10/19/2020

गुप्त काल का सामाजिक जीवन

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गुप्त काल का सामाजिक जीवन (gupt kaal ka samajik jivan)

गुप्त सम्राट परम वैष्णव थे। अतः हिन्दू सांस्कृतिक पुनरूत्थान के साथ ही वर्ण एवं आश्रम व्यवस्था की समाज मे पुनः स्थानपना हुई। समाज चार वर्णों यथा- ब्राह्राण, क्षत्रिय, वैश्य एवं शुद्र मे विभाजित था। पर वर्ण व्यवस्था के नियम कठोर नही थे। लोगों की स्वेच्छा, रूचि के अनुसार कार्य के अनुरूप वर्ण मे परिवर्तन की स्वतंत्रता थी।
गुप्त काल का सामाजिक जीवन इस प्रकार था--

1. ब्राह्मण 

गुप्त काल मे ब्राह्मणो का समाज मे उच्च स्थान था। ब्राह्मणों का आदर किया जाता था। पठन-पाठन अनुनष्ठान एवं आध्यात्मिक चिन्तन ब्राह्मणो के प्रमुख कार्य थे। गुप्तकाल मे ब्राह्मणो को को कई सुविधाएं दी जाती थी। राज पुरोहित राजनीतिक विचार-विमर्थ मे भी भाग लेता था। आवश्यक होने पर शस्त्र धारण कर ब्राह्मण राजा के साथ युद्धस्थल मे भी जाते थे। ब्राह्राण का वध निषिद्ध था। 

2. क्षत्रिय

गुप्तकालीन समाज मे क्षत्रिय वर्ग प्रतिष्ठापित था। गुप्तों से पहले पूर्व मौर्यकाल मे बौद्ध धर्म के प्रभाव से क्षत्रियों को ब्राह्मणों से ज्यादा प्रधानता मिल गई थी। क्योंकि भगवान बुद्ध एवं महावीर स्वामी का जन्म क्षरिय कुल मे हुआ था। पर गुप्तकाल मे ब्राह्मण एवं क्षत्रियों को समाज मे स्तर प्राप्त हो गया था। ह्रेनसांग ने लिखा है " ब्राह्मण एवं क्षत्रिय आडम्बरविहीन, सरल और पवित्र जीवनयापन कर मितव्ययी होथे थे। गुप्तकाल मे ब्राह्मणो के समान क्षत्रिय उपजातियों मे विभक्त नही थे। उनका एक ही वर्ण एवं एक ही कार्य प्रजा का पालन करना होता था।

3. वैश्य 

वैश्यों का कार्य वाणिज्य एवं व्यापार था। गुप्तकालीन वैश्यों के पास अपार सम्पत्ति हो गई थी। अतः इनकी समितियां सद्कार्य मे धन व्यय करती थी। वैश्यों द्वारा औषधालय, विहार आदि के निर्माण कराने के अभिलेखीय साक्ष्य मिलते है। वैश्यों के कार्य को कई ब्राह्मणों तथा क्षत्रियों ने भी अपना लिया था। गुप्तकाल मे वैश्य भी राजकार्य, मंत्री और सैनिक कार्यों को ग्रहण करने लगे थे।

कायस्थ 

गुप्तकालीन समाज मे कायस्थों को लेखक ( लिपिक ) का कार्य देने के उदाहरण मिलते है। संभवतः ब्राह्मण एवं क्षत्रियों मे जो लिपिक का कार्य करते थे, वह कायस्थ कहलाने लगे। यह वर्ग राजकीय षड्यंत्र तथा कूटनीति मे पारंगत हो गया था।

4. शुद्र 

शुद्रों का मुख्य कर्तव्य- ब्राह्मण, क्षत्रिय एवं वैश्य वर्ग की सेवा करने था। पर शुद्र गुप्तकाल मे अछूत नही समझे जाते थे। शुद्र वर्ग के लोग मंत्ररहित यज्ञ कर सकते थे। गुप्तकाल मे ब्राह्मण, क्षत्रिय एवं वैश्य वर्ग द्वारा शुद्र कन्य से विवाह के उदाहरण मिलते है। 

5. अंत्यज या अछूत 

गुप्तकालीन समाज मे चारों वर्णों के अलावा ऐसे वर्ग थे, जिनको चारो वर्ग अपने मे मानने को तैयार नही थे। फाहियान एवं ह्रेनसांग ने अंत्यजों का उल्लेख किया है। अंत्यज चाणडाल, निषाद आदि गाँव से बाहर रहते थे। चाण्डाल का कार्य शिकार करना, मछली मारना एवं मांस बेचना था। नगर मे प्रवेश करते समय यह लड़की बजाकर, ढोल बजाकर प्रवेश करते थे जिससे की लोगो को बता चल जाए और वह इनके मार्ग से दूर हो जाए। चाण्डाल शमशानों की देखभाल करते एवं कफन आदि सामन को प्राप्त करते थे।

6. छुआछूत 

गुप्तकाल मे ब्राह्मण अन्य वर्णो के यहाँ भोजन कर सकते थे। गुप्तकालीन समाज मे चारों वर्णों मे छुआछूत ज्यादा नही थी। सिर्फ चाण्डाल नीच कार्य एवं वर्णसंकर होने के कारण अछूत थे। 

7. विवाह संबंध 

गुप्तकालीन समाज के चारो वर्णो मे पारस्परिक संबंध मधुर थे। यह आपस मे विवाह संबंध भी करते थे। इस काल मे बहुविवाह एवं विधवा विवाह का भी प्रचलन था। विधवा विवाह का उदाहरण चन्द्रगुप्त द्वितीय द्वारा अपने भाई की विधता पत्नी ध्रुवदेवी से विवाह करना है। गुप्तकाल मे बाल विवाह होने के उदाहरण नही मिलते। 

8. सती प्रथा

गुप्तकाल मे सती प्रथा का ज्यादा चलन नही था। सती होने विधवा की इच्छा पर निर्भर होता था।

9. स्त्री शिक्षा 

गुप्तकालीन अभिलेखीय एवं साहित्यिक प्रमाण के आधार पर यह ज्ञात होता है कि गुप्त काल मे स्त्री की शिक्षा की उचित व्यवस्था थी। गुप्तकाल मे सामान्य नारी पढ़ी-लिखी होती थी। निर्धन स्त्रियों द्वारा अध्यापन कार्य पर जीविका निर्वाह का भी साहित्यिक उल्लेख मिलता है। गुप्तकालीन " अश्वमेघ यज्ञ " वाली मुद्राओं पर महारानियों के चित्र उत्कीर्ण है।

10. पत्नि गृहलक्ष्मी 

गुप्तकालीन समाज मे स्त्रियों को यथोचित सम्मान दिया जाता था। कौटुम्बिक व्यवस्था मे भी पत्नी को गृहलक्ष्मी का स्थान प्राप्त था। यह मान्यता थी कि जिस कुल मे नारी का अपमान हो या उसे कष्ट हो वह कुल नष्ट हो जाता है। अर्द्धांगिनी के रूप मे बगैर कोई भी धार्मिक कार्य वैध नही था। गुप्तकालीन ग्रंथ " कामसूत्र " मे पत्नि हेतु वात्स्यायन ने लिखा है," गृहस्थ का कार्य सुचारू रूप से सम्पन्न करना, पति के गृह आगमन पर सुन्दर वेशभूषा धारण कर उसका स्वागत एवं पति के साथ उत्सव आदि मे भाग लेना पत्नी का कर्तव्य है।

11. आमोद-प्रमोद के साधन 

गुप्तकालीन समाज का भौतिक जीवन आमोद-प्रमोद से परिपूर्ण, सुख-सम्पन्न एवं आनन्दमय था। लोगो के मकान अभिजात्यपूर्ण थे। मनोरंजन हेतु नाट्यगृह, चित्रशाला, प्रेक्षागृह, संगीतगृह बने हुए थे। गुप्तकाल मे नगर एवं भवनो के उद्यानों का वर्णन कालिदास और शुद्रक की साहित्यिक कृतियों मे मिलता है। वस्तुतः उद्यन भी आमोद-प्रमोद एवं शान-शौकत भरे जीवन के परिचायक है।

12. वस्त्र

गुप्तकालीन मूर्तियों से ज्ञात होता है कि पुरुष अधोवस्त्र (धोती) एवं उत्तरीय (दुपट्टा) धारण करते थे। स्त्रियां साड़ी और अंगिया पहनती थीं। साधारण लोग सूती वस्त्र धारण करते थे। ऊनी एवं रेशमी वस्त्र का प्रयोग धनाढ्य वर्ग करते थे। 

13. आभूषण

पुरूष और स्त्रीयां दोनो ही आभूषण के शौकिन थे। आभूषण रत्नजड़ित होते थे। सोने के कंगन, कटिबन्ध, पैरों मे घुँघरू वाले गहने, कई तरह की अंगूठियाँ एवं कर्णफूल गुप्तकालीन चित्रों मे दिखाई देते है।

14. भोजन 

लोगों की रूचि विभिन्न तरह के भोजन बनाकर गृहण करने की थी। शुद्रक ने चावल के साथ ही गुड़, घी, मोदक तथा पूप का उल्लेख भोज्य सामग्री मे किया है। सामान्य भारतीयों का भोजन चावल, दाल, रोटी, दूध, घी एवं विभिन्न तरह की मिठाइयाँ थी।

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