिहादी़ बाबर ने काशी, मथूरा और अयोध्या के मंदिरों को तोड़ कर मस्जिद बनवाई। अनेक हिन्दूओं को मुसलमान बनाया और हजारों हिन्दूओं हत्यांए करके सिरों की मीनार लगाई। स्त्रियों के अपहरण किए। इस प्रकार उसने भारतीय संस्कृति का बड़ी क्रुरता से नाश किया।
चन्देरी का युद्ध
चन्देरी मालवा का प्रवेश द्वार था। इस समय यह प्रसिद्ध किला मेदिनी राय नामक प्रसिद्ध राजपूत सरदार के अधिकार में था। 29 जनवरी 1528 को हुए युद्ध में बाबर की विजय हुई। मेदिनी राय सहित हजारों राजपूत मार डाले गये, किले पर बाबर का अधिकार हो गया।
घाघरा का युद्ध
महमूद लोदी के नेतृत्व में काफी अफगान सरदार बिहार में एकत्रित हो गये थे। 6 मई 1529 में घाघरा नदी के किनारे बाबर ने अफगानों की सामूहिक सेना को पराजित किया। बाबर ने बिहार कुछ हिस्सा स्वयं रखा, बाकी सरदारों में बांट दिया।
26 दिसम्बर 1530 को बाबर की मृत्यु हो गयी। उसके शव को पहले आगरा और फिर काबूल में दफनाया गया। बाबर ने हुमायूं को अपना उत्तराधिकारी घोषित किया था।
निष्कर्ष
बाबर की विजयों से वह एक सफल कूटनीतिज्ञ तथा विजेता सिद्ध होता है। उसने राजपूतों के घमंड को तोड़कर बड़ा कार्य किया। मंदिर तोड़कर, धन लूट कर, व्यभिचार करके उसने अपनी हिन्दू विरोधी और धर्मान्ध नीति का विकास किया। इब्राहिम को पराजित करने से उसे सत्ता मिली पंरतु राणा सांगा की पराजय से उसे स्थायित्व और मान्यता मिली जिसमें वह भारत में मुगल राज्य का संस्थापक बन सका।
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