10/15/2020

गुप्त काल को भारतीय इतिहास का स्वर्ण काल क्यों कहा जाता है

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गुप्तकाल को प्रचीन भारत के इतिहास मे स्वर्ण युग का नाम दिया गया है। इसका अर्थ है कि इस युग की सांस्कृतिक विशेषताएं दूसरे युगों के लिए आर्दश बन गई। 

गुप्त काल को भारतीय इतिहास का स्वर्ण काल क्यों कहा जाता है?

गुप्त काल को भारतीय इतिहास का स्वर्ण युग कहे जाने के कारण इस प्रकार है--

1. गुप्प साम्राज्य की उन्नत आर्थिक  दिशा 

गुप्त काल मे आर्थिक दिशा बहुत ही अच्छी थी। अधिकांश गुप्त सम्राटों के सिक्के सोने के थे, परन्तु चन्द्रगुप्त द्वितीय ने चांदी के सिक्के चलवाये थे। भूमि के सम्बन्ध मे जमींदारी प्रथा का आरंभ गुप्तकाल की प्रमुख विशेषता है। 

2. धार्मिक अवस्था 

धार्मिक दृष्टिकोण से गुप्तकाल बड़ा महत्व का युग था। इस काल मे वैदिक धर्म की उन्नति हुई। गुप्तकाल का सर्वप्रथम धर्म वैष्णव प्रतिष्ठित हो चुका था तथा जनता विष्णु भगवान के विभिन्न अवसरों की पूजा करती थी। गुप्तकाल मे बौद्ध धर्म की अलनति हुई यह कहना गलता होगा। भारत के विभिन्न भागों मे बौद्ध धर्म की हीनयान तथा महायान दोनों शाखाएं काफी लोकप्रिय थी। डाॅ. अल्तेकर का कथन है कि " इस प्रचलित धारणा की पुष्टि कि गुप्त सम्राटों के संरक्षण मे हिन्दू धर्म के पुनरुत्थान के कारण बौद्ध धर्म गुप्तकाल मे अवनति पर था, उसकी दार्शनिक कार्यवाहियों के निरीक्षण से सिद्ध नही होता और न ही इस धारणा को कलात्मक प्रमाणों के आधार पर सिद्ध किया जाता है।" गुप्तकाल मे बौद्ध धर्म का प्रसार दक्षिण पूर्व एशिया मे हुआ। गुप्तकाल मे जैन धर्म भी अस्तित्व मे था, इस काल मे वल्लभा मे जैन धर्म की प्रसिद्ध सभा हुई। वैष्णव, बौद्ध तथा जैन धर्म के अतिरिक्त इस काल मे शैव धर्म का भी विकास हुआ था। इस प्रकार से गुप्त सम्राट सभी धर्मों के प्रति उदार थे।

3. सामाजिक व्यवस्था 

इस काल मे सामाजिक जीवन के क्षेत्र मे भी प्रगति हुई। गुप्त सम्राटों की दिग्विजय के कारण भारत मे साधारण जीवन मे एक नवीन स्फूर्ति आ गयी। इस काल मे जाति व्यवस्था की कठोरता कम हो गयी। ब्राह्मणों को समाज मे आदर की दृष्टि से देखा जाता था। वैश्य व्यापार और वाणिज्य की ओर ध्यान देकर उसको उन्नति की ओर ले जा रहे थे। शूद्रों की कुछ जातियों को अछूत के रूप मे माना जाता था। वे लोग नगर के एक भाग मे अलग से रहते थे। 

यह युग अन्तर्जातीय विवाहों का युग था और विधवा विवाह को गलत नही मानि जाता था। इसका उदाहरण चन्द्रगुप्त द्वितीय द्वारा अपने भाई रामगुप्त की विधवा पत्नी से विवाह करना है।

4. शिक्षा तथा साहित्य 

गुप्त काल की साहित्यिक रूचि कलात्मक थी। वैज्ञानिक प्रगति यह सिद्ध करती है कि उस काल मे शिक्षा के लिए पर्याप्त तथा श्रेष्ठ व्यवस्था रही होगी अन्यथा एक ठोस प्रद्धति के अभाव मे यह सर्वाधिक उन्नति सम्भव नही हो सकती थी। पाटलीपुत्र, वल्लभी, उज्जैन, काशी, कांची, मथुरा आदि शिक्षा के मुख्य केंद्र थे।

गुप्तकाल साहित्यिक दृष्टि से स्वर्ण काल था। उस समय कालीदास द्वारा अनेक ग्रंथों की रचना की गयी, जिसके कारण विद्वानों ने उसकी तुलना शेक्सपीयर से की है। इस काल मे संस्कृत, तमिल भाषाओं मे विद्वानों ने अनेक रचनाएँ की। परन्तु उसमे संस्कृत भाषा को श्रेष्ठ स्थान प्राप्त था। संस्कृत काव्य के बारे मे एक अंग्रेज विद्वान ने लिखा कि " प्रत्येक वर्ग इंच के आधार पर काव्य की तुलना की जाये, तो कोई भी इस काव्य का मुकाबला नही कर सकता है।"

5. भवन निर्माण कला

गुप्त काल वास्तुकला के लिए बहुत प्रसिद्ध है। इस काल की वस्तुकृतियों मे मंदिरों का निर्माण एक ऐतिहासिक महत्व रखता है। गुप्तकाल से पूर्व मंदिरों मे मूर्तियों की स्थापना नही की जाती थी, परन्तु गुप्तकाल मे मूर्तियों की स्थापना के लिए मंदिरों का विकास किया गया। गुप्तकालीन भवन निर्माण मे दो विशेषताएं महत्वपूर्ण है--

(अ) गुप्त वास्तुकारों ने समस्त विदेश प्रभाव को हटाकर मौलिक ढंग पर अपनी भावना तथा आवश्यकतानुसार एक विशेष भारतीय कला का विकास किया।

(ब) पसीब्राउन का कहना है कि भारतीय कलाकारों ने अपनी सौन्दयप्रिय दर्शन तथा अलंकरण मे भी विदेशी प्रभाव को समाप्त कर भारतीय पद्धति को जन्म दिया, इस काल के बने मन्दिरों मे देवगण का मंदिर, एलोरा का दुर्गा मंदिर, बौद्ध गया का बौद्ध मंदिर आदि प्रमुख है।

6. वैज्ञानिक उन्नति 

गुप्तकाल मे आर्यभट्ट, वारामिहिर, ब्रह्रागुप्त तथा बाणभट्ट जैसे महान वैज्ञानिक थे। इन विभूतियों ने विज्ञान के क्षेत्र मे अनेक नये सिद्धांतों की रचना की।

7. भारतीय संस्कृति का विदेशों मे प्रचार 

गुप्त काल मे जावा, सुमात्रा, लंका, बोर्नियो आदि देशो मे भारतीय सभ्यता व संस्कृति का खूब प्रचार हुआ, इन देशों मे भारतीय संस्कृति तथा सभ्यता के चिन्ह आज भी मिलते है। 

संक्षेप मे यह कहा सकता है कि गुप्त काल वास्तव मे प्राचीन भारतीय इतिहास मे स्वर्ण युग था। गुप्तों का विशाल साम्राज्य शांति व सुरक्षा, कला और साहित्य के विकास ने इस काल को भारतीय इतिहास मे स्वर्णयुग बनाया है।

8. राष्ट्र रक्षा मे पूर्ण सफल 

भारतीय देश, धर्म, संस्कृति के लिये विशेषकर उ.प. सीमा प्रान्त से शकों और हूणों की ओर से चुनौतियां खड़ी हुई। जिन्हें गुप्त सम्राटों ने स्वीकार किया तथा शकों को हिन्दुकुश के पार ढकेल "शकारि" की उपाधि धारण की तथा अश्वमेघ यज्ञ किया। उसी प्रकार रक्त पिपासु, दुर्मद, बर्बर हूणों को स्कन्ध गुप्त ने देश के बाहर खदेड़ा। स्कन्द गुप्त तक वीर गुप्त सम्राटों ने अपने देश, धर्म, संस्कृति की रक्षा करने मे सफलता प्राप्त की जिससे यह सभी अपनी चरम उन्नति पर पहुंची तथा उपरोक्त विदेशी आक्रमणों का भारत के ऊपर कोई प्रभाव नही पड़ा।

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