ashok ka dhamm in hindi;अपनी प्रजावत्सलता और अंहकार-रहित ह्रदय की उदारता तथा कृपालुता मे अशोक विश्व के राजाओं मे नितान्त अकेला था और आज भी है। भारतीय इतिहास गगन मे वह सर्वथा अनिन्ध और ससबे अधिक चमकने वाला तारा है। अशोक की यह प्रशंसा उसके लोक कल्याण, धम्म, भावना और नीति एवं उसके महान गुणों के कारण ही की जाती है।
प्रारम्भिक काल मे अशोक का धर्म
कल्हण के अनुसार अशोक ब्राह्मण धर्म का अनुयायी था तथा हिन्दू धर्म संस्कारों मे उसकी गहरी आस्था थी। वह हिंसा का विरोधी नही था। वह शिव की उनासना करता था किन्तु अशोक की धर्म सम्बन्धी ये मान्यताएँ कलिंग युद्ध तक सीमित रही।
कलिंग युद्ध के पश्चात् अशोक के धर्म की धारण
कलिंग युद्ध के बाद पश्चाताप की अग्नि से तप्ति होकर अशोक ने अपने शिलालेखों मे जिस धर्म की व्याख्या की है उसके आधार पर धर्म के लिए "धम्म" शब्द उत्कीर्ण होने के कारण सामान्तः अशोक द्वारा बौद्ध धर्म अंगीकार करने की अनुभूति होती है।
अशोक का धम्म (धर्म) किसे कहते है? (ashok ka dhamm kya tha)
अनेक विद्वान अशोक के " धम्म " का अर्थ बौद्ध धर्म से लगाते है परन्तु शिलालेखों से स्पष्ट है कि उसका अर्थ जीवन के सर्वमान्य नैतिक सिद्धांतों और व्यवहार से था। अशोक अपने दूसरे तथा सातवें स्तंभ लेखो मे धम्म की व्याख्या इस प्रकार करता है--
धर्म है साधुता, बहुत से अच्छे कल्याणकारी कार्य करना, कोई पाप न करना, मृदुता, दूसरों के प्रति व्यावहार मे मधुरता, दया, दान तथा शुचिता। धर्म है प्राणियों का वध न करना किसी भी प्रकार की जीव हिंसा न करना, माता-पिता तथा बड़ों की आज्ञा मानना। गुरूजनों के प्रति आदर, मित्र, परिचितों, संबंधियों, ब्राह्मण तथा श्रमणों के प्रति दानशीलता तथा उचित व्यवहार और दास तथा भृत्यों के प्रति उचित व्यवहार करना।
अशोक की धर्म (धम्म) सम्बन्धी मान्यताएं या लक्षण
बौद्ध ग्रंथ महावंश, दिव्यावदान, सुमंगलविलासिनी तथा सिंहल, चीनी, तिब्बती तथा इन देशों के यात्रियों फ्राह्रान, ह्रेनसांग, इत्सिंग द्वारा अशोक की धार्मिक मान्यताएं मात्र बौद्ध धर्म ग्रहण करने के कारण बौद्ध धर्म से प्रेरित दर्शायी गई है।
अशोक के धम्म के प्रधान लक्षण; पापहीनता, बहुकल्याण, आत्मनिरीक्षण, अहिंसा, सत्य बोलना, धर्मनुशासन, धर्ममंगल, कल्याण, दान, शौच, संयम, भाव शुद्धि, कृतज्ञता, सहिष्णुता, बड़ों का आदार करना, नैतिक आचरण।
डाॅ. स्मिथ और डाॅ. राधाकुमुद मुकर्जी के मतानुसार अशोक का धम्म सार्वभौम धर्म था क्योंकि उसमे सभी धर्मों के समान सिद्धांतों का वर्णन है। अशोक सर्वत्र " धम्म " का प्रचार-प्रसार करना चाहता था क्योंकि उसमे सभी धर्मों का सार विद्यमान था।
वस्तुतः अशोक का धर्म मानवीय भावनाओं से ओत-प्रोत था। डाॅ. रमाशंकर त्रिपाठी के अनुसार," जिस धर्म का स्वरूप उसने संसार के सम्मुख उपस्थित किया वह सभी सभी सम्मानित नैतिक सिद्धांतों तथा आचरणों का संग्रह है। उसने जीवन को सुखी तथा पवित्र बनाने के उद्देश्य से कुछ आन्तरिक गुणों तथा आचरणों का विधान किया है। अशोक महान का धर्म संकीर्णता तथा साम्प्रदायिकता से मुक्त था।
शिलालेक विशेषज्ञ फ्लीट के अनुसार ", अशोक का धर्म बौद्ध नही बल्कि राजधर्म (राजाज्ञा) था।,"
अशोक के धम्म के सिद्धांत, शिक्षाएं या विशेषताएं
1. अशोक का धम्म धर्म के मूल तत्वों से युक्त है। अशोक ने वैदिक धर्म के मूल तत्वों को सदा याद रखा। जैसे-- दया, करूणा, क्षमा, धृति, शौच इत्यादि बौद्ध और जैन धर्म मे भी यह मूल तत्व है।
2. अशोक के धम्म के नैतिकता और सदाचरण मूल आधार है।
3. अशोक के धम्म मे दूसरो के विचारों, विश्वासों, आस्था, नैतिकता और जीवन प्रणाली के प्रति सम्मान और सहिष्णुता रखने को विशेष रूप से कहा गया है।
4. अशोक के धम्म मे अहिंसा को अत्यधिक महत्व दिया गया है किसी जीव को न मारना, किसी जीव को न सताना साथ ही अपशब्द न बोलना, किसी का बुरा न चाहना और पशु-पक्षी, मानव, वृक्ष आदि की रक्षा करना और इसके लिये कार्य करना भी अहिंसा है।
5. ब्राह्मणों श्रमणों को दान, वृद्धों और दुखियों की सेवा तथा सम्बन्धियों, बन्धु बान्धवों, हितैषियों और मित्रों के प्रति स्नेहपूर्ण व्यवहार होना चाहिए।
6. अशोक के धम्म का एक आर्दश है मानव को भावनाओं की शुद्धता तथा पवित्रता के लिए साधुता, बहु कल्याण, दया, दान, सत्य, संयम, कृतज्ञता तथा माधुर्यपूर्ण करना है।
7. हितैषियों और मित्रों के प्रति स्नेहपूर्ण व्यवहार करना।
8. अशोक के धम्म का एक सिद्धांत सेवक तथा श्रमिकों के साथ सद्व्यवहार करना है।
7. अशोक के धर्म की मुख्य विशेषता लोक कल्याण है। धम्म मंगल अर्थात् प्राणिमात्र की रक्षा और विकास के लिये कार्य करना। विलासी जीवन से दूर रहना, मांस भक्षण न करना, वृक्षों को न काटना आदि लोक कल्याण के अंतर्गत ही माने जाते है।
8. अशोक के धम्म की एक विशेषता यह है कि अशोक का धम्म सार्वभौमिक है, प्रत्येक स्थान पर प्रत्येक व्यक्ति, प्रत्येक समय मे धम्म का पालन कर सकता है।
9. अल्प व्यय (कम खर्च) अल्प संग्रह (कम जोड़ना) करना चाहिए।
10. निष्ठुरता, क्रोध, अभिमान, ईर्ष्या दुर्गुणों से दूर रहकर कम से कम पाप करना चाहिए।
अशोक महान द्वारा प्रतिपादित धार्मिक विचार सार्वभौमिक, सहिष्णुतापूर्ण, दार्शनिक, पक्षविहीन, व्यावहारिक, अहिंसक तथा जीवन मे नैतिक आचरण के पालन को महत्व देते हुए अन्य धर्मों मे आस्था प्रकट कर सभी धर्मों का सार थे।
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Ashok ke dhamm ka mahatva
जवाब देंहटाएंअशोक धम्म क्या था इसके कोई पांच सिद्धांत लिखिए
हटाएंAshok ke dhmm ki alochna btaye
जवाब देंहटाएंVery Good
जवाब देंहटाएंBahut sahi
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