4/02/2021

शेरशाह की प्रशासनिक व्यवस्था

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शेरशाह का प्रशासन 

sher shah suri ki prashasnik vyavastha;डॉ. ए.एल. श्रीवास्‍तव के अनुसार,‘‘शेरशाह मध्‍यकालीन भारत के महान शासन-प्रबंधकों या सुधारकों में से एक था परन्‍तु उसने किसी नई शासन व्‍यवस्‍था को जन्‍म नहीं दिया। उसके द्वारा किये गये शासन-सुधार उसके पूर्व कभी न कभी लागू रह चुके थे। इसलिए शेरशाह को व्‍यवस्‍था प्रवर्तक न मानकर महान शासन-सुधारक माना गया है। इतना तो निश्चित है कि पूर्व सुल्‍तानों द्वारा किये गये प्रयोगों का लाभ लेते हुए उसने उन्‍हें इस तरह लागू किया कि वे अधिक क्रांतिकारी और नये लगने लगे। अब शेरशाह के प्रशासन का संक्षेप में अध्‍ययन करेंगे--

शेरशाह की प्रशासनिक व्यवस्था

 केन्‍द्रीय शासन 

शेरशाह कालीन प्रशासनिक‍ व्‍यवस्‍था के विषय में विस्‍तृत जानकारी उपलब्‍ध नही है, किन्‍तु फिर भी इतना निश्चित है कि मुगल शासकों के समान सत्ता के मंत्रियों में विकेन्‍द्रीकरण के पक्ष में नहीं था। उस का विचार था कि मुगलों ने मंत्रियों को अत्‍यधिक अधिकार दे दिए थे। जिनका वे दुरूप्रयोग करते थे, शेरशाह की शक्ति एंव सत्ता सर्वोच्‍च थी। 

किन्‍तु शेरशाह निंरकुश होते हुए भी एक प्रजावत्‍सल शासक था। शासन के सभी कार्य वह जनकल्‍याण की भावना से करता था। शासन की सुविधा के लिए उसने सल्‍तनतकालीन व्‍यवस्‍था के आधार पर ही अनेक विभागों की स्‍थापना की तथा मंत्रियों को इन विभागों का उत्तरदायित्‍व सौपा परंतु शासन की नीति का निर्धारण एंव उसमें किसी प्रकार के परिवर्तन का अधिकार मंत्रियों को नहीं था। उनके द्वारा स्‍थापित प्रमुख विभाग निम्‍नलिखित थे--

1. दीवान-ए-वजारत

यह विभाग आर्थिक मामलों की देखभाल करता था। इसका अध्‍यक्ष वजीर होता था। दूसरे शब्‍दों में, इसे प्रधानमंत्री कहा जा सकता था। यह अन्‍य मंत्रियों के कार्यों की भी देखभाल करता था। 

2. दीवान-ए-आरिज 

इस विभाग का प्रमुख आरिजे मुमालिक होता था। सैनिकों की भर्ती संगठन तथा इसके नियंत्रण का अधिकार उसी के हा‍थ में था। इसके अतिरिक्‍त, सैनिकों तथा असैनिक अधिकारियों के वेतन निर्धारण की व्‍यवस्‍था तथा युद्ध क्षेत्र में सेना की देखभाल का उत्‍तरदायित्‍व भी उसके हाथ था। 

3. दीवन-ए-इंशा

यह सामान्‍य प्रशासन विभाग था जिसके अधिकारी का प्रमुख कार्य सरकारी आदेशो आदि का पालन करवाना व लिपिबद्ध करना था। 

4. दीवान-ए-काजी 

यह सामान्‍य प्रशासन विभाग था जिसके अधिकारी का प्रमुख काजी होता था। इसका कार्य निष्‍पक्ष न्‍याय प्रदान करना था। 

5. दीवान-ए-रसालत

यह एक प्रकार से विदेश विभाग के समान होता था। इस विभाग के प्रमुख की तुलना विदेश मंत्री से की जा सकती है। विदेशों से संबंध, संधि पत्र, व्‍यवहार, राजदूत भेजना, विदेशी प्रतिनिधियों का स्‍वागत तथा उन्‍हें सम्राट के पास पहुचांना इसका प्रमुख काम था। 

6. दीवान-ए-वरीद 

यह गुप्‍तचर विभाग था जिसके अधिकारी को बारी-ए-मुमालिक कहा जाता था। 

इस प्रकार उपरोक्‍त विभागों की सहायता से शेरशाह केन्‍द्रीय प्रशासन करता था। अपने राज्‍य के प्रत्‍येक मामले की देखरेख में वह पूरी रूचि लेता था।

प्रांतीय शासन 

डॉ. ए. एल. श्रीवास्‍तव के अनुसार,‘‘शेरशाह के समय एक तो हिन्‍दू राजाओ के राज्‍य थे जिन्‍होनें शेरशाह के आधिपत्‍य को स्‍वीकार कर लिया था। उन्‍हें अपने राज्‍य का शासन करने क लिए स्‍वतंत्र छोड़ दिया गया था। इनके अतिरिक्‍त ऐसे सूबे थे जिन्‍हें ‘अक्‍ता‘ कहा जाता था, जिनमें फौजी गवर्नरों या सूबेदारों की नियुक्ति की गई थी। लाहौर, मालवा, अजमेर में सूबेदारों की नियुक्ति की गई थी।‘‘ बंगाल के सूबे में शेरशाह ने सूबे को सरकारों में बांटकर प्रत्‍येक को एक सैनिक अधिकारी की देखभाल में रखा। इन सैनिक अधिकारियों की देखरेख हेतु एक असैनिक अधिकारी ‘अमीर-ए-बंगाल‘ नियुक्‍त किया। यह प्रबंध संभवतः विद्रोह की संभावना को समाप्‍त करने के लिये किया गया होगा। पंजाब व मुल्‍तान में उप-प्रांतपतियों की नियुक्ति भी इसी उद्देश्‍य से की गई। 

इस प्रकार शेरशाह के समय सूबों अथवा अक्‍ता के शासन व विभिन्‍न अधिकार एक समान नही थे। 

सरकारें

प्रत्‍येक अक्‍ता या सूबा सरकारों (जिलों) में बंटा होता था। इसके दो प्रमुख अधिकारी ‘‘शिकदार-ए-शिकदारा‘‘ और ‘‘मुन्सिफ-ए-मुन्सिफा‘‘ होते थे। शिकदारा सैनिक अधिकारी था। इसका कार्य शांति कायम रखना था। मुन्सिफ मुख्‍यतः न्‍याय अधिकारी था। इनके अधीन अन्‍य छोटे अधिकारी थे। 

फरगनें

सरकार कई परगनों में विभाजित थी। प्रत्‍येक फरगने में एक शिकदार होता था। इसका कार्य शांति स्‍थापित रखना था। मुन्सिफ दीवानी मुकदमें और भूमि व लगान व्‍यवस्‍था देखता था। फोतदार फरगने का खजांजी था। इसके अतिरिक्‍त दो कारकून भी होते थे। 

गांव

गांव शासन की स्‍वंय एक इकाई थे। यहां मुखिया, चौधरी और पटवारी होते थे। गांव की अपनी पंचायत  होती थी जो गांव की सफाई, शिक्षा, सुरक्षा की व्‍यवस्‍था करती थी।   

न्‍याय व्‍यवस्‍था 

शेरशाह सूरी की न्‍याय व्‍यवस्‍था प्रशंसनीय थी। न्‍याय हो व जनता को न्‍याय मिले, इसमें गहरी आस्‍था थी। न्‍याय के सिहांसन पर बैठने के उपरांत शेरशाह के लिए गरीब-अमीर, ऊंच-नीच, मित्र दुश्‍मन सब एक बराबर होते थे। अपने पुत्र तक को उसने दंडित किया था। शेरशाह की कठोर दंड व्‍यवस्‍था के कारण उसके राज्‍य में अपराध बहुत कम होते थे। 

पुलिस व्‍यवस्था 

जनता की रक्षा करने के लिए पुलिस का कार्य सैनिक अधिकारी ही करते थे। प्रत्‍येक सरकार में शिकदार का यह कर्तव्‍य था कि वह जनता की रक्षा की व्‍यवस्‍था करे। गांवो में इस कार्य का उत्तरादायित्‍व मुकद्दम का होता था। यदि इन अधिकारियों को डाकुओं व चोर को पकड़ने के लिए सेना की आवश्‍यकता होती थी तो वह उन्‍हें उपलब्‍ध करा दी जाती थी। इससे जनता में सुरक्षा की भावना थी। 

सैन्‍य व्‍यवस्‍था 

शेरशाह ने शक्तिशाली एंव विशाल सेना रखने की आवश्‍यकता महसूस की इसलिए सैन्‍य व्‍यवस्‍था के लिए शेरशाह ने न केवल एक विशाल सेना का निर्माण किया वरन् उसने अलाउद्दीन खिलजी की पद्धति को पुनर्जीवित किया तथा सेना को संठित कर एक शाही व्‍यवस्‍था बना दिया। बादशाह स्‍वंय सेनापति होता था। तथा सेना का वेतन चुकाता था। शेरशाह सेना को प्रबंध कार्यो में नही लगता था। शेरशाह ने अपनी सेना को साम्राज्‍य के विभिन्‍न भागों में आवश्‍यकतानुसार विभाजित कर रखा था। इस प्रकार की कुल 16 छावनियों के विषय में जानकारी मिलती है। 

गुप्‍तचर व्‍यवस्‍था 

शेरशाह ने एक गुप्‍तचर विभाग की स्‍थापना की थी जो अत्‍यंत उच्‍चकोटि की थी। यह समय राजनीतिक उथल-पुथल का होने के कारण शासक को प्रत्‍येक घटना की पूर्व में जानकारी होना नितांत आवश्‍यक था। इस विभाग का अध्‍यक्ष ‘डाक-ए-दारोगा कहलाता था। 

मुद्रा व्‍यवस्‍था

शेरशाह के समय में प्रचलित मुद्राओं की स्थिति बहुत खराब थी। अतः शेरशाह ने पूराने सिक्‍को को बंद कराके नए सिक्‍के चलवाए उन्‍हें ‘दाम‘ कहते थे। ये सिक्‍के सोन, चांदी व तांबे के थे। इस प्रकार उच्‍च श्रेणी की मुद्रा व्‍यवस्‍था शेरशाह ने लागू की। 

सार्वजनिक कार्य 

शेरशाह सूरी ने अपने शासनकाल में अनेक सार्वजनिक कार्य भी किए। इनमें सर्वप्रमुख कार्य अनेक सड़कों का निर्माण करना था। उसने इस प्रकार से सड़कों का निर्माण कराया कि उसकी राजधानी का सीधा संबंध राज्‍य के प्रमुख नगरो के साथ हो सके। 

व्‍यापार एंव वाणिज्‍य

व्यापार एंव वाणिज्‍य के लिए शेरशाह सूरी ने अनेक महत्‍वपूर्ण कार्य किए। उसने किसानों की आर्थिक स्थिति सुदृढ़ की, जिससे व्‍यापार एंव वाणिज्‍य को प्रोत्‍साहन प्राप्‍त हुआ। 

इस प्रकार स्‍पष्‍ट है कि शेरशाह की प्रशासनिक व्‍यवस्‍था समय के अनुकुल व उच्‍च कोटि की थी। 

भू-राजस्‍व व्‍यवस्‍था

राजस्‍व प्रणाली और भूमि प्रंबध के सुधार के लिए शेरशाह ने अनेक निर्णय लियें जो निम्‍न है --

1. भूमि का सर्वेक्षण व वर्गीकरण 

किसानों की कृषि योग्‍य भूमि की माप की गई और उसका रिकार्ड रखा गया। सन के रस्‍से की जरीब से कृषि योग्‍य भूमि को नापा गया और उर्वरा शक्ति के आधार पर वर्गीकृत किया गया। - उच्‍चतम, मध्‍यम, निम्‍नतम। 

2. भूमि कर का निर्धारण 

उच्‍चतम, मध्‍यम और निम्‍न श्रेणियों की एक-एक बीघा कृषि योग्‍य भूमि की उपज का औसत लेकर उसकी साधारण उपज स्‍वीकृत कर लिया गया था। उपज का 1/3 राज्‍य का कर निर्धारित  किया गया। 

3. पट्टा या कबूलियत 

किसानों को पट्टा दिया गया और इस पट्टे के बदले मे किसानों को कबूलियत नामक प्रमाण-पत्र पर हस्‍ताक्षर कर सरकार को देना पड़ता था। 

4. भूमि-कर निर्धारण की पद्धतियां 

तीन प्रणाली अपनाई गई जब्‍त प्रणाली ,नश्‍क अथवा कनकूत प्रणाली, बटाई अथवा बज्‍मी प्रणाली। 

निष्‍कर्ष

इस प्रकार शेरशाह एक सफल शासन प्रबंधक सिद्ध हुआ। शेरशाह की प्रशासनिक व्‍यवस्‍था समय के अनुकूल व उच्‍चकोटि की थी। प्रशासन के क्षेत्र में व्‍यक्तिगत रूचि लेने के कारण सक्षम प्रशासनिक व्‍यवस्‍था की स्‍थापना करने में सफल रहा।

यह जानकारी आपके के लिए बहुत ही उपयोगी सिद्ध होगी
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