12/08/2020

जलियांवाला बाग हत्याकांड

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जलियांवाला बाग हत्याकांड

jaliya wala bag hatyakand in hindi;रौलट एक्ट के विरोध मे भारत के अन्य प्रान्तों के समान पंजाब के अमृतसर मे भी शांतिपूर्ण हड़ताले चल रही थी। पंजाब के गवर्नर मायकल ओडायर की सरकार ने उसे पसंद नही किया और उसे डाॅक्टर सत्यपाल और डाॅक्टर किचलू को आदेश दिया कि वे किसी भी सार्वजनिक सभा को सम्बोधित नही करेंगे। उसने कांग्रेस नेताओ का पंजाब मे प्रवेश निषेध कर दिया। रामनवमी के दिन हिन्दू-मुस्लिम एकता प्रदर्शित करते हुए जब भारी भीड़ का एक शांतिपूर्ण जुलूस निकाला गया तो उक्त दोनो नेताओ को कैद कर नगर से बाहर भेज दिया गया। अंग्रेजों के इस कृत्य ने आग मे घी डालने का काम कर दिया। 10 अप्रैल को अमृतसर के लोगो ने अपने नेताओं की जानकारी प्राप्त करने के लिए जुलूस निकाला। जुलूस शांतिपूर्ण था किन्तु उस पर गोलियां चलायी गयी। 11 अप्रैल को जनरल डायर के नगर मे आने के पश्चात अनेक गिरफ्तारियां की गयी। सार्वजनिक सभाओ पर पूर्णतः रोक लगा दी गयी किन्तु इस आश्य की जानकारी प्रसारित करने की समुचित व्यवस्था नही की गयी। अतः 13 अप्रैल, 1919 को वैशाखी के पुनीत पर्व पर अमृतसर के जलियांवाले बाग मे बड़ी भारी सभा करने की घोषणा कर दी गयी, जनरल डायर ने इस सभा को रोकने के लिये कोई प्रयत्न नही किया और हजारों लोगो को वहां एकत्रित होने दिया। जब जलियाँ वाले बाग मे काफी भीड़ जमा हो गयी। जिसमे स्त्री, बालक, वृद्ध सभी थे, तब जनरल डायर 100 भारतीय और 50 अंग्रेज सैनिको को लेकर जलियांवाला बाग मे पहुँच गया। वह अपने साथ मशीन गन भी ले गया था परन्तु उन्हे वह अंदर नही ले जा सका क्योंकि जलियाँ वाला बाग मे एक ही रास्ता जाता था और वह भी इतना तंग था कि उसके अंदर मशीनगन नही ले जायी जा सकती थी। जलियाँ वाला बाग चारों ओर से ऊँची-ऊँची दीवारों से घिरा था। उस मैदान मे करीब 25 हजार लोग अंग्रेजों के विरुद्ध अपना शांतिपूर्ण प्रदर्शन कर रहे थे तथा डाॅ. सतपाल, डाॅ. किचलू और गांधी जी की रिहाई की मांग कर रहे थे। इसमे रोलेट अधिनियम का भी विरोध किया जा रहा था। जनरल डायर ने भीड़ को तितर-बितर हो जाने की चेतावनी दिये बिना ही गोलियों की उन पर बरसात कर वा दी गोला बारूद समाप्त होने तक लगातार गोलियां चलती रही। परिणामस्वरूप सरकारी आँकड़ों के अनुसार जलियांवाला बाग हत्याकांड मे 379 लोग मारे गये और लगभग 200 लोग घायल हो गये थे। वस्तुतः मरने वाले और घायल होने वालो की संख्या हजारों मे थी। उस समय के करूण और ह्रदय विदारक दृश्य का चित्रण करते हुए श्री गिरधारीलाल ने हण्टर कमीशन के सम्मुख अपना बयान दिया था, मैने सैकड़ों व्यक्तियों को वही मरे हुए देखा। इससे खराब बात यह थी कि गोली उस दरवाजे की तरफ से चलायी जा रही थी जिससे होकर लोग भाग रहे थे। बहुत से लोग भागते हुए भीड़ के पैरों तले कुचले गये और मारे गये। खून की धारा बह रही थी। मृतकों मे बड़ी उम्र के आदमी और छोटे लकड़े थे। कुछ की आँखो पर गोलियां लगी थी और नाक, छाती, बाँह, टाँगे छितरा गयी थी। मेरा अनुमान है कि उस समय वहां एक हजार से ज्यादा मृतक और आहत व्यक्ति थे। जलियांवाल हत्याकांड के बाद सरकार ने खबरों का समाचार-पत्रो मे छपना तथा किसी और अन्य तरिके से इधर उधर पहुंचना बंद करवा दिया था। 

जलियां वाला बाग हत्याकांड की आलोचना 

जलियांवाला बाग हत्याकांड को सभी ने निन्दनीय बताया। गैरट ने लिखा कि " अमृतसर घटना भारत और इंग्लैंड के मध्य सम्बन्धो मे 1857 के जैसी युगान्तरकारी घटना है।" 

चर्चिल ने भी इसे "एक पैशाचिक घटना" बताया है। 

जाॅन ऑफ आर्क ने " आग मे जलाने जैसी घटना बताया।"

जलियांवाला बाग हत्याकांड के विरोध मे सर्वप्रथम रवीन्द्रनाथ टैगोर ने "नाईट हूड" की उपाधि त्याग दी। सर शंकर नायर ने वायसराय की कार्य परिषद से त्यागपत्र दे दिया।

हण्टर आयोग 

उग्र विरोध के कारण ब्रिटिश सरकार ने जलियांवाला हत्याकांड की जांच करने के लिये हण्टर आयोग नियुक्त किया। हण्टर कमेटी ने अपनी जांच रिपोर्ट मार्च 1920 मे दी और मई 1920 मे इस पर भारत सचिव के आदेश जारी हुए। हण्टर समिति ने रिर्पोट तो दी किन्तु वह निष्पक्ष नही थी। उसने अधिकारियों के नृशंस कार्यों पर पर्दा डालते हुए जनता को ही दोषी ठहराया। डायर के कार्य को उचित ठहराया गया हण्टर समिति ने जलियांवाला बाग हत्याकांड को डायर की साधारण भूल कहा। मांटेग्यू ने भी ऐसा ही कहकर उसका पक्ष लिया। इतना ही नही डायर को 20 हजार पौण्ड और स्वर्ण मूठ की तलवार भेंट की गई। इन सभी बातों से भारतीयों के मन पर गहरा आघात लगा।

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