2/12/2022

समानता अर्थ, प्रकार, महत्व

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प्रश्न; समानता की परिभाषा दीजिए तथा इसके प्रकार बताइए।

अथवा" समानता का क्या अर्थ हैं? इसके विभिन्न प्रकारों की विवेचना कीजिए। 
उत्तर-- 
1789 की फ्रांसीसी क्रांति के जो तीन आधार थे वे ही आज प्रजातंत्र की आधारशिला हैं। ये तीन प्रवृत्तियाँ हैं-- स्वतंत्रता, समानता और भ्रातृत्व। फ्रांह की क्रांति के बाद सभी सभ्य देशों में समानता स्थापित किये जाने की माँग की जाने लगी। फ्रांस की क्रांति का तो नारा ही था," मनुष्य स्वतंत्र और समान पैदा हुए हैं और अपने अधिकारों के संबंध में भी समान और स्वतंत्र हैं।" बाद में अमेरिका ने भी 'स्वतंत्रता संबंधी घोषणा-पत्र' में इसे स्वीकार किया। उसमें कहा गया," हम इस सत्य को स्वयंसिद्ध मानते हैं कि सब मनुष्य समान पैदा हुए हैं।" 1917 की रूसी क्रांति का भी उद्देश्य असमानता को समाप्त करना था।

समानता का अर्थ (samanta kya hai)

samanta meaning in hindi;समानता का यह अर्थ नही है कि प्रत्येक के साथ एक जैसा व्यवहार किया जाये बल्कि समानता का सही अर्थ यह है कि कोई विशेष अधिकार वाला वर्ग न रहे और सबको उन्नति के समान अवसर प्राप्त हों।

सभी व्यक्ति एक समान नही हो सकते, क्योंकि उनमे प्रतिभा अलग-अलग होती है। बुद्धि और विवेक की मात्र भिन्न होती है। व्यावहारिक दृष्टि से केवल इतना हो सकता है कि राज्य मे सभी समान अवसर उपलब्ध हो। वास्तव मे, मनुष्यों मे गुणात्मक दृष्टि से प्रकृति-प्रदत्त समानता होती।

स्वतंत्रता की तरह समानता भी मानपरक राजनीतिक सिद्धांत का महत्त्वपूर्ण विषय हैं। इसके अतिरिक्त, स्वतंत्रता की तरह यह भी ऐसा विषय है जिसका अध्ययन अन्य संबंधित विषयों जैस बन्धुता (सहयोग) तथा न्याय से पृथक करके नही किया जा सकता। वास्तव में, समानता की अवधारणा एक ओर स्वतंत्रता के सिद्धांत और दूसरी ओर न्याय के सिद्धांत के एक समवाय का निर्माण करती है। इसी कारण, महान् विचारकों तथा क्रान्तिकारी लोगों ने इसे अपने स्वतंत्रता तथा सामाजिक परिवर्तन के आंदोलनों का अभिन्न अंग माना हैं। उदाहरण के लिए, सामाजिक समझौते की चिन्तनधारा के प्रतिनिधि विचारक (जाॅन लाॅक) ने कहा कि," प्रकृति का कानून सारी मानव जाति को, जो केवल इसी से सलाह लेगी, यह शिक्षा देता है कि सभी के समान तथा स्वतंत्र होने के कारण किसी को दूसरे के जीवन, स्वास्थ्य, स्वतंत्रता अथवा संपत्ति को क्षति नहीं पहुँचानी चाहिए।

समानता पर मानवता का दावा उतना ही पुराना है जितना स्वतंत्रता पर। किंतु आधुनिक युग के प्रारम्भ से पहले बहुत कम संगठित राजनीतिक समुदायों ने इसे स्पष्ट रूप से अपना राजनीतिक और सामाजिक लक्ष्य बनाया था। हमेशा किसी न किसी प्रकार की असमानता के विरोध में सामाजिक और राजनीतिक आंदोलन होते रहे हैं। कभी यह आंदोलन असमानताओं को दूर करने में असफल रहे, कभी इन्हें कुचल दिया गया और जहाँ इन्हें असमानताओं को दूर करने में सफलता मिल भी गई, वहाँ नई असमानताएँ उत्पन्न हो गई। पूँजीवाद के विकास ने व्यक्ति को उसकी प्रतिभा और क्षमता के अनुसार अवसर की समानता देने को सामाजिक और आर्थिक लक्ष्य बना दिया। उदारवादी लोकतांत्रिक देशों में राजनीतिक समानता को अधिकार का दर्जा मिल गया। कानून का शासन और कानून की नज़रों में सब को समान समझने की भावना उनकी संस्थाओं का अंग बन गई। किन्तु जल्दी ही यह महसूस किया जाने लगा कि जब तक व्यापक सामाजिक और आर्थिक विषमताएँ मौजूद रहेंगी तब तक इस समानता से आबादी के एक छोटे से हिस्से के हितों की ही रक्षा होगी। आज भी समानता पर मानवता का दावा एक महान् आदर्श और प्रेरणादायक शक्ति ही है। इससे सिर्फ व्यक्तियों और सामाजिक वर्गों को ही नहीं बल्कि विभिन्न देशों को भी प्रेरणा मिलती है, जो असमानताओं से भरी दुनिया में एक दूसरे के साथ रहने पर मजबूर हैं। 

मानव मूल्य की दृष्टि से समानता एक ऐसा लक्ष्य है जिसके लिए व्यक्तियों, सामाजिक समूहों और राष्ट्रों को मिलकर प्रयास करना चाहिए। स्वतंत्रता और न्याय जैसे अन्य मानव मूल्यों से इसका नज़दीकी संबंध है। 

भारत में समानता के प्रति हमारी चिंता का कारण सिर्फ व्यापक आर्थिक विषमताएँ ही नहीं, बल्कि असमान संबंधों पर आधारित सामाजिक व्यवस्था भी है। भारत में विभिन्न सामाजिक वर्गों के बीच, पुरुष और स्त्री के बीच एक और दूसरे क्षेत्र के बीच, ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों के बीच बड़े पैमाने पर असमानता है।

समानता की आवश्यक शर्तें

 समानता के लिए दो बातों की विशेष आवश्कयता है-- 

1. खास विशेषाधिकारों का अनस्तित्व (Absence of Special Privilege) और 

2. सभी के लिए उचित अवसरों की व्यवस्था (Provision of Adequate Opportunities for All)। 

विशेषाधिकारों के अनस्तित्व का अभिप्राय है कि समाज में किसी भी व्यक्ति को धन, वंश या पद की दृष्टि से ऐसी कुछ विशेष सुविधाएँ उपलब्ध नहीं होगी जिनसे दूसरे लोग वंचित हों। उचित अवसरों की व्यवस्था का अभिप्राय यह है कि प्रत्येक व्यक्ति के लिए ऐसे साधन सुलभ किए जाएँ जिनके द्वारा वह अपनी अंतर्निहित क्षमताओं का पूरा विकास कर सके। आधुनिक संसार में साधारणतया अवसरों की उपलब्धि पैतृक परिस्थितियों के ऊपर निर्भर रहती हैं। जिन बच्चों के माता-पिता धनी और शिक्षित होते हैं, वे बच्चे आसानी से ऊँची शिक्षा प्राप्त करके समाज में अपने लिए महत्त्वपूर्ण स्थान बना सकते है। इसके विपरीत मजदूर माता-पिता के बच्चों को आगे चलकर अधिकतर शारीरिक श्रम का ही पल्ला पकड़ना पड़ता है।

समानता का महत्व 

व्यक्ति के लिए जितना महत्व स्वतन्त्रता का है, उतना ही महत्व समानता का है क्योंकि समानता के बिना स्वतन्त्रता का वास्तविक आनन्द प्राप्त नहीं किया जा सकता है। समानता की माँग में सदैव से ही प्रचलित विषमताओं का रूप बदला है वैसे-वैसे समानता का अर्थ भी बदल रहा है। समानता का सबसे पहले औचित्य धार्मिक आधार पर स्थापित किया गया। इसके अनुसार सभी मानव इसलिए समान हैं कि वे सभी एक ही ईश्वर के रूप हैं। 

पश्चिम में यूनान व रोमन व्यवस्थाएँ मूलत विषमता पर आधारित थी। यदि समानता की कोई बात है भी तो यह केवल नागरिकों तक सीमित थी। मानव जाति के बड़े भाग नारी, दास और बच्चों को नागरिक नहीं माना जाता था। इस प्रकार समानता की माँग आधुनिक युग की ही देन है। 

समानता का औचित्य का आधार क्या है? क्या मानव जन्म से समान या असमान है? क्या वे एक ही ज्योति के एक जैसे-- प्रतिरूप हैं या नहीं? इन प्रश्नों पर लेखक न तो सहमत हुए हैं और न ही होंगे। 

समानता का अर्थ; साधारण शब्दों में समानता का अर्थ यह लिया जाता है कि सब व्यक्तियों को समान दर्जा प्राप्त हो और सबको बराबर वेतन मिले। परन्तु व्यवहार में यह सम्भव नहीं हैं। इसका कारण यह है कि प्रकृति ने मानव को असमान बनाया है। रूप, रंग, बुद्धि, शक्ति के आधार पर व्यक्ति में काफी भिन्नताएं हैं तो हम समान मानने वाले कौन होते हैं लास्की ने कहा है कि, " समानता का यह मतलब नहीं कि प्रत्येक व्यक्ति के साथ एक जैसा व्यवहार किया जाए। यदि ईंट ढोने वाले को वेतन एक प्रसिद्ध गणितज्ञ अथवा वैज्ञानिक के बराबर दिया गया तो इससे समाज का उददेश्य ही नष्ट हो जाएगा। इसलिए समानता का यह अर्थ है कि कोई विशेष अधिकार वाला वर्ग न उन्नति के समान अवसर प्राप्त हो।"

समानता के प्रकार या रूप (samanta ke prakar)

समानता के निम्नलिखित प्रकार हैं--

1. प्राकृतिक समानता 

प्राकृतिक समानता का अर्थ है कि प्रकृति ने सभी व्यक्तियों को समान रूप से पैदा किया है, अतः सभी समान है। इस प्रकार सभी व्यक्ति जन्म से समान होते है और उनमे कोई असमानता नही पाई जाती है।

2. नागरिक समानता 

नागरिकता समानता से तात्पर्य है कि सभी लोगों को नागरिक अधिकार और स्वतंत्रताएं समान रूप से मिलनी चाहिए। कानून की दृष्टि से सभी नागरिक बराबर होने चाहिए। राज्य व समाज द्वारा नागरिकों को जो स्वतंत्रता प्रदान की जाती है वह नागरिक स्वतंत्रता होती है, जैसे धार्मिक, भाषण, प्रेस आदि की स्वतंत्रता।

3. राजनीतिक समानता 

सभी लोगों को धर्म, रंग, जाति, जन्म आदि के आधार पर बिना किसी भेदभाव किये समान रूप से राजनीतिक अधिकार मिलना राजनीतिक स्वतंत्रता है। इस प्रकार राज्य की नजर मे सभी को समान माना जाना चाहिए।

4. आर्थिक समानता 

आर्थिक समानता के बिना राजनीतिक समानता मिथ्या हैं। आर्थिक समानता से हमारा अभिप्राय धन के समान वितरण अथवा आय की समानता से नही हैं, बल्कि इसका तात्पर्य यह है कि समस्त नागरिकों की प्राथमिक जरूरतों की पूर्ति की जाए। तत्पश्चात यदि कुछ राष्ट्रीय बचत हो तो उसका वितरण सामाजिक हित मे हो। समाजवाद और साम्यवाद इसी तथ्य की पुष्टि करते है। 

5. कानूनी समानता 

कानूनी समानता से तात्पर्य है की सभी कानून की दृष्टि मे समान है। किसी के साथ पक्षपात ना हो। रूसो का कथन है " सभी नागरिकों को कानूनी समानता प्रदान करना नागरिक समाज की प्रमुख विशेषता है। 

6. सामाजिक समानता 

प्राकृतिक अथवा नैतिक समानता का आदर्श विचार मात्र हैं, जबकि सामाजिक समानता एक वास्तविकता हैं। हमने समानता के वास्तविक अर्थ के विषय में जो कुछ कहा वह यहाँ लागू होता हैं। इसका यह निहितार्थ है कि सबके अधिकार तथा अवसर समान हों ताकि प्रत्येक अपने व्यक्तित्व का सर्वोत्तम संभव विकास कर सके। इसका सर्वोत्तम रूप कानून के संसार में देखा जा सकता है जहाँ हम कानून के समक्ष समानता के सिद्धांत तथा सबको इनके समान संरक्षण के बारे में देखते हैं। देश का कानून सर्वोच्च पदों पर स्थिति राष्ट्रपति अथवा प्रधानमंत्री से लेकर सबसे नीचे सिपाही या चौकीदार पर समान रूप में लागू होता हैं। न्यायिक व्यवस्था किसी की सामाजिक अथवा आर्थिक स्थिति के भेदभाव से रहित होकर सभी के अधिकारों की रक्षा करती हैं।

7. नैतिक समानता 

इसका तात्पर्य यह है कि राज्य को देश की सभी संस्कृतियों, भाषाओं तथा साहित्य को विकसित होने का समान अवसर व सुविधा प्रदान करनी चाहिए। उसे सबके साथ निष्क्षता का व्यवहार करना चाहिए। साथ ही साथ सबको शिक्षा का समान अधिकार प्राप्त होना चाहिए।

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