लार्ड कर्जन का प्रशासन व्यवस्था
lord karjan ka prashasan;अत्यधिक परिश्रमी तथा योग्य प्रशासक कर्जन का कार्यकाल 6 जनवरी 1899 से 18 नम्बर 1905 तक रहा था। कर्जन कार्यक्षमता और कार्यकुशलता का धनी था। अंग्रेजी साम्राज्य को दृढ़ बनाने हेतु उसने " प्रशासनिक कुशलता " का सहारा लिया तथा उसकी प्रशासनिक कुशलता का मूल मंत्र था " कार्य दक्षता " । कर्जन अपनी योग्यता, कार्यकुशलता तथा कार्य दक्षता मे असीमित विश्वास रखता था। उसके विचार मे भारतीयों का नैतिक स्तर बहुत निम्न कोटि का था। अपनी इस गलत धारणा के कारण वह भारतीयो पर भरोसा नही करता था। इतना ही नही, उसने भारतीयों के प्रति घृणा भी प्रदर्शित की। लेकिन जो भी हो, उसने सुधार बहुत कई थे, लेकिन वे सब इतनी शीघ्रता से कि जनता उनको समझने मे ही असमर्थ रही और उसके द्वारा किया गया बंगाल विभाजन तो उसके लिए उसकी कब्र सिद्ध हो गया।
लार्ड कर्जन की प्रशासनिक व्यवस्था, प्रशासनिक सुधार, कार्य या घटनाएं
लार्ड कर्जन के प्रशासनिक कार्य या सुधार इस प्रकार है--
1. सचिवालय
अपने सचिवालय की कार्यप्रणाली मे कर्जन ने व्यापक परिवर्तन किये। उसकी शिकायत थी कि नौकरशाही मशीन पुरानी तथा विलम्बकारी हो चुकी है। टिप्पणी की लेखन व रिर्पोट इतनी बढ़ गयी है कि फाइलों का अंबार लग गया था तथा एक केस की फाइल ढूँढ़ निकालने मे ही अनावश्यक समय लग जाता था। सचिवालय एक दलदल की भाँति हो गया था जहाँ हर समस्या डूब जाती थी। वास्तविक प्रश्न टिप्पणियों के ढेर मे खो जाता था। एक प्रश्न कर्जन के पास 61 वर्षों के बाद पहुंचा था।
विभागीय सचिवों की एक समिति ने कर्जन की सिफारिशों के आधार पर नियम बनाये जो केन्द्रीय सचिवालय पर लागू किये गये। इस नियमावली की प्रतियाँ प्रांतीय सरकारो को भी भेजी गयी। व्यक्तिगत सम्पर्क से समस्या सुलझाने पर बल दिया गया ताकि अनावश्यक टिप्पणी लेखन से बचा जा सके। सरकारी रिर्पोटों और आँकड़ों के प्रकाशन मे भी कटौती की गयी परन्तु इससे जनता को आवश्यक जानकारी मिलना बंद हो गयी।
2. पुलिस विभाग
1902 मे सर ऐण्ड्यू फ्रेजर की अध्यक्षता मे गठित पुलिस आयोग की रिपोर्ट के आधार पर 1903 मे पुलिस विभाग मे व्यापक सुधार किये गये। 1861 के बाद पुलिस विभाग मे कोई सुधार नही कई गए थे। कर्जन ने आयोग की निम्न सिफारिशों को स्वीकार कर लिया--
1. उच्च पदों पर विभागीय पदोन्नति के स्थान पर सीधी भरती की जाये।
2. एक आरक्षक का न्यूनतम वेतन उसके जीवनयापन के लिए पर्याप्त हो तथा प्रतिमाह 8 रूपये से कम न हो।
3. कमिश्नर ने प्रांतीय पुलिस बल बढ़ाने तथा ग्रामीण पुलिस सेवा का अधिक प्रयोग करने की सलाह दी।
4. आरक्षको एवं अधिकारियों के लिए प्रशिक्षण स्कूलो की आवश्यकता बतायी गयी।
5. बिना औपचारिक वारन्ट के गिरफ्तारी अवैध घोषित की गयी। अधिकारियों को मौखिक साक्ष्य के बदले घटनास्थल पर जानकारी एकत्र करने की सलाह दी गयी।
6. प्रत्येक प्रांत मे अपराध अन्वेषण शाखा सी.आई.डी. खोलने की सलाह दी गयी जो केन्द्रीय गुप्तचर विभाग के निदेशक के अंतर्गत कार्य करेगी।
इन सुझावों पर अमल करने से पुलिस विभाग का खर्च 26 लाख पौण्ड बढ़ गया परन्तु पुलिस विभाग मे अपेक्षित सुधार न हो सका।
3. कृषि व्यवस्था मे सुधार
केनिंग ने अधिनियम बनाकर किसानों को भूमि पर अधिकार दिया, किन्तु लार्ड कर्जन ने इस व्यवस्था को बदल दिया और कृषि सम्बन्धी कानून बनाये तथा वैज्ञानिक कृषि पर जोर दिया। कृषि के क्षेत्र मे कर्जन ने निम्न कार्य किये---
(अ) पंजाब भूमि अधिनियम
कर्ज़न ने 1900 मे पंजाब भूमि हस्तांतरण कानून बनाया। इसके अनुसार--
1. अकृषक किसी कृषक की भूमि नही खदीद सकता था।
2. कृषक अपनी भूमि को 20 वर्ष से अधिक रहन नही रख सकता था।
3. ॠण की अदायगी मे किसान की भूमि किसी भी अवस्था मे नीलाम नही की जा सकती थी।
इस कानून ने कृषकों को महाजनों के पंजो से छुड़ाने का प्रयत्न किया तथा सेना पर पड़ने वाले दूषित प्रभाव को रोकने के लिये इससे सहायता मिली, क्योंकि पंजाब की सेना मे यहां के कृषक ही थे।
(ब) कृषि बैंक
किसानों को साहूकारों से बचाने के उद्देश्य से तथा कम ब्याज पर ॠण दिलवाने के लिये कृषि बैंक स्थापित किये। इन बैंको ने साहूकारों का स्थान ग्रहण कर लिया।
(स) सहकारी समितियां
कृषक वर्ग मे अपनी मदद स्वयं करने एवं आत्मविश्वास की भावना जागृत करने के विचार से सहकारी समितियों की स्थापना की गई।
(द) कृषि विभाग
1901 मे भारत मे कृषि विभाग की स्थापना की गई। इसका उद्देश्य यह था कि अब सरकार कृषि की तरफ भली प्रकार ध्यान दे सके। कृषि इंस्पेक्टर जनरल इस विभाग का सर्वोच्च अधिकारी था।
(ई) लगान मे उदारता
राजकीय कर्मचारी गाँवो मे लगान की वसूली अकाल के समय भी बड़ी निर्दयता से कर रहे थे। कर्जन ने 1902 मे एक प्रस्ताव पारित किया जिसके अनुसार अकाल और सूखे के समय लगान को कम करने का और कठोरता न अपनाने का निर्दश दिया गया। इसमे यह आदर्श अपनाया गया कि," सरकार की मांग मौसम की प्रकृति के अनुसार बदलती रहनी चाहिये।"
(फ) सिंचाई व्यवस्था
1901 मे भारतीय सिंचाई समस्या पर विचार करने हेतु एक आयोग नियुक्त किया गया जिसकी सिफारिशों का क्रियान्वयन कर्जन के बाद हुआ और जिसके अनुसार अनेक नहरों के निर्माण की स्वीकृति दे दी गई।
4. आर्थिक सुधार
लार्ड कर्जन ने प्रशासन मे केन्द्रीयकरण की नीति के विपरीत आर्थिक सुधारों मे विकेन्द्रीकरण की नीति अपनाई तथा इसके अनुसार प्रांतों की बचतों को उनके ही पास छोड़ने का निश्चय किया गया। एक एक्ट पारित कर अंग्रेजी पौण्ड को भारत मे चलाया गया तथा उसकी विनिमय दर 15 रूपये निश्चित की गई। इसके बाद आयकर सीमा भी 500 रूपये से बढ़ाकर 1 हजार रूपये कर दी गई।
5. अकाल
लार्ड कर्जन ने प्रायः प्रत्येक सूखाग्रस्त क्षेत्र का दौरा किया तथा अकाल पीड़ितों के लिए सहायता जुटायी। फिर भी शासन पर कंजूसी के आरोप लग रहे थे तथा लगान व करों मे माफी की मांग की जा रही थी। कर्जन ने लार्ड मैक्डोनेल के नेतृत्व मे एक आयोग गठित किया। इसने अकाल के लिए पूरी तैयारी करने, जनता का मनोबल बनाये रखने, गैर सरकारी क्षेत्रो से सहायता लेने, रेलवे सुविधाओं मे वृद्धि करने तथा कृषि बैंक स्थापित करने, सिंचाई की सुविधाओं मे वृद्धि करने पर जोर दिया। कर्जन ने कमीशन के समस्त सुझावों को स्वीकार करते हुए कृषि, सिंचाई और लगान संबंधी सुधारों को कार्यान्वित किया।
6. रेलवे व्यवस्था
रेलवे के लोक सेवा विभाग को समाप्त कर दिया गया। अब रेलवे विभाग का सारा कार्य तीन सदस्यीय रेलवे बोर्ड को सौंप दिया गया। नई रेलों का निर्माण कराया गया जिससे यातायात के साधनो मे काफी वृद्धि हो गई। पुरानी रेलवे लाइनों की मरम्मत करवाई गई।
7. श्रमजीवियों के हितो की सुरक्षा
श्रमजीवियों के हितो की सुरक्षा हेतु माइन्स एवं लेबर एक्ट्स पास कराये गये जिनकी वजह से मजदूरों की कई कठिनाइयां दूर हो गई एवं उन्हे बहुत सी सुविधाएं प्राप्त हो गई।
8. पुरातत्व विभाग
लार्ड कर्जन ने इतिहास और पुरातत्व सामग्री की सुरक्षा तथा संग्रह के लिये 1904 मे पुरातत्व विभाग की स्थापना की तथा अनेक स्थानों पर उत्खनन कार्य भी करवाये। इससे इतिहास की विस्तृत अथवा विलुप्त कड़ियों को प्राप्त करना संभव हो सका।
9. शिक्षा व्यवस्था
"वुड्स डिस्पेच" मे विश्वविद्यालय को तथा उसकी सीनेट और सिन्डीकेट को पर्याप्त अधिकार दिये गये थे। परीक्षा, पाठ्यक्रम तथा धन आदि की व्यवस्था सीनेट को करना थी तथा सीनेट मे मनोनीत और निर्वाचित प्रतिनिधियों मे निर्वाचितों की संख्या अधिक थी। इस प्रकार विश्वविद्यालयों को स्वशासी संस्था के रूप मे विकसित किया गया था। हण्टर आयोग के आधार पर रिपन ने भी इस स्वरूप और कार्य को आगे बढ़ाया परन्तु कर्जन ने इस व्यवस्था को उलट दिया।
कर्जन ने सीनेट के आकार को छोटा करके उसमे निर्वाचित की संख्या घटा दी और मनोनीत सदस्यों की संख्या बढ़ा दी परिणामस्वरूप विश्वविद्यालय पूरी तरह सरकारी संस्था बन गये। महाविद्यालय की मान्यता के कठोर नियम बनाकर महाविद्यालय की स्थापनाओं को रोका गया। उसने अनेक काॅलेजों को ( इण्टर ) द्वितीय श्रेणी के आधार पर बंद करवा दिया। काॅलेजो मे फीस बहुत अधिक बढ़ा दी।
इस प्रकार कर्जन ने शिक्षा मे केन्द्रीयकरण की नीति को अपनाया। प्रतीत होता है कि शिक्षित भारतीयों से और विश्वविद्यालयों पर उनके नियंत्रण से भारतीय राष्ट्रवाद की उत्पत्ति का उसे खतरा लगता था। राजा राममोहन राय, ईश्वरचन्द्र विद्यासागर आर्य समाज के विद्वान अंग्रेजों के लिये चुनौती बन गये थे।
10. सैनिक सुधार
कर्जन के समय 1900 मे सेना का भारतीय कमांडर इन-चीफ लार्ड किचनर को नियुक्त किया गया। इसने देशी सेनाओ को फिर अस्त्र-वस्त्रो से सुसज्जित किया। तोपखाने के सैनिकों को पहले से ज्यादा अच्छी बंदूकें दी गई। 1901 मे " इंपीरियल केडिट कोर " की स्थापना की गई जो देशी राज्यों के राजकुमारों और कुलीन सैनिकों की फौज थी। कर्जन के समय भारतीय सेनाओं का विदेशों मे प्रयोग किया गया। कर्जन ने समुद्र तट की समुचित सुरक्षा की तरफ भी ध्यान दिया।
11. कलकत्ता निगम अधिनियम ( कलकत्ता कारपोरेशन एक्ट 1900)
सन् 1900 ई. मे इस अधिनियम द्वारा कर्जन ने रिपन की स्वायत्तशासन मुहिम को कार्यकुशलता की आड़ लेकर समाप्त कर दिया। इसके अनुसार निगम के चुने हुए सदस्यों की संख्या कम कर दी गयी और निगम व उसकी अन्य समितियों मे अंग्रेज सदस्यों की संख्या बढ़ा दी गयी। नये अधिनियम के अनुसार अब निगम के चुने हुए सदस्यों की संख्या 75 से घटाकर 50 कर दी गयी।
लार्ड कर्जन का मूल्यांकन
ब्रिटिश इतिहासकारों ने लार्ड कर्जन को सुयोग्य प्रशासक और सुधारक बताया है परन्तु भारतीय इतिहासकारों और राजनीतिज्ञों ने उसे भारतीयों से घृणा करने वाला, उन पर अविश्वास करने वाला तथा उन्हे सदा गुलाम बनाये रखने का आकांक्षी बताया है। इसमे सन्देह नही कि उसके कृषि सुधार, रेलवे व्यवस्था, प्राचीन स्मारकों की सुरक्षा, पुलिस व्यवस्था, सैन्य व्यवस्था, प्रशासनिक निर्णय आदि प्रशंसनीय कार्य थे। परन्तु शिक्षा व्यवस्था, स्थानीय शासन और बंगाल विभाजन नितान्त प्रतिक्रियावादी और भारतीयो मे असन्तोष उत्पन्न करने वाला था।
कर्जन मे एक कुशल प्रशासक के गुण तो मौजूद थे, लेकिन वह सबसे अधिक अलोकप्रिय और आलोचना का विषय बना जिससे कारण इस प्रकार है--
1. वह अहंवादी, जिद्दी, घमंडी, स्वेच्छाचारी तथा दुराग्रही था। वह एक बार जिस मार्ग को चुन लेता था उससे किसी के कहने पर भी नही हटता था। बंगाल विभाजन, कलकत्ता करापोरेशन एक्ट, विश्वविद्यालय एक्ट आदि उसके दुराग्रही और स्वेच्छाचारी होने के ही प्रमाण है।
2. वह भारतीयों तथा उनकी योग्यता पर अविश्वास करता था।
3. भारतीय जनता के विचारों की परवाह नही करता था।
4. उसमे दूरदर्शिता की कमी थी। इसलिए वह समय की गति को नही पहचान सका।
रासबिहारी बोस ने कर्जन का मूल्यांकन करते हुए लिखा है कि ," कर्जन ने वह प्रत्येक कार्य अधूरा छोड़ दिया जिसे वह करना चाहता था तथा जिस कार्य को उसे नही करना चाहिए था उसे वह पूर्ण कर गया।
मांटेग्यू का कथन है कि ," कर्जन एक मोटर ड्राईवर के समान था जिसने अपनी सारी शक्ति एवं समय यंत्र के विभिन्न पुर्जों को रंग करने मे लगा दिया किन्तु उसने लक्ष्य का ध्यान रखे बिना उसे चलाया। यद्दपि वह एक महान प्रशासक या व्यवस्थावान था तथापि राजनीतिज्ञ के रूप मे असफल था।"
प्रो. एस. गोपाल ने कर्जन के संबंध मे कहा है कि ," वह सबसे योग्य प्रशासक था जिसमे मानव भावना लेशमात्र भी नही थी।"
गोपाल कृष्ण गोखल के अनुसार," कर्जन अत्यंत प्रतिभा संपन्न व्यक्ति था, लेकिन देवताओं ने उसे सहानुभूतिपूर्ण कल्पना से वंचित रखा था, जिसके परिणामस्वरूप उसका भारतीय कार्यकाल इतना विफलतापूर्ण बना।"
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